शिक्षक शिक्षण / Teacher Education

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का निष्कर्ष (स्वरूप) | National Curriculum Framework summery NCF, 2005

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का निष्कर्ष (स्वरूप) | National Curriculum Framework summery NCF, 2005

राष्ट्रीय शिक्षा-नीति 1968 में भारत के लिए 10 + 2 + 3 शिक्षा का स्वरूप प्रकाश में आया। NCERT ने 1975 में प्रथम दसवर्षीय शिक्षा की आधारभूत पाठ्यचर्या तैयार करके राष्ट्रीय पटल पर रखा। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति 1986 में 10 + 2 +3 की शिक्षा संरचना पूरे देश में लागू करने की घोषणा हुई। आगे चलकर पाठ्यचर्या की सुधरी हुई रूप रेखा का प्रकाशन 1988 ई0 में प्रकाशित हुआ। इस पाठ्यक्रम का पालन प्रान्तीय सरकारों ने सुविधा पूर्वक अपने-अपने ढंग से किया।

राष्ट्रीय नीति में यह कहा गया था कि हर 5 वर्ष के बाद हर स्तर के पाठ्यक्रम कापुनर्निरीक्षण किया जायेगा और उसमें आवश्यकता के अनुसार संशोधन किया जायेगा। सन् 1992 में केन्द्रीय सरकार ने संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा-नीति की घोषणा की। अब NCERT के समक्ष राoशि0नी0 1986 की घोषणा के अनुसार उसके पालन में संशोधित राoशिoनी0 1992 की अपेक्षाओं के अनुसार प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा की संशोधित आधारभूत पाठ्यचर्या को कुछ नवीन स्वरूप देते हुए नवम्बर 2000 ई0 में प्रकाशित किया गया| सन् 1904 में केन्द्र में NDA सरकार की जगह VPA की सरकार सत्ता में आई। उसने कहा 2000 में पाठ्यचर्या का भगवाकरण किया गया है। यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए घातक है। इसलिए नया पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। अतः इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा NCERT की कार्यकारिणी सभा 14 जुलाई से 19 जुलाई, 2004 में आहूत की गई। सभा ने निर्णय लिया कि 21वीं शताब्दी के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। पाँच वर्ष बाद तो संशोधन होना ही था इसी बीच 2000 से सूचना संचार प्रौद्योगिकी ICT का समाज पर प्रभाव बहुत तेजी के साथ पड़ा और कम्प्यूटर की आधुनिक दुनिया तयार होने लगी। इसके कारण भी पाठ्यचर्या में संशोधन अपेक्षित था। अतः राष्ट्रीय पाठ्यचया की रूपरेखा 2005 तैयार की गई और इसे राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (National Curriculum Framework, 2005) के शीर्षक से दिसम्बर, 2005 में प्रकाशित किया। इस फ्रेमवर्क में कक्षा 1 से 12 तक कब, क्या, क्यों और कैसे पढाना-सिखाना है, इसकी पूरी रूपरेखा प्रस्तुत की गयी है।

कक्षा 1 से 5- तक
  • मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा)
  • अंग्रेजी
  • गणित
  • एकीकृत पर्यावरण अध्ययन
  • कला व शिल्प
  • शारीरिक विकास
  • कार्य अनुभव
कक्षा 6 से 8 -तक
  • मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा)
  • आधुनिक भारतीय भाषा
  • अंग्रेजी
  • विज्ञान
  • गणित
  • सामाजिक अध्ययन (इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र)
  • कला शिक्षा
  • स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा
कक्षा 9 से 10 – तक
  • मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा)
  • अंग्रेजी
  • संस्कृत/उर्दू/अन्य
  • गणित
  • विज्ञान
  • सामाजिक अध्ययन (इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र)।
  • कम्प्यूटर
  • कार्य शिक्षा
  • शान्ति शिक्षा
  • कला शिक्षा
कक्षा 11 से 12- तक
  • मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा)
  • अंग्रेजी
  • कम्प्यूटर
  • कम्प्यूटर
  • भौतिक विज्ञान
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान

विज्ञान वर्ग ऐच्छिक

  •  राजनीति विज्ञान
  • भूगोल
  • इतिहास
  • अर्थशास्त्र

कला वर्ग ऐच्छिक

  • समाजशास्त्र
  • मनोविज्ञान
  • व्यपार अध्ययन
  • एकाउन्टेन्सी
  • कला शिक्षा
  • अन्य ऐच्छिक विषय

वाणिज्य वर्ग ऐच्छिक

 

विभिन्न स्तर पर प्रस्तावित शिक्षण विषयों को क्यों और कैसे पढ़ाया जाय । इस सन्दर्भ में उसके अपने तर्क हैं। यहाँ उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है-

भाषा (Language)

