बुद्धि का अर्थ | बुद्धि की परिभाषा | बुद्धि के सिद्धान्तवाद | बुद्धि के प्रकार | बुद्धि मापन का तात्पर्य | मानसिक आयु और कालिक आयु | बुद्धि-लब्धि के प्रसार

बुद्धि का अर्थ | बुद्धि की परिभाषा | बुद्धि के सिद्धान्तवाद | बुद्धि के प्रकार | बुद्धि मापन का तात्पर्य | मानसिक आयु और कालिक आयु | बुद्धि-लब्धि के प्रसार

बुद्धि का अर्थ

बुद्धि क्या है ? बुद्धि मनुष्य को मानसिक योदता है। जिससे मनुष्य अपने सभी कार्यों को पूरा करने में सहायता लेता है। बुद्धि शब्द में बुद् और घि दो शब्द मिले हैं। बुद् का अर्थ ऊपर या बाहर आना होता है और घि का अर्थ सन्तुष्ट करना होता है। अब दोनों शब्दों को मिला कर बुद्धि का अर्थ होता है मनुष्य की क्षमता जो बाहर आये अर्थात् विभिन्न क्रियाओं में प्रकट हो और इसके फलस्वरूप वह अपने कार्य में सन्तुष्ट हो। बुद्धि व्यक्ति की जन्मजात मानसिक योग्यता है जो विभिन्न क्रियाओं को करने में प्रयुक्त होती है और तदनुसार वह क्रिया में सफल होता है।

अंग्रेजी में बुद्धि के लिए प्रयुक्त शब्दों का जर्य दोध करना, समझाना अथवा आन्तरिक चुनाव करना है। इससे स्पष्ट है कि बुद्धि में, जब कई चीजें सामने होती हैं तो उसे चुनकर अपना काम पूरा करने की क्षमता और योग्यता होती है। बुद्धि का अर्थ है मन से सम्बन्ध करने वाली क्रिया। यह एक प्रकार से मानसिक क्रिया हुई। परन्तु योग्यता के अर्थ में इसे प्रज्ञात्मक कौशल कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि बुद्धि मनुष्य की प्रज्ञा को अच्छी तरह से पयोग करने की योग्यता क्षमता है।

मनुष्य की मानसिक योग्यताएँ

आज मानव मन के व्यवहारों का अध्ययन मनोविज्ञान में होता है। मन का व्यवहार में प्रकट होना उसकी विभिन्न क्रियाओं से मालूम होता है। उदाहरण के लिए मनुष्य को दुखी देखकर सोचता है कि वह किस कारण से दुखी है। उसके दुख के कारण पर वह चिन्तन करता है तथा कुछ निश्चित निर्णय अन्त में लेना है कि वह धनाभाव के कारण दुखी है। इस प्रकार से को गई क्रियाएं गासिक योग्यता होती है। अतः मन की क्रियाओं  की योग्यताएँ होती हैं। इन्हीं क्रियाओं के आधार पर मानसिक योग्यताएँ निर्धारित होता हैं, जैसे अनुभूति की योग्यता, चिन्तन को योग्यता, निर्णय की योग्यता।

मानसिक योग्यताओं का सम्बन्ध बुद्धि से होता है। मानसिक योग्यताओं में लिखने, पढ़ने, बोलने, गणित, विज्ञान, तर्क, खेरने कूदने, चलने-फिरने, सोचने, विचारने, संवेदन, प्रत्यक्षीकरण, निरीक्षण, स्मरण, कल्पना, समस्या समाधान जादि की योग्यताएँ शामिल हैं। इन सभी को समन्वित रूप में बुद्धि समठाना चाहिए।

बुद्धि की परिभाषा

(क) प्रो० बिने- अच्छी तरह लिए करने, अच्छी तरह बोध करने और अच्छी तरह तर्क करने की योग्यता बुद्धि है।

