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बुद्धि | बुद्धि का अर्थ | बुद्धि की परिभाषा | बुद्धि का स्वरूप | बुद्धि के प्रकार | बुद्धि के सिद्धान्त | बुद्धि की संरचना | बुद्धि और ज्ञान में अन्तर

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बुद्धि

सृष्टि के समस्त प्राणियों में मानव का स्थान सर्वोपरि है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर मात्र यही एक ऐसा जीव है जिसने न केवल अपने आपको पर्यावरणीय शक्तियों और परिस्थितियों के अनुरूप और अनुकूल ढालने में सफलता प्राप्त की है बल्कि उन पर अधिकार और आधिपत्य स्थापित कर उन्हें स्वयं के जीवन को सुखी, समृद्ध और सुविधापूर्ण बनाने के लिए उपयोग और प्रयोग करने का दुः साध्य और दुष्कर कार्य भी किया है। मानव की जिस शक्ति और क्षमता ने इस कार्य में उसे सफलता दिलाई है उसे “बुद्धि (Intelligence) मेघा, प्रज्ञा (Intellect), विवेक (Wisdom) आदि नामों से जाना जाता है।” बुद्धि प्राणी का वह शील गुण (trait) उसकी वह योग्यता और क्षमता है जिसके प्रतिफल न केवल वह जगत के अन्य प्राणियों की तुलना में विशिष्ट और भिन्न है, उनमें सर्वश्रेष्ठ है बल्कि जो मानव-मानव के बीच पायी जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नता का भी एक मुख्य कारक एवं आधार है। व्यक्ति को अपने तथा दूसरों के जीवन के अनुभवों का सफल उपयोग कर समस्याओं का हल प्राप्त कर लेने की क्षमता, विभिन्न कार्यों और कौशलों को सीखने और योग्यताओं को अर्जित कर पाने की शक्ति, भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के बीच विभिन्न क्रिया-कलापों को करने के ढंग एवं कुशलता में पाये जाने वाला अंतर उसको ‘बुद्धि’ के स्तर और क्षमता को परिचायक होती है। यूँ तो कुछ अन्य प्राणी भी बुद्धि से युक्त होते हैं परन्तु मनुष्य की तुलना में उनका स्तर अत्यन्त भिन्न है।

बुद्धि का अर्थ

बुद्धि क्या है? बुद्धि मनुष्य को मानसिक योग्यता है। जिससे मनुष्य अपने सभी कार्यों को पूरा करने में सहायता लेता है। बुद्धि शब्द में बुद् और धि दो शब्द मिले हैं। बुद् का अर्थ ऊपर या बाहर‌ आना होता है और धि का अर्थ सन्तुष्ट करना होता है। अब दोनों शब्दों को मिला कर बुद्धि का अर्थ होता है मनुष्य की क्षमता जो बाहर आये अर्थात् विभिन्न क्रियाओं में प्रकट हो और इसके फलस्वरूप वह अपने कार्य में सन्तुष्ट हो। बुद्धि व्यक्ति की जन्मजात मानसिक योग्यता है जो विभिन्न क्रियाओं को करने में प्रयुक्त होती है और तद्नुसार वह क्रिया में सफल होता है।

अंग्रेजी में बुद्धि के लिए प्रयुक्त शब्दों का अर्थ बोध करना, समझाना अथवा आन्तरिक चुनाव करना है। इससे स्पष्ट है कि बुद्धि में, जब कोई चीजें सामने होती हैं, तो उसे चुनकर अपना काम पूरा करने की क्षमता और योग्यता होती है। बुद्धि का अर्थ है मन से सम्बन्ध करने वाली क्रिया। यह एक प्रकार से मानसिक क्रिया हुई। परन्तु योग्यता के अर्थ में इसे प्रज्ञात्मक कौशल कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि बुद्धि मनुष्य की प्रज्ञा को अच्छी तरह से प्रयोग करने की योग्यता क्षमता है।

