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परिवर्त्य का तात्पर्य | चर का तात्पर्य | बौद्धिक परिवर्त्य के प्रकार | व्यक्तित्व के परिवर्त्य के प्रकार | परिवर्त्य होने के कारण | अधिगम और बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवर्त्य | परिवर्त्य के अधिगम | परिवर्त्य मापन से लाभ

परिवर्त्य का तात्पर्य | चर का तात्पर्य | बौद्धिक परिवर्त्य के प्रकार | व्यक्तित्व के परिवर्त्य के प्रकार | परिवर्त्य होने के कारण | अधिगम और बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवर्त्य | परिवर्त्य के अधिगम | परिवर्त्य मापन से लाभ

परिवर्त्य का तात्पर्य

परिवर्त्य को अंग्रेजी में variables कहा जाता है। वास्तव में यह वह कारक है जो सामान्य औसत से भिन्नता को प्रकट करता है। सांख्यिकी में इसे ‘चर’ कहा जाता है जिसका अर्थ होता है चलने-हिलने योग्य । इससे यह संकेत मिलता है कि यदि शरीर, बुद्धि, व्यक्तित्व साधारण औरत से अलग होता है। चर होता है अर्थात् परिवर्तनशील होता है तो वह परिवर्त्य माना जाता है। प्रो० इयर ने बताया है कि परिवर्त्य जैविक और मनोवैज्ञानिक अर्थ में उसको कहते हैं जो परिवर्तन के अधीन होता है।

एक उदाहरण से हम परिवर्त्य का अर्थ प्रकट कर सकते हैं। मान लीजिए कक्षा में बीस लड़के हैं और उनकी बुद्धि-लब्धि 115 तथा 65 के बीच में है। इस प्रकार से सामान्य से कुछ ऊपर और कुछ नीचे बुद्धि लब्धि रखते हैं। इस प्रकार का अन्तर उन कारकों के कारण है जो दुद्धि की मात्रा पर निर्भर करते हैं और बुद्धि की मात्रा अधिक या कम होने से बौद्धिक परिवर्तनशीलता पाई जाती है। इसे हम बौद्धिक परिवर्य की संज्ञा देंगे। यह एक प्रकार से बौद्धिक भिन्नता का मामला ही है। इस कारण कुछ विद्वानों ने परिवर्त्य को भिन्नता का एक रूप और दूसरा नाम बताया है। व्यक्तित्व के परिवर्त्य के उदाहरण में हम ‘भिन्न प्रकारों को दे सकते हैं। प्रो० ट्रो ने लिखा है कि “कुछ साहसी, शक्तिशाली और प्रभाव डालने वाले होते हैं; दूसरे कमजोर, डरपोक, डगमगाने वाले होते हैं। कुछ समझदार और सहयोग करने वाले होते हैं जबकि दूसरे संवेदनशील या विरोध प्रकट करने वाले और शत्रुभाव वाले होते हैं।” इस कथन से व्यक्तित्व के परिवर्त्यों या भिन्न प्रकारों का तात्पर्य मालूम होता है।

बौद्धिक परिवर्त्य के प्रकार

विभिन्न बुद्धि-परीक्षणों के आधार पर हमें निम्नलिखित दौद्धिक परिवर्त्य के प्रकार मिले हैं-

अतीव प्रतिभाशाली 160 से 200 या इससे अधिक बुद्धि-लब्धि वाले
प्रतिभाशाली 140 से 160 तक की बुद्धि-लब्धि वाले
अत्युत्कृष्ट 120 से 140
उत्कृष्ट 110 से 120
सामान्य 90 से 110
मन्द बुद्धि 80 से 90
निर्बल बुद्धि 70 से 80 तक की बुद्धि-लब्धि वाले
हीन बुद्धि 70 से नीचे
मूर्ख 50 से 70
मूढ़ 20 से 50
जड़ 20 से नीचे

प्रायः बौद्धिक परिवर्त्यों को तीन या पाँच में रख सकते हैं-

(i) मन्द- सामान्य- उत्कृष्ट

(ii) हीन- मन्द- सामान्य- उत्कृष्ट- प्रतिभाशाली

इस वर्गीकरण से हम परिवर्त्य का तात्पर्य समझ सकते हैं। पहले उदाहरण में सामान्य से गणात्मक मूत्य की ओर मन्द बुद्धि पाते हैं और धनात्मक मूल्य की और उत्कृष्ट बुद्धि पाते हैं। ये परिवर्त्य को प्रकट करते हैं। दूसरे उदाहरण से हम ऋणात्मक मूल्य की ओर मन्द दुद्धि और पुनः हीन बुद्धि पाते हैं तथा धनात्मक मूल्य की ओर उत्कृष्ट और प्रतिभाशाली बुद्धि बाले चर हैं। अब बुद्धि के रास में हम एक ओर जड़ बुद्धि पाते हैं तो दूसरी ओर अतीव प्रतिभाशाली बुद्धि पाते हैं। अतः सामान्य बुद्धि ऋणात्मक एवं धनात्मक चर या परिवर्त्य होते हैं।

