स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत का औद्योगिक विकास

स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत का औद्योगिक विकास | भारत में नगरों की वृद्धि

स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत का औद्योगिक विकास | भारत में नगरों की वृद्धि | Industrial development of India during the independence period in Hindi |  Growth of cities in India in Hindi

स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत का औद्योगिक विकास

स्वतंत्रता के बाद औद्योगिक विकास, सिंचाई तथा जलविद्युत परियोजनाएँ, प्रशासनिक कार्य, शरणार्थियों का पुनर्वास तथा बड़े नगरों का विकास आदि भारत में नगरों के विकास के लिये मुख्यतः उत्तरदायी कारक रहे हैं।

बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास से भिलाई, रूरकेला, दुर्गापुर, बोकारो आदि नगर स्थापित हुए। मोदीनगर सिंद्री, चित्तरंजन आदि औद्योगिक समूह के रूप में विकसित हुए। बरौनी तथा अंकलेश्वर पेट्रोलियम केंद्र के रूप में पनपे

सिंचाई तथा जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना ने नंगल, संबलपुर, विकासनगर जैसे नगरों के विकास को प्रोत्साहन दिया।

अनेक नियोजित नगर प्रशासनिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए, जैसे-चंडीगढ़, भुवनेश्वर, गाँधीनगर, दिसपुर आदि कल्याणी, उल्हासपुर, बेलघरिया, राजपुरा, फरीदाबाद, हस्तिनापुर आदि नगर शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये विकसित किये गये।

बड़े नगरों के विकास के कारण उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में अनेक छोटे नगर विकसित होकर बड़े नगर बन जाते हैं। दिल्ली के निकट गाजियाबाद, नोयडा, रोहतक, गुड़गाँव, फरीदाबाद ऐसे ही नगर हैं।

भारत में नगरों की वृद्धि (Growth of Cities in India)

भारत में बीसवीं शताब्दी में नगरों की वृद्धि तालिका में प्रदर्शित है-

वर्ष / आकार

1

2

3

4

5

6

योग

1901

24

42

135

393

750

490

1834

1911

23

39

142

364

731

495

1776

1921

28

45

153

370

741

583

1920

1931

33

54

193

439

806

524

2049

1941

47

77

246

505

931

404

2210

1951

74

95

330

621

1146

578

2844

1961

102

129

449

732

739

179

2330

1971

145

178

570

847

641

150

2541

1981

216

270

739

1048

742

230

3245

1991

300

345

944

1170

740

198

3697

2001

393

401

1151

1344

888

191

4368

स्रोत (Census of India) 1971, 1981, 1991, 2001

तालिका से स्पष्ट होता है कि भारत में नगरों की संख्या 1901 से 1911 तथा 1961 के अपवाद सहित निरंतर बढ़ रही है। उक्त वर्षों में नगरों की संख्या में गिरावट दर्ज हुई। नगरों की यह नकारात्मक वृद्धि इन विशिष्ट वर्षों में नगरीय क्षेत्र की परिभाषा में परिवर्तन के कारण रही। तालिका में प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी के नगरों की संख्या में भारी वृद्धि दृष्टिगोचर होती है। ये नगर छोटे नगरों से जनसंख्या को आकर्षित करते रहे हैं। इसके विपरीत, पाँचवी तथा छठी श्रेणी के नगरों की संख्या में 1951 के पश्चात् तीव्र गिरावट दर्ज हुई है।

राज्य स्तर पर प्रथम श्रेणी के नगरों की संख्या स्वतंत्रता के पश्चात् सभी राज्यों में बढ़ी है। उत्तर प्रदेश प्रथम श्रेणी के 42 नगरों सहित प्रथम स्थान पर रहा तथा महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ सहित) अवरोही क्रम में अन्य राज्य रहे।

1951 के पश्चात् असम, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम तथा नागालैंड को छोड़कर सभी राज्यों में द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के नगरों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई। आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार तथा राजस्थान में चतुर्थ श्रेणी के नगरों की वृद्धि हुई। उत्तर-पूर्वी राज्यों में तृतीय आदि। महाभारत युग के उत्तरार्द्ध में कुरूक्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक एवं सामरिक केंद्र के रूप में उभरा। कालांतर में पानीपत, सोनीपत, कैथल, जींद, थानेश्वर, करनाल, पेहुवा आदि अनेक नगर कुरूक्षेत्र के आस-पास स्थापित हुए।

