शिक्षक शिक्षण / Teacher Education

दर्शन शिक्षक के लिये क्यों आवश्यक है | शिक्षा दर्शन का ज्ञान कक्षा में अध्यापक की किस प्रकार सहायता करता है

दर्शन शिक्षक के लिये क्यों आवश्यक है
दर्शन शिक्षक के लिये क्यों आवश्यक है

दर्शन शिक्षक के लिये क्यों आवश्यक है | शिक्षा दर्शन का ज्ञान कक्षा में अध्यापक की किस प्रकार सहायता करता है

शिक्षा दर्शन का शिक्षक के लिए क्या महत्व है? इस विषय पर विचार करने के पहले शिक्षा दर्शन के अर्थ को समझ लेना चाहिए। शिक्षा दर्शन में ‘शिक्षा’ और ‘दर्शन’ दो शब्द मिलें हुए हैं। ये दोनों शब्द मानव के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं। ये दोनों अंग एक सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। दर्शन जीवन का विचारात्मक पक्ष है, जबकि शिक्षा क्रियात्मक पक्ष है। दर्शन जीवन के आदर्शों और मूल्यों को निर्धारित करता है और शिक्षा इन आदर्शों तथा मूल्यों को क्रियात्मक स्वरूप प्रदान करती हैं। शिक्षा दर्शन से शिक्षा की समस्याओं का हल निकलता है।

शिक्षा दर्शन को दर्शन की एक शाखा के रूप में भी माना जाता है। यह शिक्षा सम्बन्धी विषयों का दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन कराती है। कुछ विद्वानों के अनुसार शिक्षा दर्शन शिक्षा का ही एक अंग है। आधुनिक विचारक शिक्षा-दर्शन को किसी विषय की शाखा के रूप में स्वीकार न करके उसे स्वतन्त्र विषय मानते हैं। शिक्षा दर्शन का महत्व शिक्षक के लिये निम्नलिखितं कारणों से है-

दर्शन और शिक्षा का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। दर्शन और शिक्षा को एक सिक्के के दो पहलू कहा गया है । दर्शन जीवन का विचारात्मक और शिक्षा उसका क्रियात्मक पक्ष है। इन दोनों के घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दर्शन और शिक्षा के घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण जी. ई. पार्टिज ने इन शब्दो में प्रकट किया है-“अधिक गहन अर्थ में यह कहना बिल्कुल उचित है कि जिस प्रकार शिक्षा दर्शन पर आधारित है उसी प्रकार दर्शन शिक्षा पर आधारित है।”

  • शिक्षक का पथ प्रदर्शन

शिक्षा दर्शन दार्शनिक सिद्धान्तों का व्यावहारिक प्रयोग करेता है। इन सिद्धान्तों का प्रयोग करने के लिए शिक्षक की आवश्यकता महसूस हाता है। शिक्षक इन सिद्धान्तों को सफलतापूर्वक प्रयोग करता है। शिक्षक को शिक्षण के इन सिद्धान्तो से बहुत सहायता मिलती है। अतः शिक्षा दर्शन शिक्षण प्रक्रिया में पथ प्रदर्शन करता है।

  • शैक्षणिक प्रश्न जीवन दर्पण से सम्बन्धित

वास्तव में प्रत्येक शैक्षणिक प्रश्न जीवन दर्शन से सम्बन्धित है। इन प्रश्नों को समझने के लिए व्यक्तियों के जीवन दर्शन को समझना आवश्यक है। इस कार्य में दर्शन हमारी सहायता करता है, दर्शन का मुख्य विषय ही जीवन है। दार्शनिक शैक्षिक समस्याओं पर प्रकाश डालते हैं। इसलिये उच्चकोटि के दार्शनिक उच्चकोटि के शिक्षा-शास्त्री हुए हैं। दार्शनिकों के दृष्टिकोण इनकी शैक्षिक विचारधाराओं से प्रकट होते हैं। वे शैक्षणिक प्रश्नों को अपनी दार्शनिक विचारधाराओं द्वारा हल कर लेते हैं।

  • शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का हल

शिक्षा दर्शन से शिक्षा समस्याओं पर दार्शनिक दृष्टिकोण से विचार किया जाता है। इस अध्ययन के फलस्वरूप उनका हल निकाला जाता है। इसी तथ्य को ‘कनिंघम’ ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है-‘”शिक्षा-दर्शन शिक्षा के क्षेत्र की गहनतर समस्याओं का समग्र रूप से अध्ययन करता है और शिक्षा विज्ञान के लिये उन समस्याओं को अध्ययन हेतु छोड़ देता है जो तत्कालिक हैं एवं जिनका वैज्ञानिक विधि से सरलतापूर्वक अध्ययन किया जा सकता है।

  • शिक्षा प्रक्रिया की स्पष्टता

शिक्षा दर्शन शिक्षा प्रक्रिया को स्पष्टता प्रदान करता है। लगभग सभी शिक्षाशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि शिक्षा के दार्शनिक आधारों को समझे बिना शिक्षक अन्धकारमय मार्ग पर चलता है। दर्शन द्वारा ही शिक्षा प्रक्रिया में सत्यता, स्पष्टता और उपयोगिता का समावेश होता है।

  • शिक्षा के उद्देश्यों का निर्माण

शिक्षक को शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करने में दर्शन सहायता करता है। दर्शन जीवन के उद्देश्यों को निर्धारित करता है और जीवन के उद्देश्यों के अनुरूप ही शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण होता है। अतः जिस प्रकार का हमारे जीवन का दृष्टिकोण होगा उसी प्रकार के शैक्षिक उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति था। इसीलिए शिक्षा का उद्देश्य आध्यात्मिक विकास करना था।

  • शिक्षा मे प्रयोग के लिए अवसर

शिक्षा दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता इसलिए भी है कि शिक्षाशास्त्री का अध्ययन तभी पूरा होता है जब शिक्षा दर्शन का अध्ययन किया जाता है। शिक्षा दर्शन के अध्ययन से शिक्षक शिक्षा की प्रक्रिया को पूर्णतया सफल और उपयोगी बना पाता हैं। शिक्षा दर्शन शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करने के लिए अवसर प्रदान करता हे। दर्शन शिक्षा के प्रयोगों के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य भी करता है।

  • पाठ्यक्रम का निर्माण

शिक्षा दर्शन शिक्षक के लिए आवश्यक है। क्योंकि यह पाठ्यक्रम का निर्माण करने में उसकी सहायता करता है। दर्शन द्वारा शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित हो जाने पर उसी के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।

  • शिक्षा और दर्शन अन्योन्याश्रित

दर्शन और शिक्षा दोनों ही एक-दूसरे पर आधारित हैं। दर्शन शिक्षा को प्रभावित करता है और शिक्षा दार्शनिक दृष्टिकोणों पर नियन्त्रण रखती है तथा उसकी त्रुटियों को दूर कंरती है। दर्शन और शिक्षा दोनों का ही जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। जीवन को उन्नतिशील बनाने के लिए दोनों की ही आवश्यकता है। शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन अपना योगदान देता है और शिक्षा दर्शन के सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देती है अन्यथा व कल्पना मात्र ही रह जाते हैं।

  • अनुशासन स्थापित करना

शिक्षक का कक्षा में अनुशासन स्थापित करने में शिक्षा दर्शन का ज्ञान सहायता करता है। दार्शनकि विचारधाराओं के अनुरूप ही अनुशासन के रूप में पाये जाते हैं। उदाहरण के लिए आदर्शवादी दमनात्मक तथा प्रभावात्मक ‘प्रकृतिवादी मुख्यात्मक और प्रयोजनवादी सामाजिक अनुशासन के समर्थक हैं।‘ रस्क के अनुसार- “विद्यालय कार्य अन्य किसी पक्ष की अपेक्षा अनुशासन, किसी व्यक्ति या युग की दार्शनिकता पूर्व धारणाओं को अधिक प्रत्यक्ष रुव से प्रतिबिम्बित करता है।”

  • शिक्षण विधियों का निर्माण

शैक्षिक उद्देश्यों और पाठ्यक्रम को निर्माण की आवश्यकता होती है। शिक्षण विधियों का अध्ययन आवश्यक होता है। शिक्षण विधियों का निर्माण दार्शनिक विचारों के अनुसार ही किया जाता है।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!