ग्रामीण अधिवासों की उत्पत्ति एवं विकास के उत्तरदायी कारक | ग्रामीण अंधिवासों का विश्व वितरण | ग्रामीण अंधिवासों का विश्व वितरण

ग्रामीण अधिवासों की उत्पत्ति एवं विकास के उत्तरदायी कारक | ग्रामीण अंधिवासों का विश्व वितरण | ग्रामीण अंधिवासों का विश्व वितरण

ग्रामीण अधिवासों की उत्पत्ति एवं विकास के उत्तरदायी कारक

(Responsible Factors for the Growth & Development of Rural Settlement)

गाँवों को बसाते समय कई आवश्यक तथ्यों का ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है। सामान्यतया अधिवासी की स्थापना में जल की सुविधा, भू-स्वरूप, सूर्य प्रकाश, जलवायु, उर्वरा भूमि, सुरक्षा आदि कारक सहायक होते हैं-

(1) जल की सुविधा- अधिवास बसाने से पहले स्थान विशेष पर जल की सुविधा का ध्यान आवश्यक होता है क्योंकि जल मानव जीवन के लिये परम आवश्यक है। इसीलिये अधिवास की उत्पत्ति किसी नदी, झील, नहर या तालाब के किनारे होती है। जहाँ यह साधन उपलब्ध नहीं रहते वहाँ कृत्रिम साधनों द्वारा भी जल-पूर्ति की व्यवस्था करनी पड़ती है। जिन भागों में जल का अभाव होता है, भूमिगत जल का तल पर्याप्त नीचे मिलता है, वर्षा अल्प या नहीं के बराबर होती है उन भागों में अधिवास नहीं बसते। यही कारण है कि सहारा, थार तथा अरब के मरुस्थलों में अत्यल्प अधिवासी मिलते हैं।

(2) भू-स्वरूप- अधिवासी ऐसे भाग में विकसित होते हैं, जहाँ की भूमि समतल होती है। खेती के लिए, मकान बनाने तथा यातायात के लिए सड़क आदि बनाने के लिए समतल भूमि विशेष उपयोगी होती है। सामान्यत समतल मैदानी भागों में गाँव बड़े-बड़े तथा पास-पास बसे हुए पाये जाते हैं, जबकि इसके विपरीत पठारी और पर्वतीय क्षेत्रों का असमतल धारातल, खेती, सिंचाई तथा परिवहन के साधनों के विकास में वाधक होता है। फलस्वरूप मैदानों की अपेक्षा पठारों और पर्वतों पर गाँव उत्पत्ति कम होती है और गाँव दूर-दूर तथा आकार में छोटे पाए जाते हैं।

(3) सूर्य का प्रकाश और ढाल की दिशा- सूर्य का प्रकाश मानव के स्वास्थ्य, पशुओं तथा फसलों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। समशीतोष्ण तथा शीत कटिबन्धों में धूप की प्राप्ति के विचार से ही अधिवास बसाये जाते हैं। उष्ण कटिबन्ध में सूर्य की लम्ववत् चमक से सर्वत्र तेज धूप मिलती है, अतः अधिवास छाया में बनाये जाते हैं। पर्वतों पर धूप के सम्मुख वाले ढाल अधिवास हेतु उपयुक्त समझे जाते हैं।

(4) जलवायु- उपयुक्त जलवायु अधिवास की उत्पत्ति तथा उसके विकास में सहायक होती है। आर्थिक वर्षा वाले बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ऐसे उच्च भू-भाग जहाँ वर्षा एवं नदियों की बाढ़ का पानी एकत्र नहीं हो पाता है, अधिवासों की बसावट हेतु उपयुक्त सझते जाते हैं, जबकि ऐसे क्षेत्र जहाँ बाढ़ एवं वर्षा जल रुकने की आशंका रहती है वे क्षेत्र प्रायः निर्जन होते हैं।

कम वर्षा के भागों में जहाँ जलाशय मिलते हैं उसको घेरते हुए बड़े आकार के गाँव बस जाते हैं, परन्तु अधिक वर्षा के भागों में जहाँ जल सर्वत्र सुविधा से सुलभ हो जाता है, गाँव पास- पास बसे पाये जाते हैं, परन्तु इन गाँवों में मकानों की संख्या कम होती है।

