शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा के प्रमुख कार्य | शिक्षा के राष्ट्रीय जीवन में क्या कार्य | Major functions of education in human life in Hindi | What work in the national life of education in Hindi

शिक्षा के प्रमुख कार्य

शिक्षा के प्रमुख कार्य | शिक्षा के राष्ट्रीय जीवन में क्या कार्य | Major functions of education in human life in Hindi | What work in the national life of education in Hindi

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शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। वह मानव जीवन एवं समाज के अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पादित करती है। जॉन डीवी ने शिक्षा के कार्य के विषय में लिखा है कि “शिक्षा का कार्य असहाय प्राणी के विकास में सहायता पहुँचाना है, ताकि वह सुखी नैतिक एवं कुशल मानव बन सके।” डेनियल वेबस्टर का कथन है कि “शिक्षा का कार्य भावनाओं को अनुशासित, संवेगों को नियन्त्रित, प्रेरणाओं को उत्तेजित, धार्मिक भावनाओं को विकसित तथा नैतिकता की अभिवृद्धि करना है।”

मानव जीवन में शिक्षा के प्रमुख कार्य

  1. बालक को आगामी जीवन के लिए तैयार करना- शिक्षा ही एक ऐसा साधन है, जो बालक को आगामी जीवन के लिए तैयार करती है। क्योंकि आगे चलकर बालक को प्रौढ़ावस्था के सभी कार्य करने पड़ते हैं।
  2. व्यक्तित्व का विकास करना- शिक्षा का कार्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण है। बालक के व्यक्तित्व के कई पहलू होते हैं, जैसे- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, भावनात्मक, इत्यादि | शिक्षा द्वारा इन सभी पहलुओं का सन्तुलित विकास होता है।
  3. चरित्र का निर्माण करना- हरबार्ट के अनुसार “अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है।” शिक्षा बालक के आचरण में सुधार करती है और उसमें नैतिक चेतना उत्पन्न करती है जिससे बालक उत्तम आदर्शों को अपनाता है और नैतिक स्तर ऊँचा करता है। अत: बालक के चरित्र का निर्माण एवं उसका नैतिक विकास करना शिक्षा का कार्य है।
  4. जन्मजात शक्तियों का विकास करना- बालक में कुछ जन्मजात शक्तियाँ निहित होती है। बालक के विकास के लिए उसके अन्दर निहित इन शक्तियों का समुचित विकास होना आवश्यक है। यह कार्य शिक्षा द्वारा ही सम्पादित होता है।
  5. व्यक्ति का समाजीकरण- विद्यालय की शिक्षा बालक को सामाजिक, मानसिक एवं. सांवेगिक विकास के लिए प्रेरित करती है। विद्यालय में ही बालक को सामाजिक तथा सांस्कृतिक आदर्शों एवं मान्यताओं की शिक्षा प्राप्त होती है । ये दोनों बातें बालक के समाजीकरण में सहयोगी है।
  6. आत्म-निर्भर बनना- शिक्षा का यह विशेष कार्य है कि बालक को उसे अपनी जीविका कमाने योग्य बना देना, जिससे वह किसी दूसरे पर आश्रित न रहे । शिक्षा के द्वारा मानव को विभिन्न व्यवसायों का ज्ञान होता है और वह आत्मनिर्भर बनता है।
  7. व्यावसायिक कुशलता की ऊन्नति- व्यक्ति में व्यावसायिक कुशलता की उन्नति करना शिक्षा का एक आवश्यक कार्य है, जिससे जब व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करके व्यावहारिक जीवन में प्रवेश करे तो किसी न किसी उपयुक्त व्यवसाय को अपनाकर अपना जीवन निर्वाहन कर सके।
  8. अन्धविश्वास से बचाव- शिक्षा समाज के विभिन्न अन्धविश्वासों, कुरीतियों, दोषों के विरुद्ध जनमत का निर्माण कर उनके प्रसार को रोकती है तथा उन्हें समाप्त भी करती है। शिक्षा सामाजिक नियन्त्रण का एक सफल साधन है, क्योंकि यह सामाजिक अव्यवस्था को दूर करके व्यवस्था लाने का कार्य करती है।
  9. सांस्कृति की रक्षा- शिक्षा का एक कार्य मानव समाज की सभ्यता-संस्कृति का संरक्षण करना भी है। समाज के अपने रीति-रिवाज, नैतिकता, परम्परा, धर्म, विश्वास. आदर्श, मान्यताएं आदि होती है। यदि शिक्षा इस सामाजिक विरासत को भावी पीढ़ियों को हस्तान्तरित न करे, तो समाज की स्थिरता सम्भव नहीं है।
  10. सामाजिक भावना का विकास– व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध अत्यन्त घनिष्ठ एव अटूट है, क्योंकि व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक समाज में ही रहता है। वह समाज में रहकर उन्नति करता है यश प्राप्त करता है तथा अन्य लोगों का हित करता है। यह सभी कार्य वह तभी कर सकता है जबकि उसमें प्रेम, परोपकार, दया, करुणा और सहानुभूति आदि सामाजिक गुण निहित हों। यह कार्य भी शिक्षा के द्वारा सम्पन्न होता है।
  11. नैतिक मूल्यों का विकास- शिक्षा का एक प्रमुख कार्य है व्यक्ति में नैतिक मूल्यों का विकास करना। नैतिक मूल्यों के अभाव में व्यक्ति और पशु में अन्तर नहीं रहता है। इस प्रकार शिक्षा मनुष्य में नैतिक मूल्यों का विकास कर वास्तविक इन्सान बनाती है।
  12. वातावरण का सुधार- शिक्षा का कार्य व्यक्ति के वातावरण का रूप परिवर्तन करना भी है। यदि शिक्षा द्वारा व्यक्ति में अच्छी आदतों का निर्माण किया जाये तो वह अपने वातावरण में आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।

राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य

राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है-

  1. देश का विकास करना– किसी देश का राष्ट्रीय विकास उसकी शिक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा के अभाव में इसकी प्राप्ति असम्भव है, अत: शिक्षा का कार्य राष्ट्रीय विकास करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि किसी एक निश्चित स्तर तक राष्ट्र के सभी व्यक्तियों को शिक्षा दी जानी चाहिए। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्तियों को शिक्षित करके उनमें देश प्रेम उत्पन्न कर राष्ट्र का विकास किया जा सकता है।
  2. सामाजिक भावना की जागृति- बालकों में सामाजिक भावना को जागृत करना शिक्षा का एक विशेष कार्य है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति समाज में ही जन्म लेता है, वहीं जीवन व्यतीत करता है और समाज में ही उसकी मृत्यु होती है। अत: शिक्षा के द्वारा बालक में सामाजिक गुणों, दया, परोपकार, नेतृत्व, प्रेम, सहानुभूति, अनुशासन आदि का भाव जागृत किया जाता है।
  3. राष्ट्रीय एकता की स्थापना – हमारा देश विभिन्न रीति-रिवाजों, धर्मों, परम्पराओं का देश है। विभिन्न धर्मों के लोग आपस में एक-दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखते हैं और आपस में बहुधा झगड़ा किया करते हैं जिससे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में देश की रक्षा करना शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य है।
  4. कर्तव्य परायण बनाना– राष्ट्र के प्रति प्रत्येक नागरिक के कुछ कर्तव्य होते हैं। प्रत्येक नागरिक अपने अधिकार को भोगने का तो भरसक प्रयत्न करता है परन्तु राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाता है। ऐसी स्थिति में शिक्षा बालकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक कराती है और उन्हें कर्तव्य परायण बनाती है।
  5. वैचारिक एकता- हमारे राष्ट्र में जातिवादी साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयता, क्षेत्रीयता और दलबन्दी तथा भाषा सम्बन्धी विरोध, इत्यादि विभेद्क तत्वों के कारण वैचारिक एकता स्थापित नहीं हो पाती। इसके लिए शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है, जो इन विभेदक तत्वों को समाप्त कर वैचारिक एकता स्थापित कर सकती है।
  6. सामाजिक सुधार – शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य सामाजिक परिवर्तन के नियमों व सिद्धान्तों का अध्ययन करते हुए समाज को वाछित दिशा की ओर अग्रसर होने का निर्देशन तथा अवसर प्रदान करना है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण कार्य करना पड़ता है। इस प्रकार राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का प्रमुख कार्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है जो सामाजिक सद्भावना के पोषण, कर्तव्य परायण, कुशल योग्य कार्यकर्ता राष्ट्रीयऔर वैचारिक एकता स्थापित करने में सहायक होऔर जिनके कुशल नेतृत्व में राष्ट्र प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो सके।
  7. भावी नेतृत्व का निर्माण- जनतन्त्र के लिए राष्ट्र को कुशल नेताओं की आवश्यकता होती हैं, अत: शिक्षा का कार्य राष्ट्र के लिए कुशल एवं योग्य नेताओं को तैयार करना है। शिक्षा यह कार्य पाठशालाओं द्वारा पूरा करती है।
  8. योग्य नागरिकों का निर्माण- राष्ट्र की समृद्धि श्रेष्ठ एवं योग्य नांगरिकों पर निर्भर करती है। उद्योगों एवं व्यापारों की प्रगति कुशल नागरिकों पर ही निरभंर है। राष्ट्र को कुशल कार्यकर्ताओं की प्राप्ति शिक्षा के द्वारा ही सम्भव होती है। इस प्रकार कुशल नागरिको का निर्माण शिक्षा का प्रमुख कार्य है।

इस प्रकार राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का प्रमुख कार्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है। जो सामाजिक सद्भावना के पोषण, कर्तव्य परायण, कुशल, योग्य कार्यकर्त्ता, राष्ट्रीय और वैचारिक एकता स्थापित करने में सहायक हो और जिनके कुशल नेतृत्व राष्ट्र प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो सके।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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