शिक्षाशास्त्र / Education

बेसिक शिक्षा योजना के मूलभूत सिद्धान्त | वर्धा शिक्षा योजना के मूलभूत सिद्धान्त

बेसिक शिक्षा योजना के मूलभूत सिद्धान्त | वर्धा शिक्षा योजना के मूलभूत सिद्धान्त

बेसिक शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त (Fundamental Principles of Basic Education)

बेसिक शिक्षा के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा (Free and Compulsory Education)-

भारत में निरक्षता का उन्मूलन करने के लिए बेसिक शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत 7 साल से 14 साल तक के बालकों को निःशुल्क एवं अनिवार्य रूप से शिक्षा प्रदान करने की योजना बनाई गई है। भारत जैसे निर्धन और अशिक्षित देश के लिए यह उपयुक्त भी सिद्ध होती है। इसमें बालक विद्यालय में विभिन्न प्रयोगों को करते हुए स्वावलम्बन और आत्मनिर्भरता का पाठ सीखेंगे। उनके द्वारा जो वस्तुएँ निर्मित होंगी उन्हीं से उनका समस्त पढ़ाई का खर्च चलेगा। इस तरह बालकों के माता-पिता उनकी पढ़ाई में खर्च करने से मुक्त रहेंगे। काका साहब कालेलकर ने लिखा है-“सार्वभौमिक अनिवार्य शिक्षा 7 वर्ष से 14 वर्ष तक देनी चाहिए।”

(2) मातृ-भाषा शिक्षा का माध्यम (Mother Tongue as Medium of Education)-

बेसिक शिक्षा के अन्तर्गत मातृ-भाषा के माध्यम से शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है क्योंकि यह बालक के लिए ज्ञानार्जन में सरल, सुलभ और स्वाभाविक होती है, इसमें मातृभाषा हिन्दी को अनिवार्य विषय के रूप में महत्व प्रदान किया गया है। कमेनियस ने मातृ-भाषा को महत्व देते हुए लिखा है, “मातृ-भाषा को सीखने के पहले विदेशी भाषा की शिक्षा प्रदान करना उतना ही विवेकरहित है जितना कि बच्चे को चलने के पूर्व चढ़ना सिखाना।”

(3) शिक्षा में स्वावलम्बन और आत्मनिर्भरता (Self Sufficiency and Self-Supporting)-

बेसिक शिक्षा द्वारा बालक विद्यालय में विभिन्न उद्योगों को करते हुए स्वावलम्बन और आत्म-निर्भरता का पाठ सीखेंगे ताकि भविष्य में उन्हें व्यावहारिक जीवन में आर्थिक कठिनाइयाँ न झेलनी पड़ें। गाँधीजी ने लिखा है, “एक राष्ट्र के रूप में हम शिक्षा के क्षेत्र में इतने अधिक पिछड़े हैं कि हम इस समय इस पीढ़ी के बीच क्षेत्र में राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों की पूर्ति की आशा नहीं कर सकते हैं, यदि योजना पैसों पर आधारित होगी। इसलिए मैंने सुझाव दिया है कि शिक्षा आत्मनिर्भर होनी चाहिए।”

(4) अहिंसा पर आधारित (Based on Non-violence)-

बेसिक शिक्षा अहिंसा पर आधारित है। विद्यालय में दण्ड का अभाव होता है। वातावरण ऐसा करने का प्रयास किया जाता है कि बालकों में पारस्परिक घृणा, साम्प्रदायिक द्वेष तथा कलह की मनोवृत्तियाँ न विकसित हो सकें। इस प्रकार शिक्षालय में बालक अहिंसावादी नास्तिक बनते हैं। वास्तव में महादेव देसाई के शब्दों में, “आत्मनिर्भर शिक्षा अहिंसा के नैतिक आधार से विलग नहीं हो सकती।”

