निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

भारत में पेशेवर प्रबन्ध की आवश्यकता | Need of Professional management in India in Hindi

भारत में पेशेवर प्रबन्ध की आवश्यकता | Need of Professional management in India in Hindi

भारत में पेशेवर प्रबन्ध की आवश्यकता (Need of Professional management in India)

भारत एक विकासशील देश है। प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों की दृष्टि से यह एक धनी राष्ट्र है। यदि देश के हित में विधिवत् इन साधनों का उपयोग किया जाये तो देश को शीघ्र ही विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाकर खड़ा किया जा सकता है। देश में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से एक समाजवादी समाज की रचना का बीड़ा हमारी सरकार ने उठाया है। देश का द्रुतगति से आर्थिक विकास करने के लिए आधारभूत एवं भारी उद्योगों की स्थापना की गयी है। देश में हरित क्रांति के क्षेत्र में विस्तार करने हेतु कई कृषि कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। यही नहीं, हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है। भारत में औद्योगिक प्रगति में गतिशीलता लाने के लिए हमारी सरकार ने उदारीकरण की नीति का अनुकरण किया है जिसके परिणामस्वरूप विशाल आकार एवं पूंजी वाले विदेशी उद्योग, जिनके पास आधुनिकतम तकनीकी ज्ञान एवं प्रबन्ध कुशलता है, बड़ी संख्या में बड़ी तेजी से भारत में प्रवेश कर रहे हैं। उधर आयातों में लगाये प्रतिबंध को उदार करने तथा अनेक वस्तुओं के आयात पर रियायत दिये जाने एवं प्रतिबन्धों को हटाये जाने के परिणामस्वरूप भारी मात्रा में विदेशी सस्ता माल विशेषकर सामान्य उपभोग का माल विशाल संख्या वाले भारत में प्रवेश कर रहा है। इतना होते हुए भी हम अपना वांछित स्तरों पर आर्थिक विकास नहीं कर पाये हैं। इसके कई कारण हैं। हमारी जनसंख्या 125 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम उत्पादन उतनी मात्रा में नहीं बढ़ा पा रहे हैं। देश का राजनीतिक वातावरण दिन-प्रतिदिन दूषित एवं भ्रष्ट होता जा रहा है। दल-बदल तो हमारे नेताओं की पोशाक बन गयी है। श्रम-पूँजी के विवाद आये दिन होते रहते हैं। कारखानों में हड़तालें एवं तालाबन्दी तो एक आम बात बन गयी है। हमारे यहाँ उत्पादन की लागत में बड़ा ही अपव्यय होता है। विभिन्न उत्पादकों एवं निर्माताओं में असहयोग है तथा व्यवसाय का संगठन बड़ा ही दूषित, अपर्याप्त एवं असंतोषजनक है। घिसी-पिटी मशीनों एवं परम्परागत तकनीकी ज्ञान तथा प्रबन्ध से ओत-प्रोत हमारे उद्योग विदेशी उद्योगों से होने वाले प्रतिस्पर्द्धा के आगे नहीं टिक पा रहे हैं। भारत के प्रमुख उद्योगों, जैसे-कपड़ा उद्योग, इस्पात उद्योग आदि भी घुटने टेक रहे हैं। यही नहीं, हमारी उत्पादन सामग्री निम्न स्तर की है। औद्योगिक अनुसंधान का अभाव है तथा देश में अप्रचलित विपणन विधियों का बोलबाला है। विशेषतः निजी क्षेत्र में बीमार औद्योगिक इकाइयों की संख्या दिनोंदिन निरंतर बढ़ती जा रही है। हमारा श्रमिक अज्ञानी, अकुशल एवं अशिक्षित है। कर्मशीलता के स्थान पर आलस्य एवं भाग्यवादिता का बोलबाला है। पूँजीपतियों द्वारा हमारी श्रम-शक्ति तथा उपभोक्ता वर्ग दोनों का तरह-तरह से शोषण किया जाता है। हमारा सारा औद्योगिक क्षेत्र ही मंदी के घेरे में आ चुका है। बेकारी की समस्या दिनों-दिन भयंकर रूप धारण करती चली जा रही है। हमारे साधन सीमित हैं। अतः अब हम उनका दुरुपयोग किया जाना अधिक समय तक सहन नहीं कर सकेंगे। हमारे देश में पूँजी का अभाव है। जो कुछ पूँजी है भी, उसमें से अधिकांश पूँजी शर्मीली होने के कारण तालों एवं तहखानों में बंद पड़ी रहती है। आज भी लगभग 35 करोड़ लोग जिनकी वार्षिक आय 15,000₹. से कम है, गरीबी की रेखा के नीचे स्तर पर जीवन-यापन कर रहे हैं।

उपर्युक्त समस्याओं का समाधान करने के लिए भारत में सुनियोजित प्रबन्ध की सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गाँधी के शब्दों में, “हमारे जैसे विकासशील समाज के लिए प्रबन्ध का सदैव ही अधिकाधिक योगदान होता है।” हिन्दुस्तान लीवर्स लि. के भूतपूर्व अध्यक्ष पी. एल. टण्डन के शब्दों में, “हम देख चुके हैं कि श्रम, पूँजी एवं कच्चे माल से स्वतः आर्थिक विकास नहीं हो जाता है। इसके लिए प्रबन्धकीय ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है जिससे अधिकाधिक परिणाम प्राप्त किये जा सकें। जहाँ पर साधनों का प्रबन्ध अच्छा हुआ है, वहाँ परिणाम भी अच्छे प्राप्त हुए हैं.………”। प्रो. ए. एन. सरीन के शब्दों में, “अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि विकासशील देशों में मुख्य अन्तर तकनीकी न होकर प्रबन्धकीय है। विकसित तकनीक का तो आयात किया जा सकता है किन्तु प्रबन्धकीय योग्यता हमारे समाज की आवश्यकताओं एवं स्वभाव के अनुकूल देश में ही तैयार करनी होगी।” भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी के शब्दों में, “भारत न्यूनतम समय में आधुनिकतम तकनीकी ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। इस दिशा में आज प्रबन्ध की सर्वाधिक महत्ता है।” भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के अनुसार, “भारत की दो मूलभूत समस्याएँ हैं-(i) गरीबी तथा (ii) बेकारी। इन दोनों का समाधान कुशल पेशेवर प्रबन्ध में निहित है।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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