प्रो० बर्ट ने भी इस परिभाषा का समर्थन किया है।

(ख) प्रो० स्टर्न बुद्धि एक सामान्य क्षमता है जो व्यक्ति को चैतन्य रूप से अपनी विचार प्रक्रिया को नवीन आवश्यकताओंरो समायोजित करने में सहायता करती है।

(ग) प्रो० बेल्स- बुद्धि का अर्य उस शक्ति से है जिसके द्वारा हम नवीन परिस्थितियों में अधिक उत्तम रूप से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार के प्रतिदों को पुनर्सगठित करते हैं।

(घ) प्रो० स्पियरमैन- बुद्धि मनुष्य की सामान्य एवं विशेष कारकों से युक्त योग्यता है।

(ड.) मो० बेक्सलमैन- उद्देश्यपूर्ण कार्य करने, तर्कयुक्त चिन्तन करने और वातावरण में प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार करने की सम्पूर्ण या सार्वभौम क्षमता बुद्धि है।

(च) प्रो० स्टाडॉर्ड- बुद्धि वह योग्यता है जिससे (1) कठिनाई, (2) जटिलता, (3) अमूर्तता, (4) मितव्ययिता, (5) ज्देश्य के प्रति अनुकूलता, (6) सामाजिक मूल्य, (7) मौलिकताओं के उद्गमन :: विशेषताओं के साथ क्रिया करना होता है तथा उन दशाओं के अन्तर्गत ऐसी रियाओं को करना जारी रखना होता है जो शक्ति के केन्द्रीकरण तथा शक्तियों के प्रतिरोध की मांग करती हैं।

बुद्धि का स्वरूप

बुद्धि वह जन्मजात योग्यता है जो कई योग्यत्राओं का एक समन्वित रूप है। इसके आधार पर मनुष्य सीखता है, अनुभव ग्रहण करता है, सभी परिस्थितियों में समायोजन करता है, समस्याओं को सुलझाता है और उन पर चिन्तन-मनन, तर्क, निर्णय करता है। बुद्धि के द्वारा व्यक्ति सभी ज्ञानात्मक एवं कौशल सम्बन्धी सभी क्रियाओं को सरलतापूर्वक करने में समर्थ होता है। बुद्धि के द्वारा मानसिक विकास होता है। बुद्धि के बल पर मनुष्य जीवन में सफल होता है और आगे बढ़ता है। इस प्रकार बुद्धि का स्वरूप मिश्रित, जटिल, सूक्ष्म कहा जा सकता है।

बुद्धि के सिद्धान्तवाद

(i) एक योग्यता के सिद्धान्तवाद- इसे कुछ लोगों ने अद्वैत सिद्धांतवाद अथवा एक कारकीय सिद्धांतवाद कहा है। इसके मानने वालों ने बुद्धि को स्मरण, करना जैसी एक योग्यता माना है जिससे विभिन्न कार्यों का सम्पादन करते है। इसके मानने वालों में डॉ० जॉनसन जैसे विद्वान् हैं जिनके विचारानुसार भाषा में प्रखर बुद्धि गणित, विज्ञान, आदि में भी वैसे ही कार्य करने में समर्थ होता है।

(ii) द्विकारक सिद्धान्तवाद- इसके पोषक प्रो० स्पियरमैन हैं। इनके अनुगार बुद्धि सामान्य और विशेष योग्यता होती है। सामान्य योग्यता सभी प्रकार के कार्यों को करने में पायी जाती है जबकि विशेष योग्यता किसी विशेष विषय या कौशल से सम्बन्धित होता है। जैसे भाषा, गणित, कला आदि को समझने में सामान्य योग्यता पायी जी है और इनमें से किसी एक के लिए विशेष योग्यता हो सकती है।

(iii) त्रिकारक सिद्धान्तवाद- प्रोबिने और प्रो० बर्ट का विचार था कि बुद्धि निर्णय, बोध, तर्क करने की योग्यता है। कुछ आलोचकों ने इसे सीमित योग्यता का सिद्धान्तवाद बताया है।

