राजनीति विज्ञान / Political Science

स्थानीय स्वशासन | स्थानीय शासन से आशय | स्थानीय शासन की भूमिका | स्थानीय शासन की विशेषताएँ | स्थानीय शासन की आवश्यकता

स्थानीय स्वशासन | स्थानीय शासन से आशय | स्थानीय शासन की भूमिका | स्थानीय शासन की विशेषताएँ | स्थानीय शासन की आवश्यकता

स्थानीय स्वशासन (स्थानीय शासन से आशय)

भारत में स्थानीय शासन’ प्रायः स्थानीय स्वशासन’ कहलाता है। इस पद की उत्पत्ति उस समय हुई थी जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था और जनता को केन्द्रीय अथवा प्रान्तीय किसी भी स्तर पर स्वशासन उपलब्ध नहीं था। जब ब्रिटिश सरकार ने भारhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4तीयों को स्थानीय शासन से सम्बद्ध करने का निर्णय किया तो उसका अभिप्राय जनता को कुछ अंशों में स्वशासन प्रदान करना था। किन्तु आज जबकि देश में केन्द्रीय तथा राज्यीय दोनों स्तरों पर स्वशासन की स्थापना हो चुकी है, स्थानीय स्वशासन शब्द का महत्व लुप्त हो चुका है। वस्तुतः भारतीय संविधान में ‘स्थानीय शासन’ पद का प्रयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त नई दिल्ली नगर समिति (न्यू देहली म्युनिसिपल कमेटी) जैसी संस्थाएं भी हैं जिनका रूप प्रतिनिधिक नहीं है, इसलिए स्थानीय स्वशासन’ शब्द का प्रयोग पूर्णतः शुद्ध नहीं होगा। ‘स्वशासन’ शब्द कुछ उलझन भी पैदा कर सकता है, क्योंकि उससे कुछ साधुता अथवा पवित्रता को ध्वनि निकलती है जिसका दावा करना अनावश्यक है, और अनक अवसरों पर उसे उचित ठहराना भी कठिन हो जाता है।

स्थानीय शासन की भूमिका

जब लोग किसी स्थान पर मिलकर रहने लगते हैं तो सामुदायिक जीवन के फलस्वरुप कुछ समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन समस्याओं का सम्बन्ध नागरिक जीवन की सुविधाओं से होता है, जैसे पानी की व्यवस्था, कूड़े-करकट का हटाना, गन्दे पानी के निष्कासन के लिए नालियों का प्रबन्ध, प्रकाश की व्यवस्था, महामारियों की रोकथाम, स्वास्थ्य-सम्बन्धी सुविधाएँ, सड़कें आदि। जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ आवासीय क्षेत्र का आकार बढ़ता है तथा परिणामतः अन्य समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं और वे अधिक उग्र रूप धारण कर लेती हैं। उदाहरण के लिए, व्यापार एवं वाणिज्य का नियमन, खतरनाक न अस्वास्थ्यकर उद्यमों का नियन्त्रण, शिक्षा की सुविधाएँ सार्वजनिक स्वास्थ्य आदि। विज्ञान तथा औद्योगिकी की प्रगति के साथ मनुष्य की जीवनयापन के लिए आवश्यक न्यूनतम सुविधाओं के सम्बन्ध में धारणा भी बदलने लगती है, अतः स्थानीय शासन को जो कार्य करने चाहिए उनमें निरन्तर वृद्धि होती रहती है। विद्यमान सुविधाओं का परिवर्द्धन करना पड़ता नई सुविधाएँ जुटाने का कार्य हाथ में लेना पड़ता है, और विभिन्न कार्यों के सम्पादन की प्रक्रिया में निरन्तर सुधार करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में, स्थानीय शासन का उत्तरदायित्व उन सब सुविधाओं को जुटाना है जो शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन को अधिकाधिक अचछा बनाने के लिए आवश्यक होती हैं।

