इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियाँ

इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियाँ | इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले प्रश्न

इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियाँ | इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले प्रश्न | Methods used in teaching history in Hindi | Questions used in teaching history in Hindi

इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियाँ

बालक सक्रिय होकर ज्ञानार्जन कर सके इस महत्त्वपूर्ण आवश्यकता का अनुभव करके आधुनिक शिक्षा-शास्त्रियों ने इतिहास शिक्षण में प्रयुक्त होने योग्य उपयोगी शिक्षण-रीतियाँ निर्धारित की हैं, जो अधोलिखित हैं :-

(1) कथन-प्रविधि (Narration Technique)

(2) अभ्यास-प्रविधि (Drill Technique)

(3) प्रश्न-प्रविधि (Questioning Technique)

(4) परीक्षा-प्रविधि (Examination Technique)

(5) अभिनय-प्रविधि (Dramatization Technique)

(1) कथन-प्रविधि –

शिक्षण प्रक्रिया में कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं जब कि शिक्षक को कपन रोति का प्रयोग करना पड़ता है, उदाहरणार्थ- जब छात्र निरंतर हो जाते हैं तब उसे इस रोति का सहारा लेना पड़ता है। इस रीति का मुख्य उद्देश्य छोत्रों को अप्रत्यक्ष वस्तु का ज्ञान कराना है। इसके द्वारा वर्णित वस्तु को सरल एवं सुगम रूप से बालकों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाता है । इतिहास के शिक्षण में इस रीति का उपयोग बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। इतिहास के शिक्षक को इसका प्रयोग बहुतायत से करना पड़ता है, परन्तु प्रत्येक अध्यापक इसका प्रयोग सफलता के साथ नहीं कर पाता। इसके सफल प्रयोग के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

  1. कथनों के बाहुल्य पर शिक्षक को प्रतिबन्ध लगाना चाहिए ।
  2. जो भी कथन प्रस्तुत किये जाएं, वे छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल हों।
  3. कथनों की परिभाषा एवं शैली बोधगम्य एवं सरल होनी चाहिए । भाषा का प्रयोग करते समय छात्रों के मानसिक स्तर एवं शब्द-ज्ञान का ध्यान रखना चाहिए ।
  4. कथन की विषय-वस्तु में श्रमबद्धता का ध्यान रखना चाहिए ।
  5. कथनों को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न उपकरणों का प्रयोग करते रहना चाहिए ।
  6. कथनों को करते समय छात्रों के अवधान का ध्यान रखना चाहिए। ये अधिक लम्बे न होने चाहिए ।
  7. कथन करते समय शिक्षक को प्रश्नोत्तर-रीति का भी प्रयोग करते रहना चाहिए ।

(2) अभ्यास-प्रविधि-

शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए अभ्यास-रीति बहुत लाभदायक है। यह रीति थार्नडाइक के अभ्यास नियम पर आधारित है। इस नियम के अनुसार बालक किसी तथ्य की जितनी बार आवृति करेगा, वह उतना ही स्थायी होगा। इतिहास-शिक्षण में इस रीति का प्रयोग किसी प्रकरण की रूपरेखा को ग्रहण करने, किसी प्रश्न के उत्तर को स्मरण करने, मानचित्र, समय-रेखा, समय-ग्राफ आदि का निर्माण करने के लिए कर सकते हैं। तिथियों एवं घटनाओं को स्मरण करने के हेतु इस रीति का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

(3) प्रश्न-प्रविधि –

इसे रीति एवं पद्धति- दोनों ही रूपों में प्रयोग में लाया जाता है। इतिहास-शिक्षण में इस रीति का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को प्रभावोत्पादक बनाया जाता है। प्रश्नों के मुख्य प्रयोजन इस प्रकार हैं-

  1. कार्यों के प्रति रुचि एवं कौतूहल उत्पन्न करना ।
  2. कार्यों के मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डालना।
  3. विचार प्रक्रिया को प्रोत्साहन प्रदान करना ।
  4. मौखिक रूप में अभिव्यंजना शक्ति को विकसित करना ।
  5. छात्रों की आवश्यकताओं, अभिरुचियों तथा तात्कालिक समस्याओं से अवगत होना ।
  6. छात्रों के दोषों तथा कठिनाइयों का पता लगाना ।
  7. वर्जित ज्ञान एवं उन्नति को मापना ।
  8. अन्वेषण तथा अनुसन्धान के लिए प्रोत्साहित करना ।

इतिहास-शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले प्रश्न –

[अ] प्रस्तावनात्मक प्रश्न- इन प्रश्नों का मुख्य उद्देश्य छात्रों के पूर्व ज्ञान को जाँच करना है। इनके द्वारा नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित किया जाता है, उदाहरणार्थ- “अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार” नामक प्रकरण में प्रस्तावनात्मक प्रश्न इस प्रकार पुछे जा सकते हैं

प्रश्न

  1. अशोक ने कलिंग राज्य पर क्यों आक्रमण किया ?
  2. कलिंग के युद्ध का क्या परिणाम हुआ ?
  3. अशोक ने भविष्य में युद्ध न करने का क्यों निश्चय किया ?
  4. कलिंग विजय के पश्चात् अशोक ने किस धर्म को स्वीकार किया ?

