भाषा विज्ञान

भाषा विज्ञान | भाषा विज्ञान के प्रमुख रूप | भाषा विज्ञान की अध्ययन पद्धति | भाषा विज्ञान की वर्णात्मक एवं ऐतिहासिक पद्धति

भाषा विज्ञान | भाषा विज्ञान के प्रमुख रूप | भाषा विज्ञान की अध्ययन पद्धति | भाषा विज्ञान की वर्णात्मक एवं ऐतिहासिक पद्धति

भाषा विज्ञान

भाषा विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भाषां का विस्तृत अध्ययन किया जाता है यह अध्ययन कई दृष्टियों से होता है इसी आधार पर भाषा विज्ञान की अलग-अलग शाखा अथवा रूप निर्धारित किये गये हैं, इन्हें ही इस विज्ञान के अध्ययन की दिशायें भी कहा जाता है, इन तीन रूपों के नाम हैं-

(1) वर्णनात्मक अथवा विवरणात्मक (Descriptive linguistics)

(2) तुलनात्मक भाषा विज्ञान (Comparative linguistics)

(3) ऐतिहासिक भाषा विज्ञान (Historical linguistics)

कुछ लोग चौथे रूप की भी कल्पना करते हैं जिसे वे प्रायोगिक भाषा विज्ञान कहते है। इस का ही पर्याप्त प्रचार है वहाँ हम पाठ्यक्रम में निर्धारित तीनों रूपों का ही वर्णन करेंगे।

  1. वर्णानात्मक भाषा विज्ञान – इसमें किसी एक भाषा का, किसी काल में ध्वनि, रूप, शब्द, अर्थ, वाक्य रचना का आधार पर अध्ययन किया जाता है। आज का भाषा विज्ञान जिसे वर्णनात्मक भाषा विज्ञान कहते हैं, वास्तव में विश्लेषणात्मक है। इसलिए इसे विश्लेषणात्मक भाषा विज्ञान भी कह सकते हैं। इसमें ध्वनि, रूप, वाक्य, रचना आदि का वर्णन या विवरण होने के साथ सरंचना के उपकरणों का पूरा विश्लेषण भी होता है।
  2. तुलनात्मक भाषा विज्ञान- जिसमें दो या दो से अधिक भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है उसे तुलनात्मक भाषा विज्ञान कहते हैं। इस रूप का इस में विशेष महत्व है, क्योंकि वस्तुतः तुलनात्मक अध्ययन ने ही भाषा विज्ञान को जन्म दिया है। उदाहरण के लिए जब प्रारम्भ में पश्चिम के मनौवैज्ञानिकों ने विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में निकटता स्थापित की तो उसका प्रमुख साधन तुलनात्मक अध्ययन ही था। जैसे संस्कृत के पितृ को लेकर उसके अन्य भाषाओं के इसी अर्थ को व्यक्त करने वाले शब्दों के साथ तुलनात्मक अध्ययन को लिया जा सकता है-

संस्कृत

लैटिन

ग्रीक

फारसी

प्राचीन अंग्रेजी

आधुनिक अंग्रेजी

पितृ

Platre

Pate

पिदर

Facter

Father

  1. ऐतिहासिक भाषा विज्ञान- किसी एक भाषा के विभिन्न कालो के विवरण जब मिला दिये जाते हैं तब उसे ऐतिहासिक अध्ययन कहते हैं। इस प्रकार इसमें किसी भाषा के इतिहास का अध्ययन किया जाता है तथा सिद्धान्त की दृष्टि से उस समय के परिवर्तन सम्बन्धी सिद्धान्तों, नियमों तथा कारणों आदि का निर्धारण होता है।

जहां वर्णनात्मक इस में किसी भाषा का सीमित अध्ययन होता है वहीं ऐतिहासिक इस में गतिशीलता होती है क्योंकि इसमें किसी भाषा का विकासात्मक अध्ययन होता है। उदाहरण के लिए यदि हम हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले काम हाथ शब्दों के विकास को जानना चाहें तो प्राकृत आदि में होते हुए संस्कृत भाषा के इसी अध्ययन के सहारे इस प्रकार पहुंच सकते हैं-

काम हिन्दी

> कुम्भ (प्राकृत)

> कर्म (संस्कृत)

हाथ हिन्दी

>हत्थ (प्राकृत)

> हस्त (संस्कृत)

इस प्रकार हिन्दी के अनेक शब्दों का उद्भव एवं विकास जानने के लिए हमें संस्कृतप्राकृत प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं के रूपों का अध्ययन करना पड़ेगा। यह अध्ययन ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। इस प्रकार इस का विशेष महत्व है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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