शिक्षाशास्त्र / Education

प्रयोजनवाद का अर्थ | प्रयोजनवाद दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन

प्रयोजनवाद का अर्थ

प्रयोजनवाद का अर्थ | प्रयोजनवाद दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन

“प्रयोजनवाद” या फलकवाद” का अंग्रेजी पर्यायवाची है-Pragmatism । अग्रेजी के इस शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द ‘Pragma’ से हुयी मानी जाती है, जिसका सामान्य अर्थ है-किया गया कार्य, व्यवसाय अथवा “प्रभावपूर्ण” कार्य। इस प्रकार ‘Pragmatism’ का शाब्दिक अर्थ हुआ “व्यवहारिकता”। विचारधारा के रूप में कहा जा सकता है कि प्रयोजनवाद। इनके व्यवहारिक परिणामों में पाया जाता है। परिणामों के सन्तोषजनक होने पर वे सत्य, इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करता है जिसके अनुसार समस्त मूल्यों, विचारों और निर्णयों असन्तोषजनक होने पर असत्य होते हैं।

परिभाषाएँ

प्रयोजनवाद को विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(1) प्रैट के अनुसार, “प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धान्त, सत्य का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त और वास्तविकता का सिद्धान्त देता है।”

(2) ब्राइट मैन के अनुसार, “प्रयोजनबाद सत्य का मापदण्ड है। मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि यह वह सिद्धान्त है, जो समस्त विचार-प्रक्रिया के सत्य की जाँच उसके व्यवहारिक परिणामों से करता है। यदि व्यवहारिक परिणाम सन्तोषजनक हैं, तो विचार प्रक्रिया को सत्य कहा जा सकता है।”

(3) विलियम्स जेम्स के अनुसार, “प्रयोजनवाद ही मस्तिष्क का स्वभाव और दृष्टिकोण है। यह सत्य और विचारों की प्रकृति का भी सिद्धान्त है। निर्णय रूप में यह वास्तविकता का भी सिद्धान्त है।”

इस प्रकार उपर्युक्त वर्णित परिभाषाओं द्वारा प्रयोजनवाद का सामान्य परिचय प्राप्त हो जाता है। प्रयोजनवाद का अर्थ हैंडरसन के शब्दों में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-“प्रयोजनवाद के अनुसार यदि कोई बात अनुभव में कार्य करती है, तो वह उसको सत्य बनाती है, किसी भी सिद्धान्त की सत्यता, उसकी कुशलता से जानी जाती है। सत्य का निर्माण मनुष्य करता है। किसी बात को अनन्त सत्य नहीं कहा जा सकता है। सत्य परिणामों के अनुसार बदलता रहता है। केवल वही बात सत्य है जो विशेष परिस्थितियों में सत्य होती है। परिस्थितियां बदलती रहती हैं, इसलिए सत्य भी बदलता रहता है। जो बात आज सत्य है, वह कल असत्य हो सकती है।”

प्रयोजनवाद की विशेषताएं

(1) बाल केन्द्रित शिक्षा- प्रयोजनवादी शिक्षा का सबसे बड़ा गुण है कि इसमे पुस्तकीय ज्ञान की अवहेलना की गई है और बालक की शिक्षा का केन्द्र बिन्दु बताया गया है।

(2) क्रिया का महत्त्व- प्रयोजनवदी, विचारों की अपेक्षा क्रिया को अधिक महत्त्व देते हैं। प्रयोजनवादियों ने विचारों को व्यवहार के अधीन कर दिया है, फलस्वरूप शिक्षा में सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक बल न देकर व्यवहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया है।

(3) प्रोजेक्ट योजना का महत्त्व- शिक्षा की प्रोजेक्ट योजना प्रयोजनवादियों की ही देन है। इस पद्धति में बालकों को अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति के विकास का अवसर प्राप्त होता है।

(4) व्यावहारिक जीवन को महत्त्व- प्रयोजनवादी शिक्षा बालक को व्यावहारिक जीवन के हेतु तैयार करती है। आधुनिक युग में इस बात की बहुत अधिक आवश्यकता है। जो शिक्षां बालक को उत्तम नागरिक न बना सके वह शिक्षा व्यर्थ है। प्रयोजनवादी शिक्षा बालक का उत्तम नागरिक बनाने में समर्थ है।

(5) सामाजिक और जनतांत्रिक शिक्षा- प्रयोजनवादी शिक्षा सामाजिक आर जनतांत्रिक शिक्षा है। इससे बालक में स्वतन्त्रता और समानता आदि गणों का विकास होता है। इसमें मानवतावादी दृष्टिकोण भी आता है।

(6) एकता पर बल- प्रयोजनवादी शिक्षा में बद्धि की एकता और ज्ञान की एकता पर बल दिया जाता है, क्योंकि इस विचारधारा में यह मान्यता है कि एकता विकास का साधन है

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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