अर्थशास्त्र / Economics

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी | ग्रामीण बेरोजगारी के कारण | ग्रामीण बेरोजगारी के निदान | ग्रामीण बेरोजगारी दूर करन के सरकारी निदान

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी | ग्रामीण बेरोजगारी के कारण | ग्रामीण बेरोजगारी के निदान | ग्रामीण बेरोजगारी दूर करन के सरकारी निदान

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी

(Rural Unemployed: in India)

1991 की जनगणना के अनुसार भारत की 74.3 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती हैं, जिसका प्रमुख व्यवसाय कृषि करना है। लेकिन इस जनसंख्या को गांवों में पूरा काम नहीं मिल पाता है। अतः वहाँ बेरोजगारी पायी जाती है जिसे ‘ग्रामीण बेरोजगारी’ कहते हैं।

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी दो प्रकार की पायी जाती है- (1) मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment) तथा (2) छिपी हुई बेरोजगारी (Disguised Unemployment)/ मौसमी बेरोजगारी वह है जो किसी खास मौसम या समय में होती है, जैसे फसल काटने और अगली फसल की शुरुआत करने के बीच कोई काम नहीं मिलता है। इसी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं। भारत में मौसमी बेरोजगारी के सम्बन्ध में अलग-अलग अनुमान हैं। शाही कृषि आयोग के अनुसार यहाँ 4-5 महीने लोग बेकार रहते हैं जबकि कृषि श्रमिक प्रथम जाँच के अनुसार, यहाँ कृषि श्रमिक को मात्र 218 दिन को ही कार्य मिलता है जबकि द्वितीय कृषि श्रमिक जाँच के अनुसार यहाँ 222 दिन को ही कार्य मिलता है। ग्रामीण श्रमिक जाँच के अनुसार यहां 4-5 मनी ने लोग बेकार डरते हैं जबकि ऋषि श्रमिक प्रथम जांच के अनुसार, यहां कृषि श्रमिक मात्र 218 दिन को ही कार्य मिलता है जबकि द्वितीय कृषि श्रमिक जांच के अनुसार यहां 222 दिन को ही कार्य मिलता है। ग्रामीण श्रमिक जांच के अनुसार यहां 1964-65 में पुरुष कृषि-श्रमिक को 240 दिन एवं स्त्री कृषि-श्रमिक को 159 दिन को कार्य मिलता था। ये सभी अनुमान यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ मौसमी बेरोजगारी विद्यमान है।

ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी हुई बेरोजगारी भी पायी जाती है। छिपी हुई बेरोजगारी से अर्थ किसी काम में आवश्यकता से अधिक व्यक्तियों के लगाने से है। भारतीय गाँवों में कृषि उद्योग में इस प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है। राष्ट्रीय श्रम आयोग के अध्ययन दल के अनुसार यहाँ 1.7 करोड़ व्यक्ति छिपी हुई बेरोजगारी से पीड़ित हैं।

एक अनुमान के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल श्रम शक्ति की 7.1 प्रतिशत प्रतिशत पुरुषों में एवं 9.2 प्रतिशत स्त्रियों में बेरोजगारी पायी जाती है।

ग्रामीण बेरोजगारी के कारण

(Causes of Rural Unemployment)

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं कि जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(1) भूमि के प्रति प्रेम (Affection with Land)- अधिकांश कृषक अलाभकारी खेती होने पर भी उसे नहीं छोड़ते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूमि से लगाव तथा प्रेम होता है।

(2) उत्तराधिकार नियम (Inheritance Law)- भारत में उत्तराधिकार नियम इस प्रकार के हैं कि पिता की मृत्यु पर पिता की भूमि में सभी पुत्रों एवं पुत्रियों को हक मिलता है जिससे वे उससे चिपके रहते हैं, चाहे भूमि से कोई लाभ हो अथवा नहीं।

(3) ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं वृहत् उद्योगों का अभाव (Lack of Small and Big industries in Rural Areas)-  ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे लघु एवं वृहत् उद्योगों का अमाव पाया जाता है जिसमें वे रोजगार पा सकें।

(4) संयुक्त परिवार-प्रणाली (Joint Family System)- यद्यपि संयुक्त परिवार-प्रणाली टूट-सी गयी है, लेकिन फिर भी अनेक स्थानों पर अभी बनी हुई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि बिना रोजगार के भी व्यक्ति गाँवों में बने रहते हैं।

(5) मौसमी कृषि (Seasonal Agriculture)- भारत में कृषि मौसमी है जिसके फलस्वरूप कई महीने गाँवों में बेकार रहना पड़ता है।

(6) ग्रामीण वातावरण के प्रति आकर्षण (Attraction towards Rural Atmosphere)- आज भी अनेक व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें ग्रामीण वातावरण अधिक पसन्द है। अतः वे बेकार होते हुए भी गाँव छोड़ना नहीं चाहते हैं।

ग्रामीण बेरोजगारी के निदान

(Measures to Remove Rural Unemployment)

यदि हम ग्रामीण बेरोजगारी दूर करना चाहते हैं तो निम्नलिखित उपाय काम में लाने चाहिए-

(1) लघु एवं वृहत् उद्योगों का विकास (Development of Small and Large- scale Industries)- ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं वृहत् उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए जिसके लिए आवश्यक सुविधाएँ सरकार द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।

(2) सामाजिक वातावरण (Social Atmosphere)- ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक वातावरण को परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए और ग्रामीण जनता को यह बताना चाहिए कि बेकार बैठने से तो कुछ काम करना अच्छा है। इसके लिए ग्राम पंचायत एवं ब्लाक समिति की सहायता लेनी चाहिए।

(3) प्रशिक्षण (Training)- गाँवों में कुटीर उद्योगों तथा लघु उद्योगों की स्थापना के लिए प्रशिक्षण-सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि ग्रामीण प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार में लग सकें और बेकारी कम करने में सहयोग दे सकें।

ग्रामीण बेरोजगारी दूर करन के सरकारी निदान

(Government Measures to Remove Rural Unemployment)

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी एवं अल्प-बेरोजगारी पायी जाती है जिसको कम करने के लिए- (1) समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme), (2) सूखा प्रवृत्ति क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Areas Programme), (3) जंगल विकास कार्यक्रम (Desert Development Programme), (4) छोटे किसान विकास एजेन्सी (Small Farmers Development Agency), आदि कई कार्यक्रम लागू किये गये, (5) लेकिन झ सभी कार्यक्रमों में तालमेल न होने के कारण छठीं योजना में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (National Rural Employment Programme), एवं जवाहर रोजगार योजना (Jawahar Employment Plan)- चालू किये गये हैं। वर्तमान में ग्रामीण बेरोजगारी कम करने के लिए तीन कार्यक्रम लागू है- (1) समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP),(2) जवाहर रोजगार योजना (Jawahar Rojgar Yojna) तथा (3) ग्रामीण युवकों को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण (TRYSEM)| इन सभी विस्तार से विवरण ‘भारत में ग्रामीण विकास’ में दिया गया है। अतः इसे यहाँ पुनः नहीं दोहराया जा रहा है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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