अर्थशास्त्र / Economics

कृषि आय करारोपण | कृषि धन करारोपण | भारत सरकार का कृषि करारोपण

कृषि आय करारोपण | कृषि धन करारोपण | भारत सरकार का कृषि करारोपण

(क) कृषि आय करारोपण

(Agricultural Income Taxation)

कृाष आयकर कर-निर्धारितियों पर लगाया जाने वाला एक प्रत्यक्ष कर है। यह खेती की लगात आदि की छूटों की समुचित व्यवस्था करने के बाद निबल कृषि-आय (net agricultural income) पर लगाया जाता है। इसे बेशी (surplus) पर लगाया जाने वाला कर भी माना जा सकता है। अतः मूल्याकन प्रक्रिया (Pricing Process) के द्वारा इसका अन्तरण (Shifting) करना कठिन होता है। जैसा कि हम जानते हैं लाभ (Profit) कीमत की शर्त नहीं है अपितु इसका परिणाम है। चूंकि इसे लाभों या बेशियों पर लगाया गया कर माना जाता है अतः यह लागत में सम्मिलित नहीं होता और इसी कारण इसका अन्तरण भी नहीं किया जा सकता।

बाँचू समिति की सिफारिशें

भारत सरकार के द्वारा अवकाश प्राप्त न्यायाधीश के0 एन0 वाचू की अध्यक्षता में प्रत्यक्ष कर जांच समिति की नियुक्ति की गई। इस समिति ने 24 दिसम्बर, 1971 की अपनी रिपोर्ट पेश की। समिति ने कृषि आय पर समान तथा प्रगतिशील कर लगाने के सम्बन्ध में अग्रलिखित कठिनाइयाँ एवं आपत्तियाँ प्रकट की-

(अ) कृषि आय पर कर लगाने से कृषि उत्पादन की वृद्धि निरुत्साहित होगी।

(ब) ग्रामीण लोगों की प्रति-व्यक्ति आय निम्न होती है। ऐसी स्थिति में उनकी कृषि-आय पर, कर लगाने से उनकी निर्धनता में और अधिक वृद्धि हो जायेगी।

(स) प्रामीण जनसंख्या के खातों को ठीक तरह से बनाये रखने में कठिनाई होगी।

(द) इस प्रकार के परिवर्तन (कृषि आय पर कर लगाना) संविधान में पूर्ण रूप से संशोधन के बिना सम्भव नहीं हो सकते। अर्थात् आय पर कर लगाने से पूर्व संविधान में पूर्ण संशोधन करने होंगे।

के० एन० राज समिति की सिफारिशें

की धन तथा आयकर के कराधान के प्रश्न पर विचार करने के लिए भारत सरकार ने 24 फरवरी, सन् 1972 को डॉ० के० एन० राज, विकास अध्ययन केन्द्र, शिवेन्द्रम की अध्यक्षता एक समिति नियुक्ति की। 31 दिसम्बर,1972 को समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। समिति ने कृषि तथा गैर-कृषि आपके आंशिक एकीकरण (partial integration) की सिफारिश की। समिति ने कहा कि “हम इस बात से सहमत हैं कि कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इस विषय में आश्वस्त हुआ जा सके कि करदाताओं की एक सी ही आमदनियों पर, कर के बारे में केवल इस कारण ही भारी अन्तर नहीं होगा कि उस आय का एक भाग कृषि

से प्राप्त हुआ है।हमारे विचार से कृषि आमदनियों को केन्द्रीय आय कर के अधीन लाये बिना भी इस उद्देश्य की काफी हद तक पूर्ति की जा सकती है, बशर्ते कि आय कर अधिनियम, 1961 के अधीन, गैर-कृषि आमदनियों पर कर की दरों का निर्धारण करते समय ऐसी आय को भी बेचारार्थ लिया जाए।”

समिति ने कहा कि कर योग्य आय की बड़ी-बड़ी धनराशियों को कृषि आय बनाकर बचा लेने का प्रलोभन भी काफी मात्रा में समाप्त हो जायेगा, यदि गैर-कृषि आय की करदाताओं को किसी रीति से करदाता की कृषि व गैर-कृषि, दोनों ही सोतों से प्राप्त सम्पूर्ण आय से ही संलग्न कर दिया जाए।

