राजनीति विज्ञान / Political Science

भारत में प्रजातंत्र की स्थिति | Conditions of Democracy in India in Hindi

भारत में प्रजातंत्र की स्थिति | Conditions of Democracy in India in Hindi

भारत में प्रजातंत्र की स्थिति

(Conditions of Democracy in India)

भारत अपने प्रजातांत्रिक प्रयोग में निरन्तर आगे बढ़ रहा है। अब हमें देखना है कि प्रजातंत्र की सफलता की उपर्युक्त शर्ते भारत में कहाँ तक विद्यमान हैं। बहुत से आलोचकों का कहना है कि भारत में प्रजातंत्र की दशाएँ इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं। उनकी दृष्टि में,यदि भारत में तानाशाही और अधिनायकतंत्र की स्थापना हो,तब भारतीय समस्याओं का निदान हो सकता है।

निम्नलिखित कारणों से भारत में प्रजातंत्र अभी तक पूर्ण सफल नहीं हुआ है:-

(i) अशिक्षा (Illiteracy)-

अशिक्षा प्रजातंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है और यह बड़ा दुश्मन भारत में विद्यमान है। भारत में 70 प्रतिशत जनता अशिक्षित है। अभी तक भारत की जनता अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों को नहीं समझ पायी है। परिणामस्वरूप, जनता को सरकार के कार्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है। जनता की अशिक्षा का अनुचित लाभ उठाकर उनके मतों को खरीद लिया जाता है। उनसे गलत वायदे करके उन्हें सताया जाता है। इसलिए, हम कह सकते हैं कि भारत की स्थिति प्रजातंत्र के विपरीत है। भारत के लोगों को शिक्षित करके ही हम प्रजातंत्र को अच्छे तरीके से स्थापित कर सकते हैं। हमारे देश की संसद और विधानसभाओं के अधिकांश सदस्य निरक्षर हैं। उन निरक्षर और मूर्ख प्रतिनिधियों से हम कुछ भी आशा नहीं कर सकते। यदि हम भारतीय जनतंत्र के संदर्भ में यहाँ की शासन प्रणाली को ‘मूों का शाप्तन’ कहें, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

(ii) वर्गहीन समाज का अभाव (Absence of classless Society)- 

जैसा कि बताया जा चुका है कि प्रजातंत्र एक वर्गहीन समाज में ही पुष्पित हो सकता है, इसलिए जब हम भारत के संदर्भ में इसकी विवेचना करते हैं तब ठीक विपरीत स्थिति पाते हैं। भारतीय समाज में अमीर-गरीब, ऊँच-नीच की भावनाएं विद्यमान   हैं। यहाँ धार्मिक विभिन्नताएं अमीर-गरीब,ऊँच-नीच की भावनाएँ विद्यमान हैं।   यहाँ धार्मिक विभिन्नताएँ, आर्थिक विषमताएँ तथा हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य विद्यमान है।औरतों को हेय दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें पुरुषों के सदृश सामाजिक स्तर प्रदान किया गया है। हरिजनों की समस्या अनेक प्रयासों के बावजूद भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। यहां सामाजिक स्थिति में इतनी विभिन्नता है कि हम प्रजातंत्र की सफलता की आशा नहीं  कर सकते । यहाँ उच्चवर्ग तथा पिछड़ी जातियों में स्पष्टतः प्रत्येक स्तर पर रस्साकशी चल रही है। इस रस्साकशी और साम्प्रदायिक संदर्भ की स्थिति में भारत में जनतंत्र सफल नहीं हो सकता।

(iii) आर्थिक और सामाजिक विषमता (Economic and Social disparity)- 

प्रजातंत्र वहीं सफल हो सकता है, जहाँ सामाजिक और आर्थिक समानता हो। भारत में सामाजिक और आर्थिक विषमता है। एक ओर समाज का एक वर्ग संपदा में निवास करता है तो दूसरी ओर अधिकांश लोगों को भरपेट भोजन प्राप्त नहीं होता। इसलिए, इस देश में प्रजातंत्र की पूरी सफलता की आशा हम नहीं कर सकते।

(iv) सुव्यवस्थित राजनीतिक दलों का अभाव (Absence of well-organized Political parties)- 

प्रजातंत्र की सफलता के लिए सुव्यवस्थित राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। भारत में इनका आज अभाव हो गया है। एक समय था जब कांग्रेस पार्टी एक मजबूत, सुव्यवस्थित तथा सुसंगठित राजनीतिक दल थी। लेकिन, उसका भी ध्रुवीकरण (Polarization) हुआ और वह टूटती तथा अनेक खंडों में बिखरती जा रही थी, लेकिन स्वर्गीया प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी दूरदर्शिता तथा अथक प्रयास से कांग्रेस को पुनः शक्तिशाली बना दिया। जिन आशाओं से दलों की स्थापना हुई थी, उनके अनुकूल कार्य करने में दल असफल ही रहे हैं। आज भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी एक शसक्त एवं रचनात्मक विपक्ष के रूप में उभर कर आयी है और सत्तापक्ष के साथ यथा सम्भव रचनात्मक सहयोग भी कर रही है। इसके बावजूद निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि अभी भी सुव्यवस्थित राजनीतिक दलों का अभाव है।

