रूसो का जीवन-वृत्त

रूसो का जीवन-वृत्त | रूसो की रचनाएँ | Biography of Rousseau in Hindi | Rousseau’s works in Hindi

रूसो का जीवन-वृत्त | रूसो की रचनाएँ | Biography of Rousseau in Hindi | Rousseau’s works in Hindi

रूसो का जीवन-वृत्त और रचनाएँ

रूसो का जन्म सन् 1712 ई० में जेनेवा नगर में एक घड़ीसाज के घर में हुआ था। उसके जन्म के तुरन्त बाद ही उसकी माता का देहान्त हो गया। उसका पालन-पोषण उसकी लापरवाह चाची ने किया। उसका पिता भी अपने बेटे की ओर अधिक ध्यान नहीं दे पाता था; अतः बालक रूसो दिन भर इधर-उधर घूमता-फिरता और स्विटजरलैन्ड के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लेता था। धीरे-धीरे उसका प्रकृति-प्रेम बढ़ता गया और यह प्राकृतिक सौन्दर्य का उपासक हो गया। किन्तु पिता और चाची की लापरवाही से उसमें अनेक दुर्गुण आ गये। छः वर्ष की अवस्था में ही उसने अनेक उपन्यास पढ़ डालें। कुछ धार्मिक तथा ऐतिहासिक पुस्तकों का भी उसने अध्ययन किया। इस कारण उसकी मूल प्रवृत्तियाँ एवं आत्माभिव्यक्ति की भावना उद्दीत हुई। विद्यालय की शिक्षा उसे अपनी ओर आकृष्ट न कर सकी। क्योंकि उन दिनों विद्यालय की शिक्षा में बनावटीपन और कठोरता अधिक थी। अनुशासन की स्थापना के लिए कठोर से कठोर दंड दिया जाता था। इन परिस्थितियों का बाद में चलकर रूसो के शैक्षिक विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ा। दस वर्ष की अवस्था तक वह इधर-उधर को शिक्षा प्राप्त करता रहा। उसके बाद यह अपने चचेरे भाई के साथ एक अध्यापक के यहाँ लैटिन पढ़ने के लिए जाने लगा। परन्तु वहाँ भी उसका मन नहीं लगा। 12 वर्ष की अवस्था में वह एक व्यवसायी के यहाँ काम करने लगा। परन्तु व्यवसायी के कठोर एवं निर्दय व्यवहार ने उसे वहाँ से भी भाग जाने के लिए मजबूर किया। वहाँ से भागकर वह निरुद्देश्य इधर-उधर घूमता रहा और 21 वर्ष की अवस्था तक बड़ा कष्टमय जीवन बिताया। इसी बीच समाज ने उस पर एक झूठा आरोप लगाकर दण्डित किया। इस कठोर दण्ड से उसके युवा हृदय को असहनीय ठेस पहुँची। उसने जेनेवा छोड़ देने का निश्चय किया। वह वहाँ से भाग कर फ्रांस चला गया। यहीं से उसके जीवन में एक नया मोड़ आता है।

फ्रांस जाकर रूसो बीमार पड़ गया। बीमारी की अवधि में उसकी रुचि साहित्य के अध्ययन की ओर बढ़ी। उसने प्लेटो, हॉब्स, लॉक, मॉन्टेन, वाल्टेयर आदि के ग्रंथों का अध्ययन किया और अपने विचारों को क्रमबद्ध करने का प्रयत्न किया। उसने स्वयं भी लेखक बनने का विचार किया। संयोगवश इसी समय उसका परिचय कुछ लेखकों से हो गया और उसने लिखना आरम्भ किया। रूसो के ऊपर प्लेटो की ‘दि रिपब्लिक’ और डीफो की ‘राबिन्सन क्रूसो’ नामक पुस्तकों का अमिट प्रभाव पड़ा। इन दिनों फ्रांस में लुई पन्द्रहवाँ का राज्य था। उसके शासन काल में विलासिता, कठोरता और निर्दयता का बोलबाला था और गरीबों तथा छोटे लोगों का शोषण हो रहा था। जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई थी और उनकी दशा सुधारने का कोई उपाय नहीं हो रहा था। रूसो ने इस शासन के विरुद्ध आवाज उठायी और शोषण के विरोध में लेख लिखे, जिसकी प्रतिक्रियास्वरूप राज्यक्रांति हुई। लोगों के दुखों और कठिनाइयों को देखकर तथा स्वयं के जीवन के कटु अनुभवों के आधार पर उसने यह निष्कर्ष निकाला कि समाज अत्यन्त ही दूषित और कृत्रिम है। इसमें दया, प्रेम, सहानुभूति, सरलता, नम्रता और वास्तविकता का अभाव है। उसने एक स्थान पर लिखा भी है-“प्रकृति के नियामक के हाथों में आने वाली प्रत्येक वस्तु अच्छी होती है, किन्तु मनुष्य के हाथ में आकर वह दूषित हो जाती है।” लॉक द्वारा लिखित ‘शिक्षासम्बन्धी कुछ विचार’ नामक पुस्तक से वह, शिक्षक बनने के लिए प्रेरित हुआ। सन् 1741 ई० में उसने दो बालकों को पढ़ाना शुरू किया, लेकिन वह अधिक दिनों तक उन्हें नहीं पढ़ा सका। 1744 ई० में उसने अपनी दासी से विवाह कर लिया। किन्तु अभी तक उसकी आर्थिक कठिनाइयाँ दूर नहीं हुई थीं जिसके लिए वह अध्यापक, संगीत अध्यापक, सेक्रेटरी, प्रतिलिपिकार, कम्पोजीटर तथा लेखक आदि के रूप में विभिन्न प्रकार के व्यवसायों को अपनाता और छोड़ता रहा।

