शिक्षाशास्त्र / Education

स्मृति के नियम | स्मरण करने की विधियाँ 

स्मृति के नियम | स्मरण करने की विधियाँ 

स्मृति के नियम

(क) संतनन का नियम- संतनन का अर्थ बताते हुए प्रो० जेम्स ड्रेवर ने कहा है कि “हमें कोई मौलिक अनुभव होता है उसके पश्चात् किसी विचार, भाव, या क्रिया के ढंग को पुनः करने की प्रवृत्ति’ संतनन है।

मौलिक अनुभव का तात्पर्य है “स्सरण करना” और जब तक एक बार स्मरण की गई वस्तु को पुनः प्रकट करने की क्रिया, उसका भाव या विचार मन में आता है तो वह संतनन का नियम यह बताता है कि हमारे भीतर आवृत्ति की गई है उसी के कारण हम स्मरण करते हैं। इस नियम के अनुसार आन्तरिक अनुभूति की गई चीजों की आवृत्ति से मनुष्य याद करता है। इससे व्यक्ति स्वयं अभिप्रेरित होकर स्मरण को तैयार होता है।

(ख) आदत का नियम- आदत भी बार-बार करने की एक अर्जित प्रवृत्ति होती है। इसलिए यदि सचेतन रूप से किसी वस्तु की अच्छाई जान कर हम अपनी आदत से स्मरण करते हैं तो वहाँ आदत का नियम होती है। इसे अभ्यास का भी नियम मान सकते हैं। आदत अच्छी या बुरी होती है, तदनुसार स्मृति भी पाई जाती है। आदत जन्य स्मृति के फलस्वरूप परिस्थिति के साथ अनुकूलन करने में या स्मरण करने में सरलता होती है।

(ग) साहचर्य का नियम- प्रो० ड्रेवर ने लिखा है कि साहचर्य “सामान्यतः वह सिद्धान्त है जिसके अनुसार विचार भाव और गतियाँ ऐसे ढंग से सम्बन्धित होती हैं जिससे व्यक्ति के मन में या कार्यों में ऐसे सम्बन्धों के संस्थापन की प्रक्रिया की क्रमबद्धता निश्चित होती है।

इसलिए साहचर्य के नियम से तात्पर्य है विचारों, भावों, क्रियाओं में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने का सिद्धान्त । स्मरण करने में जब ऐसा सिद्धान्त पाया जावे तो वह स्मरण सम्बन्धी साहचर्य का नियम होता है।

साहचर्य का नियम (i) प्राथमिक और (ii) गौण या द्वितीयक माना जाता है। (i) प्राथमिक या मुख्य साहचर्य का नियम वह होता है जहाँ सहचारिता और समानता तथा विरोध के आधार पर सम्बन्ध स्थापित करते हैं। प्राथमिक साहचर्य नियम के तीन उप- नियम भी बताए गए हैं- (1) सहचारिता का नियम- जहाँ वस्तुएँ परस्पर एक साथ रहने के कारण. मन में धारण की जाती हैं। इसमें स्थानगत और कालगत पारस्परिकता पाई जाती है जैसे प्रयाग में गंगा का होना अथवा प्राचीनकाल में सत्य और ईश्वर में विश्वास होना । ये एक साथ स्मरण हो जाते हैं। (2) समानता का नियम- जहाँ दो वस्तुएँ एक ही तरह होती हैं वहाँ दोनों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इस प्रकार का साहचर्य ध्वनि समानता और अर्थ समानता के कारण बनता है। भाषा में राम, काम, नाम, धाम जैसे शब्दों में ध्वनि की समानता होती है। काम, कार्य, कर्तव्य, क्रिया ये शब्द अर्थ समानता रखते हैं। अतएव भाषा के स्मरण में इसी साहचर्य का प्रयोग करते हैं। (3) विरोध का नियम- जहाँ समानता न होकर विरोध या उलटापन- पाया जावे वहां विरोध का नियम स्मरण में लागू होता है। इतिहास में अकबर और औरंगजेब के चरित्र विरोधी हैं, प्राचीन काल में और आधुनिक काल की शिक्षा में विरोध पाया जाता है। दोनों को एक साथ रखने में क्रिया के साथ विरोध का नियम लागू किया जाता है। लोगों ने इसके अलावा (4) क्रमिक रुचि का नियम- भी बताया है। इसमें लगातार रुचि के आधार पर स्मरण की क्रिया की जाती है। खेल में स्वाभाविक रुचि होने से शिक्षा में खेल-विधि से स्मरण कराने में यही नियम लागू किया जाता है। उदाहरण के लिए मॉन्टेसरी प्रणाली में विभिन्न सामग्रियों से स्मरण करना सिखाया जाता है।

