भाषा विज्ञान

स्वन विज्ञान | ध्वनि विज्ञान | ध्वनि विज्ञान की शाखाएँ | स्वन विज्ञान की उपयोगिता

स्वन विज्ञान | ध्वनि विज्ञान | ध्वनि विज्ञान की शाखाएँ | स्वन विज्ञान की उपयोगिता

स्वन विज्ञान (ध्वनि विज्ञान)

ध्वनि (स्वन) के अध्ययन या शास्त्र विज्ञान के लिए अंग्रेजी में फोनेटिक्स और फोनौलॉजी शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है। दोनों का सम्बन्ध ग्रीक शब्द से है जिसका अर्थ ध्वनि है। ‘टिक्स’ और ‘लॉजी’ मुख्यतया विज्ञान के समानार्थी हैं। इस प्रकार दोनों ही ध्वनि विज्ञान हैं। किन्तु प्रयोग की दृष्टि से इनमें अन्तर है।

स्वन विज्ञान में हम सामान्य रूप से ध्वनि की परिभाषा, भाषा ध्वनि, ध्वनियों के उत्पन्न करने के अंग, ध्वनियों का वर्गीकरण और उनका आदि पर विचार करते हैं। साथ ही भाषा विशेष की ध्वनियाँ, उनका उच्चारण तथा वर्गीकरण आदि भी इसके अन्तर्गत आता है।

संस्कृत में ध्वनि विज्ञान का पुराना नाम शिक्षाशास्त्र’ था। हिन्दी में इस प्रसंग में ‘फोनेटिक्स’ के लिए मुख्यतः ध्वनि विज्ञान, ध्वनि शास्त्र अथवा स्वन विज्ञान आदि नाम पुकारे जाते हैं।

ध्वनि विज्ञान की शाखाएँ

ध्वनि अध्ययन के तीन आधार हैं-

(i) उच्चारण, (ii) प्रसारण या संवहन, (iii) श्रवण ।

इसी आधार पर ध्वनि विज्ञान की मुख्यतः तीन शाखाएं मानी जाती हैं-

(i) औच्चारणिक ध्वनि विज्ञान-इसमें उच्चारण तथा उससे जुड़ी बातों का अध्ययन किया जाता है।

(ii) सांवहनिक या प्रासरणिक ध्वनि विज्ञान- इसमें उच्चारण के परिणामस्वरूप बनने वाली ध्वनि लहरों का अध्ययन होता है। इस अध्ययन में प्रायः काइमोग्राफ, स्पैक्टोग्राफ, ऑसिलोग्राफ, आदि यंत्रों से सहायता प्राप्त की जाती है।

(iii) श्रावणिक ध्वनि विज्ञान- इसमें ध्वनियों के सुने जाने का अध्ययन किया जाता है।

स्पष्ट है कि प्रथम शाखा का सम्बन्ध बोलने वाले से, तीसरी का सुनने वाले से और दूसरी का ध्वनियों की वाटिनी तरंगों, उनके स्वरूप तथा गति आदि से अर्थात् दोनों शाखाओं की मध्य की स्थिति से है।

स्वन विज्ञान की उपयोगिता

Van Riper ने स्वन विज्ञान की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए कहा है- “Without phonetics any person in the field of general speech is considered literate.”

स्वन विज्ञान के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं-

विदेशी भाषा की शिक्षा- विदेशी भाषा की शिक्षा को सीखते समय उसकी ध्वनियों को भली भाँति सिखाना स्वन विज्ञान का प्रधान लक्ष्य है। स्वन विज्ञान के द्वारा भाषा को सहज, शीघ्र तथा शुद्ध रूप से सीखा जा सकता है। किसी भी भाषा के उत्तम उच्चारण की शिक्षा प्राप्त करने के लिए दस का ध्वन्यात्मक विश्लेषण करना परम आवश्यक है। स्वनियों का विश्लेषण के लिए ध्वन्यात्मक प्रशिक्षण आवश्यक होता है। इस प्रशिक्षण में ध्वनियों को बार-बार सुनकर जिस प्रकार श्रवण शक्ति को तीव्र बनाना पड़ता है। उसी प्रकार भाषणावयवों की हर माँस पेशी को नवीन ध्वनि के उच्चारण के लिए अभ्यरत करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त ध्वन्यात्मक प्रशिक्षण के लिए ध्वनि लिपि की भी सहायता लेनी पड़ती है।

