वर्तमान भारतीय समाज में शिक्षा का प्रभाव | शिक्षा का समाज पर प्रभाव
वर्तमान भारतीय समाज में शिक्षा का प्रभाव | शिक्षा का समाज पर प्रभाव
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किसी भी राष्ट्रं के सम्पूर्ण उत्थान के लिए शिक्षा ही वह आधारशिला है जिस पर एक आदर्श समाज की इमारत खडी की जा सकती है क्योंकि पढ़ा-लिखा समाज ही आदर्श समाज की और अग्रसर होता है। शिक्षा ही समाज में व्यपप्त बुराइयों को दूर करती है। आदरश समाज का तात्पर्य यह है जहाँ विभिन्न जातियाँ तो हों परन्तु जातीय आधार पर कोई वर्ग भेद न हो, अनेक संस्कृतियाँ तो हो परन्तु उनमें आपसी द्वेष न हो, कोई धर्म के नाम पर संघर्ष न करे, अपना आर्थिक विकास तो करे लेकिन किसी का शोषण न करे। शिक्षा इन सारे कार्यों को आसान बना देती है।
शिक्षा का समाज पर प्रभाव
जिस प्रकार समाज का शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है। उसी प्रकार शिक्षा का समज पर प्रभाव पड़ता है। शिक्षा का समाज पर प्रभाव निम्नलिखित दिशाओं में दिखाई देता है-
- सामाजिक भावना की जागृति
- समाज का राजनीतिक विकास
- समाज का आर्थिक विकास
- सामाजिक नियन्त्रण
- सामाजिक परिवर्तन
- सामाजिक सुधार
- बालक का सामाजीकरण
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सामाजिक भावना की जागृति-
व्यक्ति का समाज से गहरा सम्बन्ध है। इसका कारण यह है कि वह समाज में रहते हुए अपनी भी उन्नति कर सकता है तथा दूसरे व्यक्तियों की भलाई भी। बिना समाज के उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। इस दृष्टि से व्यक्ति में सामाजिक भावना का विकास होना परम आवश्यक है। इस महान कार्य को केवल शिक्षा के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। इस कार्य को शिक्षा स्कूल की सहायता से पूरा कर सकती है जहा के सामाजिक वातावरण में रहते हुए बालक नाना प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेते हैं तथा जिनकी सहायता से उनमें सामाजिक भावना सहज ही में जागृत होती है। ध्यान देने की बात है कि सामाजिक भवना के जागृत हो जाने पर बालक अपने भावी जीवन में समाज-हित के कार्यों को करते हुए समाज की भलाई को ही अपनी भलाई समझने लगते हैं।
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समाज का राजनीतिक विकास-
शिक्षा समाज के राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण योग देती है। संसार की विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का ज्ञान व्यक्ति को केवल शिक्षा के ही द्वारा हो सकता है। शिक्षा की ही सहायता से व्यक्ति अपने देश की राजनीतिक विचारधारा को दूसरे देशों की राजनीतिक विचारधाराओं से तुलना करके उसकी सार्थकता का ज्ञान प्राप्त करता है। इससे राजनीतिक जागरूकता प्रसारित होती है तथा व्यक्ति को अपने कर्त्तव्यों एवं अधिकारों का ज्ञान होता है। जो व्यक्ति शिक्षित होते हैं यही अपने देश की राजनीतिक विचारधारा की रक्षा एवं उसका विकास कर सकते है। स्पष्ट है कि शिक्षा समाज का राजनीतिक विकास करती है।
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समाज का आर्थिक विकास-
शिक्षा समाज का आर्थिक विकास करती है। इस कार्य को पूरा करने के लिए शिक्षा अपने व्यावसायिक उद्देश्य को लेकर अग्रसर होती है। वह बालकों को विभिन्न व्यवसायों तथा उद्योगों में दक्षता प्रदान करती है। परिणामस्वरूप बालक अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन करते हुए समाज का आर्थिक विकास करते हैं। यदि शिक्षा इस कार्य को पूरा न करे तो देश का आर्थिक विकास असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है।
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सामाजिक नियन्त्रण-
शिक्षा समाज की कुप्रथाओं तथा अन्ध-विश्वासों के दोषों को स्पष्ट करती है। इतना ही नहीं, इनको विरोध में जनमत तैयार करके इन्हें समाप्त भी करती है। दूसरे शब्दों में, सामाजिक नियन्त्रण के लिए शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। यदि शिक्षा सामाजिक नियन्त्रण न करे तो समाज में सुधार लाना बहुत कठिन है।
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सामाजिक परिवर्तन-
‘ओटावे’ का मत बिल्कुल ठीक है कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण कार्य करती है। हम देखते हैं कि आधुनिक विज्ञान तथा प्रविधियों के क्षेत्र में विभिन्न अनुसंधानों के परिणामस्वरूप आश्चर्यजनक परिवर्तन होते रहते हैं। शिक्षा इन अनुसंधानों का ज्ञान कराती है तथा इनके द्वारा होने वाले लाभों पर प्रकाश डालती हुई जन साधारण को इनका प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती है। इन्हीं प्रयोगों में जन-साधारण के विचारों, आदर्शों, मूल्यों तथा लक्ष्यों में परिवर्तन हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि परिवर्तनों का प्रचार करके शिक्षा सामाजिक परिवर्तन लाती रहती है।
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सामाजिक सुधार-
शिक्षा सामाजिक सुधार एवं उन्नति करती है। ध्यान देने की बात है कि कोई भी समाज शिक्षा की व्यवस्था केवल इसीलिए नहीं करता है कि बालक समाज के प्रचलित नियमों, सिद्धान्तों तथा. रूढ़ियों से अनुकूलन करना सीख जाये अपितु वह यह भी चाहता है कि शिक्षित होकर वे (बालक) सामाजिक कुरीतियों का ज्ञान प्राप्त करें, उनकी आलोचना करें तथा उनमें आवश्यक सुधार भी कर सकें जिससे समाज उचित दिशा की ओर विकसित होता रहे। स्पष्ट है कि बालकों को इस योग्य बनती है कि वे समाज की प्रचलित कुरीतियों में आवश्यक सुधार कर सकें।
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बालक का सामाजीकरण-
शिक्षा बालक का सामाजीकरण भी करती है। हम देखते हैं कि जब बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल जाता है तो वहाँ पर दूसरे बालकों के सम्पर्क में आता है। इस सम्पर्क से उसे उन बालकों के विचारों, आदर्शों तथा संस्कृति का ज्ञान हो जाता है। तथा वह शनैः-शनैः इस संस्कृति को अपना लेता है। ध्यान देने की बात है कि समाज की संस्कृति को अपना लेनो ही सामाजीकरण है। स्पष्ट है कि बालक के समाजीकरण में शिक्षा महत्वपूर्ण योग देती है।
उपर्युक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि शिक्षा और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार का समाज वहाँ की शिक्षा भी वैसी ही होगी। इस प्रकार जैसी शिक्षा होती है वैसा ही समाज होता है। समाज अपनी विचारधाराओं, आकांक्षाओं, आदर्शों तथा आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए शिक्षा की व्यवस्था करता है और शिक्षा समाज का नव निर्माण करती है। अतः शिक्षा और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं।
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