शिक्षाशास्त्र / Education

मुस्लिमकालीन शिक्षा व्यस्था | मुस्लिमकालीन शिक्षा के उद्देश्य | मुस्लिमकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र

मुस्लिमकालीन शिक्षा व्यस्था | मुस्लिमकालीन शिक्षा के उद्देश्य | मुस्लिमकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र

मुस्लिमकालीन शिक्षा व्यवस्था

(Educational System in Muslim Period)

(1) धार्मिक शिक्षा (Religious education)-

धार्मिक शिक्षा के अन्तर्गत छात्र को कुरान की आयतें कण्ठस्थ करने के अतिरिक्त उनका सूक्ष्म एवं आलोचनात्मक अध्ययन करना पड़ता था। छात्र को सूफी सिद्धान्तों एवं इस्लामी इतिहास, कानूनों, सिद्धान्तों और परम्पराओं का भी अध्ययन करना, पड़ता था।

(2) लौकिक शिक्षा (Secular or Worldly Education)-

छात्र को इन विषयों की शिक्षा दी जाती थी-

(i) अरबी और फारसी भाषाओं का साहित्य एवं व्याकरण।

(ii) कृषि, गणित, भूगोल, कानून, ज्योतिष, अर्थशसत्रि, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र।

तथापि उपर्युक्त सब विषयों की शिक्षा सब मदरसों में न दी जाकर प्रत्येक मदरसे में साधारणत: दो विषयों की शिक्षा दी जाती थी, जैसे-

(i) दिल्ली के मदरसे में कविता और संगीत की शिक्षा दी जाती थी।

(ii) स्यालकोट के मदरसे में गणित और ज्योतिष की शिक्षा दी जाती थी।

(iii) रामपुर के मदरसे में ज्योतिष और अर्थशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी।

(2) शिक्षण विधि (Method of Teaching)-

(i) मदरसों में मौखिक शिक्षण-विधि थी।

(ii) छात्रों को शिक्षा देने के लिए अध्यापकों के द्वारा भाषण-विधि प्रयुक्त होती थी।

(iii) कक्षा-नायकीय पद्धति का पर्याप्त प्रचलन था।

(iv) धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र और राजनीतिशास्त्र के शिक्षण में तर्क-विधि मुख्य थी।

(v) संगीत, हस्तकला, चित्रकला और चिकित्साशास्त्र आदि विषयों की शिक्षा में व्यावहारिक कार्य की व्यवस्था थी।

(vi) छात्रों को स्वाध्याय के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।

(3) शिक्षा का माध्यम (Medium of Education)-

राज्य की भाषा, फारसी थी। इस भाषा का ज्ञान प्राप्त करके ही मनुष्यों को राजपद प्राप्त हो सकते थे। फारसी को शिक्षा के माध्यम के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। गन्नार मिरडल के अनुसार, “उच्च स्तर पर शिक्षा का माध्यम फारसी भाषा थी।”

(4) परीक्षायें (Examinations)-

मुस्लिम युग में छात्रों की परीक्षा की कोई निश्चित प्रणाली नहीं थी। शिक्षक प्रत्येक छात्र के ज्ञान के ज्ञान का स्वयं मूल्यांकन करके, उसे उच्च कक्षा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान कर देता था।

(5) उपाधियाँ (Degrees)-

प्राय: शिक्षा समाप्त करने वाले छात्रों को प्रमाण-पत्र या उपाधियाँ नहीं दी जाती थी, किन्तु जो छात्र अपने अध्ययन के विषय में असाधारण योग्यता का प्रमाण दिया करते थे, उनको उपाधियों से विभूषित किया जाता था। उदाहरणार्थ-

(i) साहित्य के छात्रों को ‘काबिल’ की उपाधि प्राप्त होती थी।

(ii) धर्मशास्त्र के छात्रों को ‘आलिम’ की उपाधि प्राप्त होती थी।

(iii) तर्कशास्त्र एवं दर्शनशास्त्र के छात्रों को ‘फाजिल’ की उपाधि प्राप्त होती थी।

छात्रों को उपाधियों प्रदान करने के समय नियमित रूप से समारोह का आयोजन किया जाता था।

मुस्लिमकालीन शिक्षा के उद्देश्य

(Aims of Medieval Period Education)

मुस्लिम कालीन शिक्षा के उद्देश्य वैदिक कालीन शिक्षा व बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्यों से पूर्णतया भिन्नथे। मुस्लिम शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार थे-

(1) इस्लाम धर्म का प्रचार व प्रसार करना-

इस्लाम धर्म के अनुसार इस्लाम धर्म का प्रचार और प्रसार करना प्रत्येक मुसलमान का कर्त्तव्य था ओर इसे बड़े पुण्य का काम समझा जाता था। इसीलिए मुस्लिम शासकों ने भारत पर शासन करने के दौरान इस्लाम धर्म का प्रचार और प्रसार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। इस काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना था।

(2) मुस्लिम संस्कृति का प्रचार व प्रसार करना-

मुस्लिम काल की शिक्षा का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य इस्लाम धर्म के रीति-रिवाजों, सिद्धांतों, परम्पराओं तथा कानूनों का भारतीयों तक प्रचार व प्रसार करना था। भारत में मुस्लिम शासन के दौरान बहुत से हिंदुओं ने विभिन्न कारणों से इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था । इसलिए इन नये मुसलमानों को शिक्षा के द्वारा मुस्लिम संस्कृति से परिचित कराना बहुत आवश्यक था। मुस्लिम शासकों ने राजकीय कार्यों में भी मुस्लिम-संस्कृति को आधार बनाया।

