शिक्षाशास्त्र / Education

अनुदान पद्धति के प्रकार | अनुदान का स्वरूप एवं सामान्य नियम

अनुदान पद्धति के प्रकार | अनुदान का स्वरूप एवं सामान्य नियम

विभिन्न राज्यों में अनुदान पद्धति तथा उसके प्रकार (Grants in Aid System in different States & their types)

अनुदान के प्रकार और उनकी नामकरण पद्धति हर राज्य में अलग-अलग है । सबसे अधिक प्रचलित पोषण-पद्धति अनुदान जिसमें वेतन अनुदान, भवन अनुदान, सामग्री अनुदान और विशेष अनुदान आदि सम्मिलित रहते हैं। राज्यस्थान, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में अनुदानों को दो वर्गों में बाँटा गया है-

(i) आवर्तक अनुदान, जिसमें वेतन व सम्भरण व्यय सम्मिलित रहता है।

(ii) अनावर्तक अनुदान, जिसमें भवनों, सामग्री और फर्नीचर का व्यय सम्मिलित रहता है।

(1) साधारण अनुदान- इस अनुदान के उद्देश्य विद्यालय को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक आवर्तक व्यय को करने के लिए प्रबन्धकों की आंशिक वित्तीय सहायता करना है। अनुदान के लिए अनुमोदित विषयों में आमतौर पर शिक्षकों को वेतन, संस्थान व्यय, भविष्य निधि अंशदान, किराया, कर, सम्भरण व्यय, आरकस्मिक व्यय तथा शुल्क में छूट, छात्रवृत्तियों व दूसरी आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करने पर होने वाली हानि आदि सम्मिलित रहते हैं।

(2) वेतन अनुदान- इस अनुदान में शिक्षकों के वेतन व भत्ते, भविष्य निधि में अंशदान और प्रशिक्षण काल का वेतन आदि सम्मिलित रहते हैं। विभिन्न राज्यों के वेतन में अन्तर होने पर भी सभी को यह मान्य है कि एक ही प्रकार की सेवा तथा शैक्षिक योग्यता के आधार पर सरकारी विद्यालय के शिक्षकों के बराबर ही निजी विद्यालयों के शिक्षकों व क्लर्कों के वेतनमान भी निर्धारित किये गये हैं जबकि दूसरे राज्यों में सरकारी विद्यालयों में निर्धारित वेतनमानों की अनुकूलता में ही निजी प्रबन्धकों को वेतनमान निर्धारित करने पड़ते है।

(3) भवन अनुदान- विद्यालय अथवा छात्रावास के भवन को क्रय करने, बनाने, बढ़ाने, और सुधरवाने के लिए तथा उनका निर्माण करने अथवा खेल के मैदारन के लिए, जमीन लेने के लिए वह अनुदान दिया जाता है। कुछ राज्यों में समय-समय पर दिये जाने वाले अनावर्तक अनुदान में यह व्यय सम्मिलित रहता है। प्रान्तों में भवन अनुदानों के लिए कई शर्ते रखी गई हैं जैसे- (i) इसके लिए प्रार्थना-पत्र का तरीका (ii) विभाग द्वारा योजना का अनुमोदन क्योंकि उसे आश्वस्त होना चाहिए कि निर्माण की पूर्ति में आर्थिक सहायता सहायक होगी, (iii) बन्धक लेख प्रमाण का विधान, (iv) पूरा करने का सीमित समय (v) सार्वजनिक कार्यमंत्री का प्रमाण – पत्र, (vi) इसी प्रकार की और दूंसरी शर्ते।

(4) उपकरण अनुदान- इस अनुदान में फर्नीचर, यंत्र, उपकरण, रसायन, दृश्य-श्रव्य साधन, पुस्तकें और खेल सामग्री आदि का व्यय सम्मिलित रहता है। लगभग सभी राज्य इस प्रकार का अनुदान देते हैं। उत्तर प्रदेश में विद्यालयी मोटर, टाइप राइटर और दूसरी विशेष चीजों आदि की व्यवस्था की जाती है।

(5) विशेष अनुदान- उपरोक्त अनुदानों के अलावा बहुत से राज्यों में चुने हुये विद्यालयों को विशेष अनुदान दिये जाते हैं। उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में तथा विज्ञान, कृषि और तकनीकी विषयों की उन्नति के लिए विशेष अनुदान दिए जाते हैं। ऐच्छिक अनुदान देने की भी व्यवस्था है । अपने बचत में से आयोग परीक्षाफलों, विद्यार्थियों की अधिक उपस्थिति, अनुशासन और अध्ययन की गुणात्मकता तथा विद्यालयों में शिक्षण सुविधाओं को आधार मानकर उपयुक्त विद्यालय को योग्यता अनुदान देने में व्यय कर सकता है।

राज्यों में प्रचलित प्रत्येक सहायक अनुदान पद्धति के अपने लाभ और सीमाएँ हैं। तुल्यात्मक अनुदान पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय है तथा इससे धनी विद्यालय और धनी हो गये। घाटे की अनुदान पद्धति उन विद्यालयों के लिये अधिक उपयुक्त है जिनके आय कम और व्यय अधिक है। किन्तु इस सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि यह फिजूलखर्ची बढ़ाती है, स्थानीय साधनों को बढ़ाने के प्रयासों को कम कर देती है और इसके अतिरिक्त छोटी व बड़ी संस्थाओं को मिलने वाले प्रति व्यक्ति अनुदान में बहुत अधिक विषमता आ जाती है।

