भूगोल / Geography

मसाई जनजाति | मसाई जनजाति का क्षेत्र | मसाई जनजाति के सामाजिक जीवन का वर्णन

मसाई जनजाति | मसाई जनजाति का क्षेत्र | मसाई जनजाति के सामाजिक जीवन का वर्णन

मसाई जनजाति

पशुपालन यायावर समूह मसाई

(Masai)

यायावर समूहों में कई स्थानों पर लोग आखेट व संग्रहण अवस्था को छोड़कर आर्थिक विकास की अगली कड़ी में प्रवेश कर अपना जीवनयापन करने लगे हैं। यह पशुपालन व्यवसाय है। लोग आदिम ढंग से जीवन निर्वाह के रूप में पशुओं को पालतू बनाकर रखते हैं। सहारा मरुस्थल के दक्षिण व कांगों वेसिन के मध्य मिश्रित जाति समूह पाया जाता है, जो दक्षिण के नीग्रो व उत्तरी यूरोपीय जातियों के मध्यस्थ गुणों वाला है। घास के मैदानी भागों में विशेष लक्षणों के साथ यह जाति पायी जाती जिसे मसाई कहते हैं।

निवास क्षेत्र-

मसाई यायावर समूह अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी घास के मैदानी भागों में निवास करने वाले लोग हैं। ये लोग भूमध्य सागरीय तथा नीग्रो के सम्मिश्रण स्वरूप एक भिन्न जातीय लक्षणों वाले हैं। मसाई जनजाति का निवास क्षेत्र । ° उत्तरी अक्षांश व 50 दक्षिणी अक्षांश के मध्य एलेगन पवर्त की ऊँचाई पर फैला हुआ है। इनके निवास स्थलों में दरार घाटी का पठारी भाग सम्मिलित हैं। इन भागों के अतिरिक्त एलेगन एवं किलमिंजारों पर्वतों के निचले ढाल वाले भागों में इनका फैलाव है। यह क्षेत्र विक्टोरिया झील के पूर्व में स्थित है। पूर्वी अफ्रीका में कई झालों व ज्वालामुखी पर्वतों के मध्य इन लोगों के फैलाव हैं। यह जनजाति भी अन्य सभ्य कहलाने वाली जातियों द्वारा आन्तरिक भागों की ओर खदेड़ी जा रही है। अब मसाई लोग के साथ तंजानिया के दक्षिणी में किप्सिगी समुदाय लोग अपने जीवनयापन के लिये पाये जाते हैं।

पर्यावरण-यह प्रदेश पूर्वी तटवर्ती भागों से तापमान की दृष्टि से ठण्डा क्षेत्र है क्योंकि यह समुद्र तल से ऊँचा स्थल है। यहाँ तापमान 18° सेन्टीग्रेड से 35° सेन्टीग्रेड तक पाया जाता है। वार्षिक पात परिसर की अपेक्षा दैनिक ताप परिसर अधिक पाया जाता है। दिन में तापमान अधिक गर्म तथा रात्रि में तापमान गिर कर ठंडा मौसम कर देता है। वर्षा की मात्रा सर्वत्र समान नहीं है। यहाँ 50C से 100C तक वर्षा होती है। वर्षा ग्रीष्मकाल के अप्रैल तथा मई महीनों में अधिक होती है। वर्षा मानसूनी हवाओं द्वारा होती है जो हिन्दमहासागर से चलकर महाद्वीप के  पूर्वी भाग से प्रवेश करती है। ऊंचे भागों में नवम्बर माह में भी वर्षा होती है, किन्तु जून और सितंबर के मध्य प्रायः वर्षा नहीं होती।

इस जलवायु के कारण घास के मैदान की प्राकृतिक वनस्पनि निचले पठारी भागों में विशेष रूप से पायी जाती है। कम वर्षा वाले भागों में घास की ऊँचाई भी । फुट से अधिक नहीं होती। घास के मध्य बबूल के वृक्ष यत्र-तत्र पाये जाते हैं जिनकी ऊँचाई 10-15 मीटर तक होती है। कहीं-कहीं घनी प्राकृतिक वनस्पति से वनों का रूप मिलता है जिनमें उर्वरता प्राप्त करने लिए लोग आग लगा देते हैं जिससे पेड़ों के साथ-साथ घास भी नष्ट हो जाती है। ऊँचे भाग जहाँ वर्षा 100 सेण्टीमीटर लगभग होती है घास तथा पेड़ बहुतायत से पाये जाते है। शुष्क ऋतु में मसाई लोग इन उच्च पर्वतीय भागों में अपने पशुओं को ले जाते हैं, क्योंकि 6000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर प्रायः सूखा नहीं पड़ता।

