अर्थशास्त्र / Economics

हैक्शर ओहलिन का अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत | हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत की मान्यताएँ | हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत का कथन | हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धान्त की आलोचनाएँ

हैक्शर ओहलिन का अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत | हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत की मान्यताएँ | हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत का कथन | हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धान्त की आलोचनाएँ | Heckscher Ohlin’s International Theory in Hindi | Assumptions of Heckscher Ohlin’s International Doctrine in Hindi | Statement of Heckscher Ohlin’s International Doctrine in Hindi | Criticisms of Heckscher Ohlin’s International Theory in Hindi

हैक्शर ओहलिन का अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत

प्रो० ओहलिन के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अन्तक्षेत्रीय व्यापार का ही एक विशिष्ट रूप है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तक्षेत्रीय व्यापार के उदय के कारण लगभग एक जैसे  ही हैं। किन्हीं भी दो क्षेत्रों या दो देशों के बीच व्यापार का आधार सामान्यतः उनकी विशिष्ट उत्पादन क्षमताओं में निहित होता है। लागत में तुलनात्मक अन्तर विभिन्न देशों की साधन सम्पत्तियों की भिन्नता के कारण उत्पन्न होते हैं। अतः दो देशों के मध्य व्यापार का मूल कारण साधन सम्पत्तियों की सापेक्षिक भिन्नता है।

ओहलिन के अनुसार, ‘सामान्य मूल्य सिद्धान्त एक बाजार सिद्धान्त है तथा समय तत्त्व पर आधारित है। यह स्थान तत्त्व पर कोई ध्यान नहीं देता, जबकि ‘स्थान’ का आर्थिक जीवन में बड़ा महत्त्व है।’ ओहलिन के मत में यदि मूल्य के सामान्य सिद्धान्त में ‘स्थान तत्व’ का समावेश करते हुए व्यापार करने वाले विभिन्न बाजारों में विस्तार किया जाये तो वह अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का सिद्धान्त बन जाता है। ओहलिन के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त मूल्य के सामान्य सिद्धान्त का बहुबाजारीय विश्लेषण है।

हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत की मान्यताएँ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार  के कारणों तथा प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए हैक्शर-ओहलिन सिद्धान्त एक द्वि-वस्तु, द्वि-साधन तथा द्वि-देश का मॉडल प्रस्तुत करता है। यह सिद्धान्त निम्न मान्यताओं पर आधारित हैं—

(1) यह सिद्धान्त द्वि-मॉडल पद्धति पर आधारित है अर्थात् इसमें दो देश, दो वस्तुएँ तथा दो साधनों (श्रम व पूँजी) को आधार मानकर विश्लेषण किया गया है।

(2) दो देशों में विभिन्न साधन मात्राएँ हैं।

(3) गुणात्मक दृष्टि से प्रत्येक साधनं एक रूप हैं।

(4) उत्पादन के साधन एक देश में पूर्णतः गतिशील हैं किन्तु दो देशों के बीच ये गतिशील नहीं हैं।

(5) वस्तु बाजार व साधन बाजार दोनों में ही पूर्ण प्रतियोगिता की दशा पायी जाती है। दोनों देशों में साधन पूर्ण रोजगार की स्थिति में हैं। प्रत्येक साधन की कीमत उसकी सीमांत उत्पादकता के बराबर होती है अर्थात् MFC = MPP

(6) दोनों देशों के मध्य स्वतन्त्र व्यापार की स्थिति है। व्यापार में प्रतिबन्ध व परिवहन लागते अनुपस्थित होती हैं।

(7) दोनों देशों में प्रत्येक वस्तु का उत्पादन फलन समान हैं किन्तु दोनों वस्तुओं के उत्पादन फलन भिन्न-भिन्न हैं।

(8) पैमाने के स्थिर प्रतिफल लागू

(9) प्रत्येक देश में मांग की दशायें, उत्पत्ति के साधनों की पूर्ति तथा उत्पादन की तकनीकी दशायें समान तथा स्थिर हैं।

(10) तुलनात्मक लाभ के बावजूद अन्तर्राष्ट्रीय विशिष्टीकरण अपूर्ण हैं।

हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत का कथन

एक देश उन वस्तुओं का निर्यात करता है जिनके उत्पादन में वे साधन सापेक्षिक रूप से अधिक प्रयुक्त होते हैं जो कि इस देश में सापेक्षिक रूप से अधिक प्रचुर हैं और फलतः सापेक्षिक रूप से सस्ते हैं।

सिद्धान्त की व्याख्या

रिकार्डो की भाँति हैक्शर का भी यही विचार है कि दो देशों के व्यापार का कारण तुलनात्मक लाभ है। तुलनात्मक लाभ के दो महत्त्वपूर्ण कारण हैं-

(i) दो देशों में उत्पादन के साधनों की सापेक्षिक दुर्लभता और इस कारण साधनों में सापेक्षिक कीमत अन्तर

