भूगोल / Geography

वनों के लाभ | Advantages of Forests in Hindi

वनों के लाभ | Advantages of Forests in Hindi

वनों से मनुष्य को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से कई लाभ होते हैं:

प्रत्यक्ष लाभ

वनों से निम्नलिखित प्रत्यक्ष लाभ हैं:

  1. भोजनः आदि मानव वनों में रहता था और वहीं से कद-मूल, फल अथवा पशु-पक्षियों के आखेट से अपनी उदर-पूर्ति करता था। आज भी कई आदिम जातियां अपने भोजन के लिए वनों पर ही निर्भर करती हैं।
  2. औद्योगिक कच्चा मालः वनों से बहुत से उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध होता है। कागज, दियासलाई, लाख, प्लाईवुड, रेशम, खेलों का सामान आदि कई उद्योग वनों पर ही निर्भर करते हैं।
  3. जड़ीबूटियां: वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलती हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार की औषधियां बनती हैं।
  4. ईंधन की लकड़ी: लकड़ी वनों की सबसे बड़ी उपज है और ईंधन का सबसे बड़ा साधन है। प्राचीन काल में तो मानव जाति ईंधन के लिए पूर्णतया लकड़ी पर ही निर्भर करती थी। आज जबकि कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत आदि ईंधन के कई विकल्प उपलब्ध हैं तो भी लकड़ी एक महत्वपूर्ण ईधन है।
  5. पशुओं के लिए चाराः कई वनों में विस्तृत क्षेत्र पर घास उगती है जो पशुओं के चारे का काम करती है। कई पशु पेड़-पौधों को खाकर अपना निर्वाह करते हैं।
  6. आजीविकाः वन असंख्य व्यक्तियों को आजीविका प्रदान करते हैं। लकड़ी को काटने, चीरने तथा वनों पर आधारित उद्योगों से लाखों को आजीविका मिलती है। भारत में लगभग 35 लाख व्यक्ति वनों से अपनी आजीविका कमाते हैं।
  7. सरकारी आय: वन्य उत्पादों से कर के रूप में सरकार को काफी आय होती है। सन् 1951-52 में सरकार को वनों से 15.22 करोड़ रुपये की आय हुई जो बढ़कर 2000-2001 में 250 करोड़ रुपये हो गई। इसके अतिरिक्त, प्रतिवर्ष लगभग 100 करोड़ रुपये मूल्य के वन उत्पादो का नि्यंत किया जाता है।

अप्रत्यक्ष लाभ

उपर्युक्त प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त वनों के अप्रत्यक्ष लाभ भी हैं। जो निम्नलिखित हैं।

  1. मदाअपरदन पर नियन्त्रणः वृक्षों की जड़ें मिटटी को दृढ़ता से जकड़े रखती हैं अत: जब कभी वर्षा होती है तो मिटटी अपने स्थान पर ही बनी रहती है। इस प्रकार मृदा-अपरदन को रोकने के लिए वन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आजकल देश के विभिन्न प्रदेशों में मृदा-अपरदन को रोकने के लिए वन लगाए जाते हैं।
  2. बाढ़ों की रोकथामः जब वर्षा होती है तो पेड़ों की जड़ें बहुत-सा पानी चूस लेती हैं और बाद में धीरे-धीरे उसे प्रयोग करती रहती हैं। इस प्रकार वन बाढों की रोकथाम में भी बड़ी सहायता करते हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों में वनों को काटने के कारण बाढों का प्रकोप बढ़ गया।
  3. मरुस्थलों के प्रसार पर नियन्त्रणः वन मरुस्थलों के प्रसार को रोकते हैं क्योंकि वृक्षों की जडें रेत के कणों को परस्पर जकड़े रखती हैं तथा रेत को आगे नहीं बढ़ने देती। दूसरे, मरुस्थल की जलवायु को धीरे-धीरे आर्द्र बनाने में वन प्रयत्नशील रहते हैं। दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी । पजाब तथा राजस्थान में मरुस्थलों को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर वन लगाए जा रहे हैं।
  4. 4. जलवायु पर प्रभाव: वनाच्छादित क्षेत्रों में पत्तों से वाष्पीकरण होता रहता है जिससे तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है। अत: जब आद्रे वायु इनके ऊपर से गुजरती है तो संघनन होता है जिससे बादलों का निर्माण होता है और वर्षा होती है।
  5. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना: भूमि पर गिरे हुए पेड़ों के पत्ते कुछ देर के बाद गल-सड़ जाते हैं और मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे मिट्टी में जीवांश (Humus) की मात्रा में वृद्धि होती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।

भारत में कुल क्षेत्रफल के केवल 20.59 प्रतिशत भाग पर ही वन पाए जाते हैं। अच्छे वनों के क्षेत्र और भी कम हैं। देश के सन्तुलित विकास के लिए देश के लगभग एक-तिहाई भाग पर वन पाए जाने चाहिए। जनसंख्या और पशुओं की अत्यधिक वृद्धि के कारण वन-सम्पदा का ह्रास तेजी से हुआ है। परन्तु अब वनों का संरक्षण एवं विकास आवश्यक हो गया है जिसके लिए उत्तम तरीकों की खोज करने तथा उन्हें अपनाने की आवश्यकता है। साथ ही तेजी से उगने वाले पेड़ों की जातियाँ लगाकर वनों के क्षेत्र का विस्तार करना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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