निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

पेशेवर प्रबन्ध के महत्व | पेशेवर प्रबन्ध के भूमिका | Importance of Professional Management in Hindi | Role of professional management in Hindi

पेशेवर प्रबन्ध के महत्व | पेशेवर प्रबन्ध के भूमिका | Importance of Professional Management in Hindi | Role of professional management in Hindi

पेशेवर प्रबन्ध के महत्व या भूमिका

(Importance or Role of Professional Management)

पेशेवर प्रबन्ध के महत्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता हैं:

(1) आधुनिक व्यवसाय में पेशेवर प्रबन्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है। (Professional Management plays Most Important Role in Modern Business)-

प्रोफेसर रॉबिन्स के अनुसार, “कोई भी व्यवसाय स्वयं नहीं चल सकता, चाहे वह संवेग (Momentum) की स्थिति में क्यों न हो। उसके लिए इसे नियमित उद्दीपन (Repeated Stimulus) की आवश्यकता पड़ती है।” इस नियमित उद्दीपन की पूर्ति का एकमात्र स्रोत होता है व्यवसाय का मस्तिष्क अर्थात् प्रबन्ध विख्यात प्रबन्ध विशेषज्ञ पीटर एफ. ड्रकर के शब्दों में, “प्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्व होता है। उसके नेतृत्व के अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन मात्र ही रह जाते हैं, कभी उत्पादक नहीं बन पाते।” जिस प्रकार एक मनुष्य का जितना अधिक विवेकशील मस्तिष्क होगा, वह उतने ही अधिक चमत्कारिक कार्य कर सकेगा। ठीक इसी प्रकार जितना अधिक चतुर, क्रियाशील एवं योग्य प्रशासन अथवा प्रबन्धक होगा, उक्त उद्योग अथवा व्यवसाय का उत्पादन एवं संगठन उतना ही श्रेष्ठ होगा। अतः प्रबन्धक उद्योग अथवा व्यवसाय की वह जीवनदायिनी शक्ति है जो संगठन को शक्ति देती है, संचालित करती है और नियंत्रण में रखती है। व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में आये दिन श्रम- पूँजी के संघर्ष, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में हड़तालें, तालाबन्दी आदि के समाचार सामान्य घटनाएँ हैं। इनके कारण पारस्परिक सम्बन्धों में तो कटुता आती है, साथ ही अनैतिक एवं पारस्परिक गलाकाट प्रतियोगिता निरंतर बढ़ता हुआ उत्पादन-व्यय, मात्रा एवं किस्म में गिरता हुआ उत्पादन, बढ़ते हुए मूल्य स्तरों के प्रति उपभोक्ताओं का विरोध, निरंतर बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार आदि का ही सामना समाज को करना पड़ता है। प्रबन्ध के सिद्धांतों के उदार प्रयोगों द्वारा ही इस अशांति को दूर किया जा सकता है। इसी कारण आधुनिक विश्व में पेशेवर प्रबन्ध का महत्व व्यवसाय एवं उद्योग में दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है।

(2) औद्योगिक समाज के एक प्रभाव समूह के रूप में (Asa Leading Group in Industrial Society) —

आधुनिक औद्योगिक समाज में पेशेवर प्रबन्ध एक पृथक प्रभावी समूह के रूप में माना जाता है। आज हम ‘श्रम तथा पूँजी’ की बातें न करके ‘पेशेवर प्रबन्ध तथा श्रम’ की बातें करते हैं। एक व्यक्ति की तुलना में प्रबन्धक एक समूह के रूप में समस्त व्यक्तियों के सहकारी प्रयासों का नियोजन, निर्देशन, संगठन एवं नियंत्रण अधिक कुशलतापूर्वक कर सकता है। यह व्यवसाय  एवं उद्योग से सम्बंधित सभी वर्गों के हितों का संरक्षण करते हुए नेतृत्वकारी प्रभावी समूह के रूप में सामान्य लक्ष्यों की पूर्ति को सम्भव बनाता है। यही कारण है कि व्यवसाय एवं उद्योग की बागडोर अब पूँजीपति प्रबन्धकों के हाथों से हटकर प्रबन्ध एवं प्रशासन के नेतृत्वकारी प्रभावी समूह के हाथों में निरंतर हस्तान्तरित होती चली आ रही है।

(3) गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने एवं अस्तित्व के संरक्षण के लिए (To Face Cut-throat Competition and Survival of Existence) –