(iv) बहुकारक सिद्धान्तवाद- आधुनिक युग में यह सिद्धान्तवाद अधिक गया है। प्रो० बेक्सलर, प्रो० यर्टन और प्रो० केली ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया है। अब दुद्धि का सम्बन्ध 9 योग्यताओं से हो गया है-(1) दृश्य या दिक संबंधी योध्यता, (2) प्रत्यक्ष सम्बन्धी योग्यता, (3) संख्या सम्बन्धी योग्यता (4) तर्क सम्बन्धी मौखिक सम्बन्धन की योग्यता, (5) शब्दों की धारा प्रवाह प्रयोग की योग्यता, (6) स्मृति योग्यता, (7) आगम तर्क की योग्यता, (8) निगम या सिद्धांतात्मक तर्क की योग्यता, (9) समस्या समाधान के नियन्त्रण की योग्यता। इन योग्यताओं का अलग-अलग प्रयोग विभिन्न कार्यों के निष्पादन में होता है।

(v) समूह-योग सिद्धान्तवाद- प्रो० थर्स्टन के सिद्धान्तवाद अधिक मान्य होते हुए भी समूह-योग सिद्धान्तवाद अधिक उपयुक्त मालूम होता है। इस सिद्धान्तवाद के अनुसार केवल एक योग्यता का प्रयोग क्रिया में नहीं होता है बल्कि कई योग्यताओं के समूह-योग का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिये समस्या समाधान करने में केवल समस्या समाधान सम्बन्धी योग्यता काम नहीं करती है, उसमें दृश्य और दिक सम्बन्धी, स्मृति, तर्क सम्बन्धी कई योग्यताएँ एक साथ मिलकर सामूहिक रूप में काम करती हैं तभी हमें बुद्धि का परिचय मिलता है।

बुद्धि के प्रकार

बुद्धि के प्रकार पर कई ढंग से विचार किया जा सकता है। प्रो० टरमन ने बुद्धि- लब्धि का संकेत किया है और उसके अनुसार (1) प्रतिभाशाली, (2) उत्कृष्ट, (3) सामान्य, (4) मन्द, (5) न्यून, (6) जड़ बुद्धि आदि बतायी गयी हैं। इस प्रकार बुद्धि की मात्रा के आधार पर यह वर्गीकरण होता है। इसके अलावा निम्न प्रकार की बुद्धि बतायी गयी है-

(1) अमूर्तयुद्धि या सूक्ष्मबुद्धि- सूक्ष्म प्रश्नों और जटिल समस्याओं को हल करने में अमूर्त बुद्धि पाई जाती है। वैज्ञानिक, गणितज्ञ, कवि, दार्शनिक की बुद्धि सूक्ष्म कहलाती है। अंक, शब्द, प्रतीक, संकेत आदि की सहायता से यह प्रकट होती है। अधिगम, विचाराभिव्यक्ति, समस्या हल, कला में हम अमूर्त बुद्धि से काम लेते हैं। विद्यालयीय शिक्षण में अध्यापक इसी की सहायता से ज्ञान देने में समर्थ होता है।

(ii) मुर्त्त बुद्धि- कौशल, यन्त्र, निर्माण के कार्यों में मूर्त बुद्धि पाई जाती है। बढ़ई, लुहार, मिस्त्री, राजगीर आदि इसी बुद्धि से काम करते हैं। मूर्त वस्तुओं की सहायता से काम करना इसी के कारण सम्भव होता है। इसमें कर्मेन्द्रियों की सहायता ली जाती है यद्यपि चिन्तन की क्रिया भी पाई जाती है। निष्पादन एवं हस्तकौशल इसी बुद्धि के आधार पर होता है।

