निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

पेशेवर प्रबन्ध की अवधारणाएं | प्रबन्ध एक पेशा है | Concepts of professional management in Hindi | Management is a Profession in Hindi

पेशेवर प्रबन्ध की अवधारणाएं | प्रबन्ध एक पेशा है | Concepts of professional management in Hindi | Management is a Profession in Hindi

पेशेवर प्रबन्ध की अवधारणाएं

(Concepts of professional management)

पेशेवर प्रवन्ध की विभिन्न अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं:

(Short Answer Type Question)

  1. सामूहिक प्रयास व सहभागिता अवधारणा (Group Effort and Participation Concept)- इसके अनुसार मनुष्य एकाकी रूप में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता। निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सामूहिक प्रयासों को व्यवस्थित (अर्थात् नियोजन, संगठन, निर्देशन, प्रभावी सम्प्रेषण, अभिप्रेरण, समन्वयन व नियंत्रण द्वारा) करना होगा एवं सहभागिता द्वारा समूह में मधुर सम्बन्ध स्थापित करने होंगे।
  2. वर्ग अवधारणा (Class Concept) – वर्ग के रूप में प्रबन्ध व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी संस्था के प्रबन्ध का कार्य करता है। इस प्रकार प्रबन्ध का अर्थ प्रबन्ध करने वाले व्यक्तियों से है जिन्हें प्रबन्धक कहा जाता है। ये प्रबन्धक संस्था में कार्यरत कर्मचारियों की क्रियाओं का मार्गदर्शन एवं नियंत्रण करते हैं और निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। प्रबन्धकों में उच्चस्तरीय प्रबन्धकों से लेकर निम्नतम स्तर का पर्यवेक्षकीय दायित्व निर्वाह करने वाले पर्यवेक्षकों, निरीक्षकों आदि को भी सम्मिलित किया जाता है।
  3. अधिकार सत्ता अवधारणा (Authority Concept) – पेशेवर प्रबन्ध का अधिकार सत्ता की प्रणाली भी कहा गया है। यह प्रणाली निर्णय लेने और उनको क्रियान्वित करने की अधिकार सत्ता से बनी होती है। हरबिसन तथा मायर्स (Harbison and Mysers) के अनुसार, पेशेवर प्रबन्ध नियम बनाने तथा नियमों का पालन कराने वाली संस्था है जो अधीनस्थों एवं अधिकारियों के सम्बन्ध में धागों से बँधी होती है।” यदि हम इतिहास पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होगा कि प्रबन्ध का अधिनायकवादी रूप ही सर्वप्रथम सामने आया और तत्पश्चात् ही क्रमशः मानवतावादी, संवैधानिक तथा वर्तमान में प्रजातांत्रिक एवं सहभागी रूप विकसित हुआ।
  4. वैज्ञानिक अवधारणा (Scientific Concept)– कुछ विद्वानों के अनुसार वैज्ञानिक अवधारणा आधुनिक प्रबन्ध की आधारशिला है। प्रबन्ध की वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध एक ऐसा विज्ञान है जो नियोजन, संगठन, समन्वय, संचालन, अभिप्रेरण तथा नियंत्रण से सम्बंधित सिद्धांतों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। अतः पेशेवर प्रवन्ध के अन्तर्गत की जाने वाली प्रत्येक क्रिया का कुछ न कुछ वैज्ञानिक आधार होता है।

वैज्ञानिक प्रबन्ध अवधारणा की एक आधारभूत मान्यता है कि “प्रत्येक कार्य को की एक सर्वोत्तम विधि है।” प्रबन्ध से आशय कार्य करने की सर्वोत्तम विधि की खोज करना एवं न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन को सम्भव बनाना है। इस अवधारणा के जन्मदाता टेलर के शब्दों में, “प्रबन्ध यह जानने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं, तत्पश्चात् यह देखना है कि आप इसे सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्वक करते हैं।”

  1. कार्यात्मक अवधारणा (Functional Concept)- प्रबन्ध की कार्यात्मक अवधारणा इसे एक प्रक्रिया के रूप में मानती है। इस अवधारणा को मानने वालों में हेनरी फेयोल, पीटर एफ. डूकर, थियो हैमन, जॉर्ज आर. टैरी, कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनैल, मिलवर्ड, ब्रेच, मैक्फारलैण्ड आदि प्रमुख हैं। जी. ई. मिलवर्ड के अनुसार, “प्रबन्ध एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नीतियों का क्रियान्वयन, नियोजन एवं पर्यवेक्षण किया जाता है।” यदि देखा जाये तो आधुनिक प्रबन्ध अवधारणा का व्यावहारिक रूप प्रबन्ध की कार्यात्मक अवधारणा ही है।

इस अवधारणा के अनुसार, पेशेवर प्रवन्ध नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियंत्रण आदि कार्यों की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। कार्यात्मक या प्रक्रिया अवधारणा यह मानकर चलती है कि प्रबन्ध के कुछ सिद्धांत होते हैं जो सार्वभौमिक हैं और इन सिद्धांतों के आधार पर ही प्रबन्ध-प्रक्रिया को सम्पादित किया जाना चाहिए।