बुद्धि की परिभाषा

(क) प्रो० बिने- अच्छी तरह निर्णय करने, अच्छी तरह बोध करने और अच्छी तरह तर्क करने की योग्यता बुद्धि है। प्रो० बर्ट ने भी इस परिभाषा का समर्थन किया है।

(ख) प्रो० स्टर्न- बुद्धि एक सामान्य क्षमता है जो व्यक्ति को चैतन्य रूप से अपनो विचार प्रक्रिया को नवीन आवश्यकताओं से समायोजित करने में सहायता करती है।

(ग) प्रो० वेल्स- बुद्धि का अर्थ उस शक्ति से है जिसके द्वारा हम नवीन परिस्थितियों में अधिक उत्तम रूप से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार के प्रतिदशों को पुनसंगठित करते हैं।

(घ) प्रो० स्पियरमैन- बुद्धि मनुष्य की सामान्य एवं विशेष कारकों से युक्त योग्यता है।

(ङ) प्रो० बेक्सलमैन- उद्देश्यपूर्ण कार्य करने, तर्कयुक्त चिन्तन करने और वातावरण में प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार करने की सम्पूर्ण या सार्वभौम क्षमता बुद्धि है।

(च) प्रो० स्टाडॉर्ड- बुद्धि वह योग्यता है जिससे (1) कठिनाई, (2) जटिलता, (3) अमूर्त्तता (4) मितव्ययिता, (5) उद्देश्य के प्रति अनुकूलता, (6) सामाजिक मूल्य, (7) मौलिकताओं के उद्गमन की विशेषताओं के साथ क्रिया करना होता है तथा उन दशाओं के अन्तर्गत ऐसी क्रियाओं को करना जारी रखना होता है जो शक्ति के केन्द्रीकरण तथा शक्तियों के प्रतिरोध की माँग करती हैं।

बुद्धि का स्वरूप

बुद्धि वह जन्मजात योग्यता है जो कई योग्यताओं का एक समन्वित रूप है। इसके आधार पर मनुष्य सीखता है, अनुभव ग्रहण करता है, सभी परिस्थितियों में समायोजन करता है, समस्याओं को सुलझाता है और उन पर चिन्तन-मनन, तर्क, निर्णय करता है। बुद्धि के द्वारा व्यक्ति सभी ज्ञानात्मक एवं कौशल सम्बन्धी क्रियाओं को सरलतापूर्वक करने में समर्थ होता है। बुद्धि के द्वारा मानसिक विकास होता है। बुद्धि के बल पर मनुष्य जीवन में सफल होता है और आगे बढ़ता है। इस प्रकार बुद्धि का स्वरूप मिश्रित, जाटल, सूक्ष्म कहा जा सकता है। –

बुद्धि के प्रकार (Kinds of Intelligence)

थार्नडाइक ने बुद्धि को कई शक्तियों का समूह बनाकर उसके तीन प्रकार बताये हैं-

  1. अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence), 2. समाजिक बुद्धि (Social Intelligence), में 3. यान्त्रिक बुद्धि (Motor of Mechanical Intelligence)।

1. अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)— अमूर्त बुद्धि दूसरे शब्दों में पुस्तकीय ज्ञान के प्रति अपने को व्यवस्थित करने की योग्यता है। यह बुद्धि विद्यालय के वातावरण में अधिक असफल सिद्ध होती है। इस बुद्धि परीक्षा द्वारा यह आसानी से बताया जा सकता है कि बालक में कौन-कौन सी विशिष्ट योग्यताएँ हैं। अमूर्त बुद्धि स्वयं अपने को ज्ञानोपार्जन के प्रति रुझान, पढ़ने, लिखने और शब्दों एवं प्रतीकों के रूप में आने वाली समस्याओं को हल करने के द्वारा अपने को अभिव्यक्त करती है। जिस व्यक्ति में अमूर्त बुद्धि होती है वह विद्यालय के ज्ञानोपार्जन में अधिक सफल होता है।

2. सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)- समाज के अनुकूल अपने आपको व्यवस्थित करने की योग्यता ही समाजिक बुद्धि कहलाती है। इस बुद्धि के द्वारा दूसरों को प्रभावित किया जा सकता है। दूसरों के साथ अच्छा आचरण करने, मिल-जुलकर रहने, उनके साथ विकास कार्यों में भाग लेने और सामाजिक कार्यों में भाग लेने की योग्यता हो सामाजिक बुद्धि है। सामाजिक बुद्धि के अभाव में व्यक्ति सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। जीवन की सफलता में सामाजिक बुद्धि का अभाव है तो व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में सफलता प्राप्त नहीं कर सकेगा। वैसे अमूर्त बुद्धि और सामाजिक बुद्धि का विकास एक साथ ही होता है।

3. यान्त्रिक बुद्धि (Motor of Mechanical Intelligence) – यान्त्रिक बुद्धि के द्वारा व्यक्ति अपने को यन्त्रों एवं मशीनों के साथ अनुकूलन करने में सफल होता है अतः वह यन्त्रों एवं मशीनों के साथ अनुकूलन करने की योग्यता रखता है। यदि बालक में साइकिल को ठीक करने, घड़ी बनाने, यान्त्रिक औजारों का ठीक प्रयोग करने की योग्यता है तो यह कहा जायेगा कि उसमें तान्त्रिक बुद्धि है। यदि व्यक्ति में यान्त्रिक बुद्धि का अभाव है तो व समय-समय पर छोटी-छोटी बातों में अर्थात् छोटो-छोटी यांत्रिक गड़बड़ी पैदा हो जाने पर वह बाजार ठीक कराने को दौड़ा जाता है।

बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

बुद्धि के मुतया चार सिद्धान्त है जिनको प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। वे इस प्रकार हैं-

  1. एक खण्ड सिद्धान्त (Uni-factor Theory), 2. द्विखण्ड सिद्धान्त (Two factor Theory), 3. त्रिखण्ड सिद्धान्त (Thrce factor Theory) 4. बहुखण्ड सिद्धान्त (Multi factor Theory) ।

1. एक खण्ड सिद्धान्त (Uni-factor Theory)- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बिने, टरमैन, और सार्न हैं। इनके विचार से बुद्धि एक पूर्ण खण्ड है। इसको और छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित किया जा सकता अर्थात् बुद्धि अविभाज्य है। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि विभिन्न स्वतन्त्र प्रभावों की एक पूर्ण इकाई के रूप में अभिव्यक्त करने की योग्यता ही बुद्धि है अथवा विभिन्न भागो को पूर्ण बनाने की योग्यता हो बुद्धि है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों के अनुसार सम्पूर्ण बुद्धि एक समय में सक्रिय होकर हो एक प्रकार का कार्य सम्पन्न करती है। लेकिन इस सिद्धान्त की आलोचना हुई है क्योंकि योग्यता की विभिन्न परीक्षाओं में कोई भी पूर्ण आपसी सम्बन्ध नहीं होता है अतः कोई भी ऐसी योग्यता खण्ड नहीं हो सकता जिसे हम बुद्धि कह सकें क्योंकि अलग-अलग प्रकार की बुद्धि परीक्षा की जाती हैं।

2. द्विखण्ड सिद्धान्त (Twe factor Theory)- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन हैं। इनके अनुसार बुद्धि दो खण्ड़ों से मिलकर बनी है।

(अ) सामान्य बौद्धिक खण्ड, (ब) अनेक विशिष्ट खण्ड।

(अ) सामान्य खण्ड (General Factor) – भानव जीवन के सभी कार्यों में भाग लेता

 है। इसको सामान्य खण्ड (General Factor) कहते हैं भिन्न-भिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करने में सामान्य खण्ड की सहायता देता है। यह खण्ड सभी लोगों को जन्म से हो प्राप्त होता है।

