भूगोल / Geography

मानव भूगोल के विभिन्न उपागम | मानव भूगोल के प्रमुख उपागमों व कल्याणकारी उपागम की विवेचना

मानव भूगोल के विभिन्न उपागम | मानव भूगोल के प्रमुख उपागमों व कल्याणकारी उपागम की विवेचना

मानव भूगोल के विभिन्न उपागम

मानव भूगोल के विभिन्न उपागम निम्नलिखित है-

(क) आर्थिक भूगोल (Economic Geography)- आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की ही प्रमुख शाखा है जिसका मुख्य सम्बन्ध मनुष्य के भोजन विश्राम कपडत्रे और आराम की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए मनुष्य द्वारा किये गये उत्पादक प्रयत्नों से की है। पृथ्वी के धरातल, प्राकृतिक साधनों का क्यों? कहाँ? और कैसे? उपयोग होता है। इसका विश्लेषणात्मक अध्ययन ही आर्थिक भूगोल का मूल-मन्त्र है। विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में मानव समुदाय अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भिन्न-भिन्न जीविकोपार्जन के साधनों-लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, शिकार करना, खेती करना, खेती करना, भोज्य पदार्थ एकत्रित खानें खोदना, उद्योग-धन्धे चलाना, व्यापार करना और नौकरी आदि व्यवसाय में लगे रहना-में व्यस्त रहता है। उसके इन आर्थिक प्रयत्नों पर मिट्टी, भूमि की बनावट, जलवायु, वनस्पति, खनिज संसाधन, भौगोलिक स्थिति, यातायात की सुविधा, जनसंख्या का घनत्व आदि वातावरण के विभिन्न अंगों का प्रभाव पड़ता है। एक आर्थिक भूगोलवेत्ता का मुख्य उद्देश्य प्रयत्नों पर पड़ने वाले इस वातावरण के प्रभाव का मूल्यांकन कर उसका विश्लेषण करना है। इसके अतिरिक्त, आर्थिक विकास की सन्तुलित अवस्था को प्राप्त करने के लिए कृषि और औद्योगिक दृष्टि से पृथ्वी के विभिन्न भागों में प्राकृतिक साधनों की सुरक्षा का अध्ययन, आर्थिक उपयोग के लिए उनकी जाँच करना ही आर्थिक भूगोल का मुख्य कार्य है।

(ख) सामाजिक भूगोल (Social Geography) –  सामाजिक भूगोल का उद्देश्य यह बताना है कि मानव समाज चाहे परम्परागत, ग्रामीण और शहरी हो तो भी उसके परिस्थिति विज्ञान (Ecology) के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव अपने विशिष्ट भौगोलिक वातावरण के बीच स्थान, भोजन और आश्रय तथा प्राकृतिक साधनों पर नियन्त्रण करने हेतु निरन्तर द्वन्द्व करता रहता है। उसके इस द्वन्द्व की प्रकृति और वातावरण का चरित्र ही समाज के मुख्य पहलुओं और लक्षणों को निर्धारित करते हैं। हम चाहे कनाड़ा के जंगलों में लकड़हारा समुदाय, मलेहशया के वड़ के खेतों में काम करने वाले मजदूरों लंकाशायर की कोयलों की खानों में काम करने वाले श्रमिकों, मैक्सिकों के उच्च प्रदेश में पशु चराने घुमक्कड़ पशुपालकों तथा हंगरी के मैदान में खेती करने वाले कृषकों आदि किसी के बारे में छानबीन करें तो उनकी क्रियाओं पर भौगोलिक छाप स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होगी। उनकी सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक जीवन का ताना बाना उनके अपने वातावरण से सम्बन्धित ही मिलेगा।

तब कोई समुदाय अपनी आर्थिक विकास की योजना में एक अवस्था छोड़कर दूसरी अवस्था में पहुँचता है। कृषि अवस्था से खनिज अवस्था को उन्मुख होता है या खनिज अवस्था से औद्योगिक अवस्था को अग्रसर होता है। तो उसके इस सम्पूर्ण आर्थिक परिवर्तन के साथ-साथ समाज को मनोवैज्ञानिक रचना, सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक सम्बन्धों में भी क्रमागत रूप से परिवर्तन होता है। आर्थिक परिवर्तन के साथ-साथ किस प्रकार सामाजिक परिवर्तन उन्मुख होते हैं इसका अध्ययन सामाजिक भूगोल का केन्द्र-बिन्दु है।