शारीरिक लक्षण-

मसाई यायावर समूह नीम्रो व भूमध्यसागरीय मिश्रण की जाति है। यह नीग्रो व भूमध्यसागरीय यूरोपियन लोगों से प्रायः मिन्न शारीरिक लक्षण वाले हैं। ये लोग देखने में छरहरे व लम्बे हैं। साथ व पाँव पतले तथा अंगुलियाँ लम्बी होती हैं। शरीर का रंग हल्का भूरा व गहरा तथा कत्थई होता है। इनका सिर ऊँचा तथा पतला व नाक लम्बी व मतली होती है। ओठों का आकार सामान्य होता है, नीग्रो के समान अधिक मोटे नहीं होते। इनके बाल कम घुंघराले तथा बड़े होते हैं।

गृह तथा काल (Krati)- 

मसाई परिवार अपने आश्रय के लिए झॉपड़ी का निर्माण करता है। प्रत्येक परिवार का अलग-अलग पड़ाव होता है इसे ‘क्राल’ कहते हैं। एक क्राल में 20 से लेकर 50 तक झोपड़ियाँ पायी जाती हैं। ये सभी अपना स्थान एक साथ परिवर्तन करते हैं तथा समूह में निवास करते हैं। क्राल परिवर्तन से पूर्व जल व झुरमुट आदि का ध्यान रखा जाता है। क्राल में झोपड़ियाँ अण्डाकार और सटी हुई बनायी जाती हैं। इनकाउ क्रम वृत्ताकर होता है। .

क्राल में झोपड़ियों का निर्माण औरतें ही करती हैं। प्रत्येक पत्नी के पास उसकी अपनी झोपड़ी होती है। जिसे निर्मित करना, देखभाल करना उसी का काम होता है। फर्श का स्वरूप आयताकार होता है जिसके चारों ओर गोल कोने निकले रहते हैं। यह 4-5 मीटर लंबा व 1 मीटर चौड़ा होता है। रस्सियों से बांध कर इसे तैयार किया जाता है। झोपड़ी की ऊँचाई 1/2 मीटर के लगभग होती है। दीवार की खूँटियों को दत के खंभे तक मिला दिया जाता है। इसे सुव्यवस्थित पतली-पतली छड़ियों से गूंथ दिया जाता है। इस चक्राकार योजना में एक दरवाजे के लिए स्थान छोड़ दिया जाता है। छत पर बैल की खाल लगा दी जाती है। यह विशेषकर उस समय किया जाता है जब प्लेग के कारण बैल अधिक मरने लग गये हों। झोपड़ियों से कुछ दूरी पर क्राल के भीतरी भाग में मचान बना दिया जाता है, जिस पर बैलों के चमड़े बिछे रहते हैं।

कभी-कभी पशुओं को झोपड़ी में रखना आवश्यक हो जाता है विशेष कर मेमनों तथा बकरी के बच्चों को। इनके लिए झोपड़ी के दरवाजे के समीप ही कोने में रिक्त स्थान रखा जाता है।

भोजन-

मसाई लोग पशुपालक होते हुए भी माँसाहारी है। इनके भोजन में रक्त तथा माँस की प्रधानता है। माँस मुख्यतया भेड़ों व बकरियों से प्राप्त किया जाता है। रक्त गाय व बैलों से प्राप्त करते हैं। रक्त निकालने लिए पशु को एक चमड़े की रस्सी से कम कर बाँध दिया जाता है, जिससे पशु की एक बड़ी नस फूल जाती है जिस पर एक तीर को चुभोया जाता है, जो ब्लेड से युक्त होता है। तीर चुभाने में एक छोटे धनुष का प्रयोग किया जाता है। रक्त का सेवन मसाई लोग दूध के साथ मिलाकर करते हैं।

स्त्रियों व बच्चों को पुरुषों द्वारा तिरस्कृत, जड़ें व केला भोजन के रूप में प्राप्त होता है। योद्धाओं को छोड़कर, शेष सभी लोग ज्वार, बाजरा व मक्का का सेवन करते हैं। ये पदार्थ मसाई लोग घुमक्कड़ “नीग्रो” व “बांडोरोबो” से पशुओं और चमड़ों के आदान-प्रदान द्वारा प्राप्त करते हैं। खाद्यान्नें को उबाल कर दूध व मक्खन के साथ मिलाकर सेवन किया जाता है। मसाई लोग कुछ पशु, चिड़ियों का आखेट मात्र इसलिए करते हैं कि उनसे चमड़ा, श्रृंग तथा पंख प्राप्त किये जायें। मधु का सेवन इन लोगों को अत्यधिक प्रिय है जिन्हें ये लोग ताजा या पतला बनाकर या बीयर बनाकर सेवन करते हैं।

