भूगोल / Geography

द्वितीय हरित क्रांति

द्वितीय हरित क्रांति

भारत में कृषि उत्पादन मंथर, स्थिर एवं कुछ क्षेत्रों में हासमान है। कृषि क्षेत्र में वर्तमान वृद्धि दर 1.6 प्रतिशत (2008-09) है। इससे कृषि में स्फूर्ति हेतु नवीन कृषि क्रान्ति लाने की जरूरत है। नीचे इसके लिए कुछ नृतन विकल्पों का उल्लेख किया गया है।

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने के कारण कृषि उत्पादों की मांग बड़ी तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए कृषि में 4% की वार्षिक उच्च वृद्धि दर प्राप्त करना अनिवार्य है और यह उपलब्धि तत्काल ही प्राप्त कर लेनी चाहिए। इस उपलब्धि को विभिन्न स्तरों पर अनेक राज्यों एवं ऐजेंसियों द्वारा किए कृषि सुधारों की गुणवत्ता तथा मांग में सुधार करके ही प्राप्त किया जा सकता है। इन सुधारों का उद्देश्य सतत आधार पर तथा समग्र ढांचे में संसाधनों के प्रभावी प्रयोग तथा मृदा, जल एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण पर होना चाहिए। ऐसे समग्र ढांचे में जल, सड़क तथा विद्युत जैसी ग्रामीण आधारभूत संरचना का वित्त पोषण सम्मिलित होना चाहिए।

  1. हरित क्रान्ति को कृषि के नये क्षेत्रों में लागू करने की आवश्यकता है। एतदर्थ पारिस्थितिक विशेषताओं के आधार पर नये बीजों का अनुसंधान कर इसे मोटे अनाजों, दलहन, तिलहन, मुद्रादायिनी एवं चारा आदि फसलों में लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है।
  2. वर्तमान आवश्यकताओं पर ध्यान देते हुये इसके अंतर्गत दालों एवं तिलहन की फसलों के उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  3. भारत ऐसे जन संकुल देश में हरित क्रान्ति के अंतर्गत ऐसी प्रौद्योगिकी के अपनाये जाने की आवश्यकता है जिसकी लागत कम हो तथा जिससे श्रम का न्यूनतम विस्थापन संभव हो।
  4. हरित क्रान्ति को अधिक प्रभावी बनाने के लिये समुचे देश को कृषि-जलवायु प्रदेशों (agro-climatic regions) में बाँटकर तदनुरूप कृषि योजनाओं के बनाने और क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है।
  5. जल संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए सिंचाई एवं जल-प्रबन्धन की नई विकास विधि को अपनाये जाने की जरूरत है। इसमें जहाँ एक तरफ अधिक जल ग्रहण करने वाली फसलों की कृषि को अनुत्साहित करने की आवश्यकता है वहीं बौछारी सिंचाई (sprinkle irrigation), स्रब सिंचाई (drip-irrigation), द्विभित्ति सिंचाई (biwall irrigation ) आदि की विधियों से जल का संरक्षण किया जा सकता है।
  6. हरित क्रान्ति को कारगर बनाने के लिए राइजोवियम, नील-हरित शैवाल (algae) आदि जैव रसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
  7. अभी तक हरित क्रान्ति सुविकसित सिंचाई एवं वर्षा वाले क्षेत्रों में लोकप्रिय रही है। इसे शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों (देश का 70% कृषित क्षेत्र) में शुष्क प्रदेशीय कषि के माध्यम से विकसित करने की आवश्यकता है।
  8. हरित क्रन्ति के अन्तर्गत जैव विविधता को संरक्षित करने की आवश्यकता है। एतदर्थ नवीन शोधों द्वारा देशी प्रजातियों को सुधार कर स्थानीय दशाओं के अनुकूल नयी प्रजातियों को विकसित करने पर बल दिया जाना चाहिये।
  9. ऐसी सहकारी समितियों का गठन किया जाना चाहिये जिससे छोटे एवं सीमान्त कृषकों को उन्नत बीज, उर्वरक, मशीन आदि क्रय करने हेतु कम व्याज पर ऋण उपलब्ध हो सके। किराये पर टैक्टर, हारवेस्टर आदि की उपलब्धि छोटे किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
  10. कृषि उत्पादों के मूल्य की एक सन्तुलित नीति होनी चाहिये जिससे कृषकों को कृषि उत्पादों का समुचित लाभ मिल सके तथा वे कृषि में अधिकाधिक निवेश हेतु प्रोत्साहित हो सकें।
  11. अन्त में भारत में हरित क्रान्ति के जनक डॉ० एम० एस० स्वामीनाथन के सुझावों के अनुसार पंजाब आदि हरित क्रान्ति के क्रोड क्षेत्रों में अधः संरचनात्मक सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता है जिससे नवीन हरित क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके। इन सुविधाओं में भूमि सुधार, रैयतदारी पद्धति में संशोधन, ग्रामीण परिवहन एवं संचार तंत्र में सुधार, ग्रामीण विद्युतीकरण, बैंक, विपणन, भण्डारण, फसल बीमा, प्रशिक्षण एवं कृषि शोध आदि को प्रोत्साहन दिया जाना सम्मिलित है।

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों ने ही वैज्ञानिकों को दूसरी हरित क्रान्ति में सहयोग के लिए आह्वाहन किया है । प्रधानमंत्री ने 7 मार्च, 2005 को कृषि में निवेश के घटाव को रोकने के लिए ‘नवीन सव्यवहार’ (deal) का आश्वासन दिया है जिसमें कृषि शोध, सिंचाई एवं बंजर भूमि विकास हेतु अधिक धनराशि की व्यवस्था है। इस नवीन संव्यवहार के प्रमुख आयामों मं राष्ट्रीय बागवानी मिशन (मई 2005 से शुरू), ग्रामीण रोजगार सृजन, कृषि आय में वृद्धि तथा खड़ी एवं पोषणिक सुरक्षा शामिल हैं। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कृषि मे 4 % की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। किसे सिंचाई, जल प्रबंधन, बंजर भूमि विकास, कृषि विविधीकर, कृषि आदान एवं कृषि शोध कू बढ़ावा देकर प्राप्त करने की रणनीत बनाई जा रही है।

11वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में इस प्रकार के समग्र ढांचे पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। इस पत्र में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित नीति का उल्लेख किया गया है:

(i) सिंचित क्षेत्र की वृद्धि दर को दो गुना करना।

(ii) जल संसाधन में सुधार करना, वर्षो जल का सचयन तथा जल संभार विकास।

(iii) निम्नस्तरीय भूमि का पुनरुद्धार करना तथा मृदा की गुणवत्ता पर ध्यान देना।

(iv) प्रभावी विस्तार के माध्यम से ज्ञान के अंतर को पाटना।

(v) उच्च मूल्य वाली उपज, जैसे-फल, सब्जियां, फूल, जड़ी-बूटी, मसालें, औषधीय पौधे, बांस, बायोडीजल आदि फसलों को उगाना। किंतु ऐसा करते समय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना।

(vi) पशुपालन तथा मत्स्यपालन को बढ़ावा दना।

(viil) आसान दरों पर ऋण उपलब्ध कराना।

(vii) प्रोत्साहन ढांचा तथा बाजारों की कार्य प्रणाली में सुधार लाना।

(ix) कृषि सुधार संबंधी मुद्दों पर फिर से विचार करना।

 

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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