(5) उपजाऊ भूमि- भूमि का उर्वरापन कृषि को प्रभावित करता है। जहाँ भूमि अधिक उपजाऊ होती है वहाँ गाँव शीघ्र बस जाते हैं। चूंकि उर्वरा भूमि में पोषण क्षमता अधिक होती है। अतः गाँव सघन एवं बीच-बीच में कृषि भूमि को छोड़कर बसते हैं। कम उपजाऊ भूमि वाले भागों में ग्रामीण अधिवासी विरल मिलते हैं।

ग्रामीण अंधिवासों का विश्व वितरण

(World Distribution of Rural Settlements)

विश्व में यद्यपि गाँवों का वितरण सर्वत्र मिलता है, परन्तु कृषि प्रधान देशों में इनकी बहुलता पाई जाती है। नये आबाद देशों की अपेक्षा पुरानी दुनिया के देशों में चूँकि जीविका का प्रमुख साधन कृषि है अतः ग्रामीण अधिवास अधिक मिलते हैं। नई दुनिया के देश उद्योग-प्रधान हैं और यहाँ कृषि कार्य भी व्यापारिक स्तर पर किया जाता है अतः इनमें ग्रामों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम मिलती है।

एशिया

विश्व के अन्य महाद्वीपों की अपेक्षा एशिया की जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण है। दक्षिण-पूर्वी एशिया के सघन बसे कृषि-प्रधान देशों में ग्रामीण जनसंख्या की अधिकता मिलती है। इन देशों में ही अधिक जनसंख्या के निवास स्थल हैं। ग्रामों में रहने वाले लोगों का प्रधान पेशा कृषि है तथा कृषि में भी विशेष रूप से जीविका-निर्वाहन कृषि है।

चीन की लगभग 85% जनसंख्या ग्रामीण अधिवासों में निवास करती है। चीन के एक ग्रामीण अधिवास में 30-40 व्यक्ति से लेकर 4,000 व्यक्ति तक रहते हैं। यहाँ ग्राम का अर्थ एक परिवार के सामूहिक निवास से होता है। ग्राम का प्रत्येक परिवार थोड़ी बहुत भूमि का मालिक होता है और वह भूमि उस परिवार के जीवन-निर्वाह का प्रधान साधन होती है। उत्तरी चीन के विशाल मैदान में ग्रामीण अधिवास सामूहिक रूप में मिलते हैं। इनमें कहीं-कहीं अत्यन्त छोटे गाँव मिलते हैं, जिनका स्वरूप नगला जैसा होता है। वी हो नदी की घाटी में बसे अधिकांश गाँव छोटे, परन्तु डेल्टा की ओर अधिक उपजाऊ भूमि पर बसे गाँव बड़े आकार के होते हैं। कम उपजाऊ भूमि पर गाँव छोटे तथा दूर-दूर पाये जाते हैं।

विश्व की ग्रामीण जनसंख्या

भारत की कुल जनसंख्या में से लगभग 75% गाँवों में रहती है। यहाँ के गाँव सामूहिक रूप से बसे हैं और इनकी स्थिति कृषि क्षेत्रों के बीच होती है। ब्लाश महोदय ने भारत को गाँवों की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ देश कहा है। भारत में ग्रामीण जीवन सर्वाधिक विकसित अवस्था में है। उपजाऊ भूमि के कारण गाँवों के कार्य लगभग समान मिलते हैं, परन्तु अन्य भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के कारण गाँवों के आकार, स्वरूप तथा इनकी योजनाएँ अनेक प्रकार की होती हैं। ग्रामीण जनसंख्या का प्रधान कार्य कृषि कार्य और इसमें भी विशेष रूप से खाद्यानों का उत्पादन करना है, परन्तु आज भारतीय ग्रामों में व्यापारिक कृषि भी अपना स्थान बना रही हैं। गाँवों के बसाने की कोई पूर्व योजना नहीं रही है। अतः इनकस स्वरूप अनियमित और स्पष्ट होता है। भारतीय गाँवों में कुएं तालाब तथा मन्दिर आदि सार्वजनिक प्रयोग की सांस्कृतिक रचनाएँ सार्वभौमिक रूप से पायी जाती हैं।

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