भारतीय समाज की बहुभाषी विशेषता के कारण छात्र-छात्राओं को एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है। इसी कारण राष्ट्रीय पाठ्चर्या की रूपरेखा में तीन भाषाओं के शिक्षण की वकालत की गयी है। भाषा कौशल के अन्तर्गत बोलना, सुनना, पढ़ना, लिखना ये सभी बालक के ज्ञान के निर्माण के लिए प्राथमिक कक्षा से ही आवश्यक हैं। भाषा सीखने हेतु समृद्ध सम्प्रेषण वातावरण आवश्यक है। इसर्क लिए समृद्ध पाठ्यपुस्तक, कक्षा पुस्तकालय, एक से अधिक भाषा में पुस्तकें उपलब्ध करायी जाएँ और साथ ही मीडिया संपोट जैसे-पत्रिकायें, समाचार पत्र में कॉलम, रेडियो एवं ऑडियो कैसेट उपलब्ध कारने के साथ-साथ भाषा शिक्षक की भाषा में आधारभूत दक्षता आवश्यक होनी चाहिए।

गणित

छात्र-छात्राओं में उपयोगी गणितीय क्षमताओं के विकास एवं तार्किक ढंग से सोचने की क्षमता विकसित करने, अमूर्त चिन्तन विकसित करने तथा समस्याओं को हल करने की योग्यता के विकास के लिए गणित शिक्षण आवश्यक है। अतः कक्षा 10 तक यह अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।

गणित शिक्षण हेतु कल्पना को तथा अमृर्त चिन्तन को विभिन्न साधनों के माध्यम से दृश्य करके पढ़ाना चाहिए तथा गणना, आकार स्वरूप; जैसे-तथ्यों को मॉडल की सहायता से समझना चाहिए और गणित का अन्य विषयों से सहसम्बन्ध भी छात्र-छात्राओं को बताना चाहिए।

विज्ञान

विज्ञान शिक्षा के द्वारा छात्र-छात्राएँ अवलोकन, परिकल्पना निर्माण, निष्कर्ष निकालने, निष्कर्ष के परीक्षण तथा सम्बन्धित सिद्धान्त के निर्माण को सीखते हैं । इस प्रकार उनमें एक क्रमबद्ध तरीके से कार्य करने एवं अनुशासन का विकास होता है। साथ ही विज्ञान के अध्ययन द्वारा गरीबी, अन्धविश्वास अज्ञानता दूर होती है। अतः कक्षा 10 तक यह अनिवार्य विषय रखा गया है।

विज्ञान शिक्षण हेतु अनुभव सम्बन्धी वैधता, प्रक्रिया अथवा प्रणाली वैधता, ऐतिहासिक आता, पर्यावरण वैधता तथा नीतिपरक वैधता के आधार पर पाठ्यवस्तु का चयन कर शिक्षण कार्य करना चाहिए।

सामाजिक अध्ययन

छात्र-छात्राओं को समाज की वास्तविकता से परिचित कराना अत्यन्त आवश्यक है। अतः सामाजिक अध्ययन का ज्ञान देना जरूरी है और इसके ज्ञान द्वारा समाज, संस्कृति तथा विश्लेषणात्मक कौशल का भी विकास होता है।

सामाजिक अध्ययन शिक्षण के लिए ऐसी विधियों का चयन करना चाहिए जो सजनात्मकता, सौन्दर्यपरक और विवेचनात्मकता को बढ़ावा दें। साथ ही छात्र-छात्राओं में पर्व तथा वर्तमान में सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता का विकास करें।

कम्प्यूटर

आधुनिक समय में कम्प्यूटर की समाज में भूमिका एवं महत्त्व को देखते हुए इसका अध्ययन छात्र-छात्राओं के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

कम्प्यूटर के शिक्षण में यह देखना चाहिए कि कम्प्यूटर विज्ञान (CS) तथा सूचना प्रौद्योगिकी (IT) के जो तत्व सामान्य रूप से दोनों में समाहित हो उनका ज्ञान सर्वप्रथम देना चाहिए।

कार्य शिक्षा

प्रौढ़ एवं बालक दोनों का सामाजीकरण एक ही प्रकार से होता है। जो कि कार्य करने के दौरान आपसी सहयोग द्वारा होता है। अत: कार्य शिक्षा छात्र-छात्राओं को दी जानी आवश्यक है। साथ ही शिक्षा के द्वारा आर्थिक उन्नति भी होनी चाहिए। इसमें भी कार्य शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।

कार्य शिक्षा का शिक्षण व्यावहारिक ढंग से देना चाहिए। प्रारम्भ में सब्जी काटना, कक्षा-कक्ष की सफाई, बागवानी आदि क्रियाएं ली जा सकती है, जिन्हें आगे चलकर अन्तर्विषयी बनाते हुए शिक्षण-कार्य करना चाहिए। कार्य-शिक्षा इस प्रकार से दी जानी चाहिए जिससे तार्किक सोच, अधिगम स्थानान्तरण और श्रम के प्रति अनुराग पैदा हो।

