बेसिक शिक्षा की समस्यायें | Problems of Basic Education in Hindi
बेसिक शिक्षा की समस्यायें | Problems of Basic Education in Hindi
बेसिक शिक्षा की समस्यायें (Problems of Basic Education)
बेसिक शिक्षा को लागू करने में अनेक समस्यायें आती हैं, इसीलिए बेसिक शिक्षा आज तक सफल नहीं हो सकी है। इसकी असफलता के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) नेतृत्व-वर्ग का दृष्टिकोण (Outlook of Leaders)–
समाज में उच्च वर्ग के लोगों का ही आम जनता अनुकरण करती है। हमारे देश में धनी, शिक्षित तथा नेता सभी अपने बच्चों को बेसिक स्कूलों में शिक्षा देने के बजाए अंग्रेजी स्कूलों या पब्लिक स्कूलों में शिक्षा दिलाना पसन्द करते हैं। इन लोगों की देखा-देखी अन्य लोग भी अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं। जो देश पहले अंग्रेजों की दासता में थे वे आज भी उसी शिक्षा को ‘शिक्षा’ मानते हैं जो अंग्रेज उन्हें विरासत में दे गये हैं। उच्च वर्गीय लोग शारीरिक श्रम को हीन दृष्टि से देखते हैं इसलिए वे बेसिक शिक्षा को भी हीन दृष्टि से देखते हैं। महात्मा गाँधी ने देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुटीर उद्योग-धन्धों का विकास करने को कहा था, परन्तु अब देश ने औद्योगीकरण की नीति अपना ली है। इन परिस्थितियों में बेसिक शिक्षा का उतना अधिक महत्व नहीं रह गया है जितना पहले समझा जाता था।
(2) धन की कमी (Lack of Money)-
बेसिक शिक्षा को लागू करने में सामान्य शिक्षा से अधिक धन की आवश्यकता होती है । गाँधी जी ने जो कल्पना की थी वह सच नहीं हो रही थी। उनके अनुसार-“यह एक स्वावलम्बी शिक्षा प्रणाली है। छात्रों से विद्यालय में हस्तकला के रूप में कुछ उत्पादन कार्य करवाया जायेगा, इस प्रकार छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुओं को बेचने से विद्यालय को जो आय होगी उससे अध्यापकों का वेतन निकल सकेगा,” परन्तु जहाँ बेसिक शिक्षा लागू की गई उन विद्यालयों को देखने से पता लगा कि विद्यालय आत्मनिर्भर नहीं बन सके हैं और न इसकी कोई आशा ही है। बेसिक शिक्षा को लागू करने में अधिक धन की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि-
(अ) विद्यालयों में शिल्प की व्यवस्था करनी होती है
(ब) शिक्षा को अनिवार्य तथा निःशुल्क करना होता है।
(स) नये विद्यालय खोलने होते हैं।
(3) सरकार की अपेक्षा (Negligence of Government)-
शिक्षा को राज्य का विषय बना देने के कारण केन्द्र ने बेसिक शिक्षा की उपेक्षा की है। राज्यों ने भी उच्च शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया है। बेसिक शिक्षा के शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण व्यवस्था नहीं की गयी है। विद्यालयों को हस्तकला के लिए कच्चा-माल उपलब्ध नहीं हो पाता है। बेसिक शिक्षा सम्बन्धी अनुसंधान को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया है। किसी भी बेसिक प्रशिक्षण संस्थान में कोई अनुसंधान कार्य नहीं किया गया है।
(4) अध्यापकों का अभाव (Shortage of Teachers)-
बेसिक शिक्षा के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है। बेसिक शिक्षा में प्रशिक्षित अध्यापकों की अत्यंत कमी रहती है। इनके प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण महाविद्यालयों की कमी है। राज्य द्वारा ही जो प्रशिक्षण महाविद्यालय खोले गये हैं वे ही ठीक कार्य कर रहे हैं, परन्तु इनकी संख्या आवश्यकता को देखते हुए बहुत कम है ।