(v) नैतिक गुणों का अभाव (Absence of moral values)-

भारत के लोगों में प्रजातंत्र के अनुकूल नैतिक गुणों का विकास नहीं हो पाया है। यहाँ के राजनेताओं और राजनीतिक दलों में नैतिक आदर्शों का अभाव है। जनता के प्रतिनिधि सत्तासीन होते ही जनता का हित भूल जाते हैं और अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति में लगे जाते हैं।

(vi) संगठित जनमत का अभाव (Absence of organised public opinion)-

जनमत प्रजातंत्र का प्राण है। स्वस्थ जनमत के कारण ही प्रजातंत्र की रक्षा हो सकती है। भारत में स्वस्थ जनमत नहीं है। यों के जनमत को हम ‘भेडियाधसान’ की संज्ञा दे सकते हैं। यहाँ का जनमत प्रतिक्रिया में बौखलाता है और बिना सोचे-समझे बड़ी से बड़ी भूल भी कर सकता है। इसका कारण यही है कि जनमत को राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है।

(vii) निष्पक्ष समाचारपत्रों का अभाव (Absence of impartial Newspapers)-

भारत की स्थिति ऐसी है कि कोई भी समाचारपत्र निष्पक्ष नहीं हो सकता। कुछ समाचारपत्रों को छोड़कर समस्त समाचारपत्र किसी-न-किसी दलविशेष से सम्बद्ध हैं और अपने दल सम्बन्धी बातों का प्रचार करते हैं। ऐसी स्थिति में हम जनतंत्र की सफलता की आशा कैसे कर सकते है।

(vii) राष्ट्रीय चरित्र का दोष (Defect in National character)- 

भारत में अच्छी से अच्छी व्यवस्था भी सफल नहीं हो सकती; क्योंकि यहाँ के लोग तनावों में रहना पसन्द करते हैं तथा भय से ही अनुशासित रह सकते हैं। वे बल पर ही अनुशासित रहना चाहते हैं। उन्हें अनुशासन में रखने के लिए उनमें भय लाना आवश्यक है। यदि यहाँ के लोगों को स्वतंत्रता दे दी जाय तो सारी राष्ट्रीय संपत्ति वे अपने घर में एकत्र कर सकते हैं। यहाँ के लोगों का राष्ट्रीय चरित्र गिरा हुआ है |देश के बड़े से बड़े पदाधिकारी भी इस आरोप के शिकार हैं।

उपर्युक्त तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत का वातावरण प्रजातंत्र के अनुकूल नहीं है। यदि यहाँ अधिनायकतंत्र की स्थापना होती है और वह ईमानदारी और निष्पक्षता से सचमुच प्रशासन की बागडोर सँभालता है, तो बड़ी से बड़ी समस्याओं का निदान आसानी से हो सकता है। विगत वर्षों का इतिहास इसका साक्षी है कि अच्छी से अच्छी योजनाएँ भी संदिग्ध चरित्र के ठेकेदारों के हाथ में चली जाती और राष्ट्रीय सम्पति की बरबादी होती है। इस संदर्भ में भारत में प्रजातंत्र की स्थापना शंकास्पद तथा अनावश्यक है।

यदि भारत में प्रजातंत्र के अनुकूल परिस्थितियों पर हम विचार करते हैं, तो कुछ आशाएँ हमें प्रजातांत्रिक मंजिल की ओर खींच लेती हैं। यदि भारत का राष्ट्रीय चरित्र सचमुच सुधर जाए तो भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश बन सकता है। 1947 ई० से अब तक इस दिशा में काफी प्रयास हुए हैं, जिन्हें हम निम्नलिखित रूप में स्पष्ट कर सकते हैं:–

(i) शिक्षा का प्रचार तीव्र गति से हो रहा है।

(ii) आर्थिक तथा सामाजिक विषमताओं का उन्मूलन किया जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकारें कुछ आवश्यक कानून भी बना रही हैं। जमींदारी-प्रथा का उन्मूलन इस दिशा में एक सफल प्रयास है।

(iii) भूमि की जोत की सीमा निर्धारित की जा रही है। शहरी सम्पत्ति की सीमा पर भी नियंत्रण लगाने के प्रयास हो रहे हैं। आर्थिक समानता के नाम पर संविधान में अनेक संशोधन किये जा रहे हैं।

(iv) बैंकों तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण प्रजातंत्र की सफलता में आवश्यक कदम है।

(v) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए प्रजातंत्र को काफी सक्रिय बनाने के लिए पूर्ण व्यवस्था की गई है।

(vi) वर्गहीन समाज की स्थापना के लिए अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

(vii) समाचारपत्रों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाये रखने के लिए सरकार ने प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया है और विरोधी राजनीतिक दलों को भी चुनावों के दौरान आकाशवाणी के प्रयोग की सुविधा प्रदान कर दी गई है।

अतएव, निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि भारत प्रजातंत्र के प्रयोग में आगे बढ़ रहा है। महात्मा गांधी तथा पंडित नेहरू ने भारत को ‘प्रजातंत्र की भूमि’ कहा, जिस ओर भारत के ईमानदार नेता प्रयास कर रहे हैं। उनके प्रयास में हम लोगों का सहयोग अपेक्षित है। इस उगते हुए सूर्य का स्वागत इसलिए आवश्यक है कि किसी-न-किसी दिन यह अंधकार की समाप्ति करेगा और प्रजातंत्र के साम्राज्य को आलोकित करेगा।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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