अतः समिति ने सिफारिश की कि “हमारा सुझाव है कि करदाता की कृषि तथा गैर-कृषि आय को एक साथ सम्मिलित कर लिया जाना चाहिए और जब गैर कृषि आय के अनुपात पर कर लगाया जाये तब यह कुत सम्मिलित आय की सर्वोच्च शिला (slab) की दर के आधार पर ही लगाया जाना चाहिए।” इस उद्देश्य को प्राप्त करने का सरल तरीका यह होगा कि आय-कर अधिनियम, 1961 में ही इसका समुचित प्रावधान (provision) कर दिया जाये। इस व्यवस्था के अंतर्गत, समिति ने प्रस्तावित किया कि गैर-कृषि आय पर कर की दर का निर्धारण करते समय-कृषि, तथा गैर-कृषि, दोनों ही प्रकार की आमदनियों को एक साथ मिला लिया जाये। यह नियम केवल तभी कार्यशील होगा जबकि करदाता की आय केन्द्रीय आय-कर की छूट की सीमा से अधिक होगी। यह छूट की सीमा (जो कि तब 1,000 रु0 थी) केवल गैर-कृषि आय के संबंध में ही है।

भारत सरकार का कृषि करारोपण

भारत सरकार ने डॉक्टर के०एन० राज समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। अत: 28 फरवरी, 1973 को संसद में सन् 1973-74 के लिए बजट प्रस्ताव प्रस्तुत करते समय सरकार ने निम्न घोषणाएं की-

व्यक्तियों, हिन्दू अविभाजित परिवारों, अपंजीकृत फर्मों, व्यक्तियों के संघों या न्यायिक व्यक्तियों के निकायों जैसे कुछ गैर-नियम करदाताओं के कर का हिसाब लगाने के लिए एक विशेष प्रावधान किया गया है जिनकी, 5,000 रु0 से अधिक की कुल आय में निबल कृषि हाय भी सम्मिलित है। इस प्रावधान के अन्तर्गत, करदाता की निबल कृषि-आय (net agricultural income) को केवल आय-कर की दर का निर्धारण करने के लिए ही विचारार्थ लिया जाएगा और यह दर उसकी कुल आय पर लागू होगी। यह कार्य निम्न रीति से संपन्न किया जाएगा:

(1) सबसे पहले करदाता की आय के कृषि और गैर-कृषि अंशों को जोड़ लिया जायेगा। और फिर इस सम्मिलित योग पर यह मानकर आय-कर का हिसाब बनाया जायेगा जैसे कि मानो यह सम्मिलित योग उसकी कुल आय (total income) हो।

(2) इसके बाद अब 5,000 रु0 से ऊपर की गैर-कृषि आय मानकर आय-कर की गणना की जायेगी कि मानो यह गैर-कृषि आय ही उसकी कुल आय हो।

(3) अब नं0 1 के अन्तर्गत निकाला गया, आय-कर नं0 2 के अंतर्गत निकाले गये आय- कर से कितना अधिक होगा, उतनी ही रकम करदाता की कुल आयपर देय आय-कर कहलायगी।

(ख) कृषि धन करारोपण

(Agricultural Wealth Taxation)

संविधान में, कृषि आय पर कर लगाने का अधिकार पूर्णतया राज्यों को दिया गया है। किन्तु केन्द्र द्वारा कृषि तथा गैर-कृषि धन पर एकीकृत कर लगाने के मार्ग में कोई संवैधानिक अड़चन भी नहीं है। अतः सन् 1957 के धन कर अधिनियम का सन् 1969 में संशोधन करके विस्तार कर दिया गया और अब उसमें कृषि भूमि को भी सम्मिलित कर लिया गया। इसको यह कहकर चुनौती भी दी गई कि कृषि भूमि- पर धन लगाने के लिए कानून बनाना संसद (parliament) की शक्ति के बाहर है। किन्तु अक्टूबर 1971 में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) द्वारा इन संशोधनों को संवैधानिक दृष्टि से वैध करार दिया गया। अतः कृषि धन कर अधिनियम कर-निर्धारण वर्ष 1971-72 से ही लागू हो सका।

