अर्थशास्त्र / Economics

आन्तरिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर | आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में समानता | आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भिन्नता | निरपेक्ष व्यापार/निरपेक्ष लाभ सिद्धांत

आन्तरिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर | आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में समानता | आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भिन्नता | निरपेक्ष व्यापार/निरपेक्ष लाभ सिद्धांत | Difference between internal and international trade in Hindi | Equality between internal and international trade in Hindi | Difference between internal and international trade in Hindi | Absolute trade/absolute profit theory in Hindi

आन्तरिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर

वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय को लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य को व्यापार कहते हैं। व्यापार दो प्रकार के होते हैं- प्रथम आंतरिक अथवा अंतक्षेत्रीय व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। जब व्यापार या वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय किसी राष्ट्र की भौगोलिक सीमा के भीतर किया जाता है तो उसे आन्तरिक व्यापार कहते हैं।

उदाहरण- उत्तर प्रदेश तथा गुजरात से आगे जब दो देशों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय होता है तो उसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। उदाहरण-भारत व अमेरिका के बीच।

आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में समानता

(Similarity between Internal and International Trade)

इन दोनों प्रकार के व्यापार में कुछ समानतायें पाई जाती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय (Exchange of Goods and Services) – दोनों प्रकार के ही व्यापार में वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय किया जाता है। मुद्रा के चलन ने इस विनिमय को सरल एवं सुविधाजनक बना दिया है।

(2) विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन (Specialisation and Division of Labour)- आन्तरिक व्यापार में दो क्षेत्रों में जो व्यापार होता है, वह विशिष्टीकरण का परिणाम है, जैसे-महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश को कपास बेचता है, क्योंकि महाराष्ट्र में कपास पैदा करने की अनुकूल दशायें हैं तथा उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र को शक्कर बेचता है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग को विकसित होने की अनूकूल दशायें हैं। इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी दो देशों के बीच होने वाले व्यापार का आधार क्षेत्रीय विशिष्टीकरण ही होता है।

( 3 ) सामाजिक सम्बन्ध (Social Relationship)- जब एक ही देश में दो दूरस्थ क्षेत्रों में व्यापार होता है, तो दोनों एक दूसरे के सामाजिक रीति रिवाज और परम्पराओं का आदान- प्रदान होता है, जैसे- गुजरात एवं पश्चिमी बंगाल के बीच व्यापार होगा, तो दोनों एक दूसरे की संस्कृतियों से परिचित होंगे। इसी प्रकार जब दो देशों के बीच व्यापार होता है, तो उसमें भी सामाजिक और सांस्कृतिक विचारों का आदन-प्रदान होता है।

आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भिन्नता

(Difference between Internal and International Trade)

इन दोनों प्रकार के व्यापारों में कुछ समानता होते हुए भी इनमें कुछ अन्तर पाये जाते हैं, जो कि निम्नलिखित है-

(3) औद्योगिक एवं व्यावसायिक नीति में अन्तर (Differences in the Industrial and Commercial Policies)- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दो या दो से अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच होता है, जो औद्योगिक एवं व्यावसायिक मामलों में बिल्कुल स्वतंत्र नीति का अनुसरण करते हैं, जबकि आन्तरिक व्यापार देश के अन्दर दो स्थानों के बीच होता है, जहाँ कि एक ही प्रकार की नीति का अनुसरण किया जाता है।

(4) पृथक बाजार (Separate Market)- विभिन्न देशों के बाजारों में भाषा, रीति- रिवाज आदत, रुचि एवं फैशन आदि के आधार पर भिन्नता पाई जाती है, जैसे-ब्रिटेन लोग दायें चालित मोटरगाड़ी, (Right Hand Driven Cars) का प्रयोग करते हैं, जबकि फ्रेन्च बाम चालित (Left hànd Driven Cars) का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार मोटर गाड़ी का बाजार पृथक-पृथक हो जाता है।

