मिलीजुली सरकार के प्रमुख प्रतिमान | Major Patterns of Combined Government in Hindi
मिलीजुली सरकार के प्रमुख प्रतिमान | Major Patterns of Combined Government in Hindi
मिलीजुली सरकार
“मिलीजुली सरकार राजनीतिक समुदायों तथा शक्तियों का गढजोड़ है जो अस्थायी और कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए होता है। राजनीतिक दलों का यह मिलन सरकारों के निर्माण या उनकी रक्षा करने के लिए बनाया जाता है। जिन दलों के सहयोग के फलस्वरूप संयुक्त सरकारों का निर्माण होता है वे एक बुनियादी राजनीतिक कार्यक्रम पर एकमत होते हैं।”
मिलीजुली सरकार ‘मतभेदों के बावजूद एक समवेत स्वर’ होती है। ऊपर से देखने पर गठबंधन सरकार चाहे किनती ही ठोस प्रतीत हो, उसके अन्दर मतभेद के स्वर विद्यमान होते ही हैं। भागीदार दलों के बीच विद्यमान ये राजनीतिक मतभेद ही तो, दलों को अपना अलग- अलग राजनीतिक अस्तित्व बनाये रखने की प्रेरणा देते हैं।
मिलीजुली सरकार के प्रमुख प्रतिमान
मिलीजुली सरकारों का कोई एक नहीं, वरन् विभिन्न प्रतिमान हैं। मिलीजुली सरकारों के प्रमुख प्रतिमानों का उल्लेख निम्न प्रकार है-
(i) एक दल की प्रधानता वाला गठबंधन- इस गठबंधन में एक राजनीतिक दल की प्रधानता होती है और एक या अधिक छोटे राजनीतिक दल उस प्रमुख दल के साथ जुड़ जाते हैं। ये छोटे राजनीतिक दल सरकार के जीवन और कार्यकरण को प्रभावित तो करते हैं, लेकिन नियंत्रित नहीं कर पाते। सामान्य स्थिति यह होती है कि किसी छोटे राजनीतिक दल के सरकार से अलग हो जाने पर भी सरकार बनी रहती है। मिलीजुली सरकार का यह प्रतिमान कुछ अर्थों में एकदलीय सरकार के समान आचरण करता है, विशेष रूप से यह स्थिति उस समय होती है, जब मिलीजुली सरकार का नेतृत्व एक शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा हो 1981-2000 के वर्षों में ज्योति बसु के नेतृत्व में प० बंगाल की मिलीजुली सरकार इस प्रतिमान का उदाहरण है। जर्मन संघीय गणतंत्र में लम्बे समय तक इस प्रकार की सरकार का अस्तित्व रहा है।
(ii) लगभग समान शक्तिशाली दो परस्पर विरोधी गठबंधन- ये गठबंधन सामान्यतया चुनाव के ही बन जाते हैं और राज्य की राजनीति इन दो गठबंधनों में बंट जाती है। केरल की राजनीति इसका उदाहरण है। केरल की राजनीति के दो गठबंधन हैं प्रथम, संयुक्त लोकतान्त्रिक गठबंधन, जिसका नेतृत्व कांग्रेस के द्वारा किया जाता है और द्वितीय, संयुक्त वाम मोर्चा गठबंधन जिसका नेतृत्व सामान्यतया मार्क्सवादी दल के द्वारा किया जाता है। इस स्थिति में सामान्यतया जनता ही निर्णय दे देती है कि किस गठबंधन को सत्ता प्राप्त होगी। कुछ अर्थों में दो गठबंधनों की यह स्थिति-द्विदलीय व्यवस्था के समान कार्य करती है।
(iii) निषेधात्मक आधार पर गठित अनेक राजनीति दलों का गठबंधन- यह अनेक राजनीतिक दलों का ऐसा गठबंधन होता है, जिसमें भागीदार दल किसी अन्य राजनीतिक दल को अपना समान और शक्तिशाली शत्रु मानते हैं तथा उस शक्तिशाली शत्रु को सत्ता से दूर रखने के लिए गठबंधन की राजनीति को अपनाते हैं। इस प्रतिमान में सामान्यतया मिलीजुली सरकार के भागीदार दलों के बीच समान राजनीतिक विचारधारा का तत्व नहीं होता। 1967-70 के वर्षों में भारतीय संघ के कुछ राज्यों में ‘गैर कांग्रेसवाद’ या ‘कांग्रेस विरोध’ को आधार बनाकर संविद सरकारों का गठन हुआ था। भारत में अब तक जब कभी केन्द्र में मिलीजुली सरकार का गठन हुआ, तब उसका गठन निषेधात्मक आधार पर ही हुआ। 1996 के पूर्व कांग्रेस विरोध के आधार पर गठबंधन बने थे, ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव के बाद ‘भाजपा विरोध’ के आधार पर गठबंधन बना। निषेधात्मक आधार पर और सामान्यतया चुनाव के पश्चात् गठित इन गठबंधनों में अवसरवादिता का तत्व बहुत प्रबल होता है। ऐसे गठबंधनों का जीवन तभी तक रह पाता है, जब तक शत्रु शक्ति और आज की इस शत्रु शक्ति के प्रति भागीदार दलों में शत्रुता की भावना बनी रहे।
(iv) राष्ट्रीय सरकार- गठबंधन का चौथा प्रतिमान ‘राष्ट्रीय सरकार’ के रूप में होता है। इस राष्ट्रीय सरकार का गठन सामान्यतया राष्ट्रीय संकट (बाहरी आक्रमण अथवा अन्य कोई गंभीर चुनौती) का सामना करने के लिए किया जाता है और राष्ट्रीय सरकार में देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल शामिल होते हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय ब्रिटेन में राष्ट्रीय सरकार का गठन हुआ था। इस सरकार में प्रधानमंत्री थे अनुदार दल के नेता विन्स्टन चर्चिल और उप प्रधानमंत्री थे मजदूर दल के नेता क्लिमेण्ट एटली। भारत में राष्ट्रीय सरकार के गठन की बात कुछ परिस्थितियों में (1979 में, 1996 में और 1997 में) विभिन्न स्तरों पर चली, लेकिन जब तक कभी राष्ट्रीय सरकार का गठन नहीं हुआ है।
आज भारत में केन्द्रीय स्तर पर मिलीजुली सरकार का जो रूप है, वह कुछ बातों की दृष्टि से मिलीजुली सरकार के इन सभी प्रतिमानों से अलग हटकर है।
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