(3) मुसलमानों में ज्ञान का प्रसार करना-

मुस्लिम शिक्षा का ठद्देश्य मुसलमानों में ज्ञान का प्रसार करना था। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक और अनुयायी ज्ञान को मुक्ति प्राप्त करने का साधन मानते थे। अत: प्रत्येक मुसलमान के लिए ज्ञान प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण था। ज्ञान के द्वारा ही मनुष्य धर्म-अधर्म, उचित-अनुचित आदि का निर्णय लेने में समर्थ हो सकता है।

(4) सांसारिक उन्नति करना-

मुस्लिम काल में शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को इस प्रकार से तैयार करना था कि वे अपने भावी जीवन को सफल बना सकें तथा सांसारिक उन्नति कर सकें, क्योंकि मुस्लिम संस्कृति में सांसारिक वैभव और ऐश्वर्य को अधिक महत्त्व दिया जाता था तथा परलोक पर विश्वास नहीं किया जाता था। इसलिए मुस्लिम काल में शिक्षा को आध्यात्मिक विकास का साधन न मानकर भावी जीवन की तैयार माना जाता था।

(5) मुस्लिम शासन को सुदृढ़ करना-

मुस्लिम काल में शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य मुस्लिम शासन को सुदृढ़ करना भी था मुस्लिम शासकों ने शिक्षा के द्वारा अपने शासन को अधिकाधिक दृढ़ बनाने का निश्चय किया, क्योंकि मुस्लिम शासकों ने शासन व्यवस्था में मुस्लिम संस्कृति को अधिक स्थान दिया था। इसलिए शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुस्लिम संस्कृति में निपुण व्यक्तियों की आवश्यकता थी। इसके अलावा मुस्लिम शासक ऐसे नागरिक तैयार करना चाहते थे जो मुस्लिम शासन का विरोध न कर सकें।

मुस्लिमकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र (मध्यकालीन)

(Chief Types of Educational Institution of Medieval Period)

मुस्लिम कालीन युग में निम्न प्रकार की शिक्षा-संस्थाएँ थीं-

(1) मकतब (Maktabs)-

‘मकतब’ शब्द की उत्पत्ति, अरबी के ‘कुतुब’ (Kutub) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है-‘उसने लिखा’ (H wrote)। उर्दू भाषा के ‘कुतुब’ शब्द-‘किताब का बहुवचन है। इस प्रकार, ‘मकतब’ वह स्थान है जहाँ बालकों को पढ़ना और लिखना। सिखाया जाता है। इस प्रकार, ‘मकतब’ प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे। ये प्राय: किसी मस्जिद से सम्बद्ध होते थे कहीं- कहीं मौलवी व्यक्तिगत रूप से अपने घरों पर या अन्य सुविधाजनक स्थानों पर कमतब का संचालन करते थे।

मकतबों में बच्चों का प्रवेश 4 वर्ष 4 माह और 4 दिन की आयु पर किया जाता था। प्रवेश के समय सभी बच्चों की ‘बिस्मिल्लाह खानी’ की रस्म होती थी। बच्चे को नए वस्त्र पहनाकर शिक्षक (उत्पाद, मौलवी) के सामने उपस्थित किया जाता था शिक्षक बच्चे से कुरान शरीफ की कुछ आयतें दोहरवाते थे। जो बच्चे कुरान शरीफ की आयतें नहीं दोहरा पाते थे उनसे बिस्मिल्लाह शब्द का उच्चारण करवाते थे। बिस्मिल्लाह का अर्थ है- अल्लाह के नाम पर। इसके बाद बच्चे को मकतब में प्रवेश दिया जाता था। मकतबों में बच्चों को निम्न प्रकार की शिक्षा दी जती थी-

(i) उन्हें कुरान शरीफ की आयतें रटाई जाती थीं,

(ii) उन्हें गणित की शिक्षा दी जाती थी।

(2) मदरसा (Madarsah)-

मदरसा शब्द अरबी भाषा के ‘दरस’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है – भाषण देना। चूँकि उस समय उच्च शिक्षा प्रायः भाषाण द्वारा दी जाती थी अत: उन स्थानों को जहाँ भाषण द्वारा शिक्षा दी जाती थी, मदरसे का नाम दिया गया। ये मदरसे प्रायः राजधानियों और मुस्लिम बाहुल्य बड़े-बड़े नगरों में स्थापित किये गये थे। इन मरदसों के भवन, पुस्तकालय और छात्रावास आदि के निर्माण में तत्कालीन मुसलमान शासकों का योगदान रहा। ये मदरसे बहुअध्यापकीय थे। इनके अध्यापकों को उच्च वेतन दिया जाता था। इनको राजकोष से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती थी।

अधिकतर मदरसों में बड़े-बड़े पुस्तकालय स्थित थे इन पुस्तकालयों में अरबी एवं फारसी भाषा और इस्लाम धर्म के सभी मुख्य ग्रन्थों की कई-कई प्रतियोँ थी। उनमें अध्यापक निवास और छात्रावास भी थे। मनोरंजन के लिए पार्क, तालाब और खेल के मैदानों की व्यवस्था थी। छात्रावसों में छात्रों को भोजन दिया जाता था, सोने के लिए कालीन दिए जाते थे।

यद्यपि मदरसों की सम्पूर्ण व्यवस्था जैसे-भवन, पुस्कालय, और छात्रावास निर्माण, शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों को बेतन भुगतान और छात्रावासों में रहने वाले छात्रों की भौजन व्यवस्था के लिए राज्य से आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी परन्तु इनका प्रबन्ध अध्यापकों के हाथों में था। प्रत्येक मदरसे में अध्यापकों की एक प्रबन्ध समिति गठित की जाती थी।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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