शिक्षाशास्त्र / Education

ऐतिहासिक स्थानों का पर्यटन या भ्रमण | समय-ज्ञान का विकास

ऐतिहासिक स्थानों का पर्यटन या भ्रमण | समय-ज्ञान का विकास | Tourism or tour of historical places in Hindi | Development of timing in Hindi

(अ) ऐतिहासिक स्थानों का भ्रमण –

शिक्षा की प्रगतिशील विचारधारा ने इतिहास की महत्ता को समझा और इसे सजीव एवं वास्तविक बनाने के लिए प्रयास किया। इसको वास्तविक बनाने के हेतु इसके शिक्षण में विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्रियों का उपयोग किया जाने लगा। इतिहास शिक्षण को सजीव एवं सरल बनाने के लिए ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। स्थानीय इतिहास को समझने के लिए भ्रमण अत्यन्त आवश्यक है। एक अनुभवी शिक्षक का कहना है कि “Historical Excursions can be the gate-way to that imaginative grasp of past time which is the beginning of historical understanding.” इतिहास के शिक्षक को पर्यटन के लिए छात्रों को बाहर ले जाकर स्थानीय या यदि सम्भव हो सके तो दूर के खण्डहर, प्रसिद्ध भवन, स्मारक, मकबरे, किले आदि को दिखाना चाहिए और बताना चाहिए कि यह उन लोगों की सभ्यता एवं उन्नति का परिणाम है कि इतना समय व्यतीत होने पर भी ये इसी अंश या किसी अंश तक गिरी हुई दशा में खड़ी हैं। जब छात्र इन ऐतिहासिक स्मारकों का स्वयं अवलोकन करेंगे तो वे अपने पूर्वजों की महत्ता को समझकर उस पर गर्व कर सकेंगे। इस प्रकार ये ऐतिहासिक अवशेष छात्रों को अतीत काल के समझने में सहायता करेंगे । इस प्रकार इतिहास सजीव एवं वास्तविक विषय हो जायेगा ।

(ब) समय-ज्ञान का विकास –

जब ‘समय’ शब्दको प्रयोग में लाते हैं तब हमारा अभिप्राय किसी निश्चित बिन्दु से होता है। समय एक भावनात्मक वस्तु है जो समझने तथा अनुभव के योग्य है; परन्तु वह देखने के योग्य नहीं है। समय अपने में पूर्ण नहीं है; क्योंकि हम इसके विषय में दूसरी घटनाओं के अभाव में कुछ नहीं कह सकते ।

प्रो० घाटे के अनुसार, “समय-ज्ञान यह शक्ति है जिसकी सहायता से हम जीवन एवं क्रियाशीलता का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु यह तमी सम्भव हो सकता है जबकि जोवन तथा क्रियाशीलता का सम्बन्ध घटनाओं से हो ।

समय की तिथियों का तभी महत्त्व है जब वे हमें अतीत का आभास करने में सहायता प्रदान करती हैं। समय-ज्ञान सम्बन्धात्मक है। इस सम्बन्ध को समझने के लिए उसके तत्वों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। ये तत्व इस प्रकार हैं :-

(i) स्थापन (Location)

(ii) समय की दूरी (Distance)

(iii) समय की अवधि (Duration)

(i) स्थापना – इसका अर्थ तिथियों को घटनाओं से सम्बन्धित करना है। यह कार्य इतिहास की आवश्यकता के अनुकूल प्रारम्भिक है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि समय ज्ञान के विकास में स्थापना मौलिक वस्तु है।

(ii) समय की दूरी – दूरी का अर्थ समय के विस्तार से है जो कि ऐतिहासिक व्यक्तियों, महापुरुषों, घटनाओं तथा हमारे में होती हैं; उदाहरणार्थ- जौरंगजेब की मृत्यु सन् 1707 ई० में हुई। प्रथम तो 1707 का कोई महत्त्व नहीं है। जब इस तिथि को हम घटना से सम्बन्धित कर देते हैं तब हमारे लिए उसका महत्त्व हो जाता है लेकिन 1707 ई० की इस घटना को रट लेने से समय का ज्ञान नहीं हो पाता। जब हम यह कहते हैं कि आज से 282 वर्ष पूर्व उसकी मृत्यु हुई थी, तो इससे वे इस तिथि को सुगमता से ग्रहण कर लेते हैं। 282 वर्ष का अन्तर समय की दूरी या विस्तार कहलायेगा ।

(iii) समय की अवधि – ऐतिहासिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है। समय की अवधि की सहायता से हम अपने निर्णय का सन्तुलन कर सकते हैं जब कोई घटना घटित होती है तो उसकी भूमिका कुछ पहले से तैयार होती है और उसका प्रभाव कुछ समय बाद तक रहता है जब तक उस घटना का समाज पर प्रभाव रहता है, उसको घटना की अवधि कहते हैं, उदाहरणार्थ- ‘प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 ई० में हुआ परन्तु उस संग्राम की अग्नि पहले से घघक रही थी। इस अवधि के पश्चात् भी वर्षों तक उसका प्रभाव विद्यमान रहा। इस संग्राम के पहले तथा बाद के प्रभाव के समय को संग्राम काल कहेंगे ।

समय की अवधि की सहायता से हम सरलता से कहते हैं कि अमुक काल या अवधि में इतनी उन्नति या अवनति हुई।

इतिहास का शिक्षक अधोलिखित साधनों की सहायता से छात्रों में समय- ज्ञान विकसित कर सकता है :-

(i) समय-चार्ट (Time-Chart)

(ii) समय-रेखा (Time Line)

(iii) समय-ग्राफ (Time-Graph)

(i) समय-चार्ट – छोटी कक्षाओं में चित्रात्मक समय-चार्ट (Pictorial time Chart) तथा Panorama Chart की सहायता से समय-ज्ञान विकसित किया जा सकता है। चित्रात्मक समय-चार्ट में जिस वंश का चार्ट बनाया जाता है, उसमें उसके राजाओं के चित्रों को प्रदर्शित किया जाता है। पनोरमा चार्ट में भी चित्रों का प्रयोग किया जाता है, परन्तु इसमें हम 100 वर्ष को एक मुख्य घटना के चित्र  से प्रदर्शित करते हैं। बड़ी कक्षाओं में तुलनात्मक समय-चाटों का प्रयोग किया जा सकता है। जिन चार्टी में कई प्रकार की घटनाओं को पृथक्-पृथक् विभागों में प्रदशित किया जाय, उन्हें ‘Composite Time-Chart’ कहते हैं। इनका प्रयोग भी उच्च कक्षाओं में किया जाय ।

(ii) समय-रेखा– यह समय-ज्ञान विकसित करने के लिए सरल एवं प्रभावशाली साधन है । काल-क्रम के अनुसार तिथियों को प्रस्तुत करने के लिये हमें समय- रेखा की आवश्यकता होती है। समय-रेखा बनाने के लिए पैमाना शुद्ध एवं एक-सा ग्रहण करना चाहिए। तिथि का चयन सतर्कता से किया जाय। ऐसी तिथियों को चुना जाय जो कि महत्त्वपूर्ण तथा समाज में सामंजस्य स्थापित करने में उसका पूर्ण हाथ हो ।

(iii) समय-ग्राफ– साम्राज्यों या विचारों के उत्थान-पतन को ग्राफ चार्ट (Graphic Chart) में दिखाया जा सकता है। इनका उपयोग उच्च कक्षाओं के लिए करना चाहिए। इनके द्वारा घटनाओं का काल सम्बन्ध स्पष्ट होता है। तुलनात्मक समय-ग्राफों का भी प्रयोग किया जा सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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