प्रबन्धकीय पारिश्रमिक | प्रबन्धकीय पारिश्रमिक के निर्धारण हेतु आधार | प्रभावी पूँजी से आशय

प्रबन्धकीय पारिश्रमिक | प्रबन्धकीय पारिश्रमिक के निर्धारण हेतु आधार | प्रभावी पूँजी से आशय | Managerial remuneration in Hindi | Basis for determination of managerial remuneration in Hindi | Meaning of effective capital in Hindi
प्रबन्धकीय पारिश्रमिक (Managerial Remuneration)
कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पब्लिक कम्पनी में प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की उच्चतम सीमा निर्धारित की गयी है और साथ ही साथ विभिन्न प्रबन्धकीय व्यक्तियों के पारिश्रमिक को भी विनियमित किया गया है। इन उपबंधों के निम्नलिखित आधार हैं:
(1) एक कुशल प्रबन्ध को प्रोत्साहन देना और कम्पनी के प्रबन्ध में उपगत (overhead) व्ययों को वास्तविक बनाना;
(2) यह सुनिश्चित करना कि प्रबन्धकीय व्यय कम्पनी के साधनों एवं लाभ अर्जित करने की सामर्थ्य से अधिक या असंगत न हो जाएं;
(3) भारतीय संविधान के अन्तर्गत उपबंधित नीति निदेशक तत्वों पर अमल करना जो सरकार के ऊपर यह दायित्व सौंपते हैं कि वह अर्थ शक्ति के केन्द्रीकरण के विरुद्ध आवश्यक कदम उठाए।
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 197 द्वारा प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की अधिकतम एवं न्यूनतम सीमाएं निर्धारित की गई हैं।
संचालकों, पूर्णकालिक संचालकों तथा प्रबन्ध संचालकों के पारिश्रमिक का निर्धारण कम्पनी के अन्तर्नियम या साधारण बैठक में सामान्य प्रस्ताव द्वारा किया जाता है। यदि अन्तर्नियम में पारिश्रमिक का निर्धारण विशेष प्रस्ताव द्वारा होना है तो इसे विशेष प्रस्ताव द्वारा ही निश्चित किया जाना चाहिए, परन्तु यह अधिनियम में निर्धारित सीमा से अधिक नहीं हो सकता।
प्रभावी पूँजी से आशय (Meaning of effective capital)
(1) प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की गणना करने के उद्देश्य से ‘प्रभावी पूंजी’ का तात्पर्य निम्नलिखित के योग में सेः
(i) चुकता अंश पूंजी (अंश आवेदन राशि एवं अंशों के विरुद्ध अग्रिम को छोड़कर);
(ii) अंश प्रीमियम खाते का जमा कोष;
(iii) संचिति एवं कोष (पुनर्मूल्यांकन संचिति को छोड़कर);
(iv) दीर्घकालीन ऋण एवं एक वर्ष बाद पुनर्भुगतान वाली जमाएं (कार्यशील पूंजी, ऋण, अधिविकर्ष, ऋण पर देय व्याज एवं अन्य अल्पकालीन ऋण को छोड़कर) ।
निम्नलिखित के योग को घटाने से है:
(i) विनियोग (एक विनियोग कम्पनी द्वारा किए गए विनियोगों को छोड़कर जिसका मुख्य व्यवसाय अंशों, स्टॉक, ऋणपत्रों एवं अन्य प्रतिभूतियों से लाभ प्राप्त करना है),
(ii) अपलिखित न की गई संकलित हानियां,
(iii) अपलिखित न किए गए प्रारम्भिक व्यय ।
(2) जब प्रबन्ध कर्मियों की नियुक्ति कम्पनी के समामेलन वर्ष में की जाती है तब प्रभावी पूंजी की गणना उनकी नियुक्ति तिथि से की जाती है। अन्य किसी मामले में प्रभावी पूंजी की गणना गत वित्तीय वर्ष की समाप्ति के अन्तिम दिन के आधार पर की जाती है जिस गत वर्ष में प्रबन्ध- कर्मियों की नियुक्ति की जाती है।
अनुलाभ (Perquisites)- अनुलाभ में कम्पनी द्वारा अपने प्रबन्ध-कर्मियों को दी जाने वाली उन सुविधाओं को शामिल किया जाता है जो वेतन एवं भत्तों के अलावा होती हैं। अनुलाभ सदैव वस्तु या सेवा के रूप में दिए जाते हैं। एक प्रबन्ध-कर्मी निम्नलिखित प्रकार के अनुलाभ पाने के लिए भी योग्य होता है और ऐसे अनुलाभों का मूल्य कम्पनी द्वारा पर्याप्त लाभ लेने की स्थिति में दिए जाने वाले पारिश्रमिक की सीमा में शामिल नहीं किया जाता है:
(1) कम्पनी द्वारा भविष्य निधि, सुपरऐनुएशन फण्ड अथवा वार्षिकी फण्ड में दिया गया अंशदान जो आयकर अधिनियम, 1961के अन्तर्गत कर-योग्य नहीं है।
(2) प्रत्येक पूर्ण की गई सेवा के लिए आधे माह के वेतन की दर से ग्रेच्युइटी का भुगतान।
(3) कार्यकाल की समाप्ति पर अवकाश के नकदीकरण की राशि।
(4) उपर्युक्त अनुलाभों के अलावा एक प्रबन्ध-कर्मी, अनिवासी भारतीय को शामिल करते हुए, निम्नलिखित प्रकार के अनुलाभ प्राप्त करने की पात्रता रखता है और ऐसे अनुलाभों का मूल्य भी कम्पनी द्वारा पर्याप्त लाभ होने की स्थिति में दिए जाने वाले पारिश्रमिक की सीमा में शामिल नहीं किया जाएगा:
(i) भारत में अथवा भारत के बाहर अध्ययनरत अधिकतम दो बच्चों के लिए 12,000₹ प्रति माह प्रति बच्चा अथवा अध्ययन के सम्बन्ध में किया गया वास्तविक व्यय, दोनों में जो भी कम हो, तक शिक्षा भत्ता की राशि।
(ii) भारत के बाहर रह रहे परिवार के लिए अथवा अध्ययनरत बच्चों के लिए घर आने- जाने का वर्ष में एक बार साधारण श्रेणी का किराया अथवा दो वर्ष में एक बार प्रथम श्रेणी के किराए की राशि।
(iii) कम्पनी द्वारा निर्धारित नियमानुसार भारत में प्रबन्ध-कर्मी और उसके परिवार पर व्यय की गई अवकाश यात्रा रियायत (Leave Travel Concession) की राशि
इस उद्देश्य के लिए परिवार का आशय, यदि प्रबन्ध-कर्मी पति है तो पत्नी, और यदि पत्नी है तो पति, आश्रित बच्चे और आश्रित माता-पिता से है।
(अनुसूची V, भाग IV)
(iv) प्रबन्धकीय संचालक या पूर्णकालिक संचालक बैठक फीस (Sitting fees) लेने का अधिकारी नहीं होगा। यदि कोई बैठक फीस दी जाती है तो उसे भत्ता मान लिया जाएगा व कुल प्रवन्धकीय सीमा में वह फीस सम्मिलित मानी जायेगी।
प्रत्येक सभा के लिए फीस के रूप में अधिकतम राशि रुपया 1 लाख तक की जा सकती है।
धारा 197 (57)
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