इतिहास / History

बेलन घाटी में सांस्कृतिक अनुक्रम | बेलन नदी घाटी के सांस्कृतिक अनुक्रम का निरूपण कीजिए

बेलन घाटी में सांस्कृतिक अनुक्रम | बेलन नदी घाटी के सांस्कृतिक अनुक्रम का निरूपण कीजिए

बेलन घाटी में सांस्कृतिक अनुक्रम

बेलन घाटी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग ने जी०आर० शर्मा के निर्देशन में भूतात्त्विक और पुरातात्त्विक अन्वेषण तथा सर्वेक्षण किया है जिसके फलस्वरूप पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल एवं नव पाषाण काल से सम्बन्धित अनेक पुरास्थल प्रकाश में आये हैं। पाषाण काल के पुरावशेषों के अतिरिक्त पशुओं के जीवाश्म बेलन और उसकी सहायक नदियों के अनुभागों से मिले हैं। इस प्रकार पाषाण काल की संस्कृति के अध्ययन दुष्टि से भारतीय प्रागैतिहास में बेलन घाटी का अपना विशिष्ट स्थान है।

बेलन टोंस की सहायक नदी है जो मिर्जापुर के मध्यवर्ती पठारी क्षेत्र की प्रमुख नदी है। यह मिर्जापुर एवं इलाहाबाद के दक्षिणी भाग में स्थित मेजा तहसील के जल-निकास का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है।

बेलन नदी के अनुभागों का दक्षिण में मिर्जापुर जिले में स्थित बरौंधा नामक स्थल से लेकर उत्तर में इलाहाबाद जिले की मेजा तहसील में बेलन-टोंस संगम तक अध्ययन किया गया है। डैग्मा नामक स्थान से लेकर देवघाट तक बेलन नदी में लगभग 18 मीटर ऊँचे नदी के अनुभाग मिलते हैं जो कहीं-कहीं पर 21 मीटर तक ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में बेलन तथा उसकी सहायक स्योटी आदि ने प्रातिनूतन काल के जमावों को काट कर प्रकाश में ला दिया है। बेलन घाटी के लगभग 64 किमी क्षेत्र में पुरातात्त्विक अन्वेषण किया गया है और भूतात्त्विक जमावों का सर्वेक्षण हुआ है। बेलन घाटी में भारतीय भूतत्त्व सर्वेक्षण के विशेषज्ञों ने भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अनुरोध पर सर्वेक्षण किया है। इन सभी अध्ययनों एवं सर्वेक्षणों के आधार पर बेलन नदी के भूतात्त्विक जमावों की जो रूपरेखा ज्ञात हुई है उसको दस विभिन्न इकाइयों में विभाजित किया गया है।

बेलन नदी इस समय आधारभूत विन्ध्य-आधारशिला पर प्रवाहित हो रही है। आधार- शिला ऋतु अपचयन के फलस्वरूप अपघटित हो गई है। इस अपघटित शिला के ऊपर 1.52 मीटर प्रथम ग्रेवंल का जमाव है। इस प्रेवल में पेबुल, लेटराइट से पुते हुए पत्थरों के टुकड़े तथा अन्य छोटे एवं बड़े पत्थर के टुकड़े मिलते हैं। इन पत्थरों के किनारे घिसे हुए नहीं हैं जिनके आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि इन शिला-खण्डों को नदी दूर से बहा कर नहीं लाई है। प्रथम ग्रेवल का जमाव आई-जलवायु में हुआ, जब बेलन नदी में जल-प्रवाह अपेक्षाकृत तेज था। प्रथम ग्रेवल से निम्न पुरापाषाण काल के उपकरण और गाय-बैल, गौर (भैंसा), हाथी आदि पशुओं के जीवाश्म मिले हैं। प्रथम ग्रेवल के ऊपर लगभग 3 मीटर मोटा जलोढ़ मिट्टी (सिल्ट) का जमाव है। इस जमाव से पाषाण उपकरण तथा पशुओं के जीवाश्म आदि कुछ भी नहीं मिले हैं। इस मिट्टी का जमाव प्रातिनूतन काल की अपेक्षाकृत शुष्क- जलवायु के समय में हुआ। कुछ भूतत्त्वविद् प्रथम ग्रेवल तथा सिल्ट के जमाव को एक ही जलवायु-चक्र में निर्मित मानते हैं। उनके अनुसार प्रस्तर-खण्ड, पाषाण उपकरण तथा जानवरों के जीवाश्म अधिक भारी होने के कारण नीचे प्रथम ग्रेवल के रूप में एकत्र हो गए। महीन कणों की हल्की सिल्ट मिट्टी ऊपर इकट्ठी हो गई।

