इतिहास / History

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण | द्वितीय विश्व युद्ध | क्या द्वितीय विश्व युद्ध आवश्यक था

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण | द्वितीय विश्व युद्ध | क्या द्वितीय विश्व युद्ध आवश्यक था

द्वितीय विश्व युद्ध

1 सितम्बर, 1939 के प्रातःकाल जर्मन सेना पोलैण्ड में प्रविष्ट हो गई और इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का श्रीगणेश हो गया। इंग्लैण्ड और फ्रांस ने भी इसके तत्काल बाद जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 11 जून, 1940 को इटली जर्मनी की ओर से युद्ध में सम्मिलित हो गया। 22 जून, 1941 को जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण कर दिया और सोवियत संघ मित्र राष्ट्रों या इंग्लैण्ड के साथ मिलकर युद्ध करने लगा। दिसम्बर, 1941 में जापान ने पर्ल हॉर्बर पर आक्रमण कर दिया और अमेरिका भी युद्ध में कूद पड़ा। अब संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस और रूस एक-साथ मिलकर जर्मनी, इटली और जापान के विरुद्ध युद्ध में संलग्न हो गये। इस युद्ध ने शीघ्र विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया। प्रारम्भ में  इसमें जर्मनी और जापान को सफलताएँ मिलीं परन्तु अन्ततः मई,1995 में जर्मनी और अगस्त, 1945 में जापान परास्त हो गया और इसी के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति हो गई।

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

द्वितीय विश्य युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

(1) वर्साय की अन्यायपूर्ण सन्धि-

प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद जर्मनी पर श्री वर्साय की सन्धि थोपी गई. उसमें जर्मनी ने अपने को बहुत अपमानित अनुभव किया। जर्मनी का निःशस्त्रीकरण, उसके उपनिवेशों को छीनना, मेमल और डेंजिगं को जर्मनी में पृथक करना, उस पर युद्ध-अपराध थोपना और सुडेटनलैण्ड को चेकोस्लोवाकिया को देना तथा उस पर भारी हर्जाने की रकम थोप देना आदि बातें कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र सहन नहीं कर सकता था। कुछ समय तक तो जर्मन लोग शान्त रहे, परन्त नाजी दल के सत्ता में आ जाने पर वे अपने गौरव की पुनः प्राप्ति के लिए सक्रिय हो गए, जिससे उनका इंग्लैण्ड और फ्रांस से टकराव होना अनिवार्य था।

(2) राष्ट्रसंघ की अकर्मण्यता-

राष्ट्रसंघ की स्थापना भविष्य में युद्ध रोकने और विवादों का शान्तिपूर्ण और न्यायोचित हल करने के लिये की गई थी। परन्तु इसके पास सैनिक शक्ति न होने तथा बड़े राष्ट्रों के असहयोग और स्वार्थी के कारण वह अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में असफल रहा। जापान और इटली की आक्रामक कार्यवाहियों और हिटलर द्वारा वर्साय सन्धि भंग करने के विरुद्ध राष्ट्रसंघ कुछ न कर सका, जिससे आक्रमणकारियों को प्रोत्साहन मिला

(3) निःशस्त्रीकरण की असफलता-

द्वितीय विश्वयुद्ध का एक कारण निःशस्त्रीकरण के प्रयत्नों की असफलता था। जर्मनी और इटली ही नहीं फ्रांस आदि ने भी निःशस्त्रीकरण के प्रयत्नों को सफल नहीं होने दिया। सोवियत संघ, अमेरिका, जापान आदि ने भी निःशस्त्रीकरण के बजाय निःशस्त्रीकरण की ओर ध्यान दिया। वायु-सेना का निर्माण प्रत्येक देश करने लगा। निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध में अनेक सम्मेलन आयोजित किए गये, जो बिल्कुल असफल रहे। ऐसी स्थिति में युद्ध छिड़ जाना अनिवार्य ही था।