(ii) साहचर्य के द्वितीयक नियम- ये वहाँ होते हैं जहाँ सम्बन्ध स्थापित करने में कुछ विशेष ढंग से कार्य करना पड़ता है, इसलिए कुछ बाह्य चीजों की सहायता लेनी पड़ती है। ऐसे नियम निम्न प्रकार के हैं-

(1) पूर्ववर्तिता का नियम- जहाँ कई चीजें स्मरण हेतु रहती हैं वहाँ हमें एक चुनाव करना पड़ता है कि किसे पहले स्मरण करें वहाँ पूर्ववर्तिता का नियम पाया जाता है। माता-पिता के साथ शुरू से ही रहना पड़ता है इसलिए हमें वह चिर-स्मरणीय होते हैं। कुछ लोग शुरू से ही गणित नहीं याद रखते लेकिन भाषा को स्मरण रखना पसंद करते है। यहाँ पूर्ववर्तिता का ही नियम पाया जाता है। (2) नवीनता का नियम- जहाँ कई अनुभव एक साथ होते हैं वहाँ जो सबसे नवीन अनुभव होता है, वह शीघ्र स्मरण होता है। आज का पढ़ा पाठ कल याद रहेगा परन्तु कई दिन पहले पढ़ा पाठ भूल जाता है। यहाँ यही सिद्धांत होता है। (3) आवृत्ति का नियम- जहाँ पर स्मरण करने के लिए वस्तु की आवृत्ति होती है, स्मरण क्रिया की नहीं, वहाँ यह नियम पाया जाता है। आदत के नियम में वस्तु की आवृत्ति न होकर, क्रिया की आवृत्ति है। उदाहरण के लिए रोज हम खाने में मक्खन, पावरोटी, चाय, चम्मच का प्रयोग करते हैं, इससे इनके संप्रत्यय सरण हो जाते हैं। इसी प्रकार के शब्दों की आवृत्ति होने से वे स्मरण रहते हैं। (4) प्रबलता का नियम- इसे स्पष्टता का नियम भी कहते हैं। इसके अनुसार पाठ-वस्तु जितनी अच्छी तरह प्रकट की जावेगी उतनी ही अच्छी तरह से उसका संस्कार बनेगा और वह स्मरण भी रहेगी। भाषा के पाठ में शब्दों की वाक्य-रचना एक उदाहरण है। (5) मनोस्थिति का नियम- जहाँ पर व्यक्ति अपने मन को स्मरण में स्थित करता है वहाँ यह नियम पाया जाता है इस प्रकार की स्मृति, रुचि, संकल्प अभिवृत्ति और अभिप्रेरक के कारण होती है। उदाहरण के लिए बालक खेल के लिये प्रवृत्त है तो उसे कक्षा में व्याख्यान देने से स्मरण नहीं होता। प्रो० काल्डवेल कुक ने शेक्सपियर के नाटकों को कक्षा में पढ़ने के बजाय कक्षा में अभिनय के द्वारा बताया जिसका प्रभाव विद्यार्थियों की स्मृति पर अच्छा पड़ा। यहाँ यही नियम लागू होता है।

स्मरण करने की विधियाँ 

(i) खण्ड विधि- इसे अंश विधि भी कहते हैं। इसमें स्मरण की वस्तु को कोई खण्ड या अंश में बाँटकर स्मरण करते हैं। प्रायः लम्बी सामग्री होने पर ऐसा किया जाता है, जैसे 300 पंक्ति की कोई कविता है, तो उसे खण्डों में स्मरण करते हैं। इसमें खंडों के भूल जाने का भय रहता है।

(ii) पूर्ण विधि- जब स्मरण की सामग्री को एक साथ मानस पटल पर रखते हैं और जब जरूरत हुई उसे प्रकट करते हैं उदाहरण के लिए गद्यांशों की कुछ पंक्तियाँ, उक्तियाँ, कहावतें या दस-बीस लाइन की कविता है।

(iii) मिश्रित विधि- खण्ड एवं पूर्ण विधियों को मिलाकर स्मरण की क्रिया होने में मिश्रित विधि पाई जाती है। इसमें किसी बड़े अंश को स्मरण करने में पहले उसे छोटे खंडों में बाँट लेते हैं और इन्हें स्मरण कर लेने के बाद और पूर्ण विधियों का मिश्रण हो जाता है। यह भी अच्छी विधि है और प्रायः मिश्रित विधि का ही प्रयोग अधिक होता है। अतः यह अधिक लाभदायक मानी जाती है।

