शिक्षाशास्त्र / Education

इतिहास – शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्री | मानचित्र | नमूने या प्रतिरूप | रेडियो प्रसारण | फिल्म

इतिहास – शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्री | मानचित्र | नमूने या प्रतिरूप | रेडियो प्रसारण | फिल्म | History – Audio-Visual Materials in Teaching in Hindi | Map in Hindi | Samples or models in Hindi | Radio broadcast in Hindi | Film in Hindi

इतिहास – शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्री

आधुनिक शिक्षाशास्त्री इस बात पर बल देते हैं कि बालक सक्रिय होकर ज्ञानार्जन करे। इसके लिए शिक्षक विभिन्न क्रियात्मक विधियों, रीतियों तथा साधनों को जुटाता है जिससे पाठ्य-वस्तु रोचक, स्पष्ट एवं सुबोध बन सके। सहायक सामग्री वह साधन है जिसके द्वारा किसी बिन्दु-विशेष को रोचक एवं सजीव बनाया जाता है । इतिहास के शिक्षक के पास इन साधनों का भण्डार है जिनके उपयोग से वह अपने विषय को वास्तविक एवं सजीव बना सकता है। इतिहास शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले सहायक साधनों को जाविस महोदय ने इस प्रकार वर्गीकृत किया है-

(अ) मौखिक-कहानी, दृष्टान्त या प्रसंग उद्धरण के रूप में।

(ब) चित्र, रेखाचित्र तथा प्रतिरूप या नमूने (Models)

(स) प्रतीकात्मक उपकरण- मानचित्र, समय रेखा, वंश-वृक्ष आदि ।

(द) भौतिक अवशेष ।

(य) स्थानीय इतिहास |

श्री आहलुवालिया ने श्रव्य-दृश्य सामग्री को निम्नकित ढंग से वर्गीकृत किया है-

(अ) रेखावित्रात्मक सामग्री (Graphic Aids) –

  1. फोटो, चित्र, फ्लैश कार्ड तथा अल्बम |
  2. रेखाकृति (Charts) तथा मानचित्र ।
  3. युद्ध-योजनाएं (Battle plans) |
  4. समय-रेखा (Time line) तथा रेखाचित्र (Graph) ।

(ब) प्रदर्शन बोर्ड (Display boards) –

  1.  
  2. श्यामपट
  3. फ्लेनल बोर्ड
  4. बुलेटिन बोर्ड ।

(स) त्रिआयामीय सामग्री (Three dimensional Aids ) –

  1. प्रतिरूप या नमूने
  2. प्रतिरूप दृश्यांकन (Diagrams)
  3. अवशेष (Relics)
  4. कठपुतली (Puppeth)
  5. झाँकियां

(द) प्रक्षेपण सामग्री (Projected Aids) —

  1. चलचित्र
  2. फिल्म- खण्ड
  3. स्लाइड्स
  4. एपिडायस्कोप

(य) श्रव्य उपकरण (Audio Aids ) –

  1. ग्रामोफोन
  2. टेपरिकार्डर
  3. रेडियो प्रसारण

(र) क्रियात्मक सामग्री (Activity Aids ) –

  1. ऐतिहासिक पर्यटन
  2. नाटकीकरण ।
  3. इतिहास अध्ययन परिषद्

उपर्युक्त वर्गीकरण के अन्तर्गत कियात्मकता को एक उपकरण के रूप में मानना उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है क्योंकि यह उपकरण न होकर शिक्षण की एक प्रविधि है। उपर्युक्त साधनों में से प्रमुख का विवेचन नीचे किया जा रहा है-

