परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित करने वाले कारक

परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित करने वाले कारक | Factors that Influence Test Scores in Hindi

परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित करने वाले कारक | Factors that Influence Test Scores in Hindi

मापे जा रहे गुण के अतिरिक्त अन्य अनेक कारक भी किसी परीक्षार्थी के द्वारा परीक्षण पर प्राप्त अंकों को प्रभावित कर सकते हैं। यही कारण है कि परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या व उपयोग करने से पूर्व परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित कर सकने वाले विभिन्न कारकों का ध्यान रखा जाना अत्यन्त आवश्यक है।

परीक्षणों पर छात्रों के द्वारा अर्जित अंकों को निम्न अवांछनीय कारक (Irrelevant factors) प्रभावित कर सकते हैं :-

  • (1) परीक्षण आदत (Test Habit)
  • (2) चिन्ता (Anxiety)
  • (3) अभिप्रेरणा (Motivation)
  • (4) प्रतिक्रिया शैली (Response Styles )
  • (5) प्रशासन का ढंग (Mode of Administration)
  • (6) परीक्षक (Examiner)
  • (7) पूर्व सूचना (Pre-announcement)
  • (8) अंकन (Scoring)
  • (9) व्यवधान (Disturbance)
  • (10) सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Cultural Background)
  1. परीक्षण आदत (Test Habit) – परीक्षण देने के सम्बन्ध में पूर्व जानकारी तथा पूर्व अभ्यास किसी छात्र के द्वारा प्राप्त अंकों को प्रभावित कर सकती है। जो छात्र परीक्षण देते रहते हैं उनके प्राप्तांक प्राय: अधिक आते हैं जबकि परीक्षण देने के अनुभव से बिहीन व्यक्ति प्रायः अपनी वास्तविक योग्यता से कम अंक प्राप्त करते हैं। परीक्षण देने के अभ्यास (Test Practice), परीक्षण आदत (Test Habit), तथा परीक्षण प्रशिक्षण (Test Coaching) से छात्रों में परीक्षण विवेक (Test discretion) बढ़ जाता है। परिणामतः वे परीक्षण को अधिक अच्छे ढंग से देते हैं तथा अधिक अंक प्राप्त करने में सफल रहते हैं।
  2. चिंता (Anxiety) – परीक्षार्थी की मनोस्थिति का उसके ऊपर काफी प्रभाव पड़ता है। परीक्षण अथवा परिणामों के प्रति चिन्तित व्यक्ति परीक्षण के प्रश्नों को ठीक प्रकार से ब मनोयोग से हल नहीं कर पाता है। चिन्तित, आकुल अथवा उद्षिप्र व्यक्ति के परीक्षण प्राप्तांक प्रायः उसकी वास्तविक योग्यता से कम प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत चिन्तामुक्त परीक्षार्थी पूर्ण मनोयोग से परीक्षण के प्रश्नों को हल करता है तथा फलस्वरूप अच्छे अंक प्राप्त करता है।
  3. अभिप्रेरणा (Motivation) – अभिप्रेरणा भी परिक्षण के प्राप्तांकों को प्रभावित करती है । अभिप्रेरिक छात्र परीक्षण को अपने अधिकतम प्रयास से हल करते हैं, जबकि अल्प अभिप्रेरित छात्र निराशा के वातावरण में अपने पूर्ण प्रयास, लगन व मेहनत से परीक्षण को नहीं देते हैं। यही कारण है कि अभिप्रेरित छात्र अधिक अंक प्राप्त करते हैं जबकि कम अभिप्रेरित छात्र कम अंक ही प्राप्त कर पाते हैं। यहाँ यह स्मरणीय है कि वाह्य प्रोत्साहन (Extrinsic Incentives) जैसे उपहार, आदि की अपेक्षा आन्तरिक प्रोत्साहन (Intrinsic Incentives) जैसे प्रशंसा आदि का अधिक महत्त्व होता है।