(5) परीक्षा-पद्धति का विरोध (Against the Examination System)-

बुनियादी शिक्षा परीक्षा प्रणाली के अभिशाप से पूर्णतया विमुक्त है । फलस्वरूप विद्यार्थी परीक्षा के लिए नहीं पढ़ते बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए पढ़ते हैं। इसमें बालक की प्रगति और सामर्थ्य का मनोवैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण कर उसकी प्रगति की जा सकती है।

(6) शिक्षा का आधार हस्तकला (Handicrafts as the Basis of Education)-

बेसिक शिक्षा का प्रमुख आधार हस्तकला है क्योंकि इसमें किसी हस्तकला जैसे कताई बुनाई, कृषि, गृह-कला, बागवानी, मिट्टी,लकड़ी, चमड़े और धातुओं आदि वस्तुओं का निर्माण आदि सम्मिलित है को केन्द्र मानकर अन्य विषयों की शिक्षा देने की व्यवस्था की गई। इस तरह इस प्रणाली में ‘क्रिया द्वारा शिक्षा’ (Learning by doing,) तथा अनुभव द्वारा सीखना’ (Learning by Experience) दोनों शिक्षा सिद्धान्त निहित हैं। इसमें बालकों के हाथ और मस्तिष्क में ‘सह-सम्बन्ध’ (Correlation) स्थापित हुए दोनों साथ-साथ विकसित होंगे। गाँधीजी के शब्दों में, “प्रत्येक हस्तकार्य आजकल की भांति यन्त्रवत नहीं वरन् वैज्ञानिक ढंग से सिखाया जायेगा ताकि बालक प्रत्येक क्रिया के कार्य-कारण सम्बन्ध को अच्छी तरह समझ जाये।” श्री लालाजी ने लिखा है कि,”बुनियादी हस्तकला सूर्य मण्डल के केन्द्र के रूप में होनी चाहिए एवं अन्य विषयों के ग्रह नक्षत्रों की तरह चारों ओर घूमने तथा केन्द्रीय सूर्य से अपने उत्ताप या रोशनी को प्राप्त करना चाहिए।”

(7) शिक्षकों के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर जोर (Emphasis upon Character and Personality of Teachers)-

चूँकि बेसिक शिक्षा में शिक्षकों और बालकों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है अतः यह अति आवश्यक समझा जाता है कि शिक्षक चरित्रवान, ज्ञानवान, क्षमाशील, मृदुभाषी, मिलनसार, कर्तव्यपरायण, विनोद-प्रिय, स्फूर्तिवान, परिश्रमी तथा संयमी हों । कुरुक्षेत्र (1956 ई०) के सम्पादकीय विचार के अनुसार, “बालकों की शिक्षा की समस्या के साथ ही साथ अध्यापक की सन्तोषजनक स्थितियों का प्रश्न खड़ा होता है।”

(8) शिक्षालय समाज का वास्तविक प्रतिनिधि के रूप में (School as the True Representative of Society)-

बुनियादी शिक्षा-पद्धति में शिक्षालय का वातावरण समाज के वातावरण के तुल्य बनाया जाता है ताकि बालक शिक्षालय और इसके बाहर अर्थात् घर, पड़ौस,खेल के मैदान आदि में अन्तर अनुभव न करे। बालकों को सामाजिक विरासत अर्थात् सभ्यता और संस्कृति से परिचित कराया जाता है ।

(9) स्वतन्त्रता-प्रधान प्रणाली (More Emphasis upon Freedom)-

बेसिक शिक्षा-पद्धति में बालकों के स्वतन्त्र विकास पर विशेष बल दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, शिक्षालय में ऐसा वातावरण रखा जाता है कि बालकों की प्रवृत्तियों का स्वतन्त्रतापूर्वक विकास हो सके । ऐसा करने से बालक जिस प्रकार ‘खेल’ (Play) में रुचि और आनन्द लेता है उसी प्रकार उसे ज्ञानार्जन करने में आनन्द का अनुभव होता है। इस तरह यह प्रणाली मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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