विद्यालयों के व्यय में वेतन व भक्ते मुख्य विषय हैं और वेतन अनुदान से सुरक्षित हो जाते हैं। ताकि वेतन में वृद्धि अनुदान से पूरी की जा सकें किन्तु यदि अनुदान के रूप में दिये गये व्यय का अनुपात कम है तो शिक्षकों के वेतन में कोई बड़ा परिवर्तन सम्भव नहीं है। प्रति व्यक्ति अनुदान से विद्यालयों में उपस्थिति सुरक्षित हो जाती है लेकिन वेतन के बढ़ते हुए व्यय को पूरा करने में वह असमर्थ रहा है, अत: यह पद्धति केवल शिक्षा से सम्बन्धित सामान के व्यय तक ही सीमित रहती है।

वास्तव में राज्य की परिस्थिति के अनुसार दो या अधिक प्रकार की पद्धतियों का योग ही वर्तमान काल में शिक्षा के प्रसार की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। एक धर्म –निरपेक्ष प्रजातन्त्र में जातीय तथा स्वामित्व अधिकार वाले विद्यालय उचित न जान पड़ते । अतएव उनको कम करना चाहिए और ऐसे निजी विद्यालयों को जो अपने पैरों पर खड़े होने के लिए शुल्क वसूल करते हैं। उनके द्वारा दी जाने वाली शैक्षिक सुविधाओं को गुणात्मकता के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

अनुदान के स्वरूप-

अनुदान कई रूपों में दिया जाता है और जिस रूप में अनुदान दिया जाता है। उसी के आधार पर उसका स्वरूप निर्धारित होता है। शिक्षा प्रशासन के अन्तर्गत निम्न आठ स्वरूपों में अनुदान दिया जाता है।

(i) नगद धनराशि के रूप में संस्थाओं को जो अनुदान दिया जाता है, उसे आर्थिक अनुदान (मॉनीटरी ग्राण्ट) कहते हैं।

(ii) धनराशि न मिलकर संस्था को केवल भूमि ही अनुदान में मिलती है ऐसे अनुदान को भूमि अनुदान कहते हैं।

(iii) संस्था की आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को आँके जाने वाले अनुदान को तदर्थ अनुदान कहते हैं।

(iv) संस्था को एक साथ दी जाने वाली राशि को एक मुश्त अनुदान कहते हैं।

(v) किसी शर्त को पूरा करने पर दिए जाने वाले अनुदान को सशर्त अनुदान कहते हैं। इस प्रकार का अनुदान दो प्रकार का होता है।

अ. तुल्य अनुदान जिसमें 50 प्रतिशत सरकार तथा 50 प्रतिशत अनुदान पाने वाले को अपने पास से व्यय करना पड़ता है।

. तुल्य अनुदान, जिसमें 50% सरकार तथा 50% अनुदान पाने वाले को अपने पास से व्यय करना पड़ता है।

(vi) बिना किसी शर्त को पूरा किये मिलने वाले अनुदान को अशर्त अनुदान कहते हैं।

(vii) जो धन शिक्षा के किसी विशिष्ट कार्य पर खर्च न करके सामान्य कार्यों पर व्यय किया जाये, उसे सामान्य अनुदान कहते हैं।

जो धन अनुदान के रूप में किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए दिया जाये, उसे विशिष्ट अनुदान कहते है।

सहायक अनुदान के सामान्य नियम

सहायक अनुदान के सामान्य नियम हैं जो प्रायः राज्यों में प्रचलित हैं।

  1. किसी संस्था के प्रारम्भ होने के लगभग तीन वर्ष बाद प्रायः सभी राज्यों में दिया जाता है।
  2. अनुदान दी जाने वाली संस्था के पास एक निश्चित मात्रा में आरक्षित निधि होना चाहिए।
  3. सहायक अनुदान प्राप्त करना किसी संस्था का अधिकार न होकर प्रार्थना-मात्र है। अनुदान प्राप्त न कर पाने पर कोई संस्था वैधानिक कार्यवाही नहीं कर सकती है।
  4. अनुदान तभी दिया जा सकता है जब उस संस्था को मान्यता प्राप्त हो।
  5. अनुदान लेने वाली संस्था को धर्म निरफेक्ष शिक्षा देना आवश्यक है।
  6. अनुदान प्राप्त करने वाली संस्थाओं में शिक्षकों की नियुक्ति के समय के नियम, वेतनमान, सेवाकाल की शर्तें तथा सेवा निवृत्ति की आयु आदि सभी नियमों को मानना आवश्यक है।
  7. अनुदान चाहने वाली संस्था की एक स्वीकार्य पंजीकृत प्रबन्धक समिति का होना आवश्यक है जो संस्था के आय-व्यय सम्बन्धी कार्यों को चलाये।
  8. अनुदान चाहने वाली संस्था में निर्धारित छात्रों की संख्या होनी चाहिए। छात्र संख्या कम होने पर अनुदान नहीं दिया जा सकता किन्तु बालिकाओं तथा पिछड़े वर्गों की शिक्षा संस्थाओं पर यह नियम लागू नहीं होगा।
  9. अनुदान प्राप्त करने वाली संस्था नियमानुसार वर्ष में कार्य करने के दिन तथा प्रतिदिन कार्य करने के घण्टे निर्धारित कर दिए जाते हैं।
  10. आवर्तक अनुदान की संस्था के स्वीकार्य व्यय पर ही खर्च करना चाहिए।
  11. अनावर्तक अनुदान कुल का 50 प्रतिशत से कम होता है और इसकी उच्चतम मीमा प्राय: प्रत्येक राज्य में निर्धारित कर दी जाती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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