इनमें से कुछ कार्य तो सामान्य प्रकृति के होते हैं, उनका सम्बन्ध व्यापकता तथा तीव्रता दोनों की दृष्टि से अन्य स्थानों में बसने वाले समुदायों के साथ भी होता है, इसलिए उनसे होने वाले लाभ अनन्य रूप से किसी एक समुदाय को प्रदान नहीं किये जा सकते। अतः इन कार्यों को प्रादेशिक अथवा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित, कार्यक्रमबद्ध और सम्पादित करना पड़ता है, तथा उनका सीधा सम्बन्ध प्रान्तीय अथवा राष्ट्रीय सरकार से होता है।

किन्तु स्थानीय शासन के कार्यों की संख्या कम नहीं होती। वस्तुतः स्थानीय शासन के कार्यों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। स्थानीय शासन ने ऐसे अनेक नये कार्यों का दायित्व अपने ऊपर लिया है जिनके द्वारा या तो नागरिकों के आचरण का नियमन होता है अथवा जिनसे नागरिकों की सेवा होती है, जैसे सामूहिक परिवहन की व्यवस्था, दरिद्र लोगों के लिए भवनों का निर्माण, बिजली, स्वास्थ्य केन्द्रों, पार्कों और क्रीड़ा-क्षेत्रों की व्यवस्था। वस्तुतः आजकल  लोगों के दैनिक जीवन में स्थानीय शासन का प्रान्तीय अथवा केन्द्रीय शासन से भी अधिक महत्व है। इससे भी अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि भविष्य में स्थानीय शासन के कार्यों में निरन्तर वृद्धि होते रहने की सम्भावना बढ़ रही है। विलियम ए.रॉब्सन ने उचित ही कहा है: “आज स्थानीय प्राधिकरणों को काम करने का पहले से कहीं अधिक सुअवसर उपलब्ध है। यदि केन्द्रीय शासन की शक्तियाँ बढ़ रही हैं तो स्थानीय निकायों के कामों में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है।

स्थानीय शासन की विशेषताएँ

देश में रेल, प्रतिरक्षा विभाग आदि अनेक ऐसे संस्थान हैं जो सड़कों, परिवहन, पानी, बिजली, शिक्षा, मनोरंजन के साधनों आदि का अपना पृथक् प्रबन्ध करते हैं- -वस्तुतः वे उन सब कार्यों की व्यवस्था करते हैं जो सामान्यतः स्थानीय शासन के अन्तर्गत आते हैं। फिर भी उन्हें स्थानीय शासन का नाम नहीं दिया जा सकता। स्थानीय शासन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: प्रथम उसका रूप सांविधिक होता है अर्थात संविधि (अधिनियम) द्वारा उसकी रचना की जाती है, द्वितीय, उसे अपने क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत बसने वालों पर कर लगाकर वित्त एकत्र करने का अधिकार होता है; तीसरे, स्थानीय समुदायों की कुछ विशिष्ट विषयों के सम्बन्ध में निर्णय करने में तथा उनके प्रशासन में साझेदारी होती है; चौथे, स्थानीय शासन को केन्द्रीय नियन्त्रण से मुक्त रहकर काम करने का अधिकार होता है; और अन्त में उनका स्वरूप एकोद्धार न होकर सामान्य उद्देश्यीय हुआ रकता है। विलियम ए. रॉब्सन लिखता है: “सामान्यतः स्थानीय शासन में एक ऐसे प्रादेशिक, प्रभुत्वहीन समुदाय की धारणा निहित होती है जिसके पास अपने मामलों का नियमन करने का विधिक अधिकार तथा आवश्यक संगठन हुआ करता है। इसके लिए एक ऐसी सत्ता का होना आवश्यक है जो बाह्य नियन्त्रण से मुक्त रह कर काम कर सके, और यह भी आवश्यक है कि स्थानीय समुदाय का अपने मामलों के प्रशासन में साझा हो। स्थानीय शासन में ये तत्व किस सीमा तक विद्यमान होते हैं, इस विषय में न्यूनाधिक अन्तर हो सकता है।”