सिल्ट के ऊपर लगभग 2.74 मीटर मोटा द्वितीय ग्रेवंल का जमाव है। यद्यपि द्वितीय ग्रेवंल का जमाव आर्द्र-जलवायु में हुआ तथापि इसमें मिलने वाले पेबुल और प्रस्तर-खण्ड प्रथम ग्रेवंल के जमाव में मिलने वाले पेबुल एवं प्रस्तर-खण्डों से आकार में छोटे हैं। उस समय नदी के जल-प्रवाह में अपेक्षाकृत कमी हो गई। द्वितीय ग्रेवल ‘अ’, ‘ब’ तथा ‘स’ इन तीन भागों में बाँटा गया है। द्वितीय ग्रेवल में सबसे नीचे क्लीवर तथा स्क्रेपर मिले हैं। मध्य तथा ऊपरी भाग में मध्य पुरापाषाण काल के विशिष्ट उपकरण मिले हैं। द्वितीय ग्रेवंल के बीच-बीच में कहीं-कहीं पर जलोढ़ मिट्टी के पतले जमाव मिलते हैं जिनसे यह इंगित होता है कि द्वितीय ग्रेवंल के सम्पूर्ण काल में आर्द्र-जलवायु नहीं थी। कभी-कभी अल्पकाल के लिए शुष्क-जलवायु का आविर्भाव होता था।

द्वितीय ग्रेवंल के ऊपर लाल रंग की जलोढ़ मिट्टी (Reddish silt) का जमाव मिलता है जिसकी मोटाई 1.25 मीटर है। इस जमाव में कंकड़, लेटराइट की गोलियाँ तथा पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े (Chips) प्रचुर संख्या में मिलते हैं। शुष्क-जलवायु में निर्मित लाल मिट्टी के इस जमाव से मध्य पुरापाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए हैं।

लाल मिट्टी के ऊपर 1.52 मीटर मोटा पीली दुमट मिट्टी का जमाव है। इस जमाव के निचले स्तरों से मध्य पुरापाषाण काल के स्क्रेपर, ब्लेड आदि उपकरण मिलते हैं। ऊपरी स्तरों से लम्बे फलक तथा उच्च पुरापाषाणिक ब्लेड भी प्राप्त होने लगते हैं।

पीली दुमट मिट्टी के जमाव के ऊपर तृतीय ग्रेवंल का जमाव मिलता है जो 1.21 मीटर होता है। इस ग्रेवॉल में मोटी बालू की मात्रा अधिक है। तृतीय ग्रेवल से उच्च पुरापाषाण काल के उपकरण प्राप्त होते हैं।

तृतीय ग्रेवंल के ऊपर मिट्टी का मोटा जमाव है जिसे तीन इकाइयों में रूप, रंग तथा पाषाणिक उपकरणों के आधार पर विभाजित किया गया है। लगभग 1.82 मीटर मोटा मटमैले रंग की मिट्टी का जो जमाव है उसमें कंकड़ तथा पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े प्राप्त होते हैं। इस जमाव से उच्च पुरापाषाण काल के ब्लेड तथा अज्यामितीय लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं। इसके ऊपर काली मिट्टी का जमाव है जो 2.43 मीटर है। आर्द्र-जलवायु में निर्मित होने के कारण मिट्टी का रंग काला हो गया मोटा है। इस स्तर से ज्यामितीय उपकरण प्राप्त हुए हैं। सबसे ऊपर भूरी मिट्टी का वायु जनित 4 मीटर मोटा जमाव है जिसमें लघु पाषाण उपकरण मिलते हैं।

