शिक्षाशास्त्र / Education

शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्य | शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्यों का वर्णन कीजिये

शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्य
शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्य

शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्य | शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्यों का वर्णन कीजिये | Describe the school’s work as an educational agency in Hindi

शैक्षिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के प्रमुख कार्य निम्न हैं-

  1. बौद्धिक विकास का कार्य

विद्यालय का प्रथम व प्रमुख कार्य बालकों का बौद्धिक विकास करना है। विभिन्न विषयों की शिक्षा के द्वारा छात्रों की मानसिक क्रियाओं यथा समझ, स्मृति, कल्पना तर्क-चिन्तन आदि का विकास विद्यालय में किया जाता है। वास्तव में विद्यालय वह स्थान है जहां बालक का मन, मस्तिष्क तथा कर्मेन्द्रियां प्रशिक्षित होती हैं।

2. शारीरिक विकास का कार्य

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। अतः विद्यालय बालकों के मानसिक विकास के साथ-साथ उनके शारीरिक विकास ओर स्वास्थ्य के लिए कटिबद्ध रहता है। उनके शारीरिक विकास के लिए विभिन्न प्रकार के खेल-कूद, पी. टी. योगाभ्यास, पौष्टिक भोजन की व्यवस्था विद्यालयों में की जाती है। छात्रों के स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए प्राथमिक चिकित्सा व दवाओं आदि की सुविधा भी सुलभ करायी जाती है।

3. सांस्कृतिक विकास का कार्य

विद्यालय का एक प्रमुख कार्य समाज की सभ्यता, संस्कृति परम्पराओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण तथा भावी पीढ़ी को हस्तान्तरण करना होता है। यही नहीं वह नये सामाजिक मूल्यों का विकास भी करता है। विद्यालय को समाज का लघु रूप कहा जाता है जिसमें उसकी सांस्कृतिक विशेषताएँ शुद्ध रूप में परिलक्षित होती हैं। विद्यालय में समाज के विभिन्न वर्गों, समुदायों, धर्म आदि को मानने वाले छात्र व अध्यापक होते हैं, लेकिन विद्यालय इन सबको मिलाकर एक विशिष्ट संस्कृति को विकसित करता है जो सभी लोगों को ग्राह्य होती है और उसकी अमिट छाप बालक के व्यक्तित्व पर पड़ती है जो वही के विद्यार्थियों के व्यवहार में जीवनपर्यन्त देखी जा सकती है।

4. चारित्रिक व नैतिक विकास

बालक अपने परिवार से चारित्रिक एवं नैतिक गुणों को बीज रूप में लेकर विद्यालय में प्रवेश करता है । इन गुणों के अंकुरण एवं व्यापक संदर्भ में विकसित करने कार्य विद्यालय करता है। उदाहरण स्वरूप ईमानदारी, सत्यता, सहयोग, प्रेम, सहिष्णुता, सह-अस्तित्व जैसे मानवीय गुणों का विकास विद्यालय में होता है और इनका प्रयोग वे व्यापक सामाजिक संदर्भों में करते हैं।

5. नागरिकता के गुणों का विकास

व्यक्ति के समाज व राष्ट्र के नागरिक के रूप में क्या कर्त्तव्य व अधिकार हैं इसकी व्यावहारिक शिक्षा विद्यालयों में मिलती है। जैसे छात्रों को अपनी शिक्षा व विद्यालय भवन को साफ-सुथरा रखने की प्रेरणा दी जाती है उनसे समय-समय पर विविध,सामुदायिक कार्य जैसे सड़के बनाना, मुहल्ले की सफाई करना, पेड़ लगाना, जन-शिक्षा प्रसाद आदि कराये जाते हैं। इन कार्यों के द्वारा बालकों में नागरिकता के गुणों का विकास होता है।

6. राष्ट्रीय कार्य

वर्तमान युग में विद्यालय सामान्यतया राज्य द्वारा संचालित होते हैं। अतः उनका एक प्रमुख कार्य राष्ट्रीय नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं को कार्यान्वित करने में सहायता करना होता है। भावी नागरिकों को राज्य की नीतियों और आकांक्षाओं के अनुरूप प्रशिक्षित करना और राष्ट्रीय जीवन के लिए तैयार करना विद्यालयों का प्रमुख राष्ट्रीय दायित्व है।

7. औद्योगिक और व्यावसायिक शिक्षा देना

पहले परिवार के द्वारा नई पीढ़ी को पारम्परिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त हो जाती थी। लेकिन आधुनिक युग में जीविकोपार्जन के लिए विशिष्ट तकनीकी ज्ञान और कोशल की शिक्षा आवश्यक हो गई है। इसके अलावा अब बालक को अपना व्यवसाय पारम्परिक ढग से. न चुनकर अपनी योग्यता व रुचि के अनुसार चुनने की स्वतन्त्रता है। अतः जीविकोपाजिन के योग्य औद्योगिक और व्यावसायिक शिक्षा देना भी विद्यालय का एक आवश्यक कार्य हो गया है।

8. सामाजिक प्रगति का कार्य

द्यालय का एक मुख्य कार्य सामाजिक प्रगति में सहायता करना है। यह समाज की बुराइयों और कुरीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार करता है और उनसे मुक्ति प्राप्त करने के लिए शिक्षा प्रदान करता है। इसी को सामाजिक पुनर्रचना का कार्य भी कह सकते हैं।

बुरबेकर महोदय ने विद्यालय के तीन प्रमुख कार्य बताये हैं, यथा संरक्षण का कार्य, प्रगतिशील कार्य और निष्पक्ष कार्य। विद्यालय संस्कृति के संरक्षण और विकास कार्य करते हुए निष्पक्ष भाव से सरकारी नीतियों, सामाजिक प्रचलनों और सिद्धान्तों की आलोचना भी करता है। इस प्रकर विद्यालय समाज की अरधी दोड़ में सम्मिलित होने से पहले सावधान करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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