रचनाएँ-

सन् 1750 ई० में रूसो की रचनाएँ प्रकाशित होने लगीं। उसकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) ‘प्रोजेक्ट फॉर दि एजुकेशन ऑव एन० डी-सेन्ट मेरी- इसको उसने 1750 ई० से पूर्व लिखा था। यह पुस्तक दो बालकों को शिक्षा से सम्बन्धित है।

(2) ‘डिस्कोर्स ऑन दि साइन्सेज एन्ड आर्ट्स’- इसकी रचना 1751 ई० में हुई, जिस पर उसे पुरस्कार भी मिला। उसने प्रकृति और प्राकृतिक जीवन के महत्व पर प्रकाश डाला है और सिद्ध किया है कि विज्ञान की प्रगति के कारण मानव जीवन दूषित हो गया है।

(3) ‘दि ओरिजिन ऑव इनइक्वेलिटी एमंग मेन’- इस रचना में उसने यह सिद्ध किया है कि मनुष्य-मनुष्य में भेद-भाव उत्पत्र करने का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व सभ्यता के विकास को है। इसी कारण उसने ‘प्रकृति की ओर लौटो’ का नारा लगाया था।

(4) डिस्कोर्स ऑन पोलिटिकल एकानमी’- इसमें रूसो के अर्थशास्त्रसम्बन्धी विचार हैं।

(5) ‘दि न्यू हैलॅयज’- यह रचना 1761 ई० में प्रकाशित हुई। इसमें उसने पारिवारिक शिक्षा पर प्रकाश डाला और ऐसी शिक्षा में माता का महत्व स्पष्ट किया है।

(6) ‘दि सोशल कान्ट्रेक्ट’- यह ग्रंथ रूसो का एक महान ग्रंथ है, जिसकी रचना उसने सन् 1761 ई० में की थी। इसमें रूसो ने अपने सामाजिक एवं राजनैतिक विचार प्रकट किये  है। उसने लिखा है कि “मनुष्य जन्म से स्वतन्त्र है लेकिन यह सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है।”

(7) ‘एभील’- रूसो का यह एक महान् ग्रंथ है। यह ग्रंथ शिक्षा सम्बन्धी विचारों से भरा है। यदि इसे शिक्षाविषयक शोध ग्रंथ पहा जाय तो अनुचित न होगा। इस ग्रंथ ने रूसो को महान शिक्षाशास्त्री तथा शिक्षा सुधारक सिद्ध किया। ‘एमील’ में एमील नामक एक कल्पित युवक की शिक्षा का वर्णन है। रूसो उसे समाज के कृत्रिम वातावरण से दूर कृति के सरल और स्वाभाविक पातावरण में मनोवैज्ञानिक व्यवस्था के अनुसार शिक्षित करना चाहता है। रूसो का विचार है कि बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसके मन, मस्तिष्क और शरीर को स्वतन्त्रतापूर्वक विकसित करना है। इसके लिए उसकी शिक्षा कृत्रिमता से हटकर स्वाभाविकता के वातावरण में स्वाभाविक रीति से होनी चाहिए। हर दृष्टि से यह ग्रंथ उच्चकोटि का या किन्तु राजनीतिज्ञों और धर्माधिकारियों की दृष्टि में इसे एक धर्म-विरोधी ग्रंथ ठहराया गया। परिणामस्वरूप इसे स्थान-स्थान पर जलाया गया। फ्रांस और स्विटजरलैण्ड में उसकी किताब पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इसी कारण उसे फ्रांस छोड़ना पड़ा।

(8) ‘कन्फेशन्स’- यह रूसो का अन्तिम ग्रंथ है। सन् 1766 ई० में वह फ्रांस छोड़कर इंगलैण्ड चला गया और 1770 में पुनः फ्रांस वापस लौट आया। ‘कन्फेशन्स’ का प्रथम भाग उसने इंगलैण्ड में ही पूरा कर लिया था। इसका दूसरा भाग उसने फ्रांस में लिखा। इस ग्रंथ में रूसो की अपनी जीवनी है।

सन् 1778 ई० में इस महान् शिक्षाशास्त्री की मृत्यु हो गई। सन् 1793 ई० में क्रांसीसी सम्बन्धियों ने उसके गड़े हुए शव को उखाड़ कर बड़े सम्मान के साथ किसी सम्मानित कब्रिस्तान में फिर से दफनाया।

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