निरपेक्ष व्यापार/निरपेक्ष लाभ सिद्धांत

एडम स्मिथ के अनुसार, ‘दो देशों के बीच व्यापार का आधार उनके बीच वस्तुओं के उत्पादन में निरपेक्ष लाभ अन्तर या निरपेक्ष लागत अन्तर होता है।’ यदि एक देश किसी एक वस्तु के उत्पादन में दूसरे देश की अपेक्षा स्पष्ट रूप से या निरपेक्ष रूप से कुशल है तथा दूसरा देश किसी दूसरी वस्तु के उत्पादन में निरपेक्ष रूप से या स्पष्ट रूप उत्तम है या पहली वस्तु के उत्पादन में निरपेक्ष रूप से खराब स्थिति में है ऐसी स्थिति में यदि प्रत्येक देश उस वस्तु के उत्पादन में विशिष्टीकरण प्राप्त करे तथा उत्पादन करे जिसमें उसे निरपेक्ष लाभ (लागत) की स्थिति है तथा अपने उत्पादन के कुछ भाग के बदले दूसरे देश से उस वस्तु को प्राप्त करे जिसमें वह निरपेक्ष रूप से खराब स्थिति में है, तो इस क्रिया से दोनों देशों को लाभ प्राप्त होगा।

सिद्धान्त की व्याख्या (Explanation of Theory)-  इस सिद्धान्त के अनुसार दो देशों के मध्य व्यापार का उदय उसी समय होगा जबकि एक देश को एक वस्तु के उत्पादन में निरपेक्ष लाभ तथा दूसरी वस्तु के उत्पादन में निरपेक्ष हानि हो । प्रत्येक देश उस वस्त के निर्यात के लिए उत्सुक होगा जिसके उत्पादन में उसे निरपेक्ष लाभ प्राप्त होगा तथा उस वस्तु के आयात के लिए इच्छुक होगा जिसके उत्पादन में निरपेक्ष हानि प्राप्त होगी। अन्य शब्दों में, एक देश में निर्यात योग्य वस्तु की कीमत दूसरे देश की तुलना में कम होनी चाहिये और यह तभी संभव है जबकि वस्तु के उत्पादन में उस देश को तुलनात्मक लाभ प्राप्त हो। किन्तु तुलनात्मक लाभ तभी प्राप्त होगा जबकि निरपेक्ष लाभ प्राप्त हो। इस सिद्धान्त के स्पष्टीकरण के लिए कल्पना कीजिए कि दो देश, भारत और बंगलादेश, व्यापार में संलग्न हैं और दोनों देश दो वस्तुओं-कपास और जूट का उत्पादन करते हैं। दोनों देशों में उत्पादन और लागत संरचना निम्न प्रकार है:

प्रति इकाई उत्पादन लागत (श्रम घण्टों में)

देश

कपास

जूट

भारत

5

10

बंगलादेश

10

5

उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि भारत में श्रम, कपास तथा बंगलादेश में जूट के उत्पादन में विशेष दक्ष है क्योंकि प्रति श्रम घण्टा भारत में 1/5 इकाई कपास या 1/10 इकाई जूट पैदा करता है जबकि बंगलादेश में उसकी उत्पादकता 1/10 इकाई कपास या 1/5 इकाई जूट है। कपास के उत्पादन में बंगलादेश की अपेक्षा भारत की श्रेष्ठता इस तथ्य से स्पष्ट है कि भारत में 0.2 इकाई कपास/ बंगलादेश में 0.1 इकाई कपास का अनुपात भारत में 0.1 इकाई  जूट/ बंगलादेश में 0.2 इकाई जूट के अनुपात से अधिक है। इस स्थिति में दोनों देश भारत और बंगलादेश, को तब लाभ होगा जब भारत कपास तथा बंगलादेश जूट का उत्पादन और निर्यात करे। यदि भारत केवल कपास के उत्पादन में तथा बंगलादेश, केवल जूट के उत्पादन में विशिष्टीकरण प्राप्त करें तो दोनों वस्तुओं का कुल संयुक्त उत्पादन अधिकतम होगा क्योंकि 15 घंटे की श्रम लागत से दोनों देशों में प्रत्येक वस्तु की 3,3 इकाइयां उत्पन्न होगी। यदि दोनों देश दोनों वस्तुओं का उत्पादन करते हैं तो प्रत्येक देश में दोनों वस्तुओं की 2, 2 इकाइयों का ही उत्पादन होगा। इस प्रकार 1 इकाई का अतिरिक्त लाभ होगा। इससे स्पष्ट है कि विशिष्टीकरण कुल उत्पादन को अधिकतम करता है।