(ii) विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए विभिन्न साधन अनुपातों के प्रयोग की आवश्यकता। प्रो० ओहलिन के अनुसार दो देशों में वस्तु कीमतों की भित्रतायें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की, तात्कालिक कारण हैं, वस्तु कीमतों की भिन्नतायें साधन कीमतों की भिन्नताओं के कारण उत्पन्न होती हैं और साधन कीमतों की भिन्नता दोनों देशों में साधन सम्पत्तियों की भित्रता के कारण उत्पन्न होती हैं।

वस्तु कीमत भिन्नतायें साधन सम्पत्तियों की भिन्नता के कारण उत्पन्न होती हैं-ओहलिन के अनुसार, विभिन्न देशों के मध्य साधनों की सापेक्षिक भिन्नतायें होती हैं। किसी देश में पूँजी अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है और किसी देश में श्रम। जहाँ सापेक्षिक रूप से श्रम की प्रचुरता होती है, वहां श्रम अपेक्षाकृत सस्ता होगा और पूँजी अपेक्षाकृत महँगी होगी। किसी दूसरे देश में पूंजी अपेक्षाकृत सस्ती होगी और श्रम महँगा होगा। साधन-कीमतों की उस भिन्नता के कारण वस्तु-कीमतों में भिन्नता होती है जिसके कारण तुलनात्मक लाभ प्राप्त होते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का उदय होता है। इस दृष्टि से एक देश सापेक्षिक, बहुलक वाले साधनों का निर्यात करता है तथा दुर्लभ पूर्ति वाले साधनों का आयात करता है।

दोनों देशों में वस्तु-कीमतों की सापेक्षिक भिन्नताओं के कारण ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता  है—ओहलिन के अनुसार विशिष्टीकरण व व्यापार वस्तु-कीमतों के अन्तर के कारण होता है और वस्तु कीमतें वस्तु उत्पादन की लागतों तथा माँग दोनों पक्षों के द्वारा निर्धारित होती हैं। साधनों की सापेक्षिक कीमत अन्तर के कारण वस्तु उत्पादन लागतों में सापेक्षिक अन्तर होता है।

हैक्शर ओहलिन के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धान्त की आलोचनाएँ

प्रतिष्ठित सिद्धान्त से श्रेष्ठ होते हुये भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधुनिक सिद्धान्त की निम्न आधारों पर आलोचनाएँ की गई हैं-

(1) वस्तुओं की कीमतें उत्पादन के साधनों की कीमतों से निर्धारित नहीं होती- इस सिद्धान्त में यह माना गया है कि वस्तुओं की कीमतें उत्पादन साधन की लागत से निर्धारित होती हैं। प्रो० विजन होल्ड्स के अनुसार यह विपरीत सम्बन्ध को व्यक्त करता है क्योंकि वस्तुओं की कीमतें उनसे प्राप्त उपयोगिता द्वारा निर्धारित होती हैं और उत्पादन के साधनों की कीमतें स्वयं वस्तुओं की कीमतों पर आधारित होती हैं।

(2) आंशिक साम्य विश्लेषण- हैबरलर के अनुसार आधुनिक सिद्धान्त के विस्तृत सामान्य साम्य प्रणाली को विकसित करने में असफल रहा है। यह तो एक आंशिक साम्य विश्लेषण ही है।

(3) पूर्ति को अधिक महत्त्व- आधुनिक सिद्धान्त में साधन कीमतों के निर्धारण में माँग की अपेक्षा पूर्ति को अधिक महत्त्व दिया गया है, जबकि दो देशों में माँग दशाओं में सापेक्षिक भिन्नताएँ भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधार बन सकती हैं।

(4) उत्पादन के साधन समान नहीं होते- ओहलिन विभिन्न देशों में उत्पादन के साधनों को बिल्कुल समरूप मानते हैं। स्टोपलर सैम्युल्सन के अनुसार, ‘यह सिद्धान्त उस समय फेल हो जाता है। जब दो देशों में उत्पादन फलन भिन्न होते हैं या विभिन्न देशों में उत्पादन के साधन समान नहीं होते।’

(5) दो देशों के बीच एक ही साधन गहन वस्तु का आयात-निर्यात सम्भव है-  प्रो० बी० एस० मिन्हास के अनसार दो देशों के मध्य एक ही साधन प्रधान (श्रम प्रधान) वस्तुओं में व्यापार सम्भव है, जबकि आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार यह सम्भव नहीं है।

(6) उपभोक्ता अधिमान व माँग में अन्तर- कुछ आलोचकों के अनुसार यदि वस्तुओं के लिए उपभोक्ता की पसन्दगी और माँग में अन्तरों को स्वीकार किया जाता है तो वस्तु-कीमत अनुपात लागत अनुपातों को व्यक्त नहीं कर पायेंगे। ऐसी स्थिति में व्यापार का स्वरूप आधुनिक सिद्धान्त के अनुरूप नहीं होगा।

उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद ओहलिन का साधन अनुपात सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारणों की अन्य समस्त सम्भव व्याख्याओं में एक सर्वाधिक प्रामाणिक व्याख्या है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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