(ब) विशिष्ट खण्ड (Specific Factor)— को सुविधा के लिए Specific Factor भी कहते हैं।

किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए विशिष्ट खण्ड की आवश्यकता पड़ती है। जैसे किसी कौशल, कला या शिल्प की सिद्धहस्तता विशिष्ट खण्ड द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। सभी प्रकार के कार्यों को करने में तत्सम्बन्धी एक विशिष्ट खण्ड ‘S’ की आवश्यकता पड़ती है जबकि सभी कार्यों को करने के लिए सामान्य खण्ड ‘G’ की आवश्यकता पड़ती है।

  1. त्रिखण्ड सिद्धान्त (Three-factor Theory)- यह सिद्धान्त बताता है कि बुद्धि के तीन खण्ड हैं। स्पीयरमैन महोदय ने अपने ही द्विखण्ड सिद्धान्त में ‘G’ और ‘S’ खण्डों के साथ सामूहिक खण्ड को जोड़ दिया है। यहो ‘S’ और समूह खण्ड मिलकर तीन खण्ड हो जाते हैं जिनके आधार पर ही यह त्रि-खण्ड सिद्धान्त से बना है। इस सिद्धान्त की भी आलोचना की गयी।
  2. बहुखण्ड सिद्धान्त (Multi-factor Theory) – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक हैड्डन महोदय के अनुसार बुद्धि में उतनी शक्तियाँ होती हैं जितनी कि व्यक्ति की क्रियायें हो सकती हैं। थ्रस्टीन के अनुसार बुद्धि 9 मानसिक योग्यताओं से मिलकर बनी है वे इस प्रकार हैं-

(1) दृश्य योग्यता (Visual Ability), (2) प्रत्यक्षिक योग्यता (Perceptual Ability), (3) संख्यात्मक योग्यता (Numeriacal Ability), (4) तर्क विषयक अथवा मौखिक योग्यता (Logical or Verbal Relational Ability) (5) शब्दों के प्रयोग में धारा प्रवाहित (Fluency with Words), (6) स्मृति (Menory), (7) आगमन योग्यता (Inductive Ability), (8) निगमन योग्यता (Deductive Ability) (9) समस्या को हल करने पर नियंत्रण की योग्यता (Ability to restrict the solution of Problem) । थ्रस्टीन के अनुसार किसी विशेष कार्य को करने में उपर्युक्त 9 योग्यताओं के संयोजन की आवश्यकता पड़ती है।

बुद्धि की संरचना

गिलफर्ड (Guilford) ने बुद्धि की संरचना का त्रिविधीय प्रतिमान (मॉडल) प्रस्तुत किया। इस‌ मॉडल के अनुसार बुद्धि की संरचना तीन विभाओं से मिलकर बनी हैं ये तीन विभायें हैं- क्रियाएँ (Operation), सामग्री (Content) तथा परिणाम (Product) : गिलफर्ड के अनुसार वे विभायें एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं तथा प्रत्येक मानसिक कार्य किसी एक क्रिया, एक सामग्री तथा एक परिणाम से युक्त होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार क्रियायें पाँच प्रकार की होती हैं-(1) ज्ञान (Cognition) (2) स्मृति (Memory) (3) परम्परागत चिन्तन (Convergent thinking) (4) अपरम्परागत चिन्तन (Divergent thinking) एवं (5) मूल्यांकन (Evaluation)। सामग्री का भी उन्होंने चार वर्ग बनाया है, (1) आंकिक (Figural) (2) सांकेतिक (Symbolic), (3) शाब्दिक (Semantic) तथा (4) व्यावहारिक (Behavioural) । परिणाम भी छ: प्रकार के बताए गए हैं- (1) इकाई (Units), (2) वर्ग (Classes), (3) सम्बन्ध (Relations), (4) प्रणाली (Systems), (5) प्रत्यावर्तन (Transformations) तथा (6) निहितार्थ (Implications)। इस प्रकार गिलफर्ड द्वारा दिया गया मॉडल 5x4x6-120 खण्डों या मानसिक क्रियाओं को व्यक्त करता है।

