इतिहास / History

द्वितीय महायुद्ध की प्रमुख घटनाएँ | द्वितीय महायुद्ध की मुख्य घटनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए

द्वितीय महायुद्ध की प्रमुख घटनाएँ | द्वितीय महायुद्ध की मुख्य घटनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए

द्वितीय महायुद्ध की प्रमुख घटनाएँ

राष्ट्रों के परस्पर स्वार्थ एवं दलबन्दी की भावना के कारण द्वितीय महायुद्ध की भयंकर अग्नि में विश्व को जलना पड़ा। इस युद्ध के लिये प्रथम महायुद्ध भी उत्तरदायी था। विजयी राष्ट्रों ने विजित राष्ट्रों के साथ पेरिस सम्मेलन में कठोर व्यवहार किया। जर्मनी ने भूतकाल का बदला चुकाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। वर्साय की सन्धि जर्मनी के लिए अपमानजनक थी। जर्मनी में हिटलर की शक्ति का उदय हो रहा था। इटली में मुसोलिनी की शक्ति का उदय हो रहा था। रूस में बोतशेविक क्रांति सफल रही थी जो अबाध गति से साम्यवाद की धारा को प्रसारित कर रही थी, सभी राष्ट्रों में साम्यवादी विचारधारा फैल चुकी थी। छुट-पुट क्रान्तियाँ भी हो रही थी। राष्ट्रों की साम्राज्य पिपासा बढ़ रही थी, राष्ट्रों में पारस्परिक स्पर्धा का साम्राज्य था। वे सब राष्ट्रसंघ के उद्देश्यों को भूल गये थे, वे निर्बल प्रदेशों को अधिकृत करने के लिए प्रयत्नशील थे। राष्ट्र संघ के हाथों में कोई शक्ति न थी, जिससे वह युद्ध रोक सकता। फलतः राष्ट्र संघ विश्व युद्ध को न रोक सका। इस युद्ध की प्रमुख घटनायें निम्नलिखित थीं-

(1) पोलैण्ड का युद्ध-

1 सितम्बर, 1939 ई० को जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया, क्योंकि उसकी माँगों को उसने अस्वीकार कर दिया था। जर्मनी एवं रूस में एक समझौता हो गया था। जर्मनी ने पोलैण्ड पर जल, थल तथा नभ सेना से आक्रमण किया। पोलैण्ड की सेना पराजित हो गई और दो सप्ताह में जर्मन ने पोलैण्ड पर अधिकार कर लिया। दूसरी ओर से रूस ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया। पोलैण्ड पर उसने भी अधिकार स्थापित कर लिया। एक समझौते के अनुसार रूस और जर्मनी दोनों में पोलैण्ड का विभाजन हो गया।

(2) फिनलैण्ड एवं रूस-

रूस एक दीर्घ समय से फिनलैण्ड को अधिकृत करना चाहता था। उसने इंग्लैण्ड की सरकार से कुछ बन्दरगाह एवं द्वीप माँगें थे, लेकिन उसने रूस को देने से इनकार कर दिया था। अतः रूस ने 1939 ई० में फिनलैण्ड पर आक्रमण किया एवं उस पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

(3) जर्मनी एवं नार्वे तथा डेनमार्क-

अप्रैल, 1940 ई० को जर्मनी ने नार्वे पर आक्रमण कर दिया और उसके बन्दरगाहों की व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर डाला। जर्मनी ने वहाँ एक नई सरकार निर्मित कर दी थी। जर्मनी का उद्देश्य डेनमार्क पर भी आक्रमण करना था, इस कारण उसने वहाँ की राजधानी कोपेनहेगेन पर आक्रमण कर दिया, शीघ्र ही डेनमार्क पर जर्मनी का अधिकार हो गया। इसी समय इंग्लैण्ड की राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन हुए और इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री चेम्बरलेन के स्थान पर चर्चिल को नाया गया।

(4) हॉलैण्ड, बेल्जियम एवं जर्मनी-

10 मई, 1940 ई० को जर्मनी ने हॉलैण्ड पर आक्रमण किया। 14 मई को डच सेनाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। डच सेनाओं को जर्मनी सेनाओं से पूर्ण पराजय मिली। हॉलैण्ड पर जर्मनी ने अधिकार कर लिया। वहाँ की रानी इंग्लैण्ड भाग गई। हॉलैण्ड के साथ-साथ बेल्जियम पर भी जर्मनी ने आक्रमण किया, बेल्जियम की रक्षा के लिए इंग्लैण्ड की सेनायें तत्पर थी। जर्मनी की सेनाओं ने फ्रांस पर भी आक्रमण कर दिया। जर्मनी ने बेल्जियम के कई नगरों पर आक्रमण किया। 27 मई को बेल्डियम की सेना ने पराजय स्वीकार कर ली। मित्र राष्ट्रों की सेनायें भी वहाँ फंस गई और उनको अपार क्षति उठानी पड़ी।