(iii) सामाजिक बुद्धि- यह व्यक्ति की उस योग्यता को संकेत करती है जिससे मनुष्य अन्य मनुष्यों के साथ समायोजन करने, सम्बन्ध बनाए रखने, आपसी व्यवहार करने सुख-दुख में भाग लेने में समर्थ होता है। दैनिक एवं सामूहिक जीवन में सफलता पाने के लिए यह बुद्धि आवश्यक होती है। सामाजिक बुद्धि अमूर्त बुद्धि और मूर्त्त बुद्धि में पूर्ण सहयोग रखती हैं। कक्षा में विद्यार्थी परस्पर मैल-जोल रखता है, दूसरों से सीखता है, अध्यापक वर्ग से सम्पर्क स्थापित करता है क्योंकि उसमें सामाजिक बुद्धि पाई जाती है। नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, दूकानदार, दफ्तर के क्लर्क सड़क पर चलने वाले सभी में यह बुद्धि कम-अधिक मात्रा में पाई जाती है।

(iv) व्यावहारिक बुद्धि- चरित्र और आचरण से व्यावहारिक बुद्धि पाई जाती है। किसके साथ कैसा व्यवहार मनुष्य को करना चाहिये यह व्यावहारिक बुद्धि बताती है। पिता का पुत्र के साथ, अध्यापक का छात्र के साथ, प्रशासक का नियोक्ता के साथ और इसके व्यक्तिक्रम रूप में भी व्यावहारिक बुद्धि होती है। दैनिक लेन-देन के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। घर में और घर के बाहर इसी का प्रयोग किया जाता है।

(v) यांत्रिक बुद्धि- यन्त्र के साथ और यन्त्र की तरह काम करने में यांत्रिक बुद्धि पाई जाती है। मोटर चालक, इंजन चालक, अन्य सवारियों के चालक इसी बुद्धि में काम करते पाये जाते हैं और उनमें यन्त्र की तरह काम करने की आदत भी पाई जाती है। अतएव यहाँ हम यांत्रिक बुद्धि ही पाते हैं। रटन्त क्रिया भी यांत्रिक बुद्धि से सम्बन्धित होती है। क्रमबद्ध रूप में कार्य करने में भी यांत्रिक बुद्धि होती है जैसे दफ्तर में 10 बजे से 4 बजे तक काम करना, विद्यालय में 10 बजे से 4 बजे तक पढ़ाई में लगे रहना यांत्रिक बुद्धि को बताता है।

बुद्धि मापन का तात्पर्य

बुद्धि या मानसिक योग्यता की मात्रा को मालूम करना बुद्धि मापन है। उदाहरण के लिए एक 10 वर्ष का बालक कक्षा 5 में सब लड़कों से अधिक अंक प्राप्त करता है। सभी विषयों में वह 100 अंक में 60-70 अंक पाता है तो हम उसे प्रतिभाशाली बालक कहते हैं। कोई दूसरा छात्र अध्यापक के प्रश्नों का उत्तर बहुत देर में अशुद्ध उत्तर देता है। ऐसी हालत में उसके बुद्धि की मात्रा कम पाई जाती है। परीक्षाफल बुद्धि की माप बताते हैं। परीक्षणों के द्वारा हम व्यक्ति की सामान्य और विशेष योग्यता की जानकारी करते हैं तो उसे हम बुद्धिमापन कहते हैं।

बुद्धि मापन एक प्रकार से स्वाभाविक ढंग से भी होने वाली क्रिया है। घर में हम किसी बालक से कुछ चीज उठाने, उठाकर रखने, खोलने-बाँधने, लाने-देने को कहते हैं। यदि हम उसे ठीक से करता हुआ देखते हैं तो सन्तुष्ट हो जाते हैं और कहते हैं कि उसकी बुद्धि है और ठीक से न करने पर उसे धिक्कारते हैं कि उसमें बुद्धि नहीं है। बुद्धि का मापन व्यक्ति की कार्य-कुशलता का बोधक होता है। अतः बुद्धि का मापन कार्य-कुशलता की स्वीकृति भी होती है। इसे जानने के कई साधन हैं जिन्हें मापन के साधन या परीक्षण कहते हैं।