(1) मानचित्र (Maps) – इतिहास शिक्षण का एक ध्येय यह भी है कि बालकों को घटनाओं से सम्बन्धित स्थलों द्वारा सीमा का ज्ञान कराकर भौगोलिक परिस्थिति से परिचित कराया जाय । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मानचित्रों का प्रयोग बहुत आवश्यक है। इस प्रकार मानचित्रों की सहायता से छात्रों को स्थान-ज्ञान कराया जाता है । इतिहास शिक्षण में इस उपकरण का बहुत महत्त्व है। इसके अभाव में इतिहास के तथ्य हवा में रहते हैं। मानचित्रों के द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों का स्थानीयकरण किया जाता है। इतिहास के लिए तत्कालीन राजनैतिक मानचित्रों की आवश्यकता होती है। शिक्षक को मानचित्र में आवश्यक बातों को उचित स्थान पर प्रदर्शित करके छात्रों को दिखलाना चाहिए। उसको मुद्रित मानचित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए; क्योंकि उनमें बहुत-सी बातों को प्रदर्शित किया जाता है जिनका प्रस्तुत पाठ से कोई सम्बन्ध नहीं रहता। इसलिए उसे हस्तनिर्मित मानचित्र का उपयोग करना चाहिए। हेनरी जॉनसन ने मानचित्र के महत्त्व के विषय में कहा है कि “इति हास मानचित्रों के  द्वारा बनाया गया है और उनमें ही वह लिखित है।” मानचित्र का प्रयोग छात्रों से कराया जाय और साथ ही उनसे मानचित्रों का निर्माण भी कराया जाय । इतिहास का शिक्षण इस उपकरण का प्रयोग स्थानों, राज्यों की सीमाएं, साम्राज्य-विस्तार, युद्ध-स्थलों, राजधानियाँ, मागं आदि को प्रदर्शित करने के लिए कर सकता है।

सेकण्डरी स्कूलों के शिक्षकों के समुदाय ने इनके महत्व के विषय में इस प्रकार विचार प्रकट किए हैं

“The map is not merely an aid to history teaching, it is an essential, if much that is fundamental in our work is to be under- stood, Only through the use of maps can the area and relative position of political units be visualized and maps make it possible to indicate the development of states, the progress of military campaigns or of exploration, or the general distribution of religions and languages.”

(2) चित्र (Pictures) – इतिहास के नमूनों का बनाना तथा मिलना कठिन तथा व्ययसाध्य है। प्रत्येक वस्तु का नमूना (Model) न तो हम बना सकते हैं और न वह प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में इतिहास का शिक्षक चित्रों का सहारा लेकर उनके अभाव को दूर करके अपनी पाठ्य-वस्तु को रोचक एवं सजीव बना सकता है। जारविस के शब्दों में, “छोटो कक्षाओं के शिक्षण को रोचक बनाने के लिए शिक्षण सामग्री में अभिनयात्मक वृश्यों तथा नायकों के चरित्रों को रखना चाहिए। इसको रोचक बनाने के लिए इतिहास के शिक्षक को ऐतिहासिक चित्रों का उपयोग करना चाहिए। चित्रों के द्वारा वास्तविकता के सुन्दर स्वप्नों को प्रदर्शित किया जाय। ये स्थूलात्मक होने चाहिए। इनके प्रदर्शन से छात्रों में यह भावना विकसित की जाय कि इतिहास वास्तविक घटनाओं तथा व्यक्तियों से सम्बन्ध रखता है।” इतिहास में दीवार- चित्रों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। यह तभी हो सकता है जबकि शिक्षालय में इतिहास के लिए विशेष-कक्ष की व्यवस्था हो ।

इतिहास के शिक्षक को इनका उपयोग करते समय अधोलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :-

  1. चित्र प्रभावोत्पादक हों।
  2. चित्रों का प्रयोग बाहुल्यता के साथ न किया जाय ।
  3. चित्रों के माध्यम से जो विचार व्यक्त किये जायें, वे बालकों के मानसिक स्तर के अनुसार हों।
  4. चित्र उपयुक्त स्थान तथा आवश्यकतानुसार प्रदर्शित किये जायें।
  5. चित्रों का माकार कक्षा के आकार के अनुसार हो ।
  6. उच्च कक्षाओं में इनका उपयोग सीमित रखना चाहिए।
  7. चित्र स्पष्ट तथा शुद्ध होने चाहिए।
  8. चित्र टाँगते समय खड़खड़ाने का शब्द न हो ।
  9. चित्र कक्षा में उपयुक्त स्थान पर ही टांगे जायें जहाँ छात्रों को भी प्रकार दिखाई दे सकें।
  10. चित्र जादूगर के समान न प्रदर्शित किये जाने चाहिये वरन् शिक्षक उन पर प्रश्न करे तथा उन्हें देखने का अवसर प्रदान करे।
  11. पुनरावृत्ति पर विकासात्मक चित्र नहीं टंगे रहने चाहिए।