(4) हिटलर का उदय-

1933 में हिटलर सत्ता में आया तो उसने राष्ट्र स्पष्ट घोषणा कर दी थी कि वह वर्साय सन्धि की शर्तों का पालन नहीं करेगा। हिटलर सैनिकवाद में विश्वास रखता था और जानता था शक्ति में वृद्धि करके ही वह अपनी बात मनवा सकता है। जर्मनी जनता भी अपनी पराजय को नहीं भूली थी और बदला लेने के लिए आतुर थी। अपने खोये हुए प्रदेशों को पुनः प्राप्त करने के अतिरिक्त हिटलर और नाजी दल का पूर्ण विश्वास था कि जर्मन आर्य जाति संसार की सर्वश्रेष्ठ जाति है और निम्न स्तर की जातियों पर शासन करने का उसे अधिकार है। जर्मनी की उचित माँगें यदि मान भी ली जाती तो भी हिटलर सन्तुष्ट होने वाला नहीं था। क्योंकि उसकी योजना तो विश्व-विजय की थी।

(5) प्रजातन्त्रीय तथा एकतन्त्रीय विचारधाराओं में संघर्ष-

द्वितीय महायुद्ध से पूर्व विश्व में दो प्रमुख विचारधारायें विद्यमान थी। इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका आदि प्रजातन्त्रीय विचारधारा के समर्थक थे तो इटली जर्मनी, जापान आदि एकतन्त्रीय विचारधारा के समर्थक थे। इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका आदि देश प्रथम महायुद्ध के पश्चात की व्यवस्थाओं को बनाये रखना चाहते थे तो दूसरी ओर इटली, जर्मनी तथा जापान महायुद्ध के पश्चात की व्यवस्थाओं से  असन्तुष्ट थे और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना चाहते थे। अतः दोनों  विचारधाराओं में संघर्ष होना अनिवार्य था।

(6) आर्थिक संकट-

1929-30 के आर्थिक संकट का जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर घातक प्रभाव पड़ा। इससे जर्मन लोगों की आर्थिक दशा बड़ी सोचनीय हो गई। आर्थिक संकट के कारण जर्मनी में नाजी दल की शक्ति में वृद्धि हुई तथा हिटलर का उत्कर्ष हुआ, आर्थिक संकट के कारण जापान की आर्थिक दशा भी शोचनीय हो गई। आर्थिक मन्दी से परेशान होकर जापान ने मन्चूरिया पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। इटली ने भी आर्थिक संकट से परेशान होकर एबीसीनिया पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। अतः आर्थिक संकट ने विश्व का वातावरण अशान्त एवं विस्फोटक बना दिया।

(7) उग्र राष्ट्रवाद-

इटली, जर्मनी, जापान आदि देशों में उग्र राष्ट्रवाद का प्रसार हो चुका था। हिटलर ने जर्मन जाति को सर्वश्रेष्ठ जाति घोषित किया और वर्साय की संधि को निरसत कराने का वचन दिया। उसने वृहत्तर जर्मनी के निर्माण का निश्चय किया और शीघ्र ही आस्ट्रिया तथा चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार कर लिया, इसी प्रकार मुसोलिनी इटली को विश्व की प्रमुख शक्ति बनाने के लिए कटिबद्ध उग्र राष्ट्रवाद की भावना के कारण गुटबन्दी तथा शस्त्रीकरण की दौड़ को प्रोत्साहन मिला।

(8) स्पेन का गृह-युद्ध-

1936 में स्पेन में गणतन्त्रवादियों तथा जनरल फ्रेंकों के समर्थकों में गृह-युद्ध छिड़ गया। इटली और जर्मनी की सैनिक सहायता से 1939 में जनरल फ्रेंको की विजय हुई और स्पेन में तानाशी ही सरकार की स्थापना हुई। इसके फलस्वरूप इटली और जर्मनी की साम्राज्यवादी नीति को प्रोत्साहन मिला! अतः उन्होंने भी छोटे-छोटे देशों को हड़पना शुरू कर दिया। अनेक विद्वान स्पेन के गृह युद्ध को द्वितीय महायुद्ध का पूर्वाभ्यास मानते थे।