व्यक्तित्व के परिवर्त्य के प्रकार

बुद्धि के परिवर्त्य के समान ही व्यक्तित्व के परिवर्त्य भी पाये जाते हैं, इन्हें भी हम नीचे दिये गये विवरण से समझ सकते हैं-

(i) बुरा – सामान्य- अच्छा

(ii) बहुत बुरा – बुरा – सामान्य – अच्छा – अच्छा

परन्तु इस कारण से केवल गुणात्पक बोध होता है। विभिन्न गुणों को अलग-अलग करने पर हम उनके पास में व्यक्तित्व के परिवर्त्य को रख सकते हैं। आचार-विचार, स्वभाव-वृत्ति आदि के आधार पर व्यक्तित्व में परिवर्तनशीलता पायी जाती है जिसका विवरण हमें विभिन्न मनोविज्ञानियों के अध्ययन में मिलता है। उदाहरण के लिए प्रो० युंग ने तीन प्रकार के व्यक्तित्व बताये हैं (1) अन्तर्मुखी, (2) बहिर्मुखी और (3) उभयमुखी। उभयमुखी मध्यस्थ होता है और दो छोर पर अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी।

अन्तर्मुखी – उभयमुखी – बहिर्मुखी –

प्रो० क्रेश्चमर, प्रो० शेल्डन, प्रो० फ्रायड तथा प्रो० हार्नी ने व्यक्तित्व के परिवत्यों पर विचार किया है और विभिन्न प्रकार बताये हैं। प्रो० क्रेश्चमर ने मिलनसार, एकान्तप्रिय, चुस्त और मिश्रित प्रकार बताया है। प्रो० शेल्डन ने लम्बाकार, गोलाकार तथा आयताकार (Mesomorph) प्रकार बताया है। प्रो० फ्रायड ने औसत (Average), मनस्तापीय (Neurotic) और सृजनालक (Creative) प्रकार बताया है। प्रो० हार्नी ने अनुरोधी (Compliant), आक्रामक (Aggressive), अनासक्त (Detached) प्रकार के व्यक्तित्व बताये हैं। इन सभी मनोविज्ञानियों ने अलग-अलग प्रकार के व्यक्तिरों के लक्षण भी दिखाये हैं। इन लक्षणों से हमें ज्ञात होता है कि इनमें कितनी भिन्नता पाई जाती है।

व्यक्तित्व का विकास समाज में होता है। समाज की आर्थिक, राजनैतिक, व्यावसायिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दशाओं के फलस्वरूप व्यक्ति के प्रकार भी पाये जाते हैं। आधुनिक समय के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक और असामाजिक व्यक्तित्व पाये जाते हैं। सामाजिक व्यक्तित्व असामाजिक व्यक्तित्व से इस दृष्टि से भिन्न होता है कि उसमें समाज के पोषक तत्व अधिक पाये जाते हैं, दास्तव में यह धनात्मक छोर पर होता है और असामाजिक ऋणात्मक छोर पर होता है-

असामाजिक – सामान्य – सामाजिक –

सामान्य से तात्पर्य उस व्यक्तित्व से है जो समाज की क्रियाओं से आसक्त नहीं पाया जाता है और न उससे घृणा ही करता है। प्रायः ऐसे लोग ही अधिक पाये जाते हैं जो अपने ही काम में मस्त पाये जाते हैं। यहाँ पर हम सामाजिक परिवर्त्य का होना कह सकते हैं।

परिवर्त्य होने के कारण

यह परिवर्त्य क्यों होता है ? इस प्रश्न पर थोड़ा सा विचार आवश्यक है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि “आनुवंशिकता” और “पर्यावरण’ अथवा “प्रकृति” (Nature and Nurture) दोनों के परिणामस्वरूप परिवर्त्य पाये जाते है परिवर्त्य = प्रकृति x पोषण। आनुवंशिकतावादी केवल जीन्स या आनुवंशिक कारणों को प्रधानता देते हैं जबकि पर्यावरणवादी कहते हैं कि मनुष्य के द्वारा किये गये अनुभव उसकी प्रकृति को निर्धारित करते हैं। परन्तु प्रो० ट्रो का विचार है कि एक अर्थ में यह विवाद निरर्थक है और प्रकृति एवं पोषण दोनों अत्यावश्यक कारक हैं जिनके आधार पर व्यक्तित्व बनता एवं विकसित होता है और फलस्वरूप बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवर्त्य पाये जाते हैं।