शान्ति-शिक्षा

वर्तमान में वैश्विक, राष्ट्रय एवं स्थानीय प्रत्येक स्तर पर हिंसा का बोलबाला है। अतः समाज में शान्ति स्थापित करने में शिक्षा के महत्तव को देखते छात्राओं को शान्ति शिक्षा दी जानी आवश्यक है।

शान्ति शिक्षा इस प्रकार से दी जानी चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं में शान्ति के प्रति अनुराग पैदा हो, सहनशक्ति, न्यायप्रियता, आपसी समझ बढ़े तथा सामाजिक उत्तरदायित्व का विकास हो। इस हेतु महापुरुषों की जीवनी, कहानी आदि का श्रवण तथा परिचया आयोजित की जा सकती हैं।

कला शिक्षा

छात्र-छात्राओं की कलात्मक क्षमता के विकास तथा सांस्कृतिक और सान्दियात्मक जागरूकता उत्पन्न करने हेतु कला शिक्षा का शिक्षण आवश्यक माना गया है।

कला शिक्षा के शिक्षण के लिए इसके शिक्षकों हेतु अधिकाधिक साधन उपलब्ध कराने का सुझाव राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 में दिया गया है।

स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

बालक के शारीरिक विकास को जैविक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक कारक प्रभावित करते हैं। अत: स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा बालक के सर्वागीण विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा शिक्षण के लिए प्राथमिक स्तर पर साफ-सफाई खेलकुद आयोजित किये जा सकते हैं । योग को अनौपचारिक रूप से प्राथमिक स्तर पर सिखाया जा सकता है किन्तु औपचारिक रूप में कक्षा 6 तथा इसके बाद ही सिखाना चाहिए। साथ ही स्कूल समय तथा इसके बाद बास्केटबाल, बालीबाल आदि खेलों का आयोजन भी किया जा सकता है।

समाचोलना

इस पाठ्यचर्या में कक्षा 1 से ही मातृभाषा के साथ अंग्रेजी भाषा की वकालत की गई है। इस सम्बन्ध में उसके तर्क हैं-

(1) अंग्रेजी भारत के प्रबुद्ध एवं सम्पन्न वर्ग की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है।

(2) भारत में इसका प्रयोग सरकार, उद्योग एवं व्यापार, सभी क्षेत्रों में होता है और

(3) इसे सीखे बिना लोग प्रबुद्ध, सम्पन्न एवं उच्च संस्कृति के (लोग) नहीं बन सकते और अपने कार्यक्षेत्रों में सफलता की ऊँचाइयों को छू नहीं सकते।

इस सन्दर्भ में हमारा केवल इतना निवेदन है कि हमारे देश में मातृभाषा के प्रयोग की तो सभी को आवश्यकता होती है परन्तु अंग्रेजी के प्रयोग की आवश्यकता आज भी केवल 15 से 20% लोगों को ही होती है, इसलिए इसे अनिवार्य विषय नहीं बनाना चाहिए। इच्छुक एवं मेधावी छात्र-छात्राओं को कक्षा 1 से ही अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त राष्ट्रभाषा हिन्दी और अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी के अध्ययन की सुविधा अवश्य प्रदान करना चाहिए, परन्तु अतिरिक्त विषयों के रूप में और इनमें उत्तीर्ण होना आवश्यक नहीं होना चाहिए। इससे मेधावी छात्राओं को इन भाषाओं को सीखकर आगे बढ़ने का मौका भी मिलेगा और सामान्य छात्र दो अतिरिक्त भाषाओं के अध्ययन से भी बचेंगे।

इस पाठ्यचर्या में विभिन्न विषयों के शिक्षण के शिक्षा के सन्दर्भ में जो कुछ भी कहा गया है, उसमें भी कुछ नया नहीं कहा गया है, इतना भर तो शिक्षक पहले से ही जानते हैं।

जहाँ तक माध्यमिक स्तर पर कम्प्यूटर शिक्षा की बात है, यह आज की आवश्यकता है और जहाँ तक शान्ति शिक्षा के द्वारा शान्ति के महत्त्व को स्पष्ट करने की बात है और उन्हें शान्ति के साथ रहने में प्रशिक्षित करने की बात है, अपने को तो यह हास्यास्पद लगता है। हमें तो एन०सी०ई०आर०टी० में कार्यरत शिक्षा विशेषज्ञों पर तरस आता है, वे सदैव वैसे पाद्यचर्या प्रस्तुत करते रहे हैं जैसे केन्द्रीय सरकार चाहती रही, एन०डी०ए० के समय में मूल्य शिक्षा का ढंका पीटती रही और अब यूपीए के समय में शान्ति का बिगुल बजा रही है। अब समय आ गया है जब उन्हें राष्ट्रहित में सोचना चाहिए।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!