  1. विधा अवधारणा (Discipline Concept)- विधा अथवा विषय अथवा ज्ञान की शाखा अवधारणा के रूप में प्रबन्ध एक व्यवस्थित ज्ञान है जिसका शिक्षण-प्रशिक्षण किया जा सकता है। इस अर्थ में प्रबन्ध भी प्राकृतिक एवं भौतिक विधाओं के समान ही एक विधा है जिसके अनेक अनुयायी हैं जो प्रबन्ध ज्ञान की निरंतर खोज एवं सत्यापन तथा ज्ञान के प्रसार में लगे हुए हैं। विधा के रूप में प्रबन्ध, विज्ञान व कला का मिश्रण माना गया है।
  2. नेतृत्व अवधारणा (Leadership Concept)- पेशेवर प्रबन्ध की इस अवधारणा का आशय एक ऐसी विचार-शक्ति से है जो संगठन के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु नेतृत्व द्वारा सम्पूर्ण संगठन में प्रयुक्त की जाती है। सामान्य स्तर पर औपचारिक रूप से इस प्रकार के नेतृत्व का निर्माण एवं विकास संगठन के वातावरण एवं उसके सदस्यों की आवश्यकताओं का पूर्ण रूप से ध्यान देते हुए किया जाता है। संस्था में ऐसा नेतृत्व व्यापक रूप से लागू होने पर ही सम्पूर्ण संगठन में कुशलता, संतुलन एवं निरंतरता की आशा की जा सकती है। कुशल नेतृत्व द्वारा ही उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों में वृद्धि की जा सकती है।
  3. निर्णयन की अवधारणा (Decision-making Concept) — इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध एक निर्णय प्रक्रिया है क्योंकि प्रबन्धकों का अधिकांश समय निर्णय लेने में ही व्यतीत होता है। निर्णयों की गुणवत्ता पर ही लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव होती है। श्रेष्ठ निर्णयन हेतु आवश्यक है कि प्रबन्धक न केवल उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं व विद्यमान परिस्थितियों को ध्यान में रखे बल्कि उन निर्णयों के भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को भी पर्याप्त महत्व दें।
  4. सार्वभौमिकता की अवधारणा (Universality Concept)— प्रबन्ध की सार्वभौमिकता की अवधारणा हेनरी फेयोल की देन है। उनके अनुसार, “प्रबन्ध एक सार्वभौमिक प्रत्येक संस्था में, चाहे वह धार्मिक हो, सामाजिक हो अथवा व्यावसायिक एवं औद्योगिक हो, समान रूप से सम्पन्न की जाती है।” लारेंस ए, एप्पले के अनुसार, “जो प्रबन्ध कर सकता है, वह किसी का भी प्रबन्ध कर सकता है।” थियो हैमन के अनुसार, “प्रबन्ध के सिद्धांत विश्व- व्यापी है। वे किसी भी प्रकार के उपक्रम में, जहाँ पर मनुष्य के समन्वित प्रयास होते हैं, लागू किये जा सकते हैं।” आधुनिक प्रबन्धक प्रबन्ध की सार्वभौमिकता की अवधारणा पर आज सबसे अधिक बल देते हैं। यही कारण है कि इस अवधारणा का आज द्रुतगति से विकास हो रहा है।

‘प्रबन्ध एक पेशा है।’ स्पष्ट कीजिए-

प्रबन्ध एक पेशा है (Management is a Profession) –

आधुनिक प्रबन्ध विशेषज्ञ प्रबन्ध को पेशा मानते हैं क्योंकि इसमें वे सभी लक्षण पाये जाते हैं जो कि पेशों में होते हैं। इसका कारण यह है कि किसी भी पेशे की भाँति प्रबन्ध का भी अपना एक शास्त्र है, अपने सिद्धांत हैं, अपनी नीतियाँ एवं नियम आदि हैं जिनका प्रबन्ध करने में उपयोग किया जाता है। अब यह अनुभव किया जाने लगा है कि बिना प्रबन्धशास्त्र के अध्ययन के कोई भी व्यक्ति प्रबन्ध का कार्य सफलतापूर्वक नहीं चला सकता है। विश्व के समुन्नत राष्ट्रों, जैसे- अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इंग्लैण्ड, रूस आदि में प्रबन्ध का विकास एक स्वतंत्र पेशे के रूप में हो चुका है। हमारे देश में भी अब पूँजीपति प्रबन्धकों का स्थान धीरे-धीरे पेशेवर प्रबन्धक ग्रहण करते जा रहे हैं। शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थानों, सलाहकार संस्थाओं तथा प्रबन्धकीय संस्थाओं के माध्यम से आज प्रबन्धकीय ज्ञान का बड़ी तेजी से हमारे देश में प्रसार हो रहा है। प्रवन्धकीय सलाहकार (Management Consultants) संस्थाओं की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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