(3) नमूना (Model) – नमूना किसी वस्तु की किसी अनुपात में बनी हुई प्रतिमूर्ति होती है। इनक’ इतिहास शिक्षण में बहुत महत्व है, क्योंकि इनके द्वारा बालकों को मौलिकता का ज्ञान देने एवं वस्तु को वास्तविक बनाने में सहायता मिलती है। इनके प्रयोग से बालकों की निरीक्षणात्मक शक्ति को विकसित किया जा सकता है । इतिहास के शिक्षक को ऐतिहासिक वस्तुओं के नमूने छात्रों से निर्मित करवाने का प्रयत्न करना चाहिए। वह उनको मिट्टी तथा प्लास्टिक के बनवा सकता है। इन नमूनों को दो प्रकार से बनाया जा सकता- प्रथमतः मौलिक वस्तुओं के आधार पर तथा द्वितीय, ऐतिहासिक साहित्य के वर्णन के आधार पर। इतिहास का शिक्षक महान् व्यक्तियों, यन्त्रों, शस्त्रादि, किला, स्तम्भ, बर्तन, सिक्के, मुहरें, आभूषण आदि के नमूने प्रयोग में ला सकता है । ऐतिहासिक नमूनों में अधोलिखित गुण होने  चाहिए :-

  1. नमूनों में शुद्धता (Accuracy) होनी चाहिए ।
  2. इसका दूसरा गुण सरलता (Simplicity) है ।
  3. ऐतिहासिक नमूनों में उपयोगिता (Utility) का गुण होना चाहिए |

(4) चार्ट तथा रेखाकृति (Charts and Diagrams ) — इनके द्वारा इतिहास-शिक्षण को बालकों के लिए प्रभावशाली बनाया जा सकता है तथा कक्षा में ऐतिहासिक वातावरण निर्मित करने के हेतु बहुत ही उपयोगी है। शिक्षक को छात्रों से इनका निर्माण करवाना चाहिए। वह बने-बनाये भी प्रयोग में ला सकता है ।

मेडले तथा वुड (H. M. Medeley and H. G. Wood) का मत है, “The main use of time-chart is to provide a chronological frame- work within which events and developments may be recorded and to guard against the vagueness of time-sense which may result from teaching arranged, often necessarily, by ‘topics’ rather than by ‘reigns’. It is highly desirable that the pupils should have some sense of cause and effect, and of the inter-relation of events of various spheres, this can be achieved by the use of charts of various types.”htt

चार्टी के द्वारा महत्त्वपूर्ण तथ्यों का सारांश प्रदान करने में बहुत सहायता मिलती है । रेखाकृति शुद्धता तथा संक्षिप्तता प्रदर्शित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन है ।

(5) श्यामपट (Black Board) — श्यामपट शिक्षक का परम मित्र है। इतिहास शिक्षण में इस साधन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इतिहास का शिक्षक इसका उपयोग अधोलिखित बातों के लिए कर सकता है :-

  1. पाठ का सारांश देने के लिए।
  2. युद्ध योजना समझाने के हेतु ।
  3. रेखाचित्र, समय-रेखा आदि बनाने के हेतु ।
  4. लाक्षणिक चित्र, दिशाओं का ज्ञान कराने आदि के हेतु ।
  5. पाठ के प्रमुख नामों, तिथियों तथा तथ्यों को लिखने के हेतु ।

इस उपकरण का प्रयोग करते समय इतिहास के शिक्षक को अधोलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(i) इस पर जो कुछ लिखा जाय, वह शुद्ध तथा आकर्षक एवं स्पष्ट हो ।

(ii) श्यामपट लेख एक-सा हो ।

(iii) समय-तालिका, रेखाचित्र, लाक्षणिक चित्र आदि बनाते समय शुद्धता पर ध्यान दिया जाय ।

(iv) लिखते समय श्यामपट को ढक नहीं लेना चाहिए वरन् उस समय 45° के कोण पर खड़ा होकर लिखना चाहिए।

(6) रेडियो-ब्रॉड फास्ट ( Radio-Broadcasts ) – ब्राडकास्टिंग इतिहास- शिक्षक के लिए सहायक सामग्री प्रस्तुत करती है जिसको इतिहास के शिक्षक को नहीं छोड़ना चाहिए अर्थात् उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। एक अनुभवी शिक्षक ने इन बडकास्टों के विषय में कहा है कि — They are sound in scholarship and often make available the fruit of much research into the ways of history that is beyond resources of the practising seven-periods- a-day master.

इंगलैंड के सेकण्डरी स्कूल के शिक्षकों के समुदाय ने इस सम्बन्ध में अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये हैं-

“History broadcasts are aids to lessons, and are not meant to be substitutes for real lessons. They lack the interplay between master and boys that occurs in the class-room the adaptation to the pace of the individual class, to pupil’s previous knowledge and circumstances, the constant recourse to question and answer and all the other immediate contacts and reactions that only the teacher present in the flesh can give……..They offer the teacher himself as well as the form (class) a change, a chance to bear material person- ted in a different way, to bear someone else trying to do part of his job, perhaps better, perhaps worse.”

