बहुराष्ट्रीय निगमों पर सरकारी नियंत्रण

बहुराष्ट्रीय निगमों पर सरकारी नियंत्रण | भारत में विदेशी निजी पूजी तथा बहुराष्ट्रीय निगमों के सम्भावित खतरे

बहुराष्ट्रीय निगमों पर सरकारी नियंत्रण | भारत में विदेशी निजी पूजी तथा बहुराष्ट्रीय निगमों के सम्भावित खतरे | Government control over multinational corporations in Hindi | Potential threats of foreign private capital and multinational corporations in India in Hindi

बहुराष्ट्रीय निगमों पर सरकारी नियंत्रण

(Government Control on MNCs)

MNCs की विभिन्न आलोचनाओं के कारण इन निगमों पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है। भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के नियंत्रण की जिम्मेवारी निम्नलिखित सरकारी विभागों/मंत्रालयों पर है –

(i) कम्पनियों के मामले का विभाग (Department of Company Affairs),

(ii) उद्योग मंत्रालय (Ministry of Industry),

(iii) वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance),

(iv) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (Reserve Bank of India),

(v) विदेशी मुद्रा प्रबन्ध अधिनियम (Foreign Exchange Management Act (FEMA)).

(vi) विदेशी निवेश नीति (Foreign Investment Policy),

(vii) विदेशी निवेश पर केबिनेट समिति (Cabinet Committee on Foreign Investment),

(viii) विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (Foreign Investment Promotion Board) ।

ऊपर दिये गये मंत्रालयों, विभागों ने राष्ट्रीय निगमों को नियमित व नियंत्रित करने के लिये निम्न प्रावधान बनाये गये हैं-

(1) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को वांछित क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आकर्षित करने हेतु विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की स्थापना की गयी है। यह बोर्ड समय-समय पर कुछ निर्देश जारी करती है। MNCs को इन निर्देशों का पालन करना होता है।

(2) कुछ MNCs पर निर्यात सम्बन्धी शर्त लगायी गयी है अर्थात् कुछ विशेष क्षेत्रों में कार्यरत MNCs को अपने कुल उत्पादन का निर्धारित प्रतिशत निर्यात करना होगा।

(3) MNCs द्वारा बनाये गये उत्पादों के विज्ञापन, विपणन व पैकिंग सम्बन्धी कुछ प्रावधान बनाये गये हैं। MNCs को इन प्रावधानों का पालन करना होगा।

(4) निगम के साथ प्रारम्भिक समझौता पाँच वर्ष की अवधि के लिये किया जाता है परन्तु सरकार यदि चाहे तो पाँच वर्ष की समझौते की अवधि समाप्त होने पर, इस अवधि को बढ़ा सकती है।

(5) कुछ क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय निगमों की समता अंशों में भागीदारी (Equity Participation) को वर्जित किया गया है तथा कुछ क्षेत्रों में इनकी भागीदारी एक निर्धारित प्रतिशत मात्रा से अधिक नहीं हो सकती है।

(6) अनावश्यक मदों के उत्पादन के लिये तथा जिन क्षेत्रों में घरेलू-तकनीक का स्तर पहले से ही अच्छा है, उन पर विदेशी तकनीक के आयात पर रोक लगाई गई है।

(7) रॉयल्टी के भुगतान की अधिकतम सीमा, निर्यात विक्रय का 8 प्रतिशत व घरेलू विक्रय का 5 प्रतिशत निर्धारित की गई है।

भारत में विदेशी निजी पूजी तथा बहुराष्ट्रीय निगमों के सम्भावित खतरे

(EXPECTED DANGERS OF FOREIGN PRIVATE CAPITAL AND MULTINATIONAL CORPORATIONS IN INDIA)

जहाँ बहुराष्ट्रीय निगमों से देश को अनेक लाभ प्राप्त हो रहे हैं, वहीं इनके कुछ सम्भावित खतरे भी हैं। इन निगमों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है। ये उस राष्ट्र के हितों के स्थान पर अपने लाभ को प्राथामिकता देते हैं। बड़े आकार के कारण स्वदेशी उद्योग इनकी प्रतिस्पर्द्धा में नहीं टिक पाते हैं और वे नष्टप्रायः हो जाते हैं। इनके कारण स्वावलम्बन के स्थान पर परावलम्बन को बढ़ावा मिलता है। बहुराष्ट्रीय निगमों के सम्भावित खतरे निम्नलिखित हैं-