वस्त्र-

मसाई लोग सामान्यतया चमड़े के हल्के वस्त्र धारण करते हैं या कपड़े का प्रयोग वस्त्रों में किया जाता है। योद्धा लोग वस्त्रों के साथ-साथ विशेष अवसरों पर आभूषण भी धारण करते हैं जो लोहे के बने होते हैं। स्त्रियाँ चर्म को साफ कराने में सहायता करती हैं। बाल काटने के लिए उस्तरा प्रयोग में लाया जाता है। चमड़े पर बार-बार चिकना पदार्थ व चर्बी को रगड़ा जाता है जिसे साफ कर वस्त्र बनाये जाते हैं। योद्धा लोग बछड़े के चर्म का प्रयोग ही अपने वस्त्रयों के लिए करते हैं। स्त्रियों बकरे की खाल से बनी ओढ़नी का प्रयोग करती हैं। बैलों के मोटे चमड़े से बने जूतों का प्रयोग सभी लोग करते हैं। उत्सव, विवाह व युद्ध के समय योद्धा लोग पूरी पोशाक पहनते हैं। सिर पर टोपी धारण करने की प्रथा सब में पायी जाती है। धनी पुरुषों की लड़कियाँ अपने गले, हाथ तथा पाँवों में लोहे की कड़ियाँ पहनती हैं।

पशु धन

गाय-बैंल- मसाई यायावर पशु पालक समूह के लोग होने के कारण इनकी वास्तविक संपत्ति पशुधन है। प्रत्येक परिवार दूध देने वाले चौपायों को बड़ी मात्रा में रखते हैं। चौपायों में गाय-बैल मसाई लोग की प्रमुख पशु संपत्ति है। गायों का उपयोग दूध के लिए किया जाता है। माँस लिए गायों का वध नहीं किया जाता, किन्तु गायों के प्राकृतिक रूप से मरने के बाद माँस का सेवन किया जाता है। गायों का दूध प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्त्रियाँ निकाल लेती हैं तथा चराने के लिए पास ही वन व घास प्रदेशों में भेज दिया जाता है। चरागाह से बच्चे तथा पुरुष सायंकाल से पूर्व तक पुनः क्रासल में ले आते हैं तथा पुनः स्त्रियाँ दूध निकाल लेती हैं। गायों को संभाल कर रखा जाता है तथा सबके अलग-अलग नाम रखे जाते हैं व किसी गाय विशेष को अधिक प्रेम भाव से पाला जाता है। दूध रखने के लिए लौकी की तुम्बी का प्रयोग किया जाता है, जिसे गौ मूत्र से धोकर साफ किया जाता है। गायों का दूध कच्चा ही प्रयोग किया जाता है। बीमार व्यक्तियों को भी उबाल कर दूध पिलाने की प्रथा है। दूध से मक्खन भी निकाला जाता है।

भेड़-बकरी- भेड़ों की संख्या भी गया, वैलों से कम नहीं है। इनसे भी दूध, माँस व रक्त प्राप्त किया जाता है, जो भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। भेड़ों का महत्त्व मसाई लोगों के लिए गाय-बैल पशुओं से कम है। बकरियों को भी भेड़ों के साथ ही पाला जाता है जो दूध व माँस का साधन है। साँड़ों व भेड़ों के पेट पर चारों ओर चमड़े की पेटियाँ बाँध दी जाती हैं जिससे वे मसाई लोगों के अनुसार अनुपयुक्त ऋतु में संगम न कर सकें।

गधे- मसाई परिवारों में कुछ गधे भी पाले जाते हैं। इनसे बोझा ढोने का काम लिया जाता है।

अन्य पशु- मसाई के पूर्वी समुदाय में कुछ ऊँट भी पालते हैं। ये ऊँट इन्हें सोमालियों से प्राप्त हुए हैं। ऊँट का प्रयोग बोझा ढोने के लिए किया जाता है। गाय व बैल कभी भी भार वाहन के रूप में प्रयोग नहीं किये जाते। कुत्ते भी पालतू बनाये जाते हैं, वे केवल क्राल में अजनबी लोगों के आने की सूचना ही दे पाते हैं, इससे अधिक इनसे पशुओं की रक्षा नहीं की जाती।