धर्म भारतीय जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है। मंदिरों ने दक्षिण भारत में सांस्कृतिक तथा राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यहाँ मदुरै, काँचीपुरम, तंजावुर आदि मंदिर-नगर स्थापित हुए।

500 ई.पू0 से 650 ई. का समय भारतीय इतिहास में चिरसम्मकत काल के रूप में माना जाता है। इस युग में तक्षशिला, नालंदा, सांची, भरहुत, राजगीर, कौशाम्बी आदि नगर उदित हुए। युगांधर नामक प्राचीन नगर सतलज-यमुना विभाजक में उस स्थान पर बसा था, जहाँ आज जगाधरी स्थित है।

सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग भारत आया था। उसने वर्तमान जगाधरी नगर के स्थान पर सरुधान नामक नगर का वर्णन किया है। यह एक प्रसिद्ध बौद्ध तथा ब्राह्मण शिक्षा का केंद्र था, जो अब खंडहर बन चुका है। एक अन्य नगर सुनेत सतलज नदी के किनारे, लुधियाना से 4 किमी दूर बसा था। हिसार के 22 किमी उत्तर पश्चिम में अवशेष नामक नगर स्थित था, जहाँ आज अगरोहा गाँव विद्यमान है। थानेश्वर हर्ष के शासनकाल में एक समृद्ध नगर था।

दसवीं शताब्दी अथवा राजपूत युग में राजपूत राजाओं के पारस्परिक युद्धों के कारण भारतीय समाज में असुरक्षा व्याप्त थी। इससे नगरों का पतन हुआ।

भारत पर मुसलमानों की विजय से देश में नगरों की वृद्धि हुई। अकबर तथा शेरशाह सूरी के शासनकाल में सड़कों व सरायों के निर्माण तथा व्यापार के विकास के कारण अनेक नगर स्थापित हो गये। अधिकांश नगर चहारदीवारी वाले नगर या दुर्ग नगर (fort towns) के रूप में उदित हुए। दक्षिण भारत में हैदराबाद तथा सिकंदराबाद एवं उत्तर भारत में लखनऊ, आगरा तथा लुधियाना प्रसिद्ध मध्य युगीन नगर हैं। शाहजहानाबाद तथा अहमदाबाद के चहारदीवारी वाले नगर भी प्रमुख मध्ययुगीन नगर हैं। दिल्ली एक विशिष्ट नगर हैं जो ऐतिहासिक काल में कई बार उजड़ा तथा बसा है। उत्तर मुगलकाल में जयपुर तथा जोधपुर न गर राजपूत राजाओं द्वारा स्थिापित किये गये।

उत्तर मध्य काल में, बंबई (मुंबई), सूरत, मद्रास (चेन्नई), कलकत्ता (कोलकाता), कालीकट, पाण्डिचेरी, माहे, कोचि, ट्रंकुबार, गोआ, दमन, दीव आदि पत्तन नगर व्यापार के विकास के परिणाम स्वरूप स्थापित हुए।

ब्रिटिश काल में नगर के विस की पर्याप्त प्रोत्साहन दिया गया। 1854 में रेलमार्ग तथा बाद में सड़कों का निर्माण नगरों की वृद्धि के प्रमुख कारक रहे। पत्तन नगरों को उनकी पृष्ठभूमि से जोड़ा गया। परिणामतः प्रमुखा परिवहन मार्गों पर अनेक नगर विकसित हो गये। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अनेक नगर औद्योगीकरण के कारण विकसित हुए। जमशेदपुर औद्योगिक नगर का सर्वोत्तम उदाहरण है। ब्रिटिश शासकों ने भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया, फलतः अलीगढ़, रूड़की आदि नगर शिक्षा केंद्रों के रूप में उदित हुए। ब्रिटिश शासकों ने पहाड़ों पर ग्रीष्मकालीन राजधानियों के रूप में भी अनेक नगरों की स्थापना की। 1947 तक शिमला भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी रहा। दार्जिलिंग, उटकमंड, नैनीताल, डलहौली, मसूरी, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर आदि भी पर्वतीय नगरों के रूप में विकसित हुए। ब्रिटिश शासकों ने बवीना, देवलाली, महू आदि अनेक छावनी नगर भी स्थापित किये।

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