शिक्षाशास्त्र / Education

सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त की शैक्षणिक उपयोगिता | Educational Implications of Theory of Operant Conditioning in Hindi

सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त की शैक्षणिक उपयोगिता | Educational Implications of Theory of Operant Conditioning in Hindi

सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त रचनात्मक उपयोग की दृष्टि से शैक्षणिक जगत् में काफी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। शैक्षणिक उपयोग के संदर्भ में मोटे तौर पर कुछ निम्न बातें अच्छी तरह कही जा सकती है-

  1. सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त अच्छे परिणामों की दृष्टि से एक अध्यापक से यह अपेक्षा करता है कि वह सीखने की प्रक्रिया और परिस्थितियों को इस प्रकार नियंत्रित और आयोजित करें कि सीखने वाला उचित पुनर्बलन द्वारा निरन्तर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित होता रहे तथा उसे सीखने में कम से कम असफलता और निराशा का सामना करना पड़े।
  2. सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त का उपयोग व्यवहार परिमार्जन (Behaviour Modification) कार्य में बहुत अच्छी तरह से किया जा सकता है। जिस बच्चे के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाना है उसके बारे में पहले तो यह पता लगाया जाना चाहिए कि उसके लिए क्या कुछ एक अच्छे पुनर्बलन का कार्य कर सकता है। जैसे ही अपेक्षित व्यवहार की ओर बच्चे के कदम पड़ें, तुरन्त ही उपयुक्त पुनर्बलन द्वारा इस व्यवहार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे द्वारा अपेक्षित व्यवहार की पुनरावृत्ति अवश्य होगी। इसे पुनर्बलन दिया जायेगा। परिणामस्वरूप बच्चा अपेक्षित व्यवहार की ओर तेज़ी से अग्रसर होगा और पुनर्बलन के सतुलित उपयोग द्वारा अच्छी तरह से अपेक्षित व्यवहार को सीखने में समर्थ हो जायेगा।
  3. व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत का अच्छी तरह उपयोग किया जा सकता है। हेरगनहॉंन (Hergenhahn) के अनुसार, “हम अपने आप में वही होते हैं जिसके लिये हमें प्रोत्साहित या पुरस्कृत किया जाता है। जिसे हम व्यक्तित्व कहते हैं वह और कुछ नहीं बल्कि समय-समय पर प्राप्त उन पुनर्बलनों का परिणाम है जिससे हम और हमारा व्यवहार एक निश्चित सांचे में ढल जाता है। उदाहरण के लिये एक अंग्रेज बच्चा छोटी आयु में ही अंग्रेजी अच्छी तरह से बोलना इसलिए सीख जाता है क्योंकि जब पहली बार उसने अंग्रेजी भाषा जैसी ध्वनियाँ निकाली होंगी तो उसके प्रयत्नों को पूरा प्रोत्साहन मिला होगा अगर यही बच्चा किसी जापानी या रूसी परिवार में पैदा होता तो फिर अंग्रेज़ी का स्थान जापानी या रूसी भाषा ने ले लिया होता क्योंकि इस अवस्था में उसे वैसा प्रयास करने पर अपने परिवेश द्वारा पुनर्बलन या प्रोत्साहन मिलता।” (Hergenhahn, B.R. 1967, p. 87)
  4. सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त के अनुसार अनुक्रिया की उपयुक्तता एवं कार्य की सफलता अभिप्रेरणा का सबसे अच्छा स्रोत है। चूहे और कबूतर को भोजन की प्राप्ति एक अच्छा अभिप्रेरक है और विद्यार्थी को अपने सही उत्तर की जानकारी सीखने के कार्य में एक सशक्त पुनर्बलन का कार्य करती है । प्रशंसा के दो शब्द, अध्यापक के प्रोत्साहित करने वाले हाव-भाव, सफलता की अनुभूति, अधिक अंक और पुरस्कार, इच्छित कार्य करने की स्वतंत्रता आदि सभी ऐसे पुनर्बलन हैं जिनके द्वारा विद्यार्थी पूरी तरह अनुप्रेरित हो कर अधिक उत्साह से सीखने की ओर अग्रसर हो सकता है। इस तरह सक्रिय अनुबंधन ने अभिप्रेरणा के लिए वांछित अनुक्रिया और उपयुक्त पुनर्बलन को स्थान देकर अभिप्रेरणा के क्षेत्र में आंतरिक अभिप्रेरणा की अपेक्षा बाह्य अभिप्रेरकों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयत्न किया है ।
  5. सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त के अनुसार ताड़ना या दंड (Punishment) न तो वांछित व्यवहार को सीखने में मदद कर सकता है और न बुरी आदतों अथवा व्यवहार को त्यागने में। दंड के द्वारा कुछ समय के लिये बच्चा गलत व्यवहार करना छोड़ सकता है परन्तु जैसे ही दड का भय अथवा उसक प्रभाव समाप्त होता है, बुरे व्यवहार की पुनरावृत्ति होने लगती है। इसलिए सक्रिय अनुबंधन दंड के स्थान पर वांछित व्यवहार को पुनर्बलन प्रदान कर सुदृढ़ करने और अवांछनीय व्यवहार की उपेक्षा कर उसे विलुप्त (Extinguish) करने का विकल्प प्रस्तुत करता है।
  6. सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त के अनुसार अधिगम में अधिक से अधिक सफलता तभी मिल सकती है जबकि-

(a) सीखने की सामग्री को इस तरह आयोजित किया जाए कि सीखने वाले को अधिक से अधिक सफलता और कम से कम असफलता का सामना करना पड़े।

(b) सही अनुक्रिया अथवा उत्तरों के लिये उसे तेज़ी से पुनर्बलन प्राप्त होता रहे।

(c) सीखने वाले को स्वयं उसकी अपनी गति से सीखने का अवसर मिले ।

उपरोक्त सभी बातों का सक्रिय अनुबंधन सिद्धान्त ने ही जन्म दिया है और इसके परिणामस्वरूप आज शैक्षणिक जगत् में अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Learning), शिक्षण मशीनों (Teaching Machines) और कम्प्यूटर निर्देशित शिक्षण (Computer Assisted Instructions) ने अपनी जड़े गहरी करनी प्रारम्भ कर दी हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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