(5) फ्रांस पर विजय-

जर्मनी की शक्ति निरन्तर बढ़ती जा रही थी। उसने 3 जून 1940 ई० को तीन ओर से फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। 9 जून को उसने फ्रांस की सीमा को पार कर लिया और चारों ओर से पेरिस पर आक्रमण कर दिया। 10 जून को इटली ने फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर उस पर आक्रमण कर दिया। 22 जून को फ्रांस ने आत्म-समर्पण किया। दोनों में युद्ध विराम की सन्धि हुई। सन्धि की शर्ते नाटकीय ढंग से पूर्ण की गई थीं। हिटलर की शक्ति सर्वोच्च शिखर पर पहुँच रही थी। फ्रांस को दो भागों में विभाजित कर दिया गया।

(6) ब्रिटेन एवं जर्मनी-

बिस्मार्क के युग से इंग्लैण्ड और जर्मनी में प्रतिस्पर्धा चली आ रही थी, लेकिन बिस्मार्क ने कभी विरोध उत्पन्न न होने दिया। लेकिन विलियम द्वितीय ने नाविक सेना में उसे चुनौती देने का प्रयास किया। नाविक शक्ति की कमी के कारण हिटलर ने हवाई हमलों के द्वारा 8 अगस्त, 1940 ई० में इंग्लैण्ड पर आक्रमण आरम्भ कर दिये। वहाँ के व्यापार को भंग करने के लिए हिटलर ने जहाजों को डुबोने के विभिन्न उपाय काम में लिये। ब्रिटेन ने भी हवाई आक्रमणों का प्रत्युत्तर हवाई आक्रमणों से दिया।

(7) जर्मनी एवं यूनान यूगोस्लाविया-

हिटलर का ध्यान ईरान और मित्र की ओर भी आकर्षित हआ। 28 अक्टबर. 1940 ई० को हिटलर ने मित्र को कुछ प्रदेश प्रदान करने के बारे में पत्र लिखा। इटली की सेना ने ग्रीस पर आक्रमण कर दिया। इटली की सहायता करने के लिये जर्मनी की सेना आ गई। जर्मनी ने रूमानिया, हंगरी, बलारिया से भी संधि की। यूगोस्लाविया ने जर्मनी से सन्धि न की। फलतः हिटलर ने यूगोस्लाविया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इसमें जर्मनी को ही विजय प्राप्त हुई। उसने फिर ग्रीस पर आक्रमण किया. ब्रिटेन ने ग्रीस की सहायता की। लेकिन जर्मनी को ही विजय प्राप्त हुई। जर्मनी का अधिकार थोड़े दिनों में एथेन्स पर भी हो गया। उसने क्रीट द्वीप पर अधिकार करके पूर्वी भूमध्य सागर पर भी अधिकार कर लिया।

(8) अफ्रीका एवं जर्मनी-

इसी समय इंग्लैण्ड ने अफ्रीका में इटली के साम्राज्य का अन्त करना प्रारम्भ कर दिया। उनसे लीबिया सोमालीलैण्ड, इथोपिया पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। जर्मनी को परास्त कर दिया। वह निरन्तर आगे बढ़ता ही गया और मित्र पर अधिकार स्थापित कर लिया। यह सेनायें जर्मनी की ओर आगे बढ़ती ही चली गई। इसकी अध्यक्ष जनरल रोमेला था, जिसे कि अफ्रीका में सफलता प्राप्त हुई थी।

(9) सीरिया, इराक, ईरान एवं जर्मनी-

हिटलर एक लम्बी अर्से से सीरिया, इराक, व ईरान पर जर्मनी का अधिकार करना चाहता था। उसे पूर्वी ब्रिटिश साम्राज्य को नष्ट करने के लिए इन प्रदेशों की आवश्यकता थी। जर्मनी सीरिया में अपना प्रभाव स्थापित कर रहा था। सीरिया को अंग्रेजों ने पहले ही अधिकृत कर लिया। जर्मनी ने इराक पर अपना अधिकार बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। रशीद अली की सरकार उससे मित्रता का भाव रखती थी। बहुत से जर्मन इराक गये, लेकिन अंग्रेजों ने इराक पर अधिकार कर लिया। इसके बाद जर्मनी ने ईरान पर अधिकार करने का प्रयल किया। किन्तु उसी समय रूस एवं इंग्लैण्ड ने उत्तर और दक्षिण की ओर से उस पर आक्रमण कर दिया। फलस्वरूप जर्मनी अपना प्रभाव वहाँ भी स्थापित न कर पाया। इंग्लैण्ड तीनों राज्यों पर अधिकार करने में सफल हो गया। उससे हिटलर के स्वप्नों पर पानी फिर गया।