  4. प्रतिक्रिया शैली (Response Styles) – प्रतिक्रिया शैली से तात्पर्य परीक्षण पर किसी विशिष्ट प्रकार के उत्तरों को अधिक देने से है। प्रतिक्रिया शैली के अन्तर के कारण समान योग्यता वाले छात्र विभिन्न अंक प्राप्त कर सकते हैं। कुछ छात्र तीव्र गति से प्रश्नों को हल करना पसन्द करते है जबकि कुछ छात्र परिशुद्धता पर अधिक ध्यान देते हैं। इसे गति व परिशुद्धता शैली (Speed vs Accuracy style) कहते हैं। संहमति शैली (Acquiescence Style) में परीक्षार्थी बिना सही हल जाने भी सही हल का चयन करने में प्रायः सफल हो जाता है। कुछ छात्रों में कठिन प्रश्नों में लम्बे उत्तर को छाँटने की प्रवृत्ति (Option Length Tendency) होती है जबकि कुछ छात्रों में किन्हीं विशिष्ट स्थिति वाले उत्तरों का चयन करने की प्रवृत्ति (Positional Preference Tendency) पाई जाती है। कुछ छात्रों में अनुमान से ही उत्तर छाँटने (Set to Gamble) की प्रवृत्ति होती है। इन सभी प्रवृत्तियों के कारण छात्रों के प्राप्तांक कभी कभी उनकी वास्तविक योग्यता से कम या अधिक प्राप्त होते हैं।
  5. प्रशासन का ढंग (Administration Mode) – परीक्षण को प्रशासित करने का ढंग भी छात्रों के प्राप्तांकों को प्रभावित कर सकता है। परीक्षण प्रशासक (Test Administrator) के द्वारा प्रयोज्यों को निर्देश किस प्रकार से दिये गये हैं, परीक्षण के कक्ष का माहौल तथा परीक्षार्थी का आसन (Seat) कैसा है जैसे कारक भी परीक्षार्थी के द्वारा प्राप्त अंकों को प्रभावित कर देते हैं। भली भाँति ढंग से निर्देश न दिये जाने पर अथवा शान्त माहौल न होने पर अथवा उपयुक्त आसन न होने के कारण प्रायः प्राप्ताक कम हो जाते हैं।
  6. परीक्षक (Examiner) – परीक्षक की प्रकृति व व्यवहार का भी परीक्षण प्राप्तांकों पर प्रभाव पड़ सकता है। प्रशिक्षित, सहानुभूतिपूर्ण, विनम्र, सहयोगी परीक्षक के द्वारा छात्रों को अपनी सर्वोत्तम योग्यता को ठीक प्रकार से प्रदर्शित करने का अवसर प्रायः मिलता है। इसके विपरीत, अप्रशिक्षित, अनुभवहीन, खीझा परीक्षक परीक्षण प्रशासन के निर्देशों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता है। निर्धारित समय से कम या अधिक समय प्रदान करना तथा निर्देशों को गलत ढंग से देना जैसे कारकों से परीक्षण प्राप्तांक बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं।
  7. पूर्व सूचना (Pre-announcement) – परीक्षण कब लिया जायेगा, इसकी पूर्व सूचना भी परीक्षण पर छात्रों के प्राप्तांकों को प्रभावित करती है। पहले से सूचित परीक्षण पर बिना पूर्वसूचना दिये परीक्षण की तुलना में प्रायः अधिक अंक प्राप्त होते हैं।
  8. अंकन (Scoring) – अंकन करते समय हुई त्रुटियों के कारण भी परीक्षण प्राप्तांक प्रभावित हो जाते हैं। अंकन निर्देशों का ठीक ढंग से पालन न करना, लापरवाही से अंकन कार्य करना तथा जोड़ने में गलती करना कुछ ऐसे कारक हैं जिनके कारण छात्रों के अंक कम या अधिक हो सकते हैं।
  9. व्यवघान (Disturbance) – परीक्षण देते समय अनायास हुए व्यवधानों के कारण भी छात्रों के प्राप्तांक प्रभावित हो जाते हैं। परीक्षण देते समय शोर का होना, प्रकाश का कम होना, डेस्क का ठीक न होना, गर्मी या सर्दी का प्रकोप होना, उड़न दस्ते के द्वारा तलाशी का लेना आदि कारणों से परीक्षार्थियों को अपना कार्य पूरा करने में व्यवधान हो जाता है।
  10. सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Cultural Background) – छात्रों का पारम्परिक, सामाजिक, व सांस्कृतिक वातावरण भी उसकी परीक्षण सफलता को प्रभावित करता है। यदि परीक्षण की पाठ्यवस्तु उसके परिवेश से मिलती है। तो वह अधिक अंक प्राप्त कर सकता है जबकि यदि परीक्षण की पाठ्यवस्तु उसके परिवेश अनुकूल नहीं होती है तब वह परीक्षण पर कम अंक ही प्राप्त कर पाता है।
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