शिक्षा में आदर्शवाद का मूल्यांकन | Evaluation of Idealism in Education in Hindi

शिक्षा में आदर्शवाद का मूल्यांकन | Evaluation of Idealism in Education in Hindi

शिक्षा में आदर्शवाद का मूल्यांकन-

आदर्शवाद की विचारधारा दर्शन एवं शिक्षा दोनों क्षेत्रों में प्रवाहित हुई है। दर्शन के रूप में आदर्शवाद ने भौतिक जगत को नश्वर, अनित्य और परिवर्तनशील कहा है। आध्यात्मिक जगत, विचार जगत और आदर्श मूल्यों का जगत ही स्थायी, नित्य एवं शाश्वत होता है। आदर्शवादी दर्शन मानव जीवन में एक प्रकाश, ज्ञान, गुण देता है जिससे मानव अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचने में सफल होता है। शिक्षा के क्षेत्र में आदर्शकाद ने ‘सत्यं शिवं सुन्दर‘ की प्राप्ति का महान उद्देश्य रखा जिससे व्यक्ति का बौद्धिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक विकास सम्भव होता है। इस लोक एवं परलोक के सुखों की प्राप्ति होती है। शिक्षा के पाठ्यक्रम में भाषा, साहित्य, कला, संगीत, धर्म, अध्यात्म के विषयों को भौतिक उद्योगों एवं विज्ञान, तकनीकी विषयों की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। शिक्षा विधि में मौखिक उद्योगों एवं विज्ञान, तकनीकी ‘विषयों की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। शिक्षा विधि में मौखिक उपदेश, अनुदेश एवं स्टाइल पर जोर दिया है। प्रश्नोत्तर, विचार-विमर्श, विवेचन, व्याख्यान प्रणालियों के प्रयोग की संस्तुति की है। कक्षा में तथा कक्षा के बाहर पूर्ण अिनुशासन के लिये जोर दिया और उसके अभ्यास में त्रुटि के लिए दण्ड देने को कहा जिससे सुष्ठ समाज की संरचना सम्भव हुई। शिक्षक को आदर्श और अनुकरणीय बताया परन्तु शिक्षार्थी के व्यक्तित्व को भी उच्च स्थान दिया। दोनों के मिल-जुल कर काम करने में ही व्यक्तिगत एवं सामाजिक मुक्ति बताई। विद्यालय वास्तव में आत्मानुभूति के साधन एवं स्थल माने गये। इन सब विशेषताओं के कारण शिक्षा में आदर्शवाद का स्थान बहुत उच्च रहा और आज भी है। इस सम्बन्ध में प्रो० रस्क के शब्द ये हैं-

“ये शक्तियाँ और इनके उत्पाद्य, मनुष्य के लिए विशेष रूप में हैं और उसे जानवरों से अलग करती हैं, वे जैविक और मनोवैज्ञानिक, विधायक विज्ञानों की सीमा के बाहर हैं, वे ऐसी समस्या खड़ी करते हैं जिसे हल करने में केवल दर्शन ही सहायता कर सकता है तथा दार्शनिक युग में वे, शिक्षा का एक मात्र सन्तोषजनक, आधार बनाती हैं।”

आलोचकों ने इसमें नीचे लिखे गुण बताये हैं-

(1) सच्चरित्र पूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होना।

(2) व्यक्ति में आत्मानुशासन इन्द्रियनिग्रह और आत्मनियन्त्रण पर अधिक बल देना।

(3) शिक्षा के उद्देश्यों को निश्चित करना और स्पष्ट संकेत करना ।

(4) विचारों और आदर्शों के आधार पर निश्चयात्मक शिक्षा प्रदान करने के लिए जोर देना।

(5) शिक्षा तथा शिक्षक का गौरवपूर्ण स्थान देना तथा इन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाने वाला मानना।

(6) शिक्षार्थी के व्यक्तित्व को आदर देना और आदर्शपूर्ण बनाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करना।

(7) आध्यात्मिक, धार्मिक, नैतिक ज्ञान-शिक्षा पर अधिक बल देना और भौतिकवादी शिक्षा को कम महत्व देना।

(8) संस्कृति, सभ्यता, सद्गुणों की सुरक्षा का आधार आदर्शवादी शिक्षा को ही मानना।

(9) जीवन के सत्य, ईश्वर की खोज और परमानन्द की प्राप्ति आदर्शवादी शिक्षा द्वारा ही सम्भव होना।

दोष-

(1) शिक्षा का आध्यात्मिक लक्ष्य अव्यवहारिक होना, सभी समय के लिए सम्भव नहीं होना।

(2) भौतिक युग में एकमात्र आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था सफल नहीं हो सकती, लोगों की आवश्यकतानुकूल न होना ।

(3) विद्यार्थी को शिक्षक के अधीन करने में उनके व्यक्तित्व की पूर्ण अभिव्यक्ति न होना।

(4) मौखिक एवं अनुदेशन की विधियों का समयानुसार अनुपयुक्त होना ।

(5) समयानुकूल पाठ्यक्रम में परिवर्तन न होना, परम्परावादी पाठ्यक्रम का अनुचित होना।

(6) अनुशासन में दण्ड का विधान आज अमान्य होना, व्यक्तित्व के स्वतन्त्र विकास में बाधा पहुँचना।

निष्कर्ष-

यह कहना सही है कि आज के भौतिकवादी जगत में आदर्शवादी शिक्षा उचित नहीं ठहरती, परन्तु शिक्षा में आदर्शवाद का महत्व इससे कम नहीं होता है। सही दृष्टिकोण से देखने पर ज्ञात होता है। आदर्शवाद सभी विचारधाराओं की मूल है। आदर्श की स्थापना सभी विचारधाराओं में होती है। यह ‘आदर्श’ तो आदर्शवाद की ही देन है। तभी तो आदर्शवाद सभी अन्य विचारधाराओं में निहित पायी जाती है। कहीं भी कोई शिक्षा-व्यवस्था निर्धारित तो की ही जाती है। जहाँ ऐसी मान्यता एवं धारणा से काम होगा वहाँ आदर्शवाद का प्रयोग पाया जावेगा। इसलिए मानव को अपनी भाग-दौड़ में आदर्शवाद की सहायता लेनी ही पड़ेगी, इससे उसे छुटकारा नहीं मिलता। आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था मनुष्य को रोटी-कपड़ा-मकान दिलाने में बाधक नहीं होती है बल्कि सहायक होती है। उसमें एक ऐसा दृष्टिकोण भी लाने में मदद करती है जिससे उसे मानसिक सुख सन्तोष भी मिले। अतएव आदर्शवाद शिक्षा का अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण आधार होता है। (Idealism becomes therefore the most necessary and important basis of education.)। आज भी आदर्शवाद शिक्षा को ठोस आधार प्रदान करता है, उसके विकास के लिए प्राविधान करता है और इसीलिए प्रत्येक देश की शिक्षा पर उसका काफी प्रभाव पड़ता है।

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