शिक्षाशास्त्र / Education

शैक्षिक अभिकरण के रूप में परिवार के कार्य | Family functions as an educational agency in Hindi

शैक्षिक अभिकरण के रूप में परिवार के कार्य
शैक्षिक अभिकरण के रूप में परिवार के कार्य

शैक्षिक अभिकरण के रूप में परिवार के कार्य | शैक्षिक अभिकरण के रूप में परिवार के कार्यों का वर्णन कीजिये।

शैक्षिक अभिकरण के रूप में परिवार के प्रमुख कार्य निम्न हैं-

  1. शारीरिक विकास सम्बन्धी कार्य

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। परिवार शिशु के शारीरिक विकास और सुरक्षा के उत्तरदायित्व का निर्वाह करता है। वह शिशु को संतुलित भोजन, व्यायाम, विश्राम, स्वास्थ्य-सफाई और सुरक्षा देने का कार्य करता है। बच्चों में नियमित दिनचर्या, सफाई की आदत, भोजन करने का ढंग आदि सिखाकर शारीरिक विकास में अभूतपूर्व योगदान करता है।

  1. आदतों और दृष्टिकोणों का विकास

परिवार बालकों में अच्छी आदतों का विकास करता है और विभिन्न परिस्थितियों तथा लोगों के प्रति समुचित दृष्टिकोण का विकास करता है। विविध आदतें जैसे भोजन व शरयन की उचित आदतें, बातचीत व शिष्टाचार, समय व धन का सदुपयोग, घर की सफाई व सुन्दरीकरण की आदत परिवार में ही विकसित होती है।

  1. संवेगात्मक विकास

परिवार बालक के अंदर स्वस्थ व संतुलित संवेगों का विकास करता है। मनुष्य के जन्मजात संवेग अनगढ़ और पाश्विक होते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चे के विभिन्न संवेगों, प्रेम, क्रोध, घृणा आदि का मार्गान्तरीकरण और शोधन किया जाता है। भिन्न-भिन्न सामाजिक परिस्थितियों में संवेगों का प्रकाशन किस प्रकार करना चाहिए, यह बालक परिवार में सीखता है। परिवार के सदस्यों का परस्पर प्रेम, बुरी चीजों के प्रति घृणा, अन्याय के प्रति क्रोध बच्चों के संकुचित संवेगात्मक विकास में सहायता करते हैं। वह दीन- दुखियों के प्रति संवेदना, दुःख में सहानुभूति प्रकट करना सीखता है। क्रोध पर नियंत्रणा रखना भी वह परिवार जनों से सीखता है। इसके विपरीत क्रोधावेश में संतुलन खो देना या बात-बात पर झूठ बोलने का अभ्यास भी बालक परिवार में सीखता है। मात-पिता के आपसी कटु सम्बन्ध, दादा-दादी, नाना-नानी का अनुशासन में अनुचित हस्तक्षेप बालकों के संवेगात्मक विकास को गलत दिशा दे सकता है।

  1. मानसिक विकास का कार्य

बालक के मानसिक विकास में परिवार प्रथम तथा महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इसीलिए परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। बालक परिवार के सदस्यों से अनुकरण द्वारा बोलना, चलना-फिरना, वस्तुओं को पहचानना, परिवार के सदस्यों की पहचान, समय व दूरी के बारे में सीखता है। अतः परिवार के सदस्यों को अपनी भाषा, बोलने के ढंग, पढ़ने-लिखने की आदतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि बच्चे जैसा देखते हैं वैसा ही सीखते हैं। उदाहरण के लिए यदि परिवार के सदस्य परस्पर बातचीत में किसी शब्द का बार-बार प्रयोग करते हैं या अश्लील शब्दों को बोलते हैं या बच्चों से तुतलाकर बोलते हैं तो इन सबका बच्चे के मानसिक विकास पर अनुचित प्रभाव पड़ता है। बच्चों से कभी व्यंग्यात्मक तरीके से नहीं बालना चाहिए, क्योंकि जो कुछ बोला जाता है उसका सीधा अर्थ ही वे ग्रहण करते हैं। वह परिवार में शीघ्र ही सीख लेता है कि उससे किस स्तर के व्यावहारिक अनुकरण और दृढ़ता की अपेक्षा की जा रही है।

