अर्थशास्त्र / Economics

ग्रामीण क्षेत्रों के मुख्य रोजगार-कार्यक्रम | भारत में विद्यमान ग्रामीण बेरोजगारी के कारण एवं उसे दूर करने के सरकारी निदान

ग्रामीण क्षेत्रों के मुख्य रोजगार-कार्यक्रम | भारत में विद्यमान ग्रामीण बेरोजगारी के कारण एवं उसे दूर करने के सरकारी निदान

ग्रामीण क्षेत्रों के मुख्य रोजगार-कार्यक्रम

(Major Employment programmes in Rural Areas)

अनाज के बदले काम अथवा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम

(Food for Work or National Rural Employment Programme)

(N.R.E.P.)

ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार तथा अल्परोजगार की समस्या निर्धन वर्ग को अधिक प्रभावित करती है। ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग इस प्रकार का है कि, जिसके पास अपने जीविकोपार्जन के लिए कोई स्थायी परिसम्पत्ति नहीं है और यदि है भी तो बहुत ही कम। इसलिए इस वर्ग के जनसमूह को मजदूरी पर स्थायी रोजगार की आवश्यकता है। उसी परिप्रेक्ष्य में 1977 में ‘अनाज के बदले काम’ की शुरुआत की गयी थी। इस योजना के तहत काम करने वाले लोगों को मजदूरी के एवज में अनाज उपलब्ध कराने की व्यवस्था थी। इस कार्यक्रम के माध्यम से यह आशा की गयी थी कि उससे ग्रामीण बेरोजगारी एवं अल्परोजगारी की समस्या का समाधान काफी सीमा तक कर लिया जायेगा। दुर्भाग्यवश इस योजना की कार्य अवधि बहुत ही कम (लगभग 3 वर्ष) रही है, फिर भी इस अल्पावधि में ही योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराया। अनाज के बदले का कार्यक्रम की खामियों को देखते हुए इसे छठी योजना (1980) में ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम’ (NREP) में परिवर्तित कर दिया गया। NREP केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना के रूप में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्यतया तीन लक्ष्य रखे गये:

(1) रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन,

(2) सामुदायिक सम्पत्तियों का निर्माण करना,

(3) ग्रामीण निर्धनों के जीवन के सभी पक्षों का सुधार करना।

योजना आयोग के अनुसार इस कार्यक्रम में सामाजिक, वानिकी, भूमि एवं जल संरक्षण, लघु सिंचाई, बाढ़-नियन्त्रण, विद्यालयों एवं अस्पतालों के भवनों का निर्माण, नालियों-तालाबों का निर्माण किया जाना सम्मिलित किया गया। इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रतिवर्ष 29 करोड़ दिहाड़ी रोजगार के अवसर पैदा करना था। 1985-86 तथा 86-87 में 31.64 तथा 37.08 करोड़ तथा 1988-89 में 39.5 करोड़ दिहाड़ी के अवसर पैदा किए गए। 1989 में इस योजना को जवाहर योजना में विलय कर दिया गया।

ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP)

इसे 1983 में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण भूमिहीन कृषकों के लिए रोजगार अवसरों में सुधार एवं विस्तार तथा प्रत्येक ग्रामीण परिवार के कम से कम एक सदस्य को वर्ष में 100 दिन रोजगार देने की गारण्टी देना था। इसके अन्तर्गत गाँवों को जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण, नालियाँ खोदना, बेकार भूमि का विकास करना, वन रोपण तथा लघु सिंचाई परियोजनाओं में सुधार एवं जल के दुरुपयोग को रोकना था। सातवीं योजना में लगभग 11,500 लाख कार्य-दिवसों के लिए रोजगार उपलब्ध कराया गया, तथा 1,743.78 करोड़ रु० खर्च करने की व्यवस्था था। शुरू के चार वर्षों में इसमें 2,412 करोड़ रु० व्यय हुए। 1 अप्रैल 1989 से इसे जवाहर रोजगार योजना में शामिल कर लिया गया।

स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवकों की प्रशिक्षण योजना (TRYSEM)