रेडियो के द्वारा विभिन्न प्रकार के स्वर प्रदान किये जा सकते हैं। अभिनयात्मक दृश्य, जो वास्तविक परिस्थितियों से परिपूर्ण होते हैं, प्रदान किये जा सकते हैं। इतिहास में रेडियो तथा ऐतिहासिक विषयों पर की गई ब्राडकास्ट अत्यन्त लामदायक है। हमारे शिक्षालयों में रेडियो की व्यवस्था की जानी चाहिए। आजकल अखिल भारतीय रेडियो छात्रों के लिए स्कूलों का प्रोग्राम प्रदान करने लगा है जिसमें छात्र शिक्षक तथा विभिन्न विद्वान् भाग लेते हैं ।

(7) ग्रोमोफोन- इसका प्रयोग मुख्य रूप से स्थानीय इतिहास के शिक्षण के हेतु किया जा सकता है। प्राचीन कथाओं तथा विरुदावलियों के रिकार्डों के द्वारा राष्ट्रीय इतिहास के शिक्षण को भी रोचक बनाया जा सकता है।

(8) टेप रिकार्डर- इस उपकरण के द्वारा रेडियो की सीमाओं को दूर करने में सहयोग मिलता है। रेडियो पर कार्यक्रम निर्धारित समय पर आते हैं। रात्रि के समय होने वाले कार्यक्रम शिक्षालयों में उपयोगी नहीं बनाये जा सकते हैं। इनका प्रयोग करने के लिए हमें टेप रेकार्डर का सहारा लेना पड़ता है। इनके द्वारा उन कार्यक्रमों को टेप किया जा सकता है तथा उनका उपयोग कक्षा शिक्षण में आवश्यकतानुसार किया जा सकता है।

(9) चलचित्र तथा फिल्म खण्ड- (i) माइकेलिस का विचार है, “श्रव्य- दृश्य सामग्री के उपयोग से बालकों में धारणाएं, अभिवृत्तियाँ, अनुभूतियाँ तथा रुचियाँ विकसित की जा सकती हैं। इनके द्वारा छात्रों को वर्ग-योजना बनाने, स्वस्थ चिन्तन तथा विचार प्रक्रिया, वाद-विवाद तथा तर्कशक्ति के प्रयोग के लिए मूतं या स्थूल आधार प्रदान किये जाते हैं।”

(ii) एडीसन (Edison) का मत है, “Films are inevitable as practically the sole teaching Method.”

कुछ लोगों का विचार है कि फिल्म हमारी समस्त शिक्षण समस्याओं का हल है। इस कारण कुछ प्रबन्धक यहाँ तक कहते हैं कि पुस्तकालय सम्बन्धी जो सुविधाएँ छात्रों को प्रदान की जाती हैं, उनके स्थान पर फिल्मों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए अर्थात् जो घन पुस्तकालय सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान करने के लिए व्यय किया जाता है, वह इन पर व्यय किया जाय। इनके ठीक प्रयोग से बहुत से लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

इंगलैण्ड के सेकण्डरी स्कूलों के इतिहास शिक्षकों के समुदाय ने इन लाभों के विषय में इस प्रकार विचार प्रकट किये हैं-“They ( Films) may stimulate imagination, clothe abstract generalization with realistic detail show the relation of a number of previously isolated facts, point of con- trast between conditions of life in various ages, and provoke discussions. They may be particularly useful in creating interest in a new topic among pupils who do not readily respond to verbal exposition from either text book or teacher.”

इतिहास-शिक्षण में निम्नलिखित बातों के प्रतिपादन के लिए इनका प्रयोग किया जा सकता है :-

  1. विभिन्न व्यवसायों की उत्पत्ति के क्रम का ज्ञान देने के लिए।
  2. विभिन्न कालों के मनुष्यों के जीवन की दशाओं से परिचित कराने के लिए ।
  3. विभिन्न कालों की स्थापत्य कला, चित्रकला आदि का ज्ञान देने के लिए।
  4. ऐतिहासिक वातावरण का निर्माण करने के हेतु जिससे पाठ के लिए उनकी रुचि जाग्रत हो सके ।
  5. ऐतिहासिक जीवन-चरित्रों की फिल्मों के द्वारा स्वदेश-प्रेम एवं देश-भक्ति का विकास एवं चरित्र का निर्माण करने के लिए।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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