(5) प्रशासकों की उपेक्षा (Negligence of Administrators)-
बेसिक-शिक्षा की प्रशासकों द्वारा उपेक्षा की गयी है। इस सम्बन्ध में सन् 1956 की बेसिक शिक्षा मूल्यांकन समिति ने कहा था-“किसी भी राज्य में यह नहीं देखा गया है कि जन-शिक्षा के संचालक के लिए बेसिक-शिक्षा महत्व का विषय हो और न उसमें कोई राज्य बेसिक शिक्षा की समस्याओं से परिचित था।”
(6) बेसिक शिक्षा की आलोचना (Criticism of Basic Education)-
(क) हस्तकला पर अधिक बल (Stress on Craft)-
हस्तकला पर अधिक बल देना उचित नहीं है। प्रत्येक विषय को किसी न किसी शिल्प से जोड़ना स्वाभाविक नहीं है। बालक को ज्ञान अपने अनुभवों के आधार पर प्राप्त करना चाहिए न कि कृत्रिम-हस्तकला द्वारा। हस्तकला पर अधिक बल देने से विषयों की उपेक्षा हो जाती है।
(ख) धार्मिक शिक्षा की उपेक्षा (Negligence of Religious Education)-
बेसिक शिक्षा में धार्मिक-शिक्षा को कोई स्थान नहीं दिया गया है। ऐसी दशा में बालक का सर्वांगीण विकास नहीं किया जा सकता है, अत: बेसिक शिक्षा में धार्मिक-शिक्षा की उपेक्षा करना उचित नहीं है।
बेसिक शिक्षा की इन आलोचनाओं से कोई लाभ नहीं उठाया गया। बेसिक शिक्षा की कमियों को यदि दूर करने का प्रयास किया गया होता तो इसे असफलता का मुँह न देखना पड़ता।
(ग) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की अवहेलना (Negligence of Psychological Principles)-
पी० एस० नायडू ने कहा है कि-“बालक के कोमल मानसिक विकास से सम्बन्धित प्रत्येक महत्वपूर्ण सिद्धान्त की अवहेलना की गयी है।” बालक को एक बालक न मानकर एक सिपाही माना गया है। उसके व्यक्तित्व की उपेक्षा की है। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार बालक को 12 वर्ष से पहले हस्तकला की शिक्षा नहीं देनी चाहिए। ए० एन० वस के अनुसार-“हस्तकला की ओर अधिक ध्यान देने के कारण बालक की अवहेलना की जाती है।”
(घ) औद्योगीकरण नीति के विपरीत (Opposite to the Policy of Industrialization)-
बेसिक शिक्षा स्वतन्त्र भारत द्वारा अपनायी गयी औद्योगीकरण नीति के विपरीत है। औद्योगीकरण नीति को सफल बनाने के लिए विज्ञान, गणित और तकनीकी शिक्षा पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। एस० नटराजन ने कहा है- “सरकार की समस्त नीतियाँ औद्योगीकरण की हैं। ऐसी नीति में बेसिक शिक्षा की विचारधारा के लिए प्रयल करना आवश्यक नहीं है।”
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- भारतीय शिक्षा आयोग 1882 | हण्टर आयोग | भारतीय शिक्षा आयोग की सिफारिशें
- सन् 1905 से 1921 के बीच भारत में शिक्षा संस्थाओं की प्रगति | Progress of Educational Institutions between 1905 to 1921 in India in Hindi
- राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन में गोखले का प्रयास | Gokhale attempts in national education movement in Hindi
- लॉर्ड कर्जन की शिक्षा नीति | शिक्षा नीति 1904 का मूल्यांकन | लॉर्ड कर्जन के अन्य शैक्षिक कार्य | लॉर्ड कर्जन के शिक्षा सम्बन्धी कार्यों का मूल्यांकन अथवा गुण-दोष
- 1917 के सैडलर आयोग | भारतीय शिक्षा के विकास पर सैडलर आयोग प्रभाव
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