  1. भावात्मक विकास का कार्य

परिवार में रहकर ही बच्चा अनेक मानवीय गुणों, आदर्शों, भावों और जीवन मूल्यों को आत्मसात करता है। बालक के चरित्र-निर्माण में प्रथम प्रभाव परिवार का होता है। उसमें विभिन्न गुणों, प्रेम, सहानुभूति, दया, ईमानदारी, सत्यता, सहिष्णुता, न्याय, सम्मान आदि का बीजारोपण परिवार करता है। परिवार के सदस्यों का एक-दसरे के प्रति प्रेम और अपने स्वार्थों का परित्याग, वयोवृद्धों का सम्मान एवं सेवा, रोगियों की सुश्रुषा जैसे कार्य बालको के भावात्मक विकास में सहायक होते हैं।

  1. सामाजिक व सांस्कृतिक विकास

परिवार मनुष्य के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसी में बालक विभिन्न सामाजिक परम्पराओं, त्यौहारों आदि का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करता है। परिवार एक सामाजिक संस्था के रूप में समाज की अन्य संस्थाओं से अन्तरक्रिया करता है और अन्तर्सम्बन्धों का विकास करता है। समाज के भिन्न-भिन्न जाति, सम्रदाय, वगा के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसकी शिक्षा परिवार पारम्भ में देता है। परिवार का यह उत्तरदायित्व है कि वह बालक के मन में प्रारम्भ से ही जाति, धर्म, ऊंच-नीच, छुआ-छूत के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास करे तभी सामाजिक समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।

  1. व्यावहारिक व व्यावसायिक शिक्षा

यद्यपि वर्तमान समय में परिवार व्यावसायिक शिक्षा देने का कार्य नहीं करता है क्योकि अब व्यवसाय का चयन बालक पारम्परिक रूप में न करके अपनी रुचि और योग्यता के अनुसार करते हैं । इसके अतिरिक्त व्यावसायिक शिक्षा अधिक विशिष्ट हो गई है जिसकी शिक्षा परिवार देने में अक्षम है। फिर भी परिवार बच्चों के मन में विभिन्न कार्यों और व्यवसायों के प्रति उचित दृष्टिकोण का निर्माण करता है। श्रम के प्रति सकारात्मक रुझान, समय की पाबन्दी, आय-व्यय का सही हिसाब-किताब रखना, लगन के साथ कार्य करना जैसी आदतों का विकास परिवार करता है जो व्यक्ति के व्यावसायिक जीवन में लाभ पहुंचाती है।

  1. विद्यालय के लिए तैयारी

आधुनिक युग में परिवार का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है बच्चों को विद्यालय के लिए तैयार करना। जब बच्चा पूर्व प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश लेता है तब वह अस्पष्टता, असमंजस, पराश्रयता, भय और नासमझी की स्थिति में रहता है। परिवार धीरे-धीरे बच्चे के मन से आशंकाओं को दूर करता है और विद्यालय के प्रति उसके मन में विश्वास उत्पन्न करता है और अनावश्यक तनावों और भय से मुक्त रखता है। परिवार बच्चे की विद्यालय सम्बन्धी विविध आवश्यकताओं यथा-यूनीफार्म, पुस्तकें, स्टेशनरी आदि की पूर्ति करता है। बच्चों को समय पर विद्यालय भेजने का दायित्व, गृहकार्य पूरा कराने का दायित्व, अभिभावकों की मीटिंग में उपस्थित होना आदि कार्य भी परिवार के द्वारा ही किया जाता है। वास्तव में बिना परिवार के सहयोग से बच्चों की विद्यालय शिक्षा पूर्ण नहीं हो पाती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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