प्रस्ताव वक्र | प्रस्ताव वक्र की लोच पर टिप्पणी | प्रस्ताव वक्र का महत्त्व | प्रस्ताव वक्र की सहायता से पारस्परिक माँग सिद्धान्त की व्याख्या
प्रस्ताव वक्र | प्रस्ताव वक्र की लोच पर टिप्पणी | प्रस्ताव वक्र का महत्त्व | प्रस्ताव वक्र की सहायता से पारस्परिक माँग सिद्धान्त की व्याख्या | offer curve in Hindi | Comment on elasticity of offer curve in Hindi | Importance of offer curve in Hindi | Interpretation of Reciprocal Demand Theory with the help of offer curve in Hindi
प्रस्ताव वक्र (Offer curve)
अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में विश्लेषण का एक और महत्त्वपूर्ण औजार प्रस्ताव वक्र है जिसे मिल, एजवर्ध और मीड द्वारा प्रतिपादित पारस्परिक माँग वक्र भी कहते हैं। किसी देश का प्रस्ताव वक्र उस सापेक्ष वस्तु कीमत को निर्धारित करता है जिस पर व्यापार होता है। यह उस देश की निर्यात योग्य वस्तु की उन विविध मात्राओं को प्रदर्शित करता है जिन्हें वह देश विविध अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों पर आयात-योग्य वस्तु से विनिमय करने को तैयार है। किसी देश का प्रस्ताव वक्र उस देश के उत्पादन संभावना वक्र, उसके समुदाय उदासीनता वक्रों और उन विविध अन्तर्राष्ट्रीय वस्तु कीमतों से व्युत्पन्न (derive) किया जाता है जिन कीमतों पर वह दूसरे देश से व्यापार करने को तैयार है।
व्यापार सन्तुलन-
दी हुई अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों पर व्यापार संतुलन निर्धारित करने के लिए निम्न चित्र के प्रस्ताव वक्रों को मिला लेते हैं। जिस बिन्दु पर दोनों प्रस्ताव वक्र एक दूसरे को काटेंगे, वह बिन्दु अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों पर दोनों देशों द्वारा प्रत्येक वस्तु के प्रस्तावित निर्यातों तथा आयातों की मात्राओं को निर्धारित करेगा। प्रस्ताव वक्र OA तथा OB एक-दूसरे को बिन्दु E2 (=E2) पर काटते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय कीमत रेखा P2 (= P2) पर, देश A देश B से X के OD2 आयातों के बदले अपनी वस्तु Y की OD मात्रा के निर्यात प्रस्तुत करेगा। इसी प्रकार देश B देश A से Y के OD आयातों के बदले अपनी वस्तु के OD1 निर्यात प्रस्तुत करेगा। कीमत रेखा OP2 पर, E2 से भिन्न किसी भी अन्य बिन्दु पर, उदाहरणार्थ E1 बिन्दु पर देश A अपनी वस्तु Y की OG मात्रा को देश B की वस्तु X की अपेक्षाकृत कम मात्रा GE1 से विनिमय करने को तैयार होगा। इसी प्रकार यदि देश B अन्तर्राष्ट्रीय कीमत रेखा OP1 के बिन्दु E पर है तो वह देश A से Y वस्तु की अपेक्षाकृत बहुत कम मात्रा G1E लेने को तैयार होगा। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय कीमत रेखाओं OP2 तथा OP1 पर E1 और E बिन्दुओं में से कोई भी बिन्दु संतुलन बिन्दु नहीं हो सकता ‘क्योंकि मूल बिन्दु से उक्त प्रत्येक बिन्दु तक रेखा द्वारा व्यक्त व्यापार की शर्ते पूर्ण व्यापार के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए बिन्दु E2 (= E2) ही सन्तुलन बिन्दु है जहाँ पर दोनों देशों के प्रस्ताव वक्र परस्पर काटते हैं?
प्रस्ताव वक्र की लोच पर टिप्पणी
प्रस्ताव वक्र की लोच निम्नलिखित फार्मूले के रूप में मापी जाती है-
आयातों में % परिवर्तन / नियातों में % परिवर्तन
= ∆M/M/ ∆M/M = ∆M/∆X .X/M
जहाँ M और X क्रमशः आयातों तथा निर्यातों को व्यक्त करते हैं चित्र में E बिन्दु पर B देश के वक्र OA की लोच निम्नलिखित तरीके से मापी जा सकती है। वक्र OA के E बिन्दु पर एक स्पर्श रेखा TT1 खींचो और E बिन्दु से क्षैतिज अक्ष के बिन्दु N पर लम्ब गिराओ। इस प्रकार हम चित्र के आधार पर ऊपर दिए गए फार्मूले को हल कर सकते हैं
∆M = NE
∆X = TN
M = NE
X = ON
बिन्दु E पर ढलान है,
∆M/∆X .X/M = NE/TN . ON/NE = ON/TN > 1
इससे पता चलता है कि E बिन्दु पर प्रस्ताव वक्र की लोच इकाई से अधिक है। यह प्रस्ताव का वक्र OB पर E बिन्दु से परे अधिक लोचदार है। जब प्रस्ताव वक्र बिन्दु E से परे सीधी लम्ब रेखा हो, तो इसकी लोच एक (इकाई) है जब E बिन्दु से परे प्रस्ताव वक्र OC पीछे की ओर झुका होता है तो वह बेलोच होता है।
महत्त्व-
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त में प्रस्ताव वक्र एक महत्त्वपूर्ण रेखागणितीय औजार है। सर्वप्रथम एज्वर्थ तथा मार्शल ने इसे प्रयोग किया था। परन्तु अब मिल (Mill) के पारस्परिक माँग के सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभों, विनिमय दर सिद्धान्त और प्रशुल्क (टैरिफ) सिद्धान्त की व्याख्या करने के लिए इसे प्रयोग किया जाता है। पर, सामान्यतः प्रस्ताव वक्र की लोच पर ही विचार किया जाता है। सोडर्टन के अनुसार, ‘प्रस्ताव वक्र’ एक सामान्य सन्तुलन की धारणा है। इसे उत्पादन तथा उपभोग स्थितियाँ संयुक्त रूप से निर्धारित करती हैं। यह कहना अधिक उचित कि ये स्थितियाँ व्यापार करने वाले साझेदारों के प्रस्ताव वक्रों का रूप निर्धारित करती हैं जिससे आगे व्यापार की शर्तें निर्धारित होती हैं।’
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