
बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए नैतिक आचार संहिता | बहुराष्ट्रीय नियमों के नियमन के लिए सुझाव | Code of Ethical Conduct for Multinational Corporations in Hindi | Suggestions for Regulation of Multinational Rules in Hindi
बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए नैतिक आचार संहिता
(ETHICAL CODE OF CONDUCT FOR MNCs)
U.N. General Assembly ने निम्नलिखित नैतिक आचार संहिता बनाई है, जिसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को पालन करने की अपेक्षा की गई। इस आचार संहिता के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
(1) मेजबान देश के घरेलू कानूनों व नियमों का पालन करना।
(2) अनुचित व्यापार व्यवहार में संलग्न न होना, जैसे- धोखे-धड़ी वाले विज्ञापन न देना, कार्टल (Cartel) का निर्माण न करना अर्थात् निगमों को ऐसे सामूहिक समझौते नहीं करने चाहिए, जिनका उद्देश्य कीमतें बढ़ाना, प्रतिस्पर्द्धा को कम करना आदि हो ।
(3) तकनीको सुधारों के लिये अनुसंधान व शोध का कार्य करना।
(4) मेजबान देश के राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध कार्य न करना।
(5) मेजबान देश के सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध न जाना।
(6) मेजबान देश के राजनीतिक मुद्दों में दखलअंदाजी न करना।
(7) करों का समय पर भुगतान करना।
(8) कर्मचारियों को उचित वेतन, अच्छी कार्यदशाएँ देना तथा उनके साथ अच्छा बर्ताव करना।
(9) एकाधिकार व्यवहारों (Monopolistic) में संलग्न न होना।
बहुराष्ट्रीय निगमों के नियमन के लिए सुझाव
(SUGGESTIONS FOR REGULATING MNCs)
नई आर्थिक नीति में निजी क्षेत्र के व्यापक विकास व विस्तार तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश के अधिकाधिक सुअवसर प्रदान किए जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह सम्भव है कि नीति के तहत देश के कुछ विशेष उत्पादों का अनावश्यक रूप से लाभ तथा बहुसंख्यक जनसंख्या के हितों की उपेक्षा होती हुई न पाई जाए। साथ ही भुगतान संतुलन की विफलता को दूर करने व अर्थव्यवस्था की समृद्धि की मृगमरीचिका में यह भी सम्भव है कि भारतीय अर्थव्यवस्था निकट भविष्य में पूरी तरह से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जकड़ में न आ जाए।
बहुराष्ट्रीय निगमों के नियमन के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
- गैर-प्राथमिकता वाली वस्तुओं, जैसे- नहाने का साबुन, सौंदर्य प्रसाधन, पेय पदार्थ, पेस्ट आदि के उत्पादन पर कड़ा प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
- बहुराष्ट्रीय निगमों को विशेष अवधि तक विनियोग के लिए स्वीकृति दी जा सकती है।
- इन निगमों को इस बात के लिए बाध्य किया जा सकता है कि वे अपने खोज, शोध व विकास का एक निश्चित भाग आतिथ्य देश के लिए आरक्षित रखें।
- बहुराष्ट्रीय निगमों को पिछड़े क्षेत्रों (Backward Areas) में स्थापित करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए।
- MNCs के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे अपने लाभ का एक हिस्सा घरेलू देशा में अनुसंधान व विकास कार्यों पर खर्च करें, जिससे घरेलू देश में तकनीकी सुधार हो सके।
- बहुराष्ट्रीय निगमों पर निर्भरता को यथासम्भव कम किया जाना चाहिए। इसके लिए उचित आर्थिक नीति अपनाई जानी चाहिए।
- सरकार को बहुराष्ट्रीय निगमों की बाजार पर नियंत्रण की एकाधिकारी तथा अल्पाधिकारी प्रवृत्तियों पर सतर्क दृष्टि रखनी चाहिए। इन निगमों को उपभोक्ताओं तथा स्थानीय उत्पादकों का शोषण नहीं करने देना चाहिए।
- बहुराष्ट्रीय निगमों को यह बात स्पष्ट रूप ज्ञात होनी चाहिए। यदि वे राष्ट्र के हित में कार्य नहीं करेंगे तो उनका राष्ट्रीयकरण किया जा सकता है। राष्ट्रीयकरण का डर बहुराष्ट्रीय निगमों को अपनी अनुचित कार्यवाहियाँ करने से रोकने में सहायक सिद्ध होगा।
- आतिथ्य देश निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा सकता है। वस्तुतः भारत में घरेलू उदारीकरण व बाहरी उदारीकरण की प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलने से कुछ कठिनाइयों आने लगी हैं, लेकिन प्रयत्न करने पर हम आधुनिकीकरण, मानवीय विकास व सामाजिक न्याय में ताल-मेल बैठाते हुए अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पर्द्धात्मक व अधिक कार्यकुशल बना सकते हैं। अन्य देशों ने पहले घरेलू उदारीकरण को सुदृढ़ किया और अपनी अर्थव्यवस्था को सबल व सक्षम बनाया और बाद में बाहरी उदारीकरण का मार्ग अपनाया। समयाभाव के कारण हमें विश्व की प्रतियोगिता में आगे बढ़ने के लिए एक साथ दोनों मोर्चों पर कार्य करना पड़ेगा।
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