आधुनिक उत्पादन का क्षेत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका है। जैसे-जैसे उत्पादन का आकार एवं क्षेत्र बढ़ता गया, वैसे-वैसे प्रतियोगिता में भी वृद्धि होती गयी। आज के उत्पादक एवं निर्माता को न केवल स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उसे तीव्र प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि विद्वानों का यह कथन है कि आधुनिक व्यवसाय एवं उद्योग अस्तित्व, संरक्षण तथा जटिल एवं गलाकाट प्रतियोगिता से परिपूर्ण है। इसका सामना करने के लिए आधुनिक उत्पादक कम लागत पर श्रेष्ठतम वस्तुओं का उत्पादन करने में संलग्न है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हमारा उत्पादन मूल्य में सस्ता, गुण-स्तर में उच्च तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रमाणों में खरा उतरने वाला हो। इसके लिए आधुनिक व्यवसायी में कुछ विशिष्ट गुणों का होना आवश्यक है, जैसे- दूरदर्शिता, नियोजन की क्षमता, संगठन नियंत्रण, समन्वय, निर्देशन, निर्णय लेना, प्रतियोगिता तथा सरकारी नीतियों का ज्ञान आदि। आज का उपभोक्ता क्या चाहता है एवं उसे अधिकतम संतुष्टि किस प्रकार से प्रदान की जा सकती है, उसे इन बातों का ज्ञान होना भी आवश्यक है। ये सभी व्यवसाय प्रशासन एवं प्रबन्ध के महत्वपूर्ण अंग हैं एवं उसकी विषय-सामग्री हैं। अतः इसके लिए व्यवसाय प्रशासन एवं पेशेवर प्रबन्ध का गहन अध्ययन करना परम आवश्यक है।

(4) वृहत उत्पादन को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए (To Run Large Scale Production Efficiently) —

आज का युग वृहत उत्पादन का युग है। इसके लिए एक विशाल एवं सुदृढ़ संगठन की आवश्यकता पड़ती है। कुछ संस्थाओं का तो विस्तार ही राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है, जैसे-प्रोक्टर एण्ड गेम्बल, जनरल मोटर्स, मैकडोनाल्ड्स आदि। इनका कुशलतापूर्वक संचालन करने के लिए लाखों स्त्री-पुरुषों को एक कुशल संगठन सूत्र से बाँधकर विभिन्न विभागों, क्षेत्रों एवं कार्यों से सम्बद्ध किया जाता है तथा उन्हें एक विशाल जन- समुदाय का पथ-प्रदर्शन, नेतृत्व तथा नियंत्रण के लिए एक सुयोग्य प्रशासन एवं प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। थोड़ी-सी भी असावधानी होने पर समूची व्यावसायिक इकाई के छिन्न-भिन्न हो जाने का भय उत्पन्न हो सकता है।

(5) आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्कारों आदि का अधिकतम लाभ उठाने के लिए (To take Maximum Advantage of the Modern Scientific and Technological Inventions etc.) —

आज विज्ञान सभी क्षेत्रों में दिन दूनी रात चौगुनी गति से प्रगति कर रहा है। फिर व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र इससे कैसे वंचित रह सकता है? परिणामस्वरूप आज हाथ से चलने वाले यंत्रों का स्थान स्वचालित यंत्रों ने ले लिया है। पहले किसी भी यंत्र को चलाने के लिए अनेक श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती थी किन्तु आज बटन दबाते ही सारा कारखाना एवं संयंत्र स्वयं कार्य करने लगते हैं। अणु-शक्ति के आविष्कार एवं उपयोग ने तो एक प्रकार से तहलका ही मचा रखा है। दिन-प्रतिदिन हो रहे ये वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्कार नई उलझने तथा समन्वय की समस्या भी पैदा कर रहे हैं। इन सभी उलझनों के कारण एक आधुनिक प्रशासन एवं प्रबन्ध इन आविष्कारों को अपनाने में लगभग असफल सिद्ध हुआ है। भारत का निजी औद्योगिक ही सुलझा सकता है। स्वामित्वशाली तथा रूढ़िवादी परम्परागत प्रशासन एवं प्रबन्ध क्षेत्र इनका ज्वलन्त उदाहरण है। अतः इन नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्कारों का सहारा लेने एवं समन्वय स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि एक नया प्रशासक एवं प्रबन्धक वर्ग उसका स्थान ले।

(6) श्रम-समस्याओं के संतोषजनक ढंग से समाधान के लिए (To Solve the Labour Problems Satisfactorily) –