मसाई लोग कदापि पशुओं का उपयोग अपनी सवारी के लिए नहीं करते। वे सर्वदा पदयात्रा करते हैं। भार ढोने के लिए पशु अवश्य प्रयुक्त किये जाते हैं।

सामाजिक संगठन-

मसाई लोग सामाजिक दृष्टि से आखेट व संग्रहण व्यवस्था वाले बुशमैन, पिग्मी, सेमांग व सकाई लोगों से उन्नत है। इनमें गोत्रों को स्थान प्राप्त है। विवाह व पशुधन की प्राप्ति आदि के लिए गोत्र को महत्त्व दिया जाता है। ये लोग गोत्र से बाहर विवाह करने वाले होते हैं। गोत्र के अनुसार कैनिया में रहने वाले मसाई यायावर पशु पालक समूह को दो भागों में विभाजित किया जाता है-

(1) कोल बैल के गोत्र वाले,

(2) लाल बैल के गोत्र चाले।

इन दोनों गोत्रों में आपसी विवाह होता है, पर गोत्रों का कोई राजनैतिक महत्त्व नहीं है। एक गोत्र या दल के सदस्य पास-पास रहते हैं तथा साथ-साथ देशाटन भी करते हैं। लड़कों का विवाह उस समय किया जाता है जब वे योद्धावस्था को पार करने को होते हैं। यह अवस्था 25- 30 वर्ष के मध्य है। लड़कियों का संबंध बाल्यकाल में या जन्म से पूर्व ही तय कर दिया जाता है। दहेज प्रथा भी प्रचलित है, किन्तु वह बच्चा होने के बाद ही दिया जाता है। यहाँ बहुविवाह भी प्रचलित है। एक मसाई पुरुष एक से अधिक बार विवाह कर सकता है, पर पहले वाली पत्नी को उसकी पशु संपत्ति का बड़ा भाग देखभाल के लिए मिलता है। दूसरी को उससे कम व तीसरी को उससे भी कम दिया जाता है। मृत्यु होने तक मसाई के पास कई पत्नियाँ हो जाती हैं। मृत्यु के बाद सारा धन लड़कों में वितरित किया जाता है तथा स्त्रियों की संपत्ति उसके पुत्रों में ही वितरित होती है।

लोहार- जाति भेद व रंग भेद भी मसाई लोगों में प्रचलित है। ज्यों ही मसाई लोगों में से कुछ धातु का कार्य करने लग जाते हैं उन्हें ये लोग अपने से अलग कर देते हैं तथा ये लोग अपनी जाति व परिवार जाति व परिवार बनाकर रहते हैं। कौशल की प्राप्ति पिता से पुत्र को होती है। अधिकांश कार्य लोहे धातु का ही किया जाता है, इसलिए लोहार शब्द का प्रयोग स्मिथ के लिये किया गया है। मसाई लोग अपने वैवाहिक संबंध इन लोगों के साथ नहीं रखते। ये लोग अपनी जाति में ही वैवाहिक संबंध स्थापित करते हैं। मसाई लोगों की यह मान्यता है कि धातु का कार्य करने से इनका रक्त दूषित हो जाता है। इनके द्वारा बनाये गये अस्त्र-शस्त्रों को मक्खन व गाय की चर्बी रगड़ कर प्रयोग में लाया जाता है। ये लोग क्राल में स्थायी रूप से रहते हैं तथा यदा-कदा ही क्राल का देशाटन करना होता है। अपनी वस्तुओं के बदले गाय व अन्य भोज्य सामग्री प्राप्त कर लेते हैं। इनके नवयुवकों को योद्धा नहीं बनाया जाता। गायों की घण्टियाँ, कंठियाँ, तलवारें, तीर, बर्छे, भाले आदि तैयार करते हैं। घोंघे व शंख आदि को लोहे की वस्तुएँ तैयार कर सजाते हैं। इन वस्तुओं के बदले दूध, चमड़ा व पशुओं का भुगतान किया जाता है। ये लोग लकड़ी का कोयला व चमड़े की धोंकनी भी बनाते हैं। इनके स्वयं के उपकरण भारी लोहे के हथोड़े चिमटे, संड़सी, छेनी आदि बनाते हैं।