मातृभाषा का विश्लेषण- अपनी मातृभाषा के सही उच्चारण के लिए स्वन विज्ञान सहायक होता है। कुछ ध्वनिविदों के अनुसार प्रत्येक भाषा का एक न एक आदर्श रूप होता है। आदर्श भाषा की बोली को बोलने वाला चाहे तो स्वन विज्ञान की सहायता से अपनी बोली में सुधार करके भाषा के आदर्श रूप को बोल सकता है। उदाहरणार्थ, यदि कोई वांगरू या कन्नौजी भाषा हिन्दी के आदर्श रूप खड़ी बोली को अच्छे ढंग से बोलना चाहता है तो, वह स्वन विज्ञान की सहायता लेकर शीघ्रता से सफलता प्राप्त कर सकता है। अतः कहा जा सका है कि एक उच्चारण-पद्धति के स्थान पर दूसरी को अपनाने में सबसे अधिक सहायक स्वन-विज्ञान है।

दोषयुक्त भाषा का संशोधन- व्यक्ति के भाषणावयवों के गठन के किसी दोष के कारण भाषा विकृत हो सकती है और दूसरे व्यक्ति के त्रुटिपूर्ण अभ्यास के कारण उसकी भाषा में दोष हो सकता है। अधिकांशतः स्वरों और व्यंजनों के वास्तविक पर विशेष ध्यान नहीं दिया करता। विदेशी भाषा के क्षेत्र में जो पद्धति अपनायी जाती है, उसी का उपयोग यहाँ भी करके उच्चारण पद्धति को सही बनाया जा सकता है। जहाँ पर भाषणावयवों के गठन के दोष होने के कारण भाषण में अवश्यम्भावी दोष होते हैं, वहाँ स्वन विज्ञान के स्वतंत्र विभाग का आश्श्रय लेना पड़ता है, जिसे स्पीच थेरेपी या अर्थोफोनिक कहते हैं। इंग्लैण्ड में इस स्पीच थेरेपी के प्रशिक्षण के लिए कम से कम तीन वर्ष लगते हैं, परन्तु अमेरिका में इसके लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं है। परन्तु दोनों देशों में थियेटर, सिनेमा, टेलिविजन आदि के माध्यम से भाषण प्रस्तुत करने के स्वन विज्ञान में प्रशिक्षण अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि उच्चारण में विशेष सावधानी से काम लेना पड़ता है।

विभिन्न लेख-पद्धतियों का अध्ययन- स्वन-विज्ञान आज उच्चारण सम्बन्धी परिष्कार के लिए ही प्रयुक्त नहीं होता है, बल्कि वह लिपि के निर्माण और सुधार में भी योग देता है। सैकड़ों अफ्रीका और अमरीकन इण्डियन भाषाओं का वैज्ञानिक ध्वन्यात्मक विश्लेषण करके उनके लिए उत्तम लिपिमालाएँ सृजित की गई है। अंग्रेजी जैसी उन्नत भाषा की लिपि और उच्चारण में जो विषमता है, उसके सुधार में भी स्वन-विज्ञान का ही उपयोग किया जाता है। साधारण ही नहीं, असाधारण लिपियों की सृष्टि में भी स्वन-विज्ञान अपूर्व सहायक सिद्ध हुआ। शौर्टहैण्ड, टेलीग्राम- कोड तथा अन्धों के लिए लिपि बनाने में स्वन-विज्ञान की सहायता ली है अंघों के लिए मेरिक साहब ने एक अन्तर्राष्ट्रीय लिपि की सृष्टि की है।

भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन- भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में स्वन-विज्ञान बहुत सहायक है। एक भाषा की किसी अन्य सम्बन्ध भाषा के साथ अथवा एक भाषा को उसकी बोलियों के साथ तुलना करने में ध्वनि लिपि से काम लिया जाता है, क्योंकि किसी एक भाषा में व्यहृत लिपि द्वारा दूसरी प्रामाणिक भाषा तथा उसकी बोलियों में पाई जाने वाली विशेषताओं को प्रदर्शित करना कठिन है। इसलिए भाषाओं की ध्वनियों के बीच पाये जाने वाले सूक्ष्मातिसूक्ष्म भेदों को प्रदर्शित करने के लिए ध्वनि लिपियों का व्यवहार अनिवार्य होता है।

भाषाओं का ऐतिहासिक अध्ययन- किसी भाषा के ऐतिहासिक अध्ययन के लिए भी स्वन- विज्ञान से काम लेना पड़ता है। भाषा के पूर्वकालिक रूप में ध्वनियों का क्या स्वरूप था तथा आज उनका क्या स्वरूप है इसकी तुलना करने के लिए स्वन-विज्ञान से परिचित होना अत्यावश्यक है। किसी भी भाषा का ऐतिहासिक व्याकरण देखने से यह बात सहज ही ज्ञात हो जायेगी एक भाषा के विभिन्न कालों में पाये जाने वाले परिवर्तन तथा एक भाषा भी अन्य भाषा से ऐतिहासिक सम्बन्ध स्थापित करने में भी स्वन-विज्ञान का ज्ञान बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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