(इन प्रश्नों के बाद शिक्षक उद्देश्य कथन का निरूपण करेगा।)

[ब] विकासात्मक प्रश्न – इन प्रकार के प्रश्नों की सहायता से निर्धारित पाठ को विकसित किया जाता है; उदाहरणार्थ-“अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार” नामक प्रकरण में इस प्रकार के विकासात्मक प्रश्नों द्वारा पाठ का विकास किया जा सकता है :-

(गौतम बुद्ध की मूर्ति प्रस्तुत करके)

प्रश्न –

  1. यह मूर्ति किसकी है ?
  2. गौतम बुद्ध ने किस धर्म की स्थापना की ?
  3. बौद्ध धर्म के क्या सिद्धान्त थे ?
  4. बुद्धजी ने इस धर्म के प्रसार के लिए क्या किया ?

(इन प्रश्नों के उपरान्त शिक्षक अपने कथन द्वारा अशोक के प्रसार साधनों के बारे में बतायेगा तथा उनके प्रभाव से भी अवगत करायेगा ।)

[स] विचारोत्तेजक प्रश्न – इन प्रश्नों के द्वारा मस्तिष्क को विचारने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है; उदाहरणार्थ-“पानीपत के तृतीय युद्ध” नामक प्रकरण में प्रश्न इस प्रकार पूछे जा सकते हैं :-

प्रश्न 1 – ऐसी परिस्थिति में नजीबक्ष तथा मराठों के कैसे सम्बन्ध हो सकते थे ?

[द] पुनरावृत्ति प्रश्न – इनके द्वारा पाठ की आवृत्ति करायी जाती है । ऐसे प्रश्नों को प्रत्येक अन्विति की समाप्ति के बाद पूछा जाता है, उदाहरण के लिए, ‘चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन-प्रबन्ध’ नामक पाठ की विवेचना के उपरान्त निम्नलिखित प्रश्न किये जा सकते हैं :-

प्रश्न-

  1. चन्द्रगुप्त के राज्य में मन्त्रियों का क्या कार्य था ?
  2. मन्त्रियों की नियुक्ति कौन करता था ?
  3. राज्य की आय के मुख्य मुख्य साधन क्या थे ?
  4. राजा ने जन-कल्याण के लिए क्या कार्य किये ?
  5. चन्द्रगुप्त ने सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए साम्राज्य को कितने भागों में विभाजित किया था ?

[य] समस्यात्मक प्रश्न- इस प्रकार के प्रश्न पाठ के प्रारम्भ या मध्य में पूछे जा सकते हैं। इनके द्वारा छात्रों के समक्ष एक समस्या उत्पन्न कर दी जाती है जिससे छात्रों का मस्तिष्क उसके हल के लिए उत्प्रेरित हो जाता है; उदाहरणार्थ- मुहम्मद तुगलक को एक पागल बादशाह क्यों कहा जाता है ?

प्रश्न-रीति में ध्यान देने योग्य बातें निम्नलिखित हैं :-

  1. प्रश्न सरल तथा संक्षिप्त हों।
  2. उनमें अनिर्दिष्टता नहीं होनी चाहिए ।
  3. प्रश्नों की भाषा बालकों के मानसिक स्तर एवं शब्द-ज्ञान के अनुकूल हो ।
  4. प्रश्न अधिक लम्बे न हों।
  5. प्रश्नों के द्वारा बालक को तिन के लिए उत्प्रेरित किया जाय ।
  6. जिन शब्दों के उत्तर ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में आएँ उनका प्रयोग न किया जाय ।
  7. प्रतिध्वन्यात्मक प्रश्न न किये जायें।
  8. शिक्षक प्रश्न पूर्ण आत्मविश्वास के साथ करें ।
  9. प्रश्नों का दोहराना दोषपूर्ण है ।
  10. प्रश्नों में मनोवैज्ञानिक क्रम स्थापित किया जाना चाहिए ।
  11. प्रश्न ऐसे ढंग से किये जायें, जिससे उनके परिणामों की प्रभावोत्पादकता पर प्रत्यक्ष रूप से प्रकाश पड़ सके ।
  12. प्रश्न सम्पूर्ण कक्षा को सम्बोधित करके किये जाने चाहिए, जिससे समस्त छात्र उनके उत्तर को सोचने के लिए तत्पर हो सकें ।
  13. प्रश्नों का वितरण समस्त कक्षा में किया जाना चाहिए जिससे छात्रों का व्यक्तिगत सहयोग प्राप्त हो सके ।
  14. प्रश्न करने के उपरान्त छात्रों को उत्तर के विषय में सोचने के लिए समय दिया जाय ।