पदानुक्रमिक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बर्ट (Burt) एवं वर्नन (Vernon) हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न मानसिक क्रियाओं में एक अनुक्रम रहता है। इनके अनुसार प्रत्येक मानसिक क्रिया को चार स्तरों या पदों में बाँटा जा सकता है। ये स्तर हैं- (1) संवेदना स्तर (2) प्रत्यक्षीकरण स्तर (3) सम्बन्धात्मक स्तर तथा (4) संज्ञानात्मक स्तर। ये पद क्रमशः उच्चतर मानसिक क्रियाओं को प्रकट करते हैं। संवेदना का स्तर सबसे नीचे होता है तथा इसमें साधारणशारीरिक क्रियायें आती हैं। प्रत्यक्षीकरण का स्तर संवेदना के स्तर से ऊँचा होता है। इसमें प्रत्यक्षीकरण होता है। इसके बाद सम्बन्धात्मक स्तर आता है। इसके अन्तर्गत स्मरण एवं आदत निर्माण जैसी मानसिक क्रियायें आती हैं। अन्तिम स्तर में परिणाम तथा अनुप्रयोग जैसी क्रियायें आती हैं।

यांत्रिक बुद्धि- यंत्र के साथ और यंत्र की तरह काम करने में यांत्रिक बुद्धि पायी जाती है। मोटर चालक, इंजिन चालक, अन्य सवारियों के चालक इसी बुद्धि से काम करते पाये जाते हैं और उनमें यंत्र की तरह काम करने की आदत भी पायी जाती है। अतएव यहाँ हम यांत्रिक बुद्धि ही पाते हैं। रटन्त क्रिया भी यांत्रिक बुद्धि से सम्बन्धित होती है। क्रमबद्ध रूप में कार्य करने में भी यांत्रिक बुद्धि होती है जैसे दफ्तर में 10 बजे से 4 बजे तक काम करना, विद्यालय में 10 बजे से 4 बजे तक पढाई में लगे रहना भी यांत्रिक बुद्धि को बताता है। दैनिक समय सारिणी का अनुगमन यांत्रिक बुद्धि को बताता है।

बुद्धि और ज्ञान में अन्तर

(Difference between Intelligence and Knowledge)

सामान्यतः लोग बुद्धि और ज्ञान को समानार्थी समझते हैं लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इनमें काफी भेद है जो निम्नलिखित हैं-

  1. बुद्धि और ज्ञान में मूलभूत अन्तर यह है कि बुद्धि जन्मजात होती है जबकि ज्ञान अर्जित की जाती है।
  2. बुद्धि को स्थिर माना जाता है जबकि ज्ञान में निरन्तर वृद्धि हो सकती है।
  3. यह आवश्यक नहीं कि व्यक्ति के बुद्धिमान होने पर उसमें ज्ञान है। इसके विपरीत यह भी आवश्यक नहीं कि ज्ञानी व्यक्ति भी बुद्धिमान हो।
  4. किसी समस्या के समाधान में ज्ञान की अपेक्षा बुद्धि अधिक सहायक होती है।
  5. बुद्धि का क्षेत्र व्यापक होता है जबकि ज्ञान का क्षेत्र सीमित होता है।
  6. बुद्धिमान व्यक्ति समस्या का समाधान अन्तर्दन्द्र के द्वारा करता है जबकि ज्ञान में प्रयत्न एवं भूल का सहारा लेना पड़ता है।
  7. ज्ञान को वातावरण प्रभावित करता है जबकि बुद्धि में ऐसा नहीं होता।
  8. रॉस के शब्दों में-“बुद्धि एक लक्ष्य है और ज्ञान लक्ष्य तक पहुँचने का साधन।”

“Wisdom is the goal and the knowledge only the means of reaching it.”  -Rose

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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