निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

भारत में विदेशी सहयोग | विदेशी सहयोग के दोष | Foreign Collaboration In India in Hindi | Drawbacks Of Foreign Collaboration in Hindi

भारत में विदेशी सहयोग | विदेशी सहयोग के दोष | Foreign Collaboration In India in Hindi | Drawbacks Of Foreign Collaboration in Hindi

भारत में विदेशी सहयोग

(FOREIGN COLLABORATION IN INDIA)

भारत में नये आर्थिक सुधारों के पश्चात् विदेशी सहयोग विदेशी तकनीकी करार के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में हुए हैं जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-

(1) भारत में विदेशी तकनीकी सहयोग करार (Foreign Technical Collaboration Agreement in India) – 1991 में नये आर्थिक सुधारों के पश्चात् भारत में विदेशी तकनीकी सहयोग तथा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में निरंतर वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए 1948 से 1988 के बीच 40 वर्षों में किए गए 12,760 विदेशी सहयोग के समझौतों में से 6,165 (अर्थात् 48.3%) 1981 से 1988 के बीच आठ वर्षों में किए गए। जुलाई-अगस्त, 1991 में घोषित उदार विदेशी निवेश नीति के परिणामस्वरूप, विदेशी सहयोग के समझौतों में तथा विदेशी निवेश में तेज वृद्धि हुई है। 1990-91 से 2017-18 के बीच विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 15, 18,875 करोड़ हो चुका था।

(2) सेक्टरानुसार विदेशी तकनीकी ट्रान्सफर सहयोग अनुमोदित (Sector-wise Foreign Technology Transfer Approved)- सेक्टर के अनुसार अगस्त, 1991 से अगस्त, 2009 के बीच सर्वाधिक तकनीकी सहयोग का अनुमोदन बिजली उपकरण (कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर सहित) को 15% हुआ था। उसके बाद क्रमशः रसायन (11.20%), औद्योगिक मशीनरी (10.79%), परिवहन उद्योग (9.36%), विविध इंजीनियरिंग उद्योग 5.50% किया गया था। इस प्रकार अगस्त, 1991 से अगस्त, 2018 के बीच इन 5 उद्योगों (या क्षेत्रों) को लगभग 54.37% विदेशी तकनीकी सहयोग अनुमोदित किए गए थे।

(3) राज्यानुसार विदेशी तकनीकी ट्रान्सफर सहयोग अनुमोदित (State-wise Foreign Technology Transfer Approved) — अगस्त, 1991 से अगस्त, 2018 तक सबसे अधिक विदेशी तकनीकी सहयोग आकृष्ट करने वाले राज्यों में क्रमशः महाराष्ट्र (17.24%), तमिलनाडु (8.39%), गुजरात (7.84%), कर्नाटक (6.5%), हरियाणा (4.54% ) थे। इन पाँच राज्यों में कुल विदेशी तकनीकी ट्रान्सफर अनुमोदन का लगभग 45% था।

(4) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिये अनुमोदित क्षेत्र (Areas Allowed for Foreign Direct Investment)- भारत सरकार ने विदेशी सहयोगों को बढ़ावा देने के लिये कई प्रयास किये हैं। इसके लिये कुछ क्षेत्रों में 100 प्रतिशत विदेशी समता निवेश की अनुमति दे दी गयी है।

विदेशी सहयोग के दोष (Drawbacks of Foreign Collaboration) –

  1. बहुत सारे समझौते ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए किये गये जो अनावश्यक थीं या जिनका उत्पादन घरेलू टेक्नोलॉजी से भी आसानी से हो सकता था। इस सन्दर्भ में बहुत-सी वस्तुओं का नाम लिया जा सकता है। जैसे—वैक्यूम फ्लास्क (थरमस), लिपस्टिक, टूथपेस्ट, कॉस्मैटिक्स, आइसक्रीम, बियर, बिस्कुट, रेडिमेड कपड़े इत्यादि। न केवल इन वस्तुओं के लिए विदेशी सहयोग के समझौतों को मंजूरी दी गयी अपितु एक ही वस्तु के उत्पादन के लिए अलग-अलग उद्योगपत्तियों को अलग- अलग विदेशी कम्पनियों से सहयोग करने की अनुमति भी दी गयी।
  2. समझौते की शर्तें अक्सर विदेशियों के अनुकूल व हमारे हितों के प्रतिकूल रही हैं। इसके मुख्य कारण भारतीय उद्योगपतियों की कमजोर सौदा-शक्ति तथा विदेशी विनिमय के संकट के कारण सरकार की विदेशी सहयोग प्राप्त करने की तत्परता थी।
  3. क्योकि मशीनरी के विनिर्देश (Specification) तथा उपकरणों की आपूर्ति करने का काम विदेशी सहयोगियों पर छोड़ दिया गया था, इसलिए न केवल उन्होंने मनमानी कीमतें लगाई अपितु कई बार आवश्यकता से अधिक सामान का आयात किया।
  4. एक ही जैसी वस्तुओं की टेक्नोलॉजी की अलग-अलग स्रोतों व देशों से आयात करने के कारण कई तरह के कलपुर्जो, डिजाइनों, कच्चा माल इत्यादि की आवश्यकता बढ़ गयी है। इसलिए इनके उत्पादन के लिए या फिर इनका स्टॉक रखने के लिए व्यवस्था करनी पड़ी है जिससे साधनों का अपव्यय हुआ है। इसके अलावा वस्तुओं के मानकीकरण (Standardisation) में भी कठिनाई हुई है।
  5. विदेशी सहयोग का भारतीय शोध और विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जिन भारतीय फर्मों ने विदेशी फर्मों के साथ सहयोग किया है उनको न केवल तकनीकी ज्ञान के लिए विदेशी फर्मों पर आश्रित रहना पड़ता है बल्कि भावी तकनीकी सुधारों के लिए भी उन पर आश्रित रहना पड़ता है। इस प्रकार की आश्रितता विशेष रूप से विदेशी कम्पनियों के सम्बन्ध में दृष्टिगोचर होती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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