निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

टर्नएराउन्ट व्यूहरचना | व्यूहरचना से आशय | टर्नएराउन्ट की आवश्यक

टर्नएराउन्ट व्यूहरचना | व्यूहरचना से आशय | टर्नएराउन्ट की आवश्यक | Turnaround Strategy in Hindi | Content from strategy in Hindi | Turnaround key required in Hindi

टर्नएराउन्ट व्यूहरचना-

फर्म तब बीमार (sick) कही जाती है जब उसे नकदी (cash) की बहुत अधिक समस्या हो जाती है अथवा संचालन लाभ में लगातार नकारात्मक झुकाव होता है। इस प्रकार की फर्मे दिवालिया हो जाती है यदि उनकी वित्तीय स्थिति को बदलने के लिए आन्तरिक एवं बाह्य परिस्थितियों में बदलाव नहीं किया जाता है। पुनर्जीवन की इस प्रक्रिया की (Turnaround) व्यूहरचना कहते हैं। एक सफल (Turnaround) व्यूहरचना की तीन सफल चरण (phases) होते हैं:

(1) प्रथम चरण- इस चरण के अन्तर्गत फर्म की समस्याओं, कठिनाइयों एवं चुनौतियों का विश्लेषण करना पड़ता है। फर्म या निगम के अलाभकारी होने के संकेत का लेखकों एवं शोधकर्ताओं द्वारा पता लगाया जाता है।

(2) द्वितीय चरण- इस चरण के अन्तर्गत फर्म के अलाभकारी होने पर बीमार होने के कारणों का पता लगाया जाता है तथा उसे पुनः लाभकारी बनाने का पूर्ण प्रयास किया जाता है। यह पप्रक्रिय अल्पकाल एवं ददीर्घका दोनों परिस्थितियों में अपनाया जाता है।

(3) तृतीय चरण- इस चरण के अन्तर्गत बदली (Change) प्रक्रिया को अपनाकर फर्म पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है एवं उसका पर्यवेक्षण करके फर्म को लाभकारी बनाया जाता है।

Turnaround कब आवश्यक हो जाता है?

एक फर्म या कम्पनी धीरे-धीरे बीमार (sick) होती है। वह इस तथ्य को जान भी नहीं पाती। है। अतः समय से निदान नहीं कर पाती है। यह अलाभकारिता (sickness) विभिन्न कम्पनियों के लिए भिन्न-भिन्न होती है। फिर भी जॉन एम. हरीश (J.M. Harish) ने (Turnaround) बीमारी के निम्नलिखित कारणों का वर्णन किया है:

  1. कम्पनी के बाजार भाग में कमी — कम्पनी के बीमार (sick) होने का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। एक कंपनी यदि बाजार में अपने अंशों को कम मूल्य पर बेचती है तो उसका बाजार भाग कम हो जाता है। दूसरी ओर यदि कम्पनी अपने अंशों के मूल्य को नियंत्रित करने में सक्षम हो जाती है तो उसके बाजार भाग में एवं प्रतियोगी फर्मों के बीच में अच्छी साख बन जाती है। यदि कम्पनी के बाजार भाग में कमी होती है तो फर्म/कम्पनी को सुधारात्मक कार्यवाही करनी चाहिए।
  2. विक्रय राशि में लगातार गिरावट – कम्पनी के विक्रय को मुद्रा प्रसार के साथ समाहित (Adjust) करना चाहिए। कम्पनी में विक्रय वृद्धि का काफी महत्वपूर्ण स्थान रहता है। यदि कम्पनी के विक्रय में लगातार कमी हो रही है तो एक खतरनाक संकेत माना जाता है। अतः विक्रय राशि में वृद्धि अपरिहार्य है।
  3. लाभ दायकता में कमी – फर्म के लाभ फर्म के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। लाभदायकता अनुपात की उचित गणना की जानी चाहिए जिससे कि कम्पनी के क्रियाओं पर बुरा प्रभाव न पड़े।
  4. ऋण पर अत्यधिक निर्भरता यदि कम्पनी की पूंजी में ऋण अनुपात अधिक है तो उसके पास बैंक से पूंजी प्राप्त करने का विकल्प नहीं रहता है। बैंक, वित्तीय संस्थाएं, फर्म की (Lowev Ratin) होने पर क्रेडिट सुविधा नहीं दी जायेगी। जब बैंक द्वारा वित्तीय सुविधा नहीं दी जाती है तब फर्म क्रेडिट ऐट में कमी हो जाती है और बैंक नकदी की सुविधा नहीं प्रदान की जाती है।
  5. लाभांश पर रकावट नीति कम्पनी द्वारा अपने अंशधारियों को लाभांश न देना भी कम्पनी के विकास पर गलत प्रभाव डालती है। प्रायः इन स्थितियों में कम्पनी पूर्व में अधिक लाभांश का भुगतान कर चुकी होती है। परन्तु वर्तमान में लाभांश भुगतान की असमर्थता कम्पनी के स्वास्थ पर बुरा प्रभाव डालती है।
  6. योजना में कमी (Lack of Planning) – विभिन्न कम्पनियों में जहाँ योजना की अवधारणा में कमी होती है उसकी क्रियाओं एवं परिणामों में सफलता नहीं मिल पाती है। साधारणतया ये कम्पनियां व्यक्तिगत उद्योगपतियों द्वारा स्थापित की गयी हैं।
  7. व्यवसाय में अधिक विनियोग की कमी कम्पनियां जहां कि तेज विकास प्रतियोगिता आदि का लक्ष्य अपनाये हैं वहाँ पर मशीनरी, प्लान्ट, रख-रखाव आदि पर अत्यधिक विनियोग आवश्यक हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में नये विनियोजन एवं पुनर्विनियोग हेतु ऋण अपरिहार्य हो जाता है। कम्पनियाँ जो अपने स्वयं के कोष (fund) का विनियोग करती हैं उनके विकास पर अवरोध लग जाता है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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