मानसिक आयु और कालिक आयु

मानसिक आयु क्या है और कालिक आयु क्या है ? बुद्धि मानसिक योग्यता है अतएव बुद्धि की आयु को मानसिक आयु कहते हैं। आयु वर्ष से ज्ञात होती है अतएव कालिक आयु या शारीरिक आयु या वास्तविक आयु की तरह व्यक्ति की मानसिक योग्यता का भी समय होता है। इसे मानसिक आयु से संकेत करते हैं जो व्यक्ति की मानसिक उपलब्धि के आधार पर निश्चित की जाती है। कालिक आयु जन्म के बाद से वर्तमान समय तक की अवधि को कहते हैं।

प्रो० बिने ने जब बुद्धि परीक्षण बनाया उस समय उन्होंने हरेक उम्र के लिए कुछ निश्चित प्रश्न बनाये, जैसे 3 वर्ष के बालक के लिए 4 प्रश्न बनाये। 4 वर्ष के बालक के लिए 4 प्रश्न बनाये और इसी प्रकार अन्य आयु वालों के लिए भी प्रश्न तैयार किये। इस आधार पर यदि तीन वर्ष का बालक 4 प्रश्न के सही उत्तर दे देता तो उसकी मानसिक आयु 3 वर्ष की होती है। और यदि 4 वर्ष के बालक के लिए दिए गये प्रश्नों में से 2 प्रश्नों के सही उत्तर दे दे तो उसकी मानसिक आयु (3+ 1/2 = 3 1/2) वर्ष की होती है। इस ढंग से तीन वर्ष के बाद बालक की इस दशा में आयु 3 1/2 वर्ष की हो गई जब कि उसकी कालिक आयु 3 वर्ष की ही रही । कालिक आयु से मानसिक आयु कम भी होती है। यदि यही बालक 3 वर्ष की आयु वाले केवल 3 प्रश्नों का सही उत्तर दे और 4 वर्ष वालों के लिए बने प्रश्नों में से कुछ भी न कर सके तो इसकी उम्र मानसिक आयु (3-1/4 =2 3/4 वर्ष हुई। अतः अद ज्ञात हो गया कि व्यक्ति की मानसिक आयु उसकी कालिक आयु से बढ़ती-घटती रहती है या समान भी रहती है। मानसिक आयु तथा कालिक आयु में मुख्य अन्तर आधार का है। मानसिक आयु व्यक्ति के निष्पादन, ज्ञान, योग्यता या कुशलता के आधार पर निश्चित की जाती है, जब कि कालिक आयु जन्म से जीवित रहने की तिथि तक की अवधि पर।

बुद्धि-लब्धि

प्रो० एम० एल० टरमन ने सबसे पहले प्रो० बिने के बुद्धि परीक्षण का संशोधन अमेरिका में किया और बुद्धि-लब्धि का उपयोग किया। प्रो० टरमन और मेरिल ने मिलकर एक स्केल या मापनी 1937 में निकाली। प्रो० सोरेन्शन का कथन है कि मानसिक आयु मानसिक परीक्षण से निर्धारित होती है। किसी भी कालिक आयु वाले बालक के लिए निर्धारित औसत प्राप्तांक मानसिक स्तर या मानसिक विकास का स्तर संकेत करता है। अतएव मनोविज्ञानी टरमन ने मानसिक आयु और कालिक आयु का एक अनुपात मालूम किया और उसे उसने बुद्धि-लब्धि कहा। इस आधार पर बुद्धि-लब्धि किसी भी व्यक्ति की मानसिक आयु तथा कालिक आयु की अनुपात होती है। प्रो० ड्रेवर ने लिखा है कि “बुद्धि-लब्धि : मानसिक आयु की कालिक आयु के साथ अनुपात एक प्रतिशत के रूप में अभिव्यक्त”

बुद्धि-लब्धि जानने का निम्न सूत्र प्रो० टरमन ने बताया है-

बुद्धि-लब्धि (I.Q.) = मानसिक आयु (Mental Age) /कालिक आयु (Chronological Age) x 100

इस सूत्र से हम प्राप्तांकों की सहायता से मानसिक आयु मालूम कर लेते हैं। कालिक या वास्तविक आयु ज्ञात रहती ही है और पुनः बुद्धि-लब्धि मालूम करते हैं। 100 से गुणा क्यों करते हैं ? जिससे कि संख्या प्रतिशत में आये और छोटी भिन्न पूर्णांक के रूप में प्रकट की जा सके।

मान लीजिए एक बालक की कालिक आयु 16 वर्ष है। उसको परीक्षण देने पर जो प्राप्तांक मिले उससे उसकी मानसिक आयु 15 वर्ष की हुई तो उसकी बुद्धि-लब्धि क्या होगी?