विशिष्टीकरण के परिणामस्वरूप दोनों देशों को व्यापार से लाभ होता है। जब तक भारत को एक इकाई कपास के बदले में बंगलादेश से 1/2 इकाई जूट प्राप्त होता है (भारत में दोनों वस्तुओं का यही विनिमय अनुपात है) तब तक भारत को व्यापार से लाभ होगा। इसके विपरीत, बंगलादेश भारत को 1 इकाई कपास के बदले 2 इकाई जूट दे सकता है (बंगलादेश में दोनों वस्तुओं का यही विनिमय अनुपात है)। स्पष्ट है कि यदि दो देशों में उत्पादन लागतों में निरपेक्ष अन्तर है तो वस्तु विनिमय की पर्याप्त गुंजाइश है और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होगा।

मूल्यांकन (Evaluation)-

स्मिथ की व्याख्या न केवल सरल, स्पष्ट और व्यक्त है बल्कि विश्व व्यापार का अधिकांश भाग चाहे वह उष्ण कटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों या उद्योग-प्रधान और कृषि प्रधान देशों के मध्य हो, लागतों में निरपेक्ष अन्तर के सिद्धान्त पर ही आधारित है। फिर भी यह सिद्धान्त बहुत संतोषजनक नहीं है क्योंकि-‘बिना तर्क यह मान लेता है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए आवश्यक है कि निर्यात के उत्पादक को लागतों में निरपेक्ष लाभ प्राप्त हों अर्थात् निर्यातक देश दी हुई पूंजी और श्रम की सहायता से अपने प्रतिद्वन्दी से अधिक उत्पादन करने में समर्थ हो। परन्तु उस स्थिति में क्या होगा जब कि एक देश को किसी भी वस्तु के उत्पादन में स्पष्ट श्रेष्ठता न प्राप्त हो।’ एडम स्मिथ का संकीर्ण सिद्धान्त ऐसी परिस्थितियों का विश्लेषण प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा। अतः एक विस्तृत एवं व्यापक सिद्धान्त की आवश्यकता महसूस की गयी जो इन परिस्थितियों का विश्लेषण करने में समर्थ हो। फिर भी यह कहा जाता है कि इस सिद्धान्त का विकास 1815 में रॉबर्ट टारेंस के हाथों हो चुका थी। किन्तु रॉबर्ट टारेंस अपने विचारों के फैलाव के प्रति खुद ही अनभिज्ञ थे। अतः तुलनात्मक लागत के सिद्धान्त के प्रतिपादन का श्रेय रिकार्डों को ही प्राप्त है। रिकार्डो का निम्नलिखित मौलिक वाक्यांश जो आज के युग में भी सत्य है, वास्तव में उल्लेखनीय है। इस समस्या का समाधान डेविड रिकार्डो ने प्रस्तुत किया और स्मिथ की व्याख्या को अधिक विस्तृत ढांचे में फिट होने लायक बनाया।

“यह मानव जाति के सुख के दृष्टिकोण से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि श्रम के वितरण को बेहतर बनाकर, प्रत्येक देश द्वारा उन वस्तुओं का उत्पादन करके जिनके उत्पादन के लिए वह भौगोलिक स्थिति, जलवायु एवं अन्य प्राकृतिक या कृत्रिम सुविधाओं के कारण अधिक उपयुक्त है, और उन वस्तुओं को दूसरे देश की वस्तुओं से विनिमय करके, हमें अपनी खुशहाली में वृद्धि करनी चाहिए।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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