बेलन घाटी में किये गए सर्वेक्षण से निम्न पुरापाषाणिक संस्कृति के 44 पुरास्थल प्रकाश में आये हैं। इस घाटी में निम्न पुरापाषाण काल के उपकरण तीन संदर्भो में प्राप्त होते हैं-1. नदी की तलहटी, 2. प्रथम ग्रेवल के जमाव, 3. बेलन नदी के दक्षिण स्थित विन्ध्य पहाडियों के ऊपर। नदी की तलहटी तथा प्रथम ग्रेवल जमाव से हैण्ड एक्स, क्लीवर, स्क्रेपर आदि उपकरण घिसी हुई अवस्था में मिला है। प्रथम ग्रेवल जमाव से पेबुल पर बने हुए चॉपर नामक उपकरण भी प्राप्त हुए हैं।

बेलन नदी के दक्षिण में विन्ध्य की पहाड़ियाँ स्थित हैं जो बाद में कैमूर की पर्वत शृंखला से मिल जाती हैं। इन पहाड़ियों के ऊपर निम्न पुरापाषाण काल से सम्बन्धित अनेक पुरास्थल स्थित हैं। मुरली, महुगढ़, चाँदातरी, रामगढ़वा, कोसकनगाड़ा, बेलरही, करौंदहिया आदि पहाड़ियों पर निम्न पुरापाषाण काल के पुरावशेष मिले हैं। पहाड़ियों के ऊपर तथा उनकी तलहटी में उपकरण निर्माण के लिए उपयुक्त क्वार्टजाइट पत्थर सहज-सुलभ थे। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण इन पुरास्थलों से शिकार पर सरलता से घात लगा सकते थे।

इन पुरास्थलों का चयन प्रवास-स्थल एवं उपकरण निर्माण-स्थल (Factory site) के रूप में इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर किया गया रहा होगा। पूर्ण निर्मित उपकरणों के अतिरिक्त, अर्द्ध-निर्मित उपकरण, क्रोड, फलक तथा छोटे-छोटे फलकों के टुकड़े इन पुरास्थलों पर बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। इसलिए इन्हें, ‘उपकरण-निर्माण स्थल’ अथवा ‘कार्य-स्थल’ प्रायः कहा जाता है। हैण्ड एक्स, क्लीवर, स्क्रेपर आदि उपकरण नव- निर्मित अवस्था में मिलते हैं। प्रारम्भिक एश्यूलन उपकरणों से लेकर विकसित एश्यूलन उपकरण इन क्षेत्रों में साथ-साथ मिले-जुले रूप में प्राप्त हुए हैं। अनेक हैण्ड एक्स तथा क्लीवर इस तरह से बनाये गए हैं कि उनसे स्क्रेपर का भी काम लिया जा सकता है। इन उपकरणों को संयुक्त उपकरण (Composite Tools) कहा गया है। बेलन घाटी से प्राप्त कतिपय हैण्ड एक्स उपकरणों में मूठ लगाने का प्रावधान मिलता है। बेलन नदी की सहायक स्योटी नामक बरसाती नदी के उद्म से लेकर स्योटी-बेलन संगम तक चिपटे आकार के शिला-खण्ड (Chunk) पर बने हुए हैण्ड एक्स तथा अन्य उपकरण प्राप्त होते हैं। बेलन घाटी में अन्यत्र ऐसे उपकरण नहीं मिलते हैं। इस प्रकार के पत्थर के टुकड़ों पर उपकरण बनाने में कम से कम परिश्रम करके किनारे-किनारे फलक निकाल कर कार्यांग अथवा धार का निर्माण किया जा सकता था।

निम्न पुरापाषाण काल की ही भाँति बेलन घाटी में मध्य पुरापाषाण काल के बहुत से पुरास्थल प्रकाश में आए हैं। इस वर्ग के उपकरण द्वितीय ग्रेवल के जमाव तथा उसके ऊपर की लाल रंग की दुमट मिट्टी से प्राप्त होते हैं। इनके अलावा दक्षिण में स्थित पहाड़ियों के उत्तरी ढलान पर मिलते हैं।

बेलन घाटी में उच्च पुरापाषाण काल के उपकरण तृतीय ग्रेवल तथा उसके नीचे की पीली दुमट मिट्टी से मिलते हैं। इनके अलावा तृतीय रेल के ऊपर की मटमैले रंग की मिट्टी के जमाव से भी ये उपकरण मिलते हैं। बेलन घाटी का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि इसी घाटी में सर्वप्रथम उच्च पुरापाषाण काल की संस्कृति का भूतात्त्विक निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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