बुद्धि-लब्धि = 15/16 x 100 = 94 (के करीब)

इसी प्रकार से यदि किसी बालक की मानसिक आयु 20 वर्ष है और कालिक आयु 16 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि क्या होगी?

बुद्धि-लब्धि = 20/16 x 100 = 125

बुद्धि लब्धि की उपयोगिता- बुद्धि लब्धि से एक तो बालक की मानसिक स्थिति मालूम होती है, दूसरे उसके मानसिक विकास में सहायता मिलती है, तीसरे उसे आगे बढ़ने के लिए तदोचित निर्देशन दिया जा सकता है, जिससे उसे अधिक से अधिक सफलता मिल सके। अतएव स्पष्ट है कि बुद्धि-लब्धि की एक बड़ी शैक्षिक एवं व्यावहारिक उपयोगिता पाई जाती है।

बुद्धि-लब्धि के प्रसार

अमेरिका में प्रो० टरमन तथा प्रो० मेरिल ने लगभग 3000 छात्रों की बुद्धि-लब्धि ज्ञात की और भारत में प्रो० कामथ ने भी अधिक बड़ी संख्या में बुद्धि-लब्धि प्राप्त की जिनके आधार पर इनकी तुलनात्मक ढंग से अध्ययन करके हर बुद्धि-लब्धि का प्रसार मालूम कर सकते हैं-

बुद्धि-लब्धि वर्ग (1) प्रो० टरमन-मेरिल (2) प्रो० कामथ
1. 140 से ऊपर प्रतिभाशाली 0.5% 0.5%
2. 130 से 140 अति उत्कृष्ट 0.3% 3.5%
 3. 120 से 130 उत्कृष्ट 7.0% 9.0%
 4. 110 से 120 प्रखर 14.0% 14.0%
 5. 100 से 110 उच्च सामान्य 25.0%
6. 90 से 100 निम्न सामान्य 25.0% 42.0%
90 से 100 सामान्य
7. 80 से 90 मन्द बुद्धि 14.5%
80 से 100 पिछड़े हुए 15.0%
8. 70 से 80 हीन बुद्धि 7.0% 9.0% (बहुत पिछड़े हुए)
9. 60 से 70 निर्बल बुद्धि 0.5% (i) 3.5% (सीमा पर)
(ii) नीचे से 60
10. 50 से 60 मूर्ख 1.5%
11. 40 से 50 मूढ़
नीचे से 40 जड़ 0.5%

ऊपर की सारणी से ज्ञात होता है कि दोनों देशों में सामान्य से ऊपर एवं नीचे के वर्गों में बुद्धि-लब्धि का वितरण समान है, दोनों देशों में बुद्धि-लब्धि का प्रसार भी शून्य से 140 या इससे ऊपर तक एक ही है। प्रतिशत के विचार से थोड़ा अन्तर दिखाई देता है। सामान्य से नीचे अपने देश में अधिक दिखाई देते हैं यद्यपि प्रतिशत बहुत कम ही है। इससे एक तथ्य यह ज्ञात होता है कि बुद्धि-लब्धि में स्थिरता होती है। व्यक्तिगत रूप से जो अध्ययन किए गए हैं उनमें भी यही निष्कर्ष निकलता है कि जन्म से लेकर अन्त तक बुद्धि-लब्धि एक समान होती है। यह अवश्य है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि के प्रयोग के अनुभव के आधार पर शीघ्र काम करने वाला बन जाता है परन्तु उसकी मानसिक आयु एवं कालिक आयु का अनुपात स्थिर पाया जाता है।

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