विभिन्न अध्ययनों से कुछ तथ्य ज्ञात हुआ है जिन्हें इस संदर्भ में जान लेना जरूरी मालूम पड़ता है।

(i) प्रकृति के स्थिर रहते हुए पोषण में अन्तर तदनुरूप बौद्धिक निष्पादन में अन्तर उत्पन्न करते हैं।

(ii) मानसिक अभिवृद्धि शारीरिक अभिवृद्धि का एक कार्य है और पर्याप्त पोषण शैक्षिक प्रगति का मुख्य निर्धारक होता है।

(iii) व्यक्तित्व की विशेषताएँ दूसरों में अनुक्रिया की उत्तेजना देती हैं जो इसके बदले में उसकी अभिवृत्तियों और व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

(iv) आचरण सीखे जाते हैं।

(v) विभिन्न प्रकार की अनुक्रियाएँ जिन्हें करना व्यक्ति सीखते हैं उनके स्वभाव की आवश्यकताओं के अनुसार होती हैं।

(vi) व्यक्ति के अन्तर्नाद एवं आवश्यकताएँ समायोजन के संपरिवर्तनीय संयंत्र का काम करते हैं।

(vii) अधिगम के अनुभव व्यक्ति में बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवर्त्य ला देते हैं।

इनं निष्कर्षों से स्पष्ट है कि परिवर्त्य के कारण दो हैं-प्रकृति, स्वभाव या आनुवंशिकता और पर्यावरण जिनके विभिन्न तत्त्व अपना प्रभाव डालते हैं।

अधिगम और बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवर्त्य

यदि बुद्धि और व्यक्तित्व के परिवर्त्य जन्मजात और अर्जित दोनों प्रकार के होते हैं तो हमें मनुष्य के द्वारा की गई अधिगम की क्रियाओं पर ध्यान देना पड़ेगा। शिक्षा और अधिगम में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। वास्तव में अधिगम की क्रिया के द्वारा जो उपलब्ध किया जाता है, वही शिक्षा है। पीछे हमने बुद्धि एवं व्यक्तित्व के जो परिवर्त्य के प्रकार दिये हैं उनको जानकर अध्यापक अपनी शिक्षाविधि, अपने शिक्षा के पाठ्यक्रम तथा शिक्षा के लक्ष्य को भी निश्चित कर सकता है। “बहुत से शिक्षा पाने के योग्य होते हैं परन्तु अपेक्षतया निम्न स्तर पर ही चूँकि वे विशेष शैक्षिक सुविधाओं से अधिक लाभ नहीं उठा सकते, फिर भी वे आवृत्ति कार्यों को करने में प्रशिक्षित किये जा सकते हैं और अपने आपको भरण-पोषण के योग्य बनाये जा सकते हैं”-प्रो० ट्रो।

इसलिए ऐसे वर्ग को अधिगम शिक्षा देने में अधिक क्रिया एवं इन्द्रियानुभव वाली सामग्री का प्रयोग किया जाना जरूरी है।

सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति निर्देशन से अच्छा अधिगम कर लेते हैं। इन्हें जीवन की शिक्षा देने की अधिक आवश्यकता पड़ती है। ये स्वयं सीख लेते हैं। इनकी अधिगम की गति साधारण होती है। तीद और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व वाले लोग अधिगम में तीव्र गति रखते हैं। वे सभी कार्यक्रमों में अधिक भाग लेते हैं और समाज के वातावरण के साथ अच्छी तरह अनुकूलित होते हैं। सामान्य बुद्धि से इस दिशा में ये काफी आगे पाये जाते हैं। प्रो० टरमन के ऐसे विचार हैं और यह सही भी है।

अधिगम की मात्रा पर बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवों का प्रभाव पाया जाता है। अधिक बुद्धि और अच्छे व्यक्तित्व वाले अधिक मात्रा में ज्ञान एवं आचरण की चीजों का अधिगम करते हैं। उनके स्वभाव, कार्य एवं प्रवृत्ति अधिगम की ओर झुकाव रखते हैं। प्रो० टरमन ने बताया है कि “वे अपनी विकास करने की क्षमता के अनुसार ही विकास करते हैं, उनमें से कुछ हमारी संस्कृति में महान् योगदान करते हैं जो उनके नाम को शताब्दियों तक याद रखने का कारण बन जाता है”-(प्रो०, ट्रो)। इससे उनके उच्च स्तरीय अधिगम पर प्रकाश पड़ता है।