स्थानीय शासन की आवश्यकता

शासन के एक विशिष्ट घटक (इकाई) के रूप में स्थानीय प्रशासन का उदय अनेक तत्वों की पारस्परिक क्रिया और प्रतिक्रिया का फल है। उदाहरण के लिए, इसके विकास में ऐतिहासिक, विचारात्मक और प्रशासनिक तत्वों ने विशेष योग दिया है। ऐतिहासिक दृष्टि से स्थानीय शासन स्पष्टतः राष्ट्रीय शासन से पहले का है। मनुष्य ने पहले अपने पड़ोस के शासन  का विकास किया, जैसे ग्राम-शासन, नगर-शासन इत्यादि। उसके बाद कहीं वह राष्ट्रीय शासन  जैसी दूरस्थ सत्ता की कल्पना कर सका अथवा उसके सामने घुटने टेकने पर विवश हुआ। राष्ट्रीय शासन के उदय और विकास के बाद भी स्थानीय शासन राष्ट्रीय शासन की इकाइयों के रूप में विद्यमान रहा। कारण यह था कि राष्ट्रीय शासन ने वे ही काम अपने हाथ में लिये जो सामान्य प्रकृति के प्रतीत हुए और जिनका सम्बन्ध सम्पूर्ण राज्य की जनता के हितों से था; स्थानीय महत्व के काम उसने स्थानीय शासन द्वारा सम्पादित किये जाने के लिए छोड़ दिये, जैसा कि पहले से होता आया था। लॉर्ड ब्राइस ने लिखा है: “कालान्तर में इन छोटे-छोटे समुदायों का प्रसार हुआ। कहीं-कहीं छोटे समुदाय परस्पर मिल गये और कहीं वे बड़े समुदायों के कलेवर में समा गये। इस प्रकार राष्ट्रों का निर्माण हुआ। सभा के अन्य कामों को या तो सम्पूर्ण राष्ट्र ने अपने हाथों में ले लिया (जैसे प्रतिरक्षा) अथवा उन्हें विशेष प्राधिकरणों के सुपुर्द कर दिया गया। प्राचीन यूनान तथा इटली के गणराज्यों में नियमित न्यायालयों की स्थापना की गयी। यूरोप के अधिकतर भागों में न्यायिक कार्य पहले सामन्तों और अन्त में, जैसा कि इंगलैण्ड और स्कॉटलैण्ड में हुआ, राजा के हाथों में चले गये। इस प्रकार लोकप्रिय स्वशासन अपने राजनीतिक, सैनिक तथा न्यायिक कार्यों से वंचित हो गया। किन्तु सामान्यतः उसके हाथों में समुदाय की जो कुछ भूमि थी उसके प्रबन्ध का अधिकार बना रहा और कुछ देशों में वह ग्रामीण सेवा के धर्मसंघ (चर्च) का प्रबन्ध भी करता रहा। आगे चलकर स्थानीय कल्याण से सम्बन्धित अन्य मामले भी उसके हाथों में आ गये।”

इसके अतिरिक्त स्थानीय समस्याओं को सुलझाने के लिए स्थानीय परिस्थितियों तथा वातावरण का ज्ञान आवश्यक होता है। कौन-से काम हाथ में लिये जायें, उन कामों को कब और किस प्रकार पूरा किया जाय, इस सबके लिए स्थानीय परिस्थितियों की गहरी और निकटस्थ जानकारी आवश्यक होती है। वस्तुतः इन्हीं आवश्यकताओं ने स्थानीय शासन के विचार को जन्म दिया है।

स्थानीय शासन राजनीतिक शिक्षा का एक सुनिश्चित साधन है। उसका सम्बन्ध मुख्यतः ठोस कार्यों से होता है; जैसे पार्क, पानी की व्यवस्था, मैला-कचड़ा को हटाने का प्रबन्ध इत्यादि। अतः स्थानीय परिषदों के निर्माण और कार्यों के परिणाम का समुदाय का प्रत्येक व्यक्ति सरलता से देख और जान सकता है। चूंकि इस प्रकार के काम एक सीमित क्षेत्र में ही सम्पादित किये जाते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति यह ज्ञात कर सकता है कि स्थानीय परिषदें अपना कार्य किस प्रकार कर रही हैं। अतः धीरे-धीरे उसका ऐसा स्वभाव बन जाता है कि वह निर्वाचित प्रतिनिधियों के सम्बन्ध में उनके कार्यों के आधार पर अपना विचार बनाता है, न कि उनके वायदों के आधार पर । चूँकि प्रत्येक कार्य जनता की आँखों के सामने होता है, इसलिए महत्वपूर्ण स्थानीय समस्याओं के सम्बन्ध में सूक्ष्म वाद-विवाद उठ खड़ा होता है।