ग्रामीण क्षेत्र में युवकों की बेरोजगारी की समस्या के निदानार्थ यह योजना 15 अगस्त 1979 को केन्द्र द्वारा प्रायोजित की गई। इसका मुख्य लक्ष्य ग्रामीण युवकों को कृषि तथा उससे सम्बद्ध क्रियाओं, उद्योग, सेवाओं तथा व्यवसाय में स्वरोजगार प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित करना है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में ही रोजगार उपलब्ध कराना है। लघु एवं सीमान्त कृषक, कृषि-श्रमिक, ग्रामीण कारीगर तथा अन्य निर्धनता की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के युवाजन इसमें सहायतार्थ अर्ह समझे जाते हैं। इसमें यह लक्ष्य रखा गया था कि प्रत्येक विकासखंड से कम से कम 40 व्यक्तियों को प्रतिवर्ष अवश्य प्रशिक्षित किया जाये। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत युवकों को राजगीरी, बढ़ईगीरी, माचिस बनाना, दरी-कालीन बुनना, वस्त्र बुनना, सिलाई-बुनाई आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि सम्बद्ध व्यवसाय के लिए आवश्यक संसाधन वहाँ उपलब्ध हों और उद्योग के उत्पादन एवं सेवा की माँग निकटवर्ती क्षेत्र में अवश्यक हो। प्रशिक्षित कार्यक्रम में एक-तिहाई स्त्रियों को समायोजित करने की व्यवस्था की गयी है ताकि उन्हें उत्पादक स्वरोजगार के उपयुक्त अवसर मिल सके। युवाजनों को प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण संस्थाओं की तो सुविधा उपलब्ध ही है, साथ-साथ औद्योगिक संस्थाओं, सिद्धहस्त शिल्पियों, कारीगरों और कुशल कामगारों द्वारा भी प्रशिक्षण-सुविधा प्रदान की जाती है। प्रशिक्षण अवधि में प्रशिक्षणार्थियों को प्रतिमाह कुछ वित्तीय सहायता की भी व्यवस्था की जाती है। इस कार्यक्रम के संचालन में व्यापारिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा सहकारी बैंक जैसी वित्तीय संस्थाएँ सहयोग देती रही हैं। यह कार्यक्रम उतना अधिक लाभदायक नहीं सिद्ध हो सका जितनी कि आशा की गयी थी। इसमें कुछ खामियाँ भी रही हैं, जैसे- आवश्यकता से अधिक कठोरता करना, प्रशिक्षार्थियों के चयन में अनियमितताएँ बरतना तथा उद्योग स्थापना में वित्तीय अनुदान का अभाव आदि।

जवाहर रोजगार योजना

(Jawahar Rojgar Yojana)

ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजागरी एवं निर्धनता निवारण के लिए सरकार द्वारा चलाये गये विभिन्न कार्यक्रमों की श्रृंखला में जवाहर रोजगार योजना (JRY) नवीनतम योजना है। यह योजना तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी द्वारा अप्रैल, 1989 में शुरू की गयी। वास्तव में यह योजना पहले से चल रहे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) एवं ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP) के विलय के परिणामस्वरूप ही प्रारम्भ की गयी है। इस योजना का मुख्य लक्ष्य गरीबी एवं बेरोजगारी से ग्रस्त पिछड़े जिलों में कम से कम प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को 50 से 100 दिन तक का रोजगार उपलब्ध कराना है। इसमें भी रोजगार के 30 प्रतिशत अवसर महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था है। जवाहर रोजगार योजना को पंचायतों को स्वतः रोजगार चलाने के लिए साधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी है। वर्ष 1989-90 में इसके लिए 2100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता ग्राम पंचायतों को देने की व्यवस्था की गयी जिसमें से 80 प्रतिशत भार केन्द्र एव 20 प्रतिशत भार राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाना था।

इस नवीन योजना की मूल धारणा तो बहुत अच्छी है जिसमें विकेन्द्रीकृत स्वरूप में ग्राम पंचायतों को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। शुरू में इसमें यह कहा गया था कि यह बेरोजगारी एवं निर्धनता की समस्या पर सीधा प्रहार करेगी। क्योंकि इसमें जो भी धनराशि दी जायेगी, वह पंचायतों को सीधे प्राप्त होगी जिससे कि ग्रामवासी लाभान्वित होंगे। इस योजना में कार्यक्रमों को पंचायती राज संस्थाओं के मजबूत होने से तथा उनके लिए चुनाव होने से गरीब वर्ग को लाभ प्राप्त होने की आशा है।

किन्तु पिछले अनुभवों से यह संभव नहीं प्रतीत होता कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह कार्यक्रम सफल होगा क्योंकि पंचायतों पर धनी किसानों का प्रभुत्व रहता है जिन्होंने सामाजिक-आर्थिक स्तर पर असमानताओं को प्रोत्साहित ही किया है तथा इस योजना में धन के उपयोग का निरीक्षण करने की कोई व्यवस्था नहीं है।

नौ वर्षों के सतत प्रयास के पश्चात् NREP तथा IRDP कार्यक्रम मात्र 55 प्रतिशत पंचायत समितियों तक पहुँच पाये थे। इस योजना में यह बात स्पष्ट नहीं की गई है कि परियोजनाओं के निर्माण के लिए पंचायतों को तकनीकी ज्ञान कौन उपलब्ध करायेगा तथा गरीबों की शिकायत कौन दूर करेगा। जवाहर रोजगार योजना ने 16 वर्ष पूरे कर लिए हैं। शुरू के पाँच वर्षों में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 43.55 करोड़ दिहाड़ी रोजगार उत्पन्न हुआ है जो लक्ष्य के अनुरूप है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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