  1. देश के धन का अंतरण (Transfer of Country’s Wealth)- देश के इन निगमों को लाभांश, ब्याज, रॉयल्टी, तकनीकी सेवाओं हेतु शुल्क, वेतन आदि के लिए बड़ी मात्रा में भुगतान करना पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार नवें दशक के मध्य में कुल निजी निगम लाभांशों का 60 प्रतिशत भाग या फैक्ट्री क्षेत्र के लाभांशों का 40 प्रतिशत विदेशी फर्मों द्वारा अपने देशों को प्रेषित किया गया जो चिंता का विषय है। अभी तक भारत में पूंजी लगाने वाली विदेशी कम्पनियों पर प्रतिबन्ध था कि वे जितना लाभांश इस देश के बाहर ले जाएँगी। कम से कम उतना निर्यात अवश्य करेंगी, ताकि भारत के विदेशी मुद्रा के भुगतान संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। विगत 1 जनवरी, 2000 को यह प्रतिबन्ध हटा दिया गया है जो हमारी अर्थव्यवस्था के हित में नहीं है।
  2. पुरानी तकनीक (Old Technique) — कभी-कभी ये बहुराष्ट्रीय निगमें अपने साथ आधुनिकतम तकनीक नहीं लातीं बल्कि अपेक्षाकृत पुरानी तकनीक से ही उत्पादन करती हैं। अतः उनके आगमन से देश का तकनीकी विकास निश्चित रूप से होना आवश्यक नहीं होता है।
  3. घरेलू उद्योगों का विलीनीकरण (Elimination of Domestic Industries) — इन निगमों की उपस्थिति के कारण देश में घरेलू औद्योगिक इकाइयों का विकास अवरुद्ध हो जाता है और घरेलू उद्योगों का विलीनीकरण होता है। उदाहरण के लिए, भारत में टाटा सरीखे बड़े औद्योगिक घराने ने भी टेस्को (टाटा आइल मिल्स कम्पनी) और गोदरेज ने हिन्दुस्तान लीवर्स कम्पनी में विलीन होने का निर्णय ले लिया है। इसी प्रकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव के कारण देश में उत्पादन कर रही संयुक्त औद्योगिक इकाइयों के स्थानीय भागीदारों को भी अअपना पूर्ण नियंत्र छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। इनमें मुख्य हैं—कायनेटिक होण्डा, जो अब केवल होण्डा रह गया है। एल.एम.एल. लोहिया जो अब पिआगियो हो जाएगा, एस.आर.एफ. में श्रीराम अब केवल निप्पन नाम से पुकारी जाएँगी।
  4. दीर्घकालीन औद्योगिक विकास के हित के विरुद्ध (Against the Interest of Industrial Development)- बहुराष्ट्रीय निगम देश के दीर्घकालीन औद्योगिक विकास के हित के विरुद्ध हैं। इन निगमों के आगे देशी उद्योगपति ऐसा उद्योग स्थापित करने का साहस नहीं कर पाते हैं क्योंकि वे इनसे प्रतियोगिता करने में डरते हैं।
  5. राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference) – बहुराष्ट्रीय निगम दूसरे देशों में अपने-अपने आर्थिक एवं व्यावसायिक हितों की अभिवृद्धि के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप एवं भ्रष्टाचार का सहारा लेती हैं। ये अपने विशाल साधनों के बल पर देश के नीति-निर्धारक राजनीतिज्ञों को खरीद लेती हैं। विश्व में अनेक ऐसे उदाहरण दिखाई देते हैं।
  6. देश के हितों की उपेक्षा (Country’s Interest Neglected) — बहुराष्ट्रीय निगमों का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इससे राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा होती है। इससे देश का भावी विकास प्रभावित होता है। कोका कोला I.B.M. जैसे बहुराष्ट्रीय निगमों को भारतीय हितों की उपेक्षा के कारण ही भारत में अपना व्यवसाय समेटना पड़ा था।
निगमीय प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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