(10) रूस एवं जर्मनी-

जर्मनी और रूस में अति प्राचीन शत्रुता थी। वह साम्यवादी रूस को यूरोपीय सभ्यता का विरोधी मानता था । जर्मनी उसकी शक्ति से भयभीत था, लेकिन वह उसके प्राकृतिक साधनों पर अधिकार करना चाहता था। वह यूक्रेन के उपजाऊ प्रदेश एवं उसके लोहे व कोयले के क्षेत्रों पर अधिकार करना चाहता था। जर्मनी के पास तेल एवं पेट्रोलियम पदार्थों की कमी थी, जिनका वह विदेशों से आयात किया करता था। हिटलर इस युद्ध के दौरान इंग्लैण्ड की मित्रता के स्वप्न देश रहा था। अपने एक प्रतिनिधि को उसने इसी आशा से इंग्लैण्ड भेजा। लेकिन इंग्लैण्ड के विदेश मंत्री ने इस नीति का समर्थन नहीं किया था। 1941 में जर्मनी ने तीन ओर से रूस पर आक्रमण कर दिया। जर्मनी की सेनाओं का मुकाबला रूस की सेनाओं ने किया। जर्मनी ने क्रीमिया को भी हस्तगत कर लिया। स्टालिनग्राद के निकट अत्यधिक भीषणता से युद्ध हुआ। अन्त में रूसी सेना ने जर्मन सेनाओं को रूस से निकालना प्रारम्भ कर दिया।

(11) जापान एवं अमेरिका-

जापान भी साम्राज्यवादी नीति का समर्थक था। वह एशिया में अपने साम्राज्य को विकसित करना चाहता था। दिसम्बर, सन् 1941 ई० में उसने पर्ल दृष्टि पर हवाई आक्रमण करके अमेरिका को अत्यधिक हानि पहुँचाई। शंघाई, मलाया और सिंगापुर पर उसने हवाई आक्रमण किये। उसने फिलिपाइन द्वीप पर अधिकार कर लिया। हांगकांग और सिंगापुर को भी जापान ने अधिकृत कर लिया। जापानियों की शक्ति निरनतर बढ़ती जा रही थी। उसने जावा, सुमात्रा, बोर्निया तथा बाली द्वीपों पर अधिकार कर लिया। रंगून-न्यूगाइना तथा बर्मा को भी उसने अधिकृत कर लिया। भारत के उत्तर-पूर्व पर भी उसने आक्रमण किया किन्तु उसको सफलता प्राप्त न हो सकी। वर्मा एवं फिलिपाइन्स पर अमेरिका ने अधिकार कर लिया। अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी नगरों पर अणुबम डालने के बाद जापान ने आत्म-समर्पण कर दिया । जापान की शक्ति का उदय जितनी शीघ्रता से हुआ, उतनी ही शीघ्रता से उसकी शक्ति का पतन भी हो गया।

(12) यूरोप में युद्ध-

सन् 1942 में जर्मनी ने रूस पर भीषण आक्रमण किया। जर्मन सेनायें सफलतापूर्वक स्टालिनग्राद तक पहुँच गईं। अफ्रीका में जर्मनी के सेनाध्यक्ष रोयेला को अधिक सफलता मिली थी। मुसोलिनी की भी शक्ति का इस समय अन्त हो गया। उसके विरुद्ध इटली में विद्रोहात्मक परिस्थितियों का उदय हो रहा था। जर्मनी की सेनायें भी इटली की सहायतार्थ पहुँच गयी। अन्त में मित्र राष्ट्रों की शक्ति के सम्मुख इटली न टिक सका और इटली का पतन हो गया।

युद्ध की समाप्ति-

ब्रिटिश और अमेरिकन सेनाओं ने फ्रांस की उत्तर सीमाओं से जर्मनी पर हमले करना प्रारम्भ कर दिये। बेल्जियम ने जर्मन सेना को भगाया और हॉलैण्ड को मुक्त कर लिया। मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी पर स्थल सेना के द्वारा आक्रमण किया। जर्मनी ने इस सेना का डटकर मुकाबला किया। रूस ने अपनी सेना को एकत्रित कर संयुक्त रूप से बर्लिन पर आक्रमण कर दिया। 1 मई, 1945 में जर्मनी की शक्ति निरन्तर कमजोर होती जा रही थी।

इस प्रकार मित्र राष्ट्रों को हिटलर की शक्ति का दमन करने का अवसर मिल गया। जापान की शक्ति भी यूरोप के राष्ट्रों के लिए समस्या बनी हुई थी। 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार हिटलर, मुसोलिनी एवं जापान की साम्राज्यवादी, लिप्सा का अन्त हुआ।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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