एक समय था जब अधिकांश उद्योगपतियों की यह मान्यता थीं कि श्रमिकों को जितना परेशान एवं दयनीय स्थिति में रखा जायेगा, वह उतना ही अधिक कार्य करेगा। पूँजीपतियों की इस शोषण की मनोवृत्ति के विरुद्ध श्रमिकों ने एक साथ होकर अपनी आवाज बुलन्द की। परिणामस्वरूप एक शक्ति का उदय हुआ। श्रमिकों ने श्रम-संघों का निर्माण किया तथा हड़तालों आदि का सहारा लिया। श्रम-पूंजी के बीच की खाई दिनों-दिन बढ़ती गयी। उनके इस संघर्ष ने पूँजीपति प्रबन्धकों को अपनी श्रम-नीति में आमूल परिवर्तन करने के लिए बाध्य किया। यह अनुभव किया गया कि श्रम उत्पादन का एक सजीव अनिवार्य अंग है। अतः इसकी कुशलता में वृद्धि करनी होगी। श्रम जितना अधिक कुशल होगा, वह उतना ही अधिक मितव्ययी होगा। श्रम की कुशलता में वृद्धि करने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी समस्याओं का संतोषजनक ढंग से समाधान किया जाये तथा श्रम-पूँजी के मध्य की खाई को पाटा जाये। इसके लिए ‘मानसिक क्रांति’ की आवश्यकता प्रतीत हुई। इसकी पूर्ति आधुनिक व्यावसायिक प्रशासन एवं प्रबन्ध ही करा सकता है। आधुनिक प्रशासन एवं पेशेवर ऐसे तरीकों की खोज करता है जिनके द्वारा श्रमिकों को अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित किया जा सके।

(7) उत्पत्ति के विभिन्न साधनों में प्रभावी समन्वय स्थापित करने के लिए (To Co- ordinate the Different Factors of Production) –

प्रबन्ध मिश्रित अर्थव्यवस्था का एक शक्तिशाली तत्व है। यह उत्पादन का एक पृथक एवं महत्वपूर्ण घटक है। आधुनिक प्रशासन एवं प्रबन्ध हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार के उत्पादन में सहायता प्रदान करने वाली विभिन्न शक्तियों को एकत्र किया जाये एवं उनमें प्रभावी समन्वय स्थापित किया जाये। आज का औद्योगिक उत्पादन एक अत्यन्त जटिल रूप धारण कर चुका है। इस उत्पादन की प्रक्रिया के मध्य स्वस्थ एवं प्रभावी प्रबन्ध अथवा प्रशासन की आवश्यकता है, ताकि समन्वय स्थापित किया जा सके। इसके माध्यम से उत्पादन के विभिन्न तत्वों जैसे—भूमि, श्रम, पूँजी, सामग्री एवं कच्चा माल का कुशल चयन, व्यवस्था तथा समन्वय करके कुशल उत्पादन की प्राप्ति की जा सकती है। एक बार अमेरिका के एक निगम के अध्यक्ष ने अपने भाषण के दौरान कहा था- हम मोटरगाड़ी, वायुयान, रेफ्रीजेरटर, रेडियो अथवा जूतों के फीते नहीं बनाते। हम मनुष्यों का निर्माण करते हैं और मनुष्य निर्माण करते हैं इन वस्तुओं का…।” यह मनुष्य और कुछ न होकर कुशल प्रबन्ध ही है।

(8) सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए (To Discharge Social Responsibilities) —

आज के प्रशासन एवं प्रवन्ध का कार्य केवल व्यवसाय अथवा उद्योग की स्थापना करने, आन्तरिक व्यवस्था करने, संचालन करने एवं उससे लाभ कमाने तक ही सीमित नहीं है अपितु आधुनिक प्रशासन एवं प्रबन्ध को अनेक सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी पूरा करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, विनियोक्ता पूँजी पर उचित प्रत्याय (Return) तथा पूँजी की सुरक्षा चाहता है; कर्मचारीगण अच्छी मजदूरी, उत्तम कार्य की दशाएँ, कार्य की सुरक्षा एवं उचित मानवीय व्यवहार की अपेक्षा करते हैं; सरकार बनाये गये कानूनों के पालन की अपेक्षा करती है और चाहती है कि स्वस्थ प्रतियोगिता बनाये रखते हुए देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हो; उपभोक्ता कम मूल्यों पर अच्छी किस्म की वस्तुएँ चाहता है; समाज उच्चतर जीवन-स्तर चाहता है और अपने साधनों की उत्पादकता को बनाये रखने की इच्छा प्रकट करता है। अब आधुनिक पेशेवर प्रबन्ध इन सभी वर्गों के प्रति अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करता है।