धार्मिक नेता- मसाई लोगों में धार्मिक दृष्टि से सर्वोपरि एक नेता होता है, जिसे लैबोन (Laibon) कहते हैं। यह सभी नवयुवक योद्धाओं का नियंत्रण करता है। यह लंबी अवधि से मसाई लोगों का प्रणेता रहा है। यद्यपि इसके पास शासन अधिकार नहीं है फिर भी मसाई लोगों तथा अन्य लोगों द्वारा सम्मान प्राप्त करते हैं तथा ये लोग भी इनसे भयभीत रहते हैं। लेबोन की भविष्यवाणियों पर भरोसा रहता है तथा वर्षा की कमी के समय इस धार्मिक नेता का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यह नेता ऐन गाई (En-Gai) नो के ईश्वर की पूजा करते हैं। यूरोपीय समाज के सम्पर्क से इनमें कई अड़चनें आ गई हैं, फिर भी लैबोन को पवित्र आत्मा माना जाता है। यह  पद पैतृक रूप से प्राप्त होता है। वीमारियों को रोकना इनकी जादुई शक्ति भरा माना जाता है। यह युद्ध तथा विजय के लिए जादुई ढंग से योजना तैयार करता है। इन लोगों का भोजन बकरे का जिगर, दूध तथा शहद तक ही सीमित है। इसके अतिरिक्त अन्य पदार्थों का सेवन करने से यह अपनी शक्ति से विचलित हो सकता है।

योद्धा नवयुवक- मसाई लोग अन्य दलों से पशु प्राप्त करने के लिए युद्ध करते हैं तथा अपने पशुओं की अन्य समुदायों से रक्षा करने के लिये नवयुवकों को अलग रखा जाता है। ये लोग अपने क्राल का अलग निर्माण करते हैं जिसमें 50 से 100 झोपड़ियाँ होती हैं। खोल की बनावट सामान्यतया अन्य के समान ही है, किन्तु गृहों के बाहरी भाग पर कंटीली बाड़ नहीं. लगाई जाती। योद्धाओं के साथ उनकी माता तथा बहनें जाती हैं जो वहाँ गृह का निर्माण व दूध निकालने में सहायक होती हैं। पशु सामान्यतया अपने खेमे से ले जाते हैं, किन्तु शीघ्र ही विजय प्राप्त कर अन्य पशुओं का अपने काम में लेने लगते हैं तथा परिवार के पशुओं को पुनः लौटा दिया जाता है।

युवकों को योद्धा समूह में सम्मिलित होने से पूर्व सभी गुण अपनाने पड़ते हैं, बाद में उनका मुण्डन संस्कार किया जाता है। प्रतयेक समूह का नामकरण किया जाता है, जैसे-लुटेरा (Raider) सफेद तलवार (White) आदि। योद्धा का समय 25-30 वर्ष की आयु तक ही सीमित है इनके बाद विवाह के बंधन में बंध जाते हैं। योद्धा लोग अपनी संपत्ति की रक्षा करने के साथ- साथ उसे आस-पास से लूटकर बढ़ाते हैं। मसाई जीवन को तीन अवस्थाओं में व्यक्त कर सकते है- (1) वाल अवस्था, (2) योद्धावस्था, (3) वृद्धावस्था। योद्धा लोग प्रायः एक आयु वर्ग के होते हैं तथा ये लोग अपना स्वतंत्र अस्तित्व योद्धा के रूप में उस समय तक बनाये रखते हैं जब तक नये युवक इस ओर तैयार होकर प्रवेश नहीं कर लेते। कभी-कभी एक आयु वर्ग का योद्धा समूह पूरे क्षेत्र के योद्धाओं को (जो उसी आयु वर्ग के हैं) आमंत्रित करता है तथा उन्हें दावत देता है। इस अवसर पर ये लोग अपने समूह का नाम भी बदल देते हैं।

योद्धा समूह की प्रथा मसाई लोगों के अतिरिक्त पूर्वी अफ्रीका के भागों में अन्य जातियों में भी पायी जाती हैं। ये सभी प्रायः पशुपालन समूह ही हैं। कभी-कभी कृषकों द्वारा भी योद्धाओं का समूह बनाया जाता है जैसे कि किकुसु (Kikyuy) लोगों में यह प्राप्ति पाई जाती है। यह प्रथा मसाई लोगों की मूल नहीं है। तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि यह योद्धा प्रथा ऐबीसिनिया के हैमेटिक नीग्रो लोगों के मूल से आगे बढ़ा है। नीग्रोहेमेटिक लोगों के द्वारा इसे दक्षिणी भाग की ओर लाया गया है। अब यह मसाई लोगों में व्यापक रूप से पाई जाती है।

जब कई जिलों के योद्धा आपस में मिलते हैं तो दो-तीन हजार व्यक्तियों की एक सेना बन जाती है; किन्तु ये लोग अधिक समय तक व्यवस्थित कृषक परिवारों के सामने रह नहीं सकते। पनुः अपने अलग-अलग टुकड़ों में बँटकर कार्य करने लगते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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