(9) साम्राज्यवाद-

वर्साय संधि के द्वारा जर्मनी के समस्त उपनिवेश छीन लिये गये थे और जापान के पास कोई उपनिवेश नहीं थे। इटली भी अधिक उपनिवेश प्राप्त करना चाहता था। दूसरी ओर इंग्लैण्ड, फ्रांस और छोटे राज्यों हालैण्ड, बेल्जियम और पुर्तगाल के पास बड़े-बड़े उपनिवेश थे। ऐसी स्थिति में जर्मनी, जापान और इटली का असन्तुष्ट होना स्वाभाविक था। जापान ने साम्राज्यवादी नीति अपनाते हुए मंचूरिया पर आक्रमण किया और 1932 में सम्पूर्ण मन्चूरिया पर अधिकार लिया। इटली ने एबीसीनिया पर तथा जर्मनी ने आस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार जापान, इटली तथा जर्मनी की साम्राज्यवादी गतिविधियों ने समस्त संसार को द्वितीय विश्वयुद्ध की ओर धकेल दिया।

(10) तुष्टीकरण की नीति-

इंग्लैण्ड और फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति को द्वितीय विश्वयुद्ध युद्ध के लिए बहुत सीमा तक उत्तरदायी समझा जाता है। इस नीति को अपनाने का उनका यह उद्देश्य था कि शान्तिपूर्ण उपायों से जर्मनी की उचित शिकायतों को दूर किया जाये। इंग्लैण्ड और फ्रांस ने अनेक मन्त्री और बड़ी संख्या में जनता यह अनुभव करती थी कि जर्मनी के साथ अन्याय हुआ है। उनका सम्यवाद का भय नाजीवाद से भी अधिक था। तुष्टीकरण की नीति इसलिए भी अपनाई गई थी, क्योंकि इंग्लैण्ड और फ्रांस उस समय युद्ध के लिए तैयार नहीं थे। तुष्टीकरण की नीति के घातक परिणाम निकले। जब हिटलर ने मार्च 1939 में सम्पूर्ण चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार कर लिया तो ब्रिटेन को अपनी तुष्टीकरण की नीति की विफलता स्वीकार करनी पड़ी और उसने भी युद्ध की तैयारी शुरू कर दी।

(11) अन्य कारण

इंग्लैण्ड और फ्रांस का रूस से समझौता किये बिना पोलैण्ड को गारण्टी देना बहुत बड़ी गलती थी क्योंकि यद्ध होने पर वे पोलैण्ड की कोई सीधी सहायता नहीं कर सकते थे। उधर पोलैण्ड भी इस बात पर अड़ा हुआ था कि वह रूसी सेना को अपने प्रदेश में घुसने नहीं देगा। इंग्लैण्ड और फ्रांस में पोलैण्ड पर दबाव डालकर उसे नाजी सेना का शिकार हो जाने दिया। रूस ने हिटलर से अनाक्रमण सन्धि कर हिटलर को युद्ध आरम्भ करने के लिए प्रोत्साहित किया। क्योंकि हिटलर को इससे दो मोर्चों पर लड़ने का भय दूर हो गया। यह रूस की स्वार्थपूर्ण और अदूरदर्शी नीति थी जिससे घातक परिणाम उसे शीघ्र ही भुगतने पड़े। इसके अतिरिक्त अमेरिका ने ऐसे तनावों के समय तटस्थता की नीति अपनाकर अप्रत्यक्ष रूप से हिटलर युद्ध के लिए प्रोत्साहित किया।

(12) तात्कालिक कारण-

जब हिटलर की माँग पर पोलैण्ड ने डेंजिंग देने से इनकार का दिया तो 1 सितम्बर,1939 को उसने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड ने हिटलर को पोलैण्ड से जर्मन सेनाएँ हटाने की चेतावनी दी। परन्तु हिटलर ने इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। फलस्वरूप इंग्लैण्ड ने 3 सितम्बर, 1939 को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार द्वितीय महायुद्ध का सूत्रपात हुआ।

अतः निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मौलिक नीति और कार्यक्रम के अनुसार हिटलर द्वितीय विश्व युद्ध के लिए उत्तरदायी था, किन्तु इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस, अमेरिका आदि भी पूर्ण रूप से निर्दोष नहीं थे।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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