अपने अधिगम के आधार पर बुद्धि एवं व्यक्तित्व के परिवर्त्य अपने विशेष वर्ग का निर्माण भी करते हैं जिसे “बौद्धिक रूप से शिष्ट समूह” कहते हैं। इसी प्रकार से “मानसिक रूप से पिछड़ा वर्ग” तथा बुद्धि के विकास में बाधा ग्रस्त समूह भी होता है। ये सब अधिगम की विशेषता प्रकट करते हैं।

अधिगम और व्यक्तित्व के परिवर्त्य में भी सम्बन्ध पाया जाता है। मनुष्य व्यक्तित्व के निर्माण में आचरण और व्यवहार का अधिगम करता है। समाज की प्रथाओं के अनुसार जो व्यवहार सीखा जाता है उसे चरित्र कहते हैं और अपने निजी ढंग से जो व्यवहार सीखा जाता है उसे आचरण कहते हैं। चरित्र एवं आचरण का अधिगम विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। इसके आधार पर अपसारी और अभिसारी व्यक्तित्व (Divergent and convergent persona पाया जाता है। अब स्पष्ट है कि अधिगम के फलस्वरूप व्यक्तित्व बनता है और व्यक्तित्व के परिवर्त्य के अनुकूल अधिगम भी होता है।

ऊपर के विचारों पर अन्त में एक उद्धरण देकर यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि व्यक्तित्व और बुद्धि के परिवर्त्य के अनुसार शिक्षा-दीक्षा के पुनसंगठन की आवश्यकता पड़ती है।

परिवर्त्य के अधिगम

प्रो० रुश ने बताया है कि परिवर्त्य वह कारक है जो प्रयोगात्मक परिणाम को प्रभावित कर सकता है। यह एक मापन योग्य लक्षण है जिसमें वस्तु या मनुष्य भिन्न पाये जाते हैं।

इस कथन से स्पष्ट है कि बुद्धि की मात्रा अथवा व्यक्तित्व के जो लक्षण हैं उन्हें मापा भी जा सकता है। इस प्रकार के मापन के लिये बहुत से परीक्षण हैं जैसे बुद्धि परीक्षण, अभिक्षमता परीक्षण, रुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, शारीरिक शक्ति परीक्षण-यन्त्र, चरित्र परीक्षण, स्वभाव परीक्षण, व्यवहार परीक्षण, क्रिया परीक्षण आदि । परीक्षणों से प्राप्त प्रदत्तों की सांख्यिकीय व्याख्या की जाती है और सांख्यिकीय मापन भी होता है जिससे परिवत्यों की जाँच होती है। ऐसे सांख्यिकीय माप केन्द्रीय प्रकृति के अन्तर्गत माध्य, माध्यिका, मानक विचलन आदि हैं। इससे परिवों को स्पष्ट किया जाता है और उन्हें समझा जाता है। इन पर कुछ विचार आगे दिये गये हैं।

परिवर्त्य का मापन कई ढंग से होता है जैसे परीक्षणात्सक, मनोविश्लेषणात्मक, समाजमितीय तथा सांख्यिकीय ढंग से ।

परीक्षणात्मक ढंग से मापन में विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। मौखिक रूप से प्रश्नावली के सहारे अथवा साक्षात्कार के द्वारा भी प्रत्यक्षतः मापन एवं जाँच कर सकते हैं। लिखित रूप से भी प्रश्नावली निर्धारण मापनी का प्रयोग करते हैं।

मनोविश्लेषणात्मक ढंग से नैदानिक उपागमों (Clinical Aproaches) का प्रयोग करते हैं। इसमें प्रयोगशालाओं में मनोविश्लेषणात्मक क्रियाओं की सहायता से अध्ययन किया जाता है और परिवों की जाँच होती है।

समाजमितीय मापन में सामाजिक गुणों की जाँच की जाती है, कुछ व्यक्तित्व के लक्षणों की पहचान के लिए परीक्षण दिये जाते हैं और उनसे सामाजिकता, मित्रता, सहकारिता आदि का मापन होता है।