(9) निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्षणों की प्राप्ति के लिए (To Attain the Established Objectives and Goals)—

जब कभी भी कोई उद्यम दिन की रोशनी देखता है, उसे उसके साथ ही उद्देश्य अथवा लक्ष्य अथवा उनके क्रम की प्राप्ति करनी होती है। प्रत्येक दिन का सूरज निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के साथ उगता है। इन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति कुशल प्रशासन एवं प्रबन्ध के द्वारा ही की जा सकती है। यह एक निर्विवाद तथ्य अथवा सत्य है कि एकाकी व्यक्ति की तुलना में व्यक्तियों का समूह निश्चित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति अच्छी तरह से कर सकता है। यह कार्य संगठन द्वारा पूरा किया जाता है जो कि प्रशासन एवं प्रबन्ध का एक अनिवार्य अंग है। संगठन एक प्रकार से दो या दो से अधिक व्यक्तियों की मिल-जुलकर कार्य करने की प्रणाली है।

(10) न्यूनतम प्रयत्नों से अधिकतम परिणामों की प्राप्ति के लिए ( To Attain Maximum Results with Minimum Efforts)-

प्रबन्ध के द्वारा न्यूनतम प्रयत्नों से अधिकतम परिणामों की उपलब्धि की जा सकती हैं। उर्विक के शब्दों में, “कोई भी विचारधारा, कोई भी वाद, कोई भी राजनीतिक सिद्धांत प्रदत्त मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से न्यूनतम प्रयत्नों के द्वारा अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति नहीं करा सकता। यह तो केवल दोष रहित प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव है………।” यही कारण है कि प्रबन्ध का महत्व एक समन्वयकारी शक्ति के रूप में निरंतर बढ़ता चला जा रहा है। एक समन्वयकारी शक्ति के रूप में प्रबन्ध कार्य समूहों के नये विचार, नयी कल्पनाएँ तथा नयी दृष्टियाँ प्रदान करता है और उनके कार्यों को इस तरह समन्वित करता है जिससे न्यूनतम लागत पर अधिकतम एवं सर्वोच्च किस्म के परिणामों की उपलब्धि सुगम हो जाती है।

(11) किसी संस्था के बाहरी एवं आन्तरिक पक्षों में समन्वय स्थापित करने के लिए (To Establish Co-ordination between External and Internal Parties of an Institution)-

समन्वय प्रशासन एवं प्रबन्ध का सार (Essence) है। इसका कारण यह है कि इसके अभाव में सभी क्रियाएँ चाहे वे बाहरी हो अथवा आन्तरिक, व्यर्थ हैं। आन्तरिक पक्षों से आशय उन कर्मचारियों एवं अधिकारियों से है जो संस्था के विभिन्न पदों पर आसीन हैं। इन कर्मचारियों एवं अधिकारियों की क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने में प्रबन्ध का महत्वपूर्ण हाथ होता है। इसके विपरीत, बाहरी पक्षों से आशय अधिकारियों, सरकार, श्रम-संघों एवं समाज के अन्य वर्गों आदि से है। इनमें समन्वय भी प्रबन्ध द्वारा ही स्थापित किया जा सकता है। न्यूमैन एवं समर (Newman and Summer) के शब्दों में, “प्रबन्धक उपक्रम की आन्तरिक एवं बाहरी क्रियाओं में समन्वय स्थापित करते हैं तथा उपक्रम से सम्बन्धित व्यक्तियों को एक सामान्य उद्देश्य के लिए कार्य करने हेतु प्रेरित करते हैं।”

(12) उत्पादन के सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिए (For Maximum Utilisation of Limited Resources of Production) –

उत्पादन के विभिन्न सीमित साधनों अर्थात् श्रम, पूँजी, यंत्र एवं सामग्री आदि का अधिकतम उपयोग करने में प्रशासन एवं प्रबन्ध का महत्वपूर्ण योगदान होता है। डगलस फोस्टर (Douglas Foster) के अनुसार, “प्रबन्ध ऐसी परिस्थितियों एवं सम्बन्धों के उत्पन्न करने से सम्बन्धित है जो एक उपक्रम के सभी साधनों का पूर्ण उपयोग करती है।” हरबर्ट एन. केसन के अनुसार, “प्रत्येक बड़ी संस्था में पूरी गाड़ी भर सोना छिपा होता है, इसे साधनों का सदुपयोग करके एवं अपव्यय को रोककर प्राप्त किया जा सकता है।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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