(iv) निरन्तर विधि- इसे अविराम विधि भी कहते हैं। इसमें स्मरण की क्रिया लगातार होती रहती है। उदाहरण रोज वही क्रिया करें तो निरन्तर विधि से स्मरण करना होता है जैसा रोज प्रतिलिपि या अनुलेख करने से शब्द, उनके विन्यास सभी स्मरण हो जाते हैं, यहाँ तक कि वाक्य-रचना भी याद हो जाती है। संस्कृति के व्याकरण को इसी विधि से स्मरण करते हैं। इससे अध्ययन के प्रति अरुचि भी उत्पन्न होने की आशंका रहती है।

(v) सान्तर विधि- इसे सविराम विधि भी कहते हैं। इस विधि से स्मरण की क्रिया रुक-रुककर की जाती है। जैसे आज कोई पाठ स्मरण किया तो दो-तीन दिन का अन्तर केवल उसे याद किया। इससे स्थायीकरण में सुविधा होती है ऐसा मनोविज्ञानियों का विचार है।

(vi) निष्क्रिय विधि- शान्त एवं स्थिर मन से मनन-पठन होने पर निष्क्रिय, ऐन्द्रिक एवं क्रियात्मक चेष्ट नहीं होती है। मौन पर में कक्षा के द्वारा यही विधि अपनाई जाती है। उच्च अध्ययन के लिए यह एक सहायक विधि है।

(vii) सक्रिय विधि- इस विधि में हाथ पाँव मुख हिलाकर स्मरण होता है। कक्षा में अध्यापक प्रश्न पूछता है और छात्र उत्तर देते हैं, यह सक्रिय विधि का एक उदाहरण है। विज्ञान का प्रयोग सक्रिय है।

(viii) बोधात्मक विधि- इसमें जो कुछ स्मरण करना है उसको अच्छी तरह से पहले समझा जाता है। इसलिए यह एक बुद्धियुक्त तरीका है। इसमें अच्छी तरह से मानसिक संस्कार बनते हैं। स्थायी रूप से धारण करने में यह विधि लाभदायक एवं सहायक होती है।

(ix) अबोधात्मक विधि- इसमें स्मरण करने की सामग्री को बिना समझे-बूझे याद करने की चेष्टा पाई जाती है जिसमें बुद्धि का संयोग नहीं पाया जाता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक होती है।

(x) रटन्त विधि- इसमें भी बुद्धि का संयोग नहीं पाया जाता है। इसमें यांत्रिकता होती है, इससे इसमें भूलने की सम्भावना सबसे अधिक पाई जाती है। यह छोटे बच्चों तथा कम बुद्धि वालों में पाई जाती है। कभी-कभी तीव्र बुद्धि वाले भी रटते हैं। इससे तार्किकता का ह्रास होता है।

(xi) संकल्पात्मक विधि- जब विद्यार्थी एक दृढ़ निश्चय के साथ स्मरण करता है तो वहाँ संकल्पात्मक विधि पाई जाती है। इसमें अवधान को बलपूर्वक स्मरण की जाने वाली वस्तु पर केन्द्रित करना पड़ता है। यह अच्छी विधि मानी जाती है क्योंकि इसमें चेतन रूप से स्मरण होती है।

(xii) साहचर्य विधि- इस प्रकार की विधि उस स्थान में पाई जाती है जब व्यक्ति स्मरण की सामग्री को किसी विशेष वस्तु, व्यक्ति, घटना, तिथि से जोड़ देते हैं जैसे लड़के का नाम “स्वतन्त्र सिंह” रखा गया क्योंकि वह स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त को पैदा हुआ था, या लड़की का नाम “इन्दिरा” रखा जो इन्दिरा गांधी को सम्बोधित करने के लिये है। इसी प्रकार पूर्णिमा, निर्मला, कल्याणी, इन्द्रदेव, गणेश इत्यादि स्मरण करने के लिए नाम रखे जाते हैं।

(xiii) पठन-विधि- इसमें छात्र कुछ अंशों को बिना देखे या देख कर भी पढ़ता है और उसे मस्तिष्क में धारण करने की चेष्टा करता है। संगीत कविता, अभिनय की सामग्री इसी विधि से स्मरण- की जाती है।

(xiv) आवृत्ति विधि- इसे अभ्यास की विधि भी कहते हैं। इसमें एक ही सामग्री की आवृत्ति कई ढंग से होने पर स्मरण करना सम्भव होता है, जैसे गुणा का अभ्यास कई कक्षाओं में होता है, वहाँ आवृत्ति विधि होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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