सांख्यिकीय मापन वास्तव में प्रदत्तों, आँकड़ों की संख्या में प्रकट करना होता है। कितनी कम या ज्यादा मात्रा है यह संख्या से बोध होता है। एक प्रकार से यह उपागम अनुपात प्रकट करता है। ऐसे उपागम में माध्य, माध्यिका, मानक विचलन, शततमक, चतुर्थांक, सहसम्बन्ध गुणांक आदि शामिल किये जाते हैं।

व्यक्तिगत के परिवत्या के मापन के लिए दार्शनिक अथवा मूल्य सम्बन्धी उपागम तथा कारकीय विश्लेषण (Factorial Analysis) के उपागम काम में लाये जाते हैं। प्रो० स्पैंजर, एवं प्रो० थर्स्टन, गिलफॉर्ड, जिमरमैन ने इस दिशा में अच्छा कार्य किया है तथा मूल्य सम्बन्धी एवं कारक सम्बन्धी परीक्षण भी तैयार किये हैं।

परिवर्त्य मापन से लाभ

परिवर्त्य सम्बन्धी मापनों के बनने से कई लाभ हुए हैं। इससे व्यक्ति की बुद्धि, अभिक्षमता और कुशलता की जाँच गहराई तक हो जाती है और उसी के अनुकूल शिक्षा- दीक्षा देकर उन्हें जीवन में आगे बढ़ने तथा सफलता प्राप्त करने में सहायता दी जाती है। व्यक्तित्व के विभिन्न लक्षणों को समझ कर उसे उपयुक्त पर्यावरण प्रदान करके उसे समायोजन की क्षमता दी जा सकती है। आधुनिक समय में जनतन्त्र के विकास के लिए व्यक्तित्व को नेतृत्व के गुणों से युक्त करने में शिक्षा का, समाज का एवं शासन का बड़ा योगदान पाया जाता है। ऐसी दशा में परिवर्त्य मापन की सहायता ली जाती है।

प्रो० सैंजन ने सैद्धान्तिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, सौन्दर्यात्मक मूल्य, सामाजिक मूल्य, राजनैतिक या शासन-शक्ति मूल्य, धार्मिक मूल्य तथा मिश्रित मूल्यों से युक्त व्यक्तित्व बताये हैं और इनके मापन का प्रयत्न भी किया है। इससे बड़ा लाभ यह हुआ है कि व्यक्ति अपने आप में मूल्य का विकास करे अथवा जिस व्यक्ति में जो मूल्य मिले उसका विकास किया जाये और उसी क्षेत्र में उसे आगे बढ़ाया जाये।

प्रो० स्पैंजन का निष्कर्ष यह रहा है कि कोई व्यक्ति केवल एक ही मूल्य धारण नहीं करता है और बल्कि कई मूल्य एक साथ धारण करता है, फिर भी एक मूल्य उसमें प्रधान होता है और उसी प्रधान मूल्य से उस व्यक्ति का व्यक्तित्व समझा जाता है। उदाहरण के लिए एक धार्मिक मूल्य वाला व्यक्ति राजनैतिक मूल्य भी रखता है जैसे गाँधी जी। इसी प्रकार एक राजनैतिक मूल्य रखने वाला आर्थिक मूल्य भी रखता है जैसे अपने देश में राजनीति में भाग लेना व्यावसायिक हो गया है, उससे धन कमाना संभव हो रहा है, इसलिये भारत में सभी “राजनैतिक व्यक्तित्व” का विकास करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार के ज्ञान से समाज के लोगों के लिए उपयुक्त काम की खोज की जा सकती है और उन्हें उपयोगी एवं कुशल नागरिक बनाया जा सकता है। अतएव स्पष्ट है कि परिवत्यों के मापन से व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रगति करने में सहायता मिलती है। यह सबसे बड़ा लाभ है।

“गिलफॉर्ड-जिमरमैन स्वभाव सर्वेक्षण” एक प्रकार का व्यक्तियों के लक्षणों की खोज करने वाला उपागम है जिसके द्वारा व्यक्ति का पार्श्वचित्र बनता है। इससे व्यक्ति के उच्च एवं निम्न दो रूप मिलते हैं। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति मित्रता में उच्च स्थान रखता है तो वही व्यक्ति दूसरे पर रोब भी रखता है। दूसरा व्यक्ति मित्रता रोब के साथ नहीं नम्रता के साथ रखता है। दोनों के व्यक्तित्व अलग-अलग हुए यह जानकर कि तीसरा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को मित्र बनायेगा और ऐसी दशा में ऐसे मापन से व्यावहारिक लाभ होता है। इसी प्रकार का बौद्धिक लाभ परिवों के मापन से भी होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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