(4) परीक्षा प्रविधि

यह रीति पाठ्यक्रम के प्रत्येक विषय के शिक्षण में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके प्रयोग से बालकों के अर्जित ज्ञान की जाँच की जाती है कि उसने पठित वस्तु को किस सीमा तक ग्रहण कर लिया है। शिक्षक इसके प्रयोग में लिखित एवं मौखिक प्रश्नों की सहायता ले सकता है। इसके अतिरिक्त वह प्रायोगिक परीक्षा को भी प्रयोग में ला सकता है।

इतिहास-शिक्षण में इस रीति के प्रयोग को उपयोगी बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :-

  1. प्रश्नों में अधिकाधिक वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लायी जाय ।
  2. प्रश्न प्रस्तावित पाठों के अधिकाधिक क्षेत्र पर निर्धारित किये जाने चाहिए ।
  3. मौखिक परीक्षाओं की व्यवस्था की जाय ।
  4. परीक्षाओं द्वारा छात्रों को उनकी कठिनाइयों एवं अशुद्धियों से अवगत कराकर उनको दूर करने के लिए सुझाव प्रस्तुत किये जायें ।

(5) अभिनय प्रविधि –

शिक्षण में इस रीति का प्रयोग आधुनिक युग की देन है। इसके उपयोग से छात्रों की सृजनात्मक प्रवृत्तियों का विकास किया जाता है । इसकी महत्ता के विषय में एक विद्वान का मत है कि- “The drama has long been valued as an educational instrument particularly in the development of moral and social attitudes and ideas.”

इतिहास-शिक्षण में अभिनय का बहुत महत्त्व है तथा इसमें इसके प्रयोग के लिए बहुत अवसर है। इसमें छात्र क्रियाशील रहते हैं। इसके द्वारा बालकों को इन्द्रियों को शिक्षित एवं प्रफुल्लित किया जाता है। अभिनय के द्वारा कर्णेन्द्रिय, नेत्र तथा हाथों को शिक्षित किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसके द्वारा छात्रों में विषय ग्राह्यता, आत्मविश्वास तथा अभिव्यंजना-शक्ति को विकसित किया जाता है। इसके द्वारा उनकी लज्जाशील प्रवृत्ति एवं झिझक को दूर किया जाता है। इसके अतिरिक्त बालक बोलने की कला भी सीख लेते हैं। अभिनय के द्वारा बालकों में नैतिक एवं सामाजिक गुणों का विकास किया जाता है। अभिनय में बालक खेल के द्वारा शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसके प्रयोग से उनमें कल्पना-शक्ति एवं सहानुभूति का विकास किया जाता है। इसके द्वारा छोटी कक्षाओं में इतिहास को बड़े रोचक ढंग एवं सरलता से पढ़ाया जा सकता है, परन्तु भारतीय शिक्षालयों में निम्नलिखित कारणों से अभिनय का प्रयोग नहीं हो पाता-

  1. अभिनय कला के ज्ञान का अभाव ।
  2. ऐतिहासिक प्रसंगों की न्यूनता ।
  3. बार्थिक अभाव ।
  4. सम्वादों की समस्या के कारण।
  5. समय का अभाव ।
  6. अभिनयात्मक सामग्री का अभाव ।

भारतीय इतिहास में बहुत से ऐसे विषय हैं जिसके शिक्षण में अभिनय का प्रयोग किया जा सकता है. उदाहरणार्थ- महाकाव्य काल की घटनाएँ बुद्ध के जीवन- चरित्र की कुछ घटनाएं (गृह-त्याग, सारधी तथा बुद्ध का बार्तालाप आदि), सिकन्दर तथा पुरु की भेंट, चन्द्रगुप्त तथा चाणक्य, पृथ्वीराज तथा संयोगिता, राणाप्रताप के जीवन-चरित्र की घटनाएँ, शिवाजी के जीवन चरित्र की घटनाएँ, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन चरित्र की घटनाएँ आदि।

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