स्थानीय शासन इसलिए भी आवश्यक होता है कि कुछ सार्वजनिक आवश्यकताएँ संघनता, स्वरूप तथा विस्तार की दृष्टि से स्थानीय हुआ करती हैं। दूसरे शब्दों में उनका सम्बन्ध सभी क्षेत्रों से नहीं होता, अथवा सघनता की दृष्टि से उनके बीच महत्वपूर्ण प्रादेशिक अन्तर देखने को मिलते हैं। ऐसी समस्याओं को स्थानीय ढंग के समाधानों को विकसित करके ही सुलझाया जा सकता है। स्थानीय शासन उस प्रशासनिक एकरूपता की स्थापना को रोकता है जो राज्य की नौकरशाही का उद्देश्य हुआ करती है।

अन्त में, स्थानीय शासन व्यापक क्षेत्र में जनता की सेवा करता है तथा विविध प्रकार के और विशाल पैमाने के कार्य सम्पादित करता है। केवल व्यावहारिक बुद्धि से विचार करने पर ही हम इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि स्थानीय शासन को कायम रखना ही नहीं अपितु उसे सुदृढ बनाना भी अत्यन्त आवश्यक है। राज्य शासन के लिए इन सब कामों का भार अपने ऊपर लेना और उनका सम्पादन करना असम्भव है। सामुदायिक जीवन से सम्बन्ध रखने वाले अनेक ऐसे विषय हैं जिन्हें केवल स्थानीय शासन ही सम्पादित कर सकता है। ऐसा न होने पर भी राज्य शासन को ऐसे दैनिक कार्यों में उलझ कर अपनी शक्ति और क्षमता नष्ट नहीं करनी चाहिए. बल्कि उसे अधिक व्यापक महत्व के कामों में ही अपनी सम्पूर्ण शक्ति जुटानी चाहिए। अतः स्थानीय शासन राज्य शासन को ऐसे बहुत-से कामों से मुक्त कर देता है जिनको करना उसका उत्तरदायित्व है।

इसके अतिरिक्त स्थानीय शासन उन राजनेताओं के लिए अच्छी प्रशिक्षणशाला का काम करता है जिन्हें राज्यीय अथवा केन्द्रीय स्तर पर कार्य करना पड़ता है। वह क्षेत्र विशेष के सुयोग्य तथा नागरिक भावना से युक्त व्यक्तियों को अपने समुदाय की सेवा करने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार के अनुभवी तथा परखे हुए व्यक्तियों में से ही उन नेताओं का उदय होता है जो राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर के शासन का उत्तरदायित्व सँभाल सकते हैं। अतः स्थानीय शासन उच्चतर शासकीय स्तरों के लिए निरन्तर प्रतिभाशाली व्यक्ति तैयार करता रहता है। लॉर्ड ब्राइस का यह कथन सर्वथा उचित है: “यह कहना पर्याप्त है कि जिन देशों में लोकतान्त्रिक शासन ने जनता को सर्वाधिक आकृष्ट कया है और उसमें से नेता उत्पन्न किये हैं वे स्विट्जरलैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं, विशेषकर वे उत्तरी तथा पश्चिमी राज्य जहाँ ग्रामीण स्थानीय शासन सबसे अधिक विकसित हुआ है। ये उदाहरण इस सिद्धान्त की प्रामाणिकता सिद्ध करते हैं कि स्थानीय शासन की पद्धति लोकतन्त्र की सर्वोत्तम पाठशाला और उसकी सफलता की सबसे अच्छी गारण्टी है।” इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि प्रत्येक समुदाय में ऐसे व्यक्ति हुआ करते हैं जिनमें अपने पड़ोसी समुदाय की सेवा करने की प्रेरणा विद्यमान रहती है किन्तु जो विभिन्न कारणों से अपना स्थान छोड़कर अन्यत्र जाने में हिचकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को स्थानीय समस्याओं के सम्बन्ध में विशिष्ट योग्यता प्राप्त करने तथा नागरिक नेताओं के रूप में उभरने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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