प्रो. वाटसन ने सामाजिक भूगोल की महत्ता इन शब्दों में व्यक्त की है, “यदि भूगोल पृथ्वी के नक्षत्र का विज्ञान है, अथवा परिस्थिति (Ecology) प्रभाव का विज्ञान है अथवा वस्तु वितरण का विज्ञान है अथवा खण्ड-विखण्डों का विज्ञान है तो इसके सामाजिक सामंजस्यों का अध्ययन करने के लिए ऐसी सामाजिक शक्तियों का-जैसे सहयोग एवं प्रतिस्पर्द्धा, योग, संकेन्द्रीकरण, पृथकता, आक्रमण ओर वंशानुगत गुण-अध्ययन करना भी आवश्यक होगा जिसके फलस्वरूप उस क्षेत्र विशेष के सामाजिक प्रतिमान उत्पन्न होते हैं। सामाजिक अंशों के अध्ययन से त्यागना उचित नहीं है, क्योंकि सामाजिक प्रभाव भूपटल, वातावरण, वस्तु-वितरण और खण्ड-विखण्ड भेद के निर्माण में सहायक होते हैं।

(ग) राजनीतिक भूगोल (Political Geography)- राजनीतिक भूगोल का मूल उद्देश्य विभिन्न राज्यों की प्रकृति, उनकी व्यवस्था और उनके आपसी सम्बन्धों पर गिरने वाले भौगोलिक अवस्था के प्रभावों की खोज करना है। राजनीतिक भूगोल का स्थान सांस्कृतिक विज्ञान के क्षेत्र में (जोकि मानवता का अध्ययन करता है) अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है। अब यह निश्चित मान्यता है कि एक देश का विसतार, प्राकृतिक इशा, नैसर्गिक संसाधन, मिट्टी की उर्वरता, आबादी का घनत्व और उसमें प्रजातियों का स्थान तथा उसका निकटवर्ती राजनीतिक ढाँचे, सरकार के स्वरूप और उसके पड़ोसी देशों के सम्बन्धों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इसके कई उदाहरण है; बाल्कन प्रायद्वीप को भौगोलिक रचना, तुर्क सरवियनस और यूगोस्लेवियन लोगों के आपसी मेलजोल के बीच सबसे बड़ी बाधा विभिन्न घाटियों के रक्षित. प्रदेशों में रहने वाले इन लोगों में केवल भाषा सम्बन्धी अन्तर ही नहीं है, किन्तु इनके सामाजिक और राजनीतिक विषमताएँ भी हैं।

(घ) ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)- ऐतिहासिक भूगोल का प्रयास इस बात को स्पष्ट करने में रहता है कि एक राष्ट्र के ऐतिहासिक भाग्य के पीछे भौगोलिक अवस्थाओं का अवश्यम्म्भावी प्रभाव रहता है। यद्यपि यह सर्वविदित है कि सम्पूर्ण ऐतिहासिक नाटक खेले जाने में कई आकस्मिक घटनाएं तथा शासकों की व्यक्तिगत कुशलता छिपी होती है, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि धरातल, स्थिति (महाद्वीपीय या सामुद्रिक) प्राकृतिक बाधाएँ, भौगोलिक एकान्तता और राज्य या प्रदेश का विस्तार आदि ऐसी भौगोलिक अवस्थाएँ हैं जो एक राष्ट्र के ऐतिहासिक भाग्य को निर्धारित करने में एक निश्चित शक्ति के अनुरूप काम करती हैं। अगर यूरेशिया महाद्वीप के इतिहास का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट होगा कि किस प्रकार भौगोलिक हैं। अगर यूरेशिया के इतिहास का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट होगा कि किस प्रकार भौगोलिक अवस्थाओं ने उसके सम्पूर्ण ऐतिहासिक मार्ग को निर्धारित किया है। यूरेशिया महाद्वीप का इतिहास नीलघाटी सभ्यता से प्रारम्भ होता है। उसके बाद क्रमागत रूप से धीरे-धीरे अरब के मरु भूमि प्रदेश में सैरेपन साम्राज्य का एक महान् भूमध्य सागरीय समुद्र शक्ति के रूप में उत्थान और पतन, चार्लिमँगनी के साम्राज्य का बनना, नोर्मन लोगों की इंग्लैण्ड पर विजय और यूरोप में नैपोलियन साम्राज्य के बनने तथा बिगड़ने आदि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं के पीछे निश्चित ही एक भौगोलिक तथ्य का दर्शन किया जा सकता है। इस विशाल महाद्वीप के लम्बे इतिहास की व्याख्या, इसकी भू-रचना, प्राकृतिक विभाग जलवायु और विसतार आदि भौगोलिक अवस्थाओं के रूप में ही पूर्ण सत्यता के साथ ही की जा सकती है। इसी प्रकार एक ओर दजला और पुरात के मैदान, ओक्सन घाटी और भारत के उत्तरी-पश्चिमी मार्गों द्वारा ही भारतीय और यूनानी संस्कृतियों का समागम हो सका है। दक्षिण में विशाल खुले समुद्रों द्वारा ही जावा, सुमात्रा, बाली और अन्य प्रशान्त द्वीपों में अबाध गति से भारतीय प्रवाह और बौद्ध धर्म  का प्रचार द्रुतगति से बढ़ सका है। दूसरी ओर, उत्तर में हिमालय ने एक प्राकृतिक अवरोध पैदा कर दिया जिससे आर्य संस्कृति की पहुँच अपने पड़ोसी राज्य तिब्बत तक सम्भव न हो सकी।

(ङ) सामरिक भूगोल (Military Geography and Geo-Strategy)- सामरिक भूगोल का मुख्य उद्देश्य थल तथा जल में भौगोलिक चरित्र का युद्ध की सैनिकता पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट करना है। इतिहास के पृष्ठों में अंकित कई घटनाएँ जैसी पारसी सेना का एजिनियन सागर से पुरु को निकालने का प्रयास, एलेक्जैण्डर के साम्राज्य में ग्रीक और फोनियन्स पर मैकडीनियन्स का आक्रमण, भूमध्य सागर से रोमन सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए कार्थेज से हैनीवाल की ऐतिहासिक चढ़ाई और नेपोलियन द्वारा उत्तरी इटली, फ्रांस और प्रशा में युद्ध, थल और जल के भौगोलिक चरित्र का सही मूल्यांकन कर लड़े गये थे जिससे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक सर्वेपरिता स्थापित रह सके। सामरिक भूगोल के अध्ययन का सही विस्तार सेनाओं के अध्यक्षों और जल सेना के नायकों द्वारा ही हुआ है और इन्हीं प्रयत्नों से इसके सही क्षेत्र का निर्माण हुआ है। जियों स्ट्रैटेजी सामरिक भूगोल का ही नवशिशु है।

(ज) प्रजातीय भूगोल (Relist Geography or Ethology)- इसमें मानव जाति के विकास से लेकर उसकी संस्कृति एवं सभ्यता तक का विशाद विश्लेषण किया जाता है। इसके दो भाग माने गये हैं। एक भाग में मानव शरीर एवं जीव प्रकृति में मानव का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत की विभिन्नताएँ मानव प्राणी का विकास, शारीरिक ढाँचे में अन्तर और प्राणी पर वातावरण का प्रभाव आदि विषय सम्मिलित किये जाते हैं। इसे शारीरिक मानव शास्त्र (Physical anthropology) कहा जाता है।

दूसरे भाग में मानव की संस्कृतियों का अध्ययन किया जाता है। संस्कृति के अन्तर्गत रीति-रिवाज, सामाजिक संगठन, आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था, विज्ञान, कला, धर्म, विश्वास, परम्पराएँ, नैतिकता, यन्त्र, उपकरण आदि सभी बातें आती हैं। इसे सांस्कृतिक मानव शास्त्र (Cultural anthropology) कहा जाता है। बील्स और हाइजर ने मानव संस्कृति शास्त्र के बारे में लिखा है कि “यह मानव संस्कृतियाँ की उत्पत्ति एवं इतिहास, उनका उद्भव और विकास तथा प्रत्येक स्थान एवं काल के मानव संस्कृति के ढाँचों कार्य प्रणालियों का अध्ययन करता है। यह संस्कृति मानव अपने वातावरण से सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए निर्मित करता है।

मानव भूगोल की शाखाएँ (Branches of Human Geography)

मानव भूगोल के अन्तर्गत न केवल मनुष्य और उसके भौतिक वातावरण का आर्थिक सम्बन्ध ही सम्मिलित किया जाता है वरन् भूगोल से सम्बन्धित अन्य शाखओं-आर्थिक भूगोल, सामाजिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल आदि का मानव की कार्यक्षमता, स्वास्थ्य शिक्षा, कला विज्ञान, धर्म पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया जाता है।

प्रो. रॉक्सवी ने मानव भूगोल को निम्नांकित शाखाओं में विभक्त किया है-

मानव भूगोल

  • सामाजिक भूगोल
  • राजनीतिक भूगोल
  • आर्थिक भूगोल
  • ऐतिहासिक भूगोल
  • सामरिक भूगोल
  • प्रजातीय भूगोल
भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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