सन् 1969 का कृषि धन कर अधिनियम न्यूनतम छूट भी प्रदान करता है, जो कि व्यक्तियों के मामले में 1.5 लाख रु० है और हिन्दू अविभाजित परिवारों की स्थिति में 2.5 लाख रु०। किन्तु व्यक्तियों तथा हिन्दू अविभाजित परिवारों की विशिष्ट कृषि सम्पत्ति (specified agricultural Wealth) को, जिनमें खड़े पेड़ों तथा बने भवनों सहित कृषि भूमि सम्मिलित है, गैर-कृषि सम्पत्ति के मूल्य के साथ जोड़ दिया जायेगा और फिर सम्पूर्ण निबल धन (aggregate net wealth) पर कृषि धन कर अधिनियम (Agricultural Wealth Tax Act) के अन्तर्गत निर्धारित दरों से कर लगाया जायेगा।

प्रदत्त कर-मुक्तियां

(क) कुछ विशिष्ट प्रकार की परिसम्पत्तियों, जैसे कि भारतीय कम्पनियों के शेयर, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया द्वारा जारी एकांश (unit) तथा बैंक जमा धनराशियों पर कुल मिलाकर 1.5 लाख रु0 तक की छूट प्रदान की जाती है।

(ख) एक लाख रु0 तक के मूल्य का मकान।

(ग) सभी जीवन बीमा पॉलिसियाँ जब तक कि वे परिपक्व (mature) हों।

(घ) व्यवसाय में काम आने वाले 20,000 रु0 मूल्य तक के औजार तथा उपकरण।

(ङ) 25,000 रु0 मूल्य तक की मोटर कार अथवा अन्य कोई वाहन।

(च) जवाहरात को छोड़कर सभी व्यक्तिगत माल, जैसे फर्नीचर, बर्तन आदि, बशर्ते कि उनमें कोई कीमती धातु सम्मिलित न हो।

वास्तव में, धन कर के निर्धारण में आजकल जो छूटे प्रदान की जाती हैं वे इतनी अधिक ठोस हैं कि गैर-कृषि धन के अधिकांश धारक (holders) तक बिना किसी कठिनाई के ही इस कर अदायगी से बच सकते हैं। इससे यह कर अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करने में बिल्कुल प्रभावहीन हो जाता है।

कृषि धन-कर की समाप्ति

भारत सरकार के वित्त मन्त्री, 18 जून 1980 को जिस समय देश का बजट पेश कर रहे थे, उस समय उन्होंने यह घोषणा की थी कि चाय, कॉफी, रबड़ और कारडोमोम बागों के मालिकों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की कृषि सम्पत्ति पर से धन-कर को समाप्त कर दिया गया है। कृषि धन-कर को समाप्त करने के कारणों को बताते समय उन्होंने कहा कि जिस समय कृषि धन-कर (Agriculture Wealth Tax) लगाया था, उस समय यह आशा की जाती थी कि क्षि धन-कर से पर्याप्त आय प्राप्त होगी तथा यह कृषि क्षेत्र के धनी वर्ग से आय के साधनों को इकट्ठा करने के लिए एक अच्छा यन्त्र होगा। किन्तु पिछले दस वर्षों का अनुभव बड़ा ही निराशाजनक रहा क्योंकि पिछले 10 वर्षों में कृषि धन-कर के द्वारा जो आए प्राप्त हुई है वह 1 करोड़ रुपये प्रति वर्ष से सदैव कम ही रही है। कृषि भूमि का मूल्य निकालने में भी अनेक कठिनाइयाँ आई हैं तथा कृषि सम्पत्ति के मालिकों ने कर को लगाने व आँकने वाले कर्मचारियों के द्वारा की गई अनेक प्रकार की बर्बरताओं की शिकायत की है, स्पष्ट है कि कृषि धन-कर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है। अतः इसको चाय, कॉफी, रबड़ और कारडोमोम बागों